मंगलवार, 5 नवंबर 2019

ऑलंपिक खेलों की मशाल हाथ में.... एक सपना सच हो गया...!!

जापान जैसा मैंने जाना-6

अपन के हाथ में ऑलंपिक मशाल.. टोक्यो में 2020 में होने वाले ऑलंपिक खेलों की मशाल...वह भी वास्तविक,बिना किसी मिलावट के।इन तस्वीरों के गलियारे में थोड़ा और आगे बढ़ेंगे तो इन खेलों के शुभंकर ‘मिराइतोवा’ को भी आप मेरे साथ देख पाएंगे...लगता है मुझे यहाँ के हैप्पीनेस शुभंकर ‘बिलिकेन’की दुआएं मिल गयी हैं तभी तो सालभर पहले और यहाँ तक कि ऑलंपिक खेलों की आधिकारिक तौर पर मशाल यात्रा शुरू होने के पहले ही मशाल को हाथ में लेने का अवसर मिल गया. बिलिकेन को आप भूले तो नहीं न क्योंकि पिछली एफिल टावर वाली कड़ी में ही तो हमने उनकी चर्चा की थी.
बहरहाल,अब से ठीक साल भर बाद दुनिया भर के दिग्गज खिलाड़ी टोक्यो में 2020 में होने वाले ऑलंपिक खेलों में एक-एक पदक के लिए अपनी पूरी ताक़त दांव पर लगा रहे होंगे।...आखिर खेलों के इस महाकुम्भ में अपना जलवा दिखाने और अपने देश के राष्ट्रध्वज-राष्ट्रगान के साथ गर्व से सीना चौड़ा कर, सैकड़ों कैमरों की चकाचौंध का सामना करने के लिए ही तो वे सालों-साल अपनी यह ऊर्जा संजो कर रखते हैं। वहीँ, खिलाडियों ही नहीं,खेलों से दूर रहने वालों के लिए भी ऑलंपिक खेलों की मशाल थामना गौरव की बात होती है। मैं भाग्यशाली हूँ कि मुझे मशाल थामने के साथ साथ ऑलंपिक शुभंकरों के साथ तस्वीर लेने का मौका भी मिल गया। दरअसल, जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान जापान ने यहाँ आने वाले विदेशी मेहमानों के लिए एक विशाल प्रदर्शनी भी लगायी थी। इस प्रदर्शनी में ऑलंपिक मशाल,शुभंकर और खेलों के आयोजन में सहभागी बनने वाले रोबोट सहित तमाम चीजें उनके वास्तविक रूप-रंग-आकार और प्रकार में प्रदर्शित की गयी थीं ।
जापान की राजधानी टोक्यो में 24 जुलाई से 9 अगस्त 2020 तक ऑलंपिक खेल होंगे और इसके ठीक बाद 25 अगस्त से 6 सितम्बर के बीच पैरा ऑलिम्पक खेलों का आयोजन होगा। एकतरह से इन खेलों का काउंट डाउन शुरू हो गया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि टोक्यो दो बार ऑलंपिक खेलों की मेजबानी करने वाला एशिया का पहला शहर है। वहीँ, जापान में चौथी बार ऑलंपिक खेलों का आयोजन हो रहा है ।
तस्वीरों में दिख रही इस गुलाबी-सुनहरे रंग की ओलंपिक मशाल को जापान के मशहूर डिजाइनर तोकुजिन योशीओका ने डिजाइन किया है। मशाल की डिजाइन यहाँ बहुतायत में मिलने वाले चेरी फूल से प्रेरित है। चेरी, अब हमारे देश में शिलांग सहित पूर्वोत्तर के कई शहरों में फूलने लगी है। हालाँकि जापान जैसी विविधता अभी हमारे देश में तो नहीं मिलती लेकिन इसके रंग यहाँ जरुर बिखरने लगे हैं और मेघालय की राजधानी शिलांग में तो जापान की तर्ज पर अब बाकायदा ‘चेरी ब्लोसम’ जैसे आयोजन भी होने लगे हैं।
यह मशाल जापान में अगले साल 26 मार्च से अपनी यात्रा शुरू कर 121 दिनों में पूरे देश का चक्कर लगाकर टोक्यो पहुंचेगी। खास बात यह है कि टोक्यो ओलंपिक खेलों की मशाल सिर्फ धावकों के लिए नहीं है, बल्कि हम-आप जैसे लोगों के लिए भी है । मशाल को लेकर दौड़ने के लिए 10 हजार लोगों का चयन किया जा रहा है और इसके लिए जापान ही नहीं दुनिया भर से लोग आवेदन कर रहे हैं। आप भी चाहे तो इसका हिस्सा बन सकते हैं।
इन ऑलंपिक खेलों का आधिकारिक शुभंकर मिराइतोवा है। जापानी कलाकार रियो तानिगुची द्वारा निर्मित इस शुभंकर को दो हजार से ज्यादा शुभंकरों के बीच से एक प्रतियोगिता के माध्यम से चुना गया है । मिराइतोवा का नाम जापानी शब्दों ‘मिराई’ और ‘तोवा’ को मिलाकर रखा गया है जिसका अर्थ ‘उम्मीदों भरा भविष्य’, वहीँ पैरा ऑलंपिक खेलों के शुभंकर का नाम सोमिटी है जिसका अर्थ है ‘शक्तिशाली’।
इन ऑलंपिक खेलों की एक अन्य खूबी यहाँ खेलों में हाथ बंटाने वाले रोबोट होंगे। ये भविष्य केन्द्रित(फ्यूचरिस्टिक) रोबोट न केवल खेलों में एथलीटों और दर्शकों का स्वागत करेंगे बल्कि खेलों के आयोजन स्थलों तक पहुँचने में भी सहायक बनेंगे। जापान इन खेलों के दौरान चार प्रकार के रोबोट की सहायता ले रहा है...तो तैयार हो जाइये, आधुनिकता और तकनीक के मिश्रण के साथ दुनिया के प्राचीनतम और सबसे प्रतिष्ठित खेल आयोजन का साक्षी बनने के लिए।
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जापान में एफिल टावर और पेरिस..!!!

जापान जैसा मैंने जाना-5

जापान में एफिल टॉवर या पेरिस और न्यूयार्क का सा नज़ारा... सुनकर आश्चर्य होता है न,मुझे भी हुआ जब बताया गया कि ओसाका, जहां जी- 20 शिखर सम्मेलन हुआ था, में एफ़िल टॉवर है!! बस फिर क्या था हमने ओसाका पहुंचकर सबसे पहला काम एफ़िल टॉवर देखने का किया। जब वहां पहुंचे तो एफ़िल टावर तो नहीं उसकी प्रतिकृति जरूर मिली लेकिन आकर्षण और लोकप्रियता के मामले में उससे एक कदम भी पीछे नहीं। दरअसल,ओसाका का सबसे बड़ा आकर्षण यहाँ के शिनसेकाई (Shinsekai) इलाक़े में स्थित यह सुटेनक्कु टॉवर (Tsutenkaku Tower) है। इसे ओसाका का एफिल टावर कहा जाता है और हम समझने के लिए इसे दिल्ली के इण्डिया गेट और जनपथ मार्केट का मिला जुला रूप कह सकते हैं। जापानी शब्द सुटेनक्कु का मतलब स्काई रूट टॉवर है और यहाँ सुबह से लेकर रात तक स्थानीय और हम जैसे विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है। इसका कारण इस इलाक़े की रौनक, सुन्दर-रंग बिरंगी बनावट,सस्ता सामान मिलना और जापान से जुड़े स्मृति चिन्ह मिलने का सर्वप्रमुख स्थान होना है।
जब इस टावर के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि मूल टावर का निर्माण 1912 में हुआ था। मूल टॉवर के शीर्ष को पेरिस के एफिल टॉवर के समान ही बनाया गया था। 64 मीटर ऊंचा यह टावर उस समय एशिया की दूसरी सबसे बड़ी संरचना थी । 1943 में आग लगने से यह बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया इसलिए इसे यहाँ से हटा दिया गया था । बाद में, स्थानीय लोगों ने इसी स्थान पर नए टॉवर के निर्माण के लिए अभियान चलाया और तब जाकर 1956 में मौजूदा टावर अस्तित्व में आया। अब 103 मीटर ऊँचें, इस स्मारक को आर्किटेक्ट ताचू नितो ने बनाया था, जिन्होंने टोक्यो टॉवर भी डिजाइन किया था।
टॉवर की 4 और 5 वीं मंजिल तक जाकर पर्यटक ओसाका शहर की स्काई लाइन और पूरे शहर के विहंगम दृश्य का आनंद ले सकते हैं। इसके लिए 500 येन या तक़रीबन 400 रुपए टिकट लगती है। टॉवर में एक संग्रहालय भी है जहाँ ओसाका,इस इलाक़े और जापान की कला संस्कृति पर केन्द्रित भरपूर भंडार है। टॉवर को जब रात में रोशन किया गया है तो यहाँ पूरा इलाक़ा रंगबिरंगी रोशनी से सराबोर हो जाता है। यहाँ लोग बताते हैं कि टावर की रोशनी मौसम के साथ रंग भी बदलती है,साथ ही टॉवर पर लगी घड़ी जापान में सबसे बड़ी है।
शिनसेकाई (Shinsekai) इलाके की भी अपनी एक अलग कहानी है। बताया जाता है कि इसे ओसाका प्रीफेक्चर अर्थात ओसाका संभाग में एक मनोरंजन शहर के रूप में डिजाइन किया गया था, और मूल रूप से इसे न्यूयॉर्क और पेरिस शहरों की रंगीनियत और रूमानियत देने का प्रयास किया गया है। शिनसेकाई का शाब्दिक अर्थ भी है- नई दुनिया और अपनी आधुनिक छवि के कारण यह क्षेत्र वाकई ओसाका के लोकप्रिय स्थानों में से एक है।
शिनसेकाई क्षेत्र के चारों ओर आपको स्थानीय शुभंकर बिलिकेन (Billiken)की मूर्तियाँ और चित्र लगे दिखेंगे और बड़ी संख्या में लोग इन्हें खरीदते भी हैं । बिलिकेन को जापान में गुड लक का प्रतीक या अच्छी किस्मत देने वाला देवता माना जाता है इसलिए कहा जाता है कि बिलिकेन की मूर्ति के पैर छूने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। हमने भी छुए। बहरहाल सच्चाई जो भी हो लेकिन मेरे लिए तो ओसाका जाकर जी-20 जैसे बड़े कार्यक्रम को कवर करना ही किसी गुडलक से कम नहीं था इसलिए बिलिकेन से जुड़ी कहानी पर भरोसा करने में कोई बुराई नहीं है।

इस सोच के साथ कैसे करेंगे हम जापान की बराबरी..!!

जापान जैसा मैंने जाना-4

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बढ़िया सूट-बूट पहने कोई व्यक्ति साइकिल चला रहा हो या कोई महिला साल-दो साल के बच्चे को लेकर साइकिल पर बाज़ार करने या ऑफिस जाने को निकली हो,वो भी बेखौफ-बिंदास-बेझिझक!..हमारे देश में कोई ऐसा करेगा तो शायद दूसरे दिन अख़बारों में उसकी फोटो छप जाए लेकिन जापान में यह आम बात है. ओसाका,जहाँ जी-20 देशों का शिखर सम्मेलन हुआ था,वहां बड़ी संख्या में महिला/पुरुष/युवा/बच्चे सभी बड़े आराम से साइकिल पर घूमते नजर आते थे और वहां के लोगों से बातचीत में पता चला कि पूरे जापान में साइकिल के प्रति इसीतरह का प्रेम है.
न गाड़ियों की कर्कश चिल्लपों, न बेतहाशा भागते लोग एवं वाहन और न ही रेड लाइट पर हमारे जैसी चीख-पुकार...सब कुछ सुकून/शांति/आराम और सम्मान से....सम्मान पैदल यात्रियों का और सम्मान साइकिल सवारों का. जापान साइकिल की सवारी के मामले में भले ही दुनिया मे नीदरलैंड,डेनमार्क और जर्मनी जैसे देशों से पीछे हो लेकिन शायद हम से बहुत आगे है. हमारे देश में दुनिया भर में कुल साइकिल उत्पादन का 10 फीसदी हिस्सा बनता है लेकिन साइकिल चलाना हमें गंवारा नहीं है. जापान के सिर्फ ओसाका शहर में ही 10 लाख से ज्यादा साइकिल हैं जबकि आबादी हमारे भोपाल जैसी ही मतलब 18-20 लाख के आसपास है. यदि हम ओसाका की तुलना भोपाल से करें तो साइकिल को लेकर मानसिकता साफ़ जाहिर हो जाती है. भोपाल में साइकिल चलाने के लिए आम लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए स्मार्ट साइकिल सर्विस शुरू की गयी थी. अब तक इसके लिए महज 65 हजार लोगों ने ही रजिस्ट्रेशन कराया है और प्रतिदिन औसतन 1200 लोग ही साइकिल चलाते हैं. वैसे इसमें निजी तौर पर साइकिल चलाने वालों की संख्या शामिल नहीं है लेकिन वो भी कितनी होगी? दरअसल साईकिल चलाने के लिए मानसिकता चाहिए और हमारे यहाँ तो साइकिल गरीबी की पहचान है. अब भले ही मोटापे से मुक्ति,तोंद से छुटकारे और डाक्टर की सलाह पर मन मारकर साइकिल चलाने लगे हैं लेकिन वे भी बस पार्क या घर के आसपास तक ही सीमित हैं तभी तो जब कोई सांसद/विधायक साइकिल पर संसद/विधानसभा पहुँच जाता है तो वह खबर बन जाता है जबकि जापान जैसे देशों में यह सामान्य बात है.
जापान में हर व्यक्ति दिनभर में औसतन 15 प्रतिशत यात्राएँ साइकिल से ही करता है और यक़ीनन जापानियों की छरहरी काया का राज भी यही है। ओसाका में मुझे तो कोई तोंद वाला और बेढब काया वाली महिला नज़र नहीं आयी। अब आप कह सकते हैं सूमो पहलवान भी तो जापानी हैं लेकिन वह एक अलग नस्ल है और यहां हम जापान के सामान्य लोगों की बात कर रहे हैं। हाल के वर्षों में यहां 10 लाख से अधिक बाइक(साइकिल) हर साल बेची जाती हैं। जापान में मोटरसाइकिलों के विकल्प के रूप में साइकिल का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। बहुत सारे लोग ट्रेन स्टेशनों पर सवारी करने के लिए उनका उपयोग करते हैं। आजकल अधिक से अधिक जापानी ट्रैफिक जाम और भीड़ वाली ट्रेनों से बचने के लिए साइकिल चला रहे हैं। हर जगह साइकिल खड़ी करने के लिए बाकायदा साईकिल स्टैंड बने हुए हैं- माल में,ऑफिसों में,आम बाज़ारों में,फुटपाथ पर,बस स्टाप पर सभी जगह आधुनिक साइकिल स्टैंड हैं. लोग नियम से साइकिल पार्क करते हैं और ज़ेबरा क्रासिंग पर लोग लालबत्ती होने का इंतजार नहीं करते बल्कि साइकिल और पैदल यात्रियों को सुकून और शांति से निकलने देते हैं. वाहनों की लाइन होने के बाद भी कोई हार्न बजा-बजाकर पूरे इलाक़े को सर पर नहीं उठाता बल्कि आगे बढ़ने के लिए चुपचाप अपनी बारी का इंतज़ार करता है।
...और अंत में सबसे सुखद अहसास..यहाँ लड़कियां और महिलाएं अपने मन मुताबिक कपड़े पहनकर मन चाहे समय तक पैदल और साइकिल पर घूमती हैं लेकिन उन पर कोई फब्ती नहीं कसता,कोई आंख फाड़ फाड़कर नहीं देखता,कपड़ों की आड़ लेकर कोई बलात्कार नहीं करता और उन्हें नारीत्व को लेकर कोई शर्म का अहसास नहीं कराता...बस यहीं हम बहुत पीछे हैं और शायद कभी जापान की बराबरी भी न कर पाएंगे।
#Japan #G20 #Osaka #Bicycle #Car #Cycle

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...