रविवार, 30 मई 2010

कैसे कैसे रिश्तेदार

देश भर में इन दिनों शादी और छुट्टी का मौसम है इसलिए सभी ओर रिश्तेदारों(relatives) की बहार आई हुई है. शर्माजी भागकर वर्माजी के घर जा रहे हैं तो वर्माजी पहले ही गुप्ताजी के घर जाने के लिए निकल चुके हैं. दरअसल कोई भी अपने घर नहीं रहना चाहता क्योंकि यदि वो खुद कहीं नहीं गया तो उसके घर कोई आ धमकेगा. इस भीषण गरमी के मौसम में कोई भी रिश्तेदार को अपने घर में टिकाने का जोखिम नहीं लेना चाहता. खासकर दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में तो हालत और भी ख़राब हैं. यहाँ लोगों के अपने ही रहने का ठिकाना नहीं है तो फिर मेहमानवाजी कैसे कर सकते हैं पर छुटिओं में छोटे शहरों के रिश्तेदारों को महानगर जाना ही ज्यादा पसंद आता है इसलिए वे इन शहरों में रहने वाले दूर-दराज के रिश्तेदारों को भी खोज निकलते हैं और पूरे दलबल के साथ उनके घर जा धमकते हैं. वह तो उनसे उनके दिल का हाल पूछिए जो भरी गरमी में बूँद-बूँद पानी की कमी और एक एसी के सहारे किस तरह इस रिश्तेदारी की सजा को भुगतते हैं.
सबसे बुरा हाल तो उनका होता है जिन्हें इस मौसम में शादी करनी पड़ती है. शादी करने,कराने और शामिल होने वाले सभी परेशान होते हैं. उत्तर भारत के अधिकतर छोटे शहरों में इन दिनों १५ से १८ घंटे तक बिजली नहीं रहती. ऐसे में शादी करना-कराना खुद सोच लीजिये किसी युद्ध जीतने से कम काम नहीं होता.मुझे भी कुछ इसी तरह की शादियों में जाने का अनुभव हुआ और इसे अनुभव से ज्यादा सजा कहना अधिक उचित होगा. सबसे पहले तो ट्रेनों में ठसाठस भरे लोग ,महीने-दो महीने पहले से ही आरक्षण बंद और जुगाड़ तथा टीसी को मनमाने पैसे देने के बाद भी बमुश्किल बैठ पाने का इंतजाम. स्टेशनों पर शीतल जल के नलों से निकलता उबलता पानी, खाने के नाम पर बासी सब्जी-पूरी और बदबू मारते समोसे ,सीट पर पसीने से तरबतर सहयात्री और हर छोटे-बड़े स्टेशन से चढ़ता लोगों का रेला. इस संघर्ष यात्रा से गुजरकर शादी वाले घर पहुंचे तो वहां ४५ डिग्री तापमान में बिना बिजली के तलती तेल की पुरियां और आलू की रसीली सब्जी से होता स्वागत. भोजन-नास्ते के नाम पर वही वनस्पति घी से तर पकवान और चिर-परिचित पसीना. रिशेप्सन के नाम पर एक-एक पूरी के लिए एक दूसरे पर गिरते लोग, कृत्रिम मेकअप को रसगुल्ले के लिए पसीने में बहाती महिलाएं. बाद में लड़की के पिता की माली हालत का अंदाज़ा लगाकर शादी की रस्मों को छोटा-बड़ा करता पंडित. विदाई के वक्त घडियाली आंसू बहते रिश्तेदार और फिर विदाई में मिले उपहार की मीन-मेख निकलते बाराती. सबकुछ असली पर शादी-दर-शादी किसी फिल्म/धारावाहिक की तरह रिपीट होते द्रश्य .....और फिर आगमन की तरह विदाई की ट्रेन यात्रा, पर घर पहुंचकर सुकून मिलने की इच्छा और पर पानी फेरते रिश्तेदार. यह आपकी भी अर्थात घर-घर की कहानी है ....

शुक्रवार, 28 मई 2010

....मेरी "गंगा माँ" को बचा लो प्लीज

मेरी ममतामयी माँ की जान संकट में है. वह तिल -तिलकर मर रही है और मैं ऐसा अभागा बेटा हूँ जो चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता. दरअसल मेरी माँ की इस हालत के लिए सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि आप सभी ज़िम्मेदार हैं. आप में से कुछ लोगों ने उसे बीमार बनाने में अहम भूमिका निभाई है तो कुछ ने मेरी तरह चुप रहकर इस दुर्दशा तक लाने में मूक सहयोग दिया है.यही कारण है कि आज मुझे आप सभी से माँ को बचने की अपील करनी पड़ रही है.
मेरी माँ का नाम गंगा है...अरे वही जिसे आप सब गंगा नदी(river ganga) या गंगा मैया के नाम से पुकारते हैं. आप सब भी इस बात को मानेंगे कि मेरी माँ ने कभी किसी का ज़रा सा भी नुकसान नहीं किया. वह तो ममता, त्याग, करुणा, वात्सल्य और स्नेह की प्रतिमूर्ती है. आज क्या सदिओं से मेरी माँ हम सब के पाप धोते आ रही है और अनादिकाल से सम्मान पाने में सर्वोपरि रही है. तभी तो इस स्रष्टि के निर्माता ब्रम्हा उसे अपने कमंडल में लेकर चलते थे और सर्वशक्तिमान भगवान् शंकर ने उसे अपनी जटाओं में स्थान दिया. मेरी माँ के विशाल ह्रदय का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजा सगर के पुत्रों को मुक्ति देने के लिए वह धरती पर उतर आई. गंगोत्री से लेकर समुद्र में समाने तक मेरी माँ इलाहाबाद, हरिद्वार, बनारस सहित तमाम जगहों पर हम सब के पाप धोकर सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने का काम ही तो कर रही है. वह न केवल हमारी प्यास बुझा रही है बल्कि हमारा पेट भरने के लिए ज़रूरी अनाज पैदा करने में भी सहभागी बनी हुई है. ...और बदले में हम उसे क्या दे रहे हैं - कारखानों की ज़हरीली गंदगी, नालों का सड़ांध से बजबजाता पानी, अधजले शव, चमड़ा उद्योग का प्रदूषण, गटर का पानी, तमाम शहरों का मलमूत्र, पोलीथिन और पता नहीं क्या-क्या ? मेरी माँ इतना अपमान सहकर भी कभी क्रोधित नहीं होती बल्कि इस सब गंदगी को अपने में समेटकर हमें शीतल, मीठा और शुद्ध जल प्रदान करती आ रही है लेकिन बर्दाश्त कि भी हद होती है?अब यदि हम पुण्यसलिला और ममतामयी माँ का अस्तित्व ही ख़त्म करने पर उतारूँ हो गए हैं तो उसे बचने की गुहार तो लगानी ही पड़ेगी.
जिस माँ को धरती तक लाने के लिए भागीरथ को सदिओं तपस्या करनी पड़ी अब उसी माँ को धरती से विदा करने के लिए हम कोई कसर नहीं छोड़ रहे ? याद है मेरी माँ की एक बहन थी जिसे हम सभी 'सरस्वती 'के नाम से जानते हैं और माँ के साथ मिलकर वे इलाहाबाद (प्रयाग) में 'त्रिवेणी' बनाती थी लेकिन हमारी लापरवाही के कारण माँ को अपनी इस बहन को असमय ही खोना पड़ा और अब प्रयाग में त्रिवेणी के स्थान पर 'संगम' ही रह गया है? तो क्या अब मेरी माँ को भी अपनी बहन की तरह असमय ही अपना अस्तित्व खोना पड़ेगा? क्या हम सब ऐसे ही चुपचाप सहते रहेंगे? या मेरी माँ को बचाने के लिए मिल-जुलकर आवाज़ उठायंगे? वैसे हमारी सरकार कई सालों से माँ को बचाने के लिए ढेरों योजनायें बना रही है और अब तक अरबों रूपए खर्च कर चुकी है. आप सभी जानते हैं कि सरकार की योजनायें ज़मीन पर कम और कागजों पर ज्यादा बनती हैं इसलिए इतने साल बाद भी माँ गंगा की बीमारी ठीक नहीं हो सकी है. हाल के कुछ अध्ययनों से खुलासा हुआ है की गंगा जल से अब कैंसर होने तक का खतरा उत्पन्न हो गया है.
क्यों न हम सभी मिलकर एक बार प्रयास करें और गंगा माँ को स्वस्थ करके ही दम लें. तो अब इंतजार किस बात का है? गंगा माँ की बेहतरी की पहल आज से ही क्यों नहीं...?
(क्षमा याचना सहित:हो सकता है कुछ साथी इस पोस्ट को पहले भी पढ़ चुके हों.दरअसल इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर आप सब की बेपरवाह प्रतिक्रियाओं के कारन मैं अपने मित्रों की सलाह पर इस पोस्ट को आंशिक सुधर के साथ फिर से दल रहा हूँ ताकि कुछ तो हलचल हो,कहीं तो लहरें उठे और गंगा माँ हमें फिर से अपने स्नेह के आँचल में ढक लें...)

शनिवार, 22 मई 2010

मंगलौर हादसे ने खोली नेशनल न्यूज़ चैनलों की पोल

राखी सावंत और मल्लिका शेरावत के चुम्बन और अधनंगेपन के सहारे टीआरपी की जंग में अपने आपको नम्बर वन बताने में उलझे कथित नेशनल न्यूज़ चैनलों की पोल शनिवार को मंगलौर विमान दुर्घटना(Mangalore air crash) ने खोलकर रख दी.सुबह ६ बजे हुई इस दुर्घटना तक हमारे नेशनल चैनलों के बाईट-वीर लगभग १० बजे तक पहुँच पाए और इस दौरान वे स्थानीय न्यूज़ चैनलों की ख़बरों और फुटेज को चुराकर “एक्सक्लूसिव” बताकर चलाते रहे. वो तो भला हो टीवी-९, इंडियाविजन और स्वर्ण न्यूज़ का जिनकी बदौलत देशभर को इस घटना की पल-पल की जानकारी मिल पायी.इसके लिए ये चैनल वाकई बधाई के पात्र हैं. कुछ दिन पहले सीआरपीएफ के दल पर हुए नक्सली हमले के दौरान भी कथित नेशनल न्यूज़ चैनलों की असलियत सामने आ गयी थी जब उन्हें इस घटना की जानकारी के लिए स्थानीय साधना न्यूज़ चैनल पर निर्भर रहना पड़ा था.सोचने वाली बात यह है की जब मंगलौर जैसे बड़े और वेल-कनेक्टेड शहर तक पहुँचने में इन चैनलों को चार घंटे लग गए तो किसी दूर-दराज़ की जगह पर कोई बड़ा हादसा हो गया तो ये क्या करेंगे? या इसी तरह नेताओं के बयानों पर दिन भर खेलकर अपनी पीठ थपथपाते रहेंगे?
विमान हादसे में हमारे चैनल ‘चोरी और सीना जोरी’ को चरितार्थ कर रहे थे. उनका पूरा प्रयास था कि स्थानीय चैनलों के नाम न दिखाने पड़े इसलिए उन्होंने स्क्रोल की साइज़ तक बढ़ा दी लेकिन स्थानीय चैनल ज्यादा तेज निकले और वे अपना नाम स्क्रीन के बीचो-बीच चलाने लगे. हद तो तब हो गई जब टाइम्स नॉऊ जैसा अंग्रेज़ी चैनल भी हिंदी के चैनलों की तरह छिछोरेपन पर उतर आया.इससे तो बीबीसी इंडिया बेहतर रहा जिसने फुटेज न होने पर इंडिया गेट दिखाकर काम चला लिया.वैसे इसे भारत ही नही दुनिया भर में सबसे तेज माना जाता है. अब सुनिए नामी न्यूज़ प्रस्तोताओं की दिमागी समझ का आँखों देखा हाल: आजतक पर नवजोत की रूचि इस भयावह दुर्घटना में सबसे ज्यादा इस बात को लेकर थी कि लैंडिंग के पहले सीट बेल्ट बाँधने के लिए अनाउंस हुआ था कि नहीं और उसने यह सवाल कई बार पूछा. एनडीटीवी अपने ग्राफ में विमान को उतरने के साथ ही दुर्घटना ग्रस्त होना बताता रहा तो इंडिया टीवी ने हवाई अड्डे की टेबल टॉप स्थिति को समझाने के लिए स्टूडियो में टेबल ही रख दिया तो स्टार न्यूज़ जैसे चैनल कई देशों में प्रतिबंधित गूगल-अर्थ का सहारा लेते रहे. घटना के चार घंटे बाद भी अधिकतर चैनल यह पता नहीं लगा पाए थे कि कुल कितने लोग मारे गए हैं. यह बात अलग है की ‘सांप मरने के बाद लकीर पीटने’ की तर्ज़ पर हमारे बड़े चैनल दिन भर अपने सबसे आगे रहने, घटना की तह तक जाने और विशेषज्ञता पूर्ण ज्ञान को बघारने में पीछे नहीं रहे लेकिन जब उनकी तेज़ी और कौशल की सबसे ज्यादा ज़रूरत थी तब वे छोटे-स्थानीय चैनलों की मेहनत की कमाई को मुफ्त में अपनी बताकर खाते रहे.
क्षेपक: हमारा राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन हमेशा की तरह इस खबर के पूरीतरह पुष्ट होने का इंतज़ार करता रहा और सबसे आखिर में इस समाचार को अपने दर्शकों तक पहुँचाया.

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...