आप होली की अलमस्ती में डूबने वाले हुरियारे हैं या फिर हत्यारे,यह सवाल सुनकर चौंक गए न?दरअसल सवाल भी आपको चौकाने या कहिये आपकी गलतियों का अहसास दिलाने के लिए ही किया गया है.त्योहारों के नाम पर हम बहुत कुछ ऐसा करते हैं जो नहीं करना चाहिए और फिर होली तो है ही आज़ादी,स्वछंदता और उपद्रव को परंपरा के नाम पर अंजाम देने का पर्व.होली पर मस्ती में डूबे लोग बस “बुरा न मानो होली है” कहकर अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं पर वे ये नहीं सोचते कि उनका त्यौहार का यह उत्साह देश,समाज और प्रकृति पर कितना भारी पड़ रहा है.साल–दर-साल हम बेखौफ़,बिना किसी शर्मिन्दिगी और गैर जिम्मेदाराना रवैये के साथ यही करते आ रहे हैं.हमें अहसास भी नहीं है कि हम अपनी मस्ती और परम्पराओं को गलत परिभाषित करने के नाम पर कितना कुछ गवां चुके हैं?..अगर अभी भी नहीं सुधरे तो शायद कुछ खोने लायक भी नहीं बचेंगे.
अब बात अपनी गलतियों या सीधे शब्दों में कहा जाए तो अपराधों की-हम हर साल होलिका दहन करते हैं और फिर उत्साह से होली की परिक्रमा,नया अनाज डालना,उपले डालने जैसी तमाम परम्पराओं का पालन करते हैं पर शायद ही कभी हम में से किसी ने भी यह सोचा होगा कि इस परंपरा के नाम पर कितने पेड़ों की बलि चढा दी जाती है.पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि अमूमन एक होली जलाने में डेढ़ से दो वृक्षों की जरुरत होती है तो सोचिये देश भर में होने वाले करोड़ों होलिका दहन में हम कितनी भारी तादाद में पेड़ों को जला देते हैं.यहाँ बात सिर्फ पेड़ जलाने भर की नहीं है बल्कि उस एक पेड़ के साथ हम जन्म-जन्मांतर तक मिलने वाली शुद्ध वायु,आक्सीजन,फूल,फल,बीज,जड़ी बूटियाँ,नए पेड़ों के जन्म सहित कई जाने-अनजाने फायदों को नष्ट जला देते हैं.इसके अलावा उस पेड़ के जलने से वातावरण में कार्बन डाईआक्साइड जैसी विषैली गैसों की मात्रा बढ़ा लेते हैं.होली जलने से दिल्ली सहित देश के सभी नगरों-महानगरों का पहले से ही प्रदूषित वातावरण और भी ज़हरीला हो जाता है.इससे सांस एवं त्वचा की बीमारियों सहित कई रोग होने लगते हैं.
यह तो महज प्राकृतिक नुकसान है आम लोगों को होने वाला शारीरिक और भावनात्मक नुकसान तो और भी ज्यादा होता है.सरकारी तौर पर प्रतिबन्ध के बाद भी हम राह चलते लोगों पर रंग भरे गुब्बारे(बैलून) फेंकते हैं और ऐसा करने में अपने बच्चों का उत्साह भी बढ़ाते हैं.यहाँ तक की गुब्बारे भी हम ही तो लाकर देते हैं.इन गुब्बारों से कई बार वाहन चलाते लोग गिर कर जान गवां देते हैं,आँख पर बैलून लगने से देखने की क्षमता,कान पर लगने से बहरापन और अनेक बार सदमे में हृदयाघात तक हो जाता है.होली पर रासायनिक रंगों के इस्तेमाल से त्वचा पर संक्रमण,जलन,घाव हो जाना तो आम बात है.इसके अलावा इन रंगों के उपयोग से वर्षों पुराने सम्बन्ध तक खराब हो जाते हैं और रंग छुड़ाने में हर साल देश का लाखों लीटर पानी बर्बाद होता है सो अलग.बूंद-बूंद पानी को तरस रहे लोगों-खेतों के लिए यह पानी अमृत के समान है जिसे हम अपने एक दिन के आनंद के लिए फिजूल बहा देते हैं.यह प्राकृतिक संसाधनों की हत्या नहीं तो क्या है?
होली पर शराब का सेवन अब फैशन बन चुका है.होली ही क्या अब तो लोग दिवाली जैसे त्योहारों पर भी शराब को सबसे महत्पूर्ण मानने लगे हैं.होली पर शराब पीकर हम अपनी जान तो ज़ोखिम में डालते ही हैं सड़क पर चलने वाले अन्य लोगों की जान के लिए भी ख़तरा बने रहते हैं.नशे में की गई कई गलतियाँ जीवन भर का दर्द बन जाती हैं.इससे रिश्तों पर असर पड़ता है और सार्वजानिक रूप से हमारी और हमारे परिवार की छवि भी बिगड़ती है.अब सोचिये महज एक दिन के आनंद के लिए मानव और प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहचाना,अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाना और अपनी एवं अपने करीबी लोगों की जान गंवाना कहाँ तक उचित है?अब आप ही तय कीजिये कि आप हुरियारे हैं या हत्यारे?