बुधवार, 7 दिसंबर 2011

फेसबुक ने किया भारतीय सुरक्षा से खिलवाड़

सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक भारतीय नेताओं की छवि के साथ खिलवाड़ तो कर ही रही है अब उसने देश की सुरक्षा व्यवस्था को भी गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाने की कवायद शुरू की है। फेसबुक के एक एप्लीकेशन की मदद से कोई भी व्यक्ति भारत सरकार के आधिकारिक कार्ड की तरह दिखने वाला पहचान पत्र बना सकता है।
खास बात यह है कि फेसबुक द्वारा दिए जा रहे इस कार्ड में भारत सरकार का राष्ट्रीय चिन्ह अशोक चक्र भी है। इसके ऊपर रिपब्लिक ऑफ इंडिया लिखा है, साथ में तिरंगा भी बनाया गया है। कार्ड को और वास्तविक रूप प्रदान करने के लिए फेसबुक ने इस पर बारकोड तथा सुरक्षा चिप की प्रतिकृति (नकल) भी लगाई है।
 फेसबुक पर 'एपीपीएस डॉट फेसबुक डॉट कॉम' पर जाकर कोई भी व्यक्ति यह इंडिया कार्ड बना सकता है। इसके अलावा इस एप्लीकेशन के जरिए वोटर आइडी कार्ड भी बनाया जा सकता है। वोटर आइडी पर साफ-साफ इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया लिखा गया है। इस पर भी बारकोड सहित तमाम सरकारी औपचारिकताएं पूरी की गई हैं। फेसबुक द्वारा भारतीय सुरक्षा व्यवस्था को पहुंचाई जा रही तीसरी चोट फैमिली कार्ड के रूप में है। यह देश के राशन कार्ड की तरह है। इस तरह से कोई भी व्यक्ति चाहे फिर वह किसी आतंकवादी संगठन से जुडा व्यक्ति ही क्यों न हो, फेसबुक का सदस्य बनकर इंडिया कार्ड हासिल कर सकता है। हैरानी की बात यह है कि इंडिया कार्ड को इतनी सफाई से डिजाइन किया गया है कि वह किसी सरकारी संस्थान या भारत सरकार द्वारा जारी पहचान पत्र की तरह लगता है। इसका फायदा उठाकर कोई भी व्यक्ति न केवल देश की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले पुलिसकर्मियों को बरगला सकता है बल्कि देश की सुरक्षा के लिए वाकई खतरा भी बन सकता है। जानकारों ने इस इंडिया कार्ड में अशोक चक्र के इस्तेमाल को फेसबुक के लिए गंभीर चूक करार दिया है। उनका कहना है कि फेसबुक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

गौरतलब है कि सरकार पहले ही फेसबुक जैसी वेबसाइटों को भारतीय नेताओं खासतौर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की छवि से खिलवाड के लिए चेतावनी दे चुकी है। फेसबुक पर इन नेताओं के सैकडों ऐसे चित्र मौजूद हैं जिनमें हास्यास्पद और अश्लील तरीके से इनका मजाक बनाया गया है। दरअसल पश्चिमी देशों से संचालित इन वेबसाइटों के लिए भारत और भारतीय संस्कृति से खिलवाड की कोई नई बात नहीं है। पहले भी कुछ वेबसाइटें भारतीय देवी-देवताओं का मजाक बना चुकी हैं।कभी वे जूते पर तो कभी खाने की प्लेटों पर भगवान गणेश,शंकर और देवी दुर्गा की तस्वीरें लगाती रहती हैं. ब्लेकबेरी नामक मोबाइल सर्विस प्रदान करने वाली कंपनी को तो सरकार को प्रतिबंध लगाने की चेतावनी देनी पडी थी क्योंकि इस साइट से भेजे जाने वाले एसएमएस सरकारी सुरक्षा एजेंसियां नहीं पढ सकती थी।



शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

डॉक्टर क्यों बन रहें हैं रक्षक से भक्षक......!


डॉक्टर द्वारा मरीज के साथ छेड़छाड़, युवती ने डॉक्टर पर लगाया बलात्कार का आरोप,डॉक्टर की लापरवाही से बच्चे की मौत,अस्पताल के बाहर महिला ने बच्चा जन्मा,पैसे नहीं देने पर अस्पताल ने मरीज को बंधक बनाया,मरीज के परिजनों द्वारा डॉक्टर की पिटाई,डॉक्टरों और मरीजों के रिश्तेदारों में मारपीट,डॉक्टर हड़ताल पर जैसी ख़बरें आये दिन समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों की सुर्खियाँ बन रही हैं.एकाएक ऐसा क्या हो गया कि जीवन देने वाले डॉक्टरों पर जीवन लेने के आरोप लगने लगे?
                   समाज में डॉक्टर और मरीज का रिश्ता सबसे पवित्र माना जाता रहा है.मरीज अपने डॉक्टर की सलाह पर आँख मूंदकर भरोसा करता है और डॉक्टर भी पेशागत ईमानदारी के साथ-साथ मरीज के विश्वास की कसौटी पर खरा उतरने में कोई कसर नहीं छोड़ता. वैसे भी डॉक्टर और मरीज के बीच का रिश्ता ही कुछ ऐसा होता है कि दोनों एक दूसरे से कुछ नहीं छिपा सकते.एक-दूसरे को सब कुछ खुलकर बताने के ये सम्बन्ध ही परस्पर विश्वास की डोर को दिन-प्रतिदिन मज़बूत बनाते हैं.मरीज को अपने डॉक्टर के सामने बीमारी के साथ-साथ उस बीमारी के आगे-पीछे की कहानी भी खुलकर बतानी होती है तभी डॉक्टर इलाज या यों कहें कि उपचार का सही रास्ता निकाल पाता है.कहने का आशय यह है कि डॉक्टर और मरीज के ताल्लुकात पति और पत्नी के रिश्ते की तरह खुले होते हैं जहाँ व्यक्तिगत स्तर पर गोपनीयता की कोई गुंजाइश नहीं होती.यदि किसी भी पक्ष ने कोई भी बात छिपाने का प्रयास किया तो संबंधों की नैया डगमगाने लगती है.पति-पत्नी के मामले में जहाँ सम्बन्ध टूटने का ख़तरा होता है तो डॉक्टर मरीज के मामले में गलत इलाज होने का.
                          एक और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि डॉक्टर और मरीज के रिश्तों में भावनात्मक से ज्यादा शारीरिक निकटता जुड़ी होती है मसलन डॉक्टर को यदि बुखार भी नापना है तो उसे या तो मरीज का हाथ पकड़ना होगा,पीठ-पेट को छूकर देखना होगा या फिर आला(स्टेथोस्कोप) को मरीज के सीने से लगाकर देखना होगा.यह तो हुई महज बुखार की बात लेकिन अन्य गंभीर बीमारियों अथवा किसी अंग विशेष से जुड़ी बीमारी के दौरान तो यह निकटता और भी बढ़ जाती है.यहाँ तक की दांत निकलने के लिए भी डॉक्टर को मरीज के बिलकुल करीब जाना पड़ता है.आज के आधुनिक दौर में ब्रेस्ट इम्प्लांट,हायमेनोप्लास्टी,लिपोसक्शन जैसे उपचार आम बात हैं.शरीर के गोपनीय अंगों से जुड़े इन उपचारों को कराते समय यह नहीं देखा जाता कि डॉक्टर पुरुष है या महिला.इसीतरह डॉक्टर की दिलचस्पी मरीज की बीमारी ठीक करने में होती है न कि यह देखने में कि मरीज महिला है या पुरुष.दरअसल परस्पर विश्वास और पेशेगत शिष्टता की सबसे ज्यादा ज़रूरत इसी दौरान होती है.वैसे भी डॉक्टर एवं मरीज के बीच पूरे खुलेपन के बाद भी शिष्टता की एक अनिवार्य लक्ष्मण रेखा होती है.मरीज को भी स्पर्श से पता चल जाता है कि यह डॉक्टर का स्पर्श है या किसी कामुक व्यक्ति का.ठीक इसके उलट डॉक्टर भी मरीज को छूते समय इस बात के प्रति सावधान रहता है कि गलती से भी उस लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन न हो जाये जिसका पालन करने की शपथ उसने ली है.
                        लेकिन मुनाफ़ाखोरी की बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने समाज के तमाम मूल्यों,संस्कारों,निष्ठाओं और सरोकारों की जड़ को खोखला बनाना शुरू कर दिया है.जब पैसा ही समाज में पेशा और मुनाफ़ा संस्कार बन जाए तो किसी भी व्यवसाय का पतन सुनिश्चित है. समाज में आ रहे इन सामाजिक-आर्थिक बदलावों,टीवी-फिल्मों और घर-घर में मौजूद इंटरनेट से मिले खुलेपन,समाज में बढ़ते आपसी अविश्वास,धार्मिक-जातिगत खाइयों के चौड़े होने तथा मानसिक-सांस्कृतिक पतन के कारण संबंधों की पतली परन्तु मज़बूत डोर भी तार-तार हो रही है.जब भाई-बहन,माँ-बेटे और पिता-पुत्री जैसे सबसे विश्वसनीय,प्रगाड़ और सम्मानजनक रिश्तों पर अंगुलियां उठने लगी हैं तो डॉक्टर एवं मरीज का रिश्ता कैसे इस अविश्वास से बच सकता है. मेरे कहने का आशय यह कतई नहीं है मरीज जान-बूझकर डाक्टरों को निशाना बना रहे हैं या फिर डॉक्टर अपनी सीमा लाँघ रहे हैं.हो सकता है चंद कुत्सित इरादों वाले लोग ऐसा सोच-समझकर करते भी हो परन्तु एक-दो लोगों की गलती के आधार पर पूरे पेशे को कटघरे में खड़ा करना उचित नहीं ठहराया जा सकता.हाँ अब बदलते परिवेश और सोच के इस वातावरण में डॉक्टरों को भी अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरुरत है वरना वह दिन दूर नहीं जब कोई महिला मरीज या तो किसी पुरुष डॉक्टर के पास इलाज के नहीं जायेगी और जाना भी पड़ा तो वह डॉक्टर के केबिन में अपने साथ किसी रिश्तेदार को लेकर जायेगी. हो सकता है भविष्य में ऐसी उपचार विधि या मशीन बनानी पड़े जिससे डॉक्टर अपने मरीज को छुए बिना ही इलाज कर सकें.

रविवार, 21 अगस्त 2011

तो क्या अब इंसान बनाएगा ‘रेडीमेड’ और ‘डिजाइनर’ बच्चे...!

भविष्य में इंसान यदि अपने आपको भगवान घोषित कर दे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि उसने अपनी नई और अनूठी खोजों से भगवान की सत्ता को ही सीधी चुनौती दे दी है.किराए की कोख और परखनली शिशु(टेस्ट ट्यूब बेबी) के बाद अब तो वैज्ञानिकों ने बच्चे के आकार-प्रकार में भी परिवर्तन करना शुरू कर दिया है.इसका मतलब है कि अब हर बैठे डिजाइनर और रेडीमेड बच्चे पैदा किया सकेंगे.इसीतरह अपने परिवार के किसी खास सदस्य को भी फिर से बच्चे के रूप में पैदा किया जा सकेगा.यही नहीं इस दौरान उस व्यक्ति की कमियों को दूर कर उसे पहले से बेहतर बनाकर जन्म दिया जा सकेगा.यदि इसमें कापीराइट या पेटेन्ट जैसी कोई बाधा नहीं आई तो घर-घर में आइंस्टीन,महात्मा गाँधी,हिटलर,विवेकानंद,नेल्सन मंडेला,अमिताभ बच्चन,मर्लिन मुनरो,दाउद इब्राहिम या इसीतरह के अन्य नामी-बदनाम व्यक्तियों को बच्चे के रूप में पाया जा सकेगा.
                    अब तक तो हमने देश-विदेश में राजाओं के नामों में दुहराव के बारे में खूब सुना है जैसे हमारे देश में बाजीराव प्रथम,बाजीराव द्वितीय या इंग्लैंड में विलियम वन,विलियम टू,हेनरी प्रथम,द्वितीय एवं तृतीय.लेकिन सोचिये यदि इनके नाम ही नहीं बल्कि रंग-रूप,चरित्र और चेहरा-मोहरा भी एक समान हो जाए तो क्या होगा? देश में सैकड़ों साल तक एक ही बाजीराव या विलियम या हेनरी का शासन बना रहेगा.कांग्रेस में इंदिरा युग,भाजपा में वाजपेयी-आडवानी या लालूप्रसाद,मुलायन,पासवान जैसे नेता अनंत काल तक बने रहेंगे.सरकारों को भी किसी जेपी,अन्ना हजारे या स्वामी रामदेव के आमरण अनशन से डरने की जरुरत नहीं होगी क्योंकि एक अन्ना के बाद दूसरा अन्ना और एक रामदेव के बाद दूसरा रामदेव तैयार किया जा सकेगा.
                                  दरअसल यह संभव हो रहा है वैज्ञानिकों द्वारा डीएनए में किये गए बदलाव से और यह बदलाव भी ऐसा कि कुदरत के करिश्मे को ही पीछे छोड़ दिया गया है.हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक जीवशास्त्री ने चूजे के डीएनए में परिवर्तन कर उसकी चोंच को घड़ियालों में पाए जाने वाले थूथन का सा बना दिया है.सामान्य भाषा में इसे घड़ियाल के मुंह वाला चूजा कहा जा सकता है.इसके लिए मुर्गी के अण्डों में एक छेद कर भ्रूण विकसित होने से पहले जिलेटिन जैसे प्रोटीन का एक छोटा सा दाना डाल दिया गया और चूजा घड़ियाल के मुंह वाला हो गया. अब वैज्ञानिकों का दावा है कि डीएनए परिवर्तन में मिली इस सफलता के जरिये मानव शिशुओं में भी जन्म से पहले बदलाव लाये जा सकते हैं.इस उपलब्धि का एक अच्छा पहलू तो यह है कि इससे शिशुओं की जन्मजात विकृतियों को गर्भ में ही ठीक किया जा सकेगा और कोई भी शिशु मानसिक या शारीरिक विकृति के साथ जन्म नहीं लेगा.
                               इस उपलब्धि के सदुपयोग से ज्यादा दुरूपयोग की आशंका है.इसी मामले में देखे तो घड़ियाल के मुंह वाला चूजा अब दाना चुगने तक को तरस जायेगा. यदि मानव के साथ ऐसा हुआ तो सोचिये मानव संरचना के साथ क्या-क्या और किस हद तक खिलवाड नहीं हो सकता है.कुदरत द्वारा वर्षों के परिश्रम के बाद तैयार संतुलित मानव शरीर को पैसे,शक्ति और शोध के दम पर कोई भी व्यक्ति मनचाहा रूप दे सकेगा.यह बात भले ही अभी दूर की कौड़ी लगे लेकिन हो सकता है भविष्य में फिर कोई हिटलर,सद्दाम या इन्हीं की तरह का तानाशाह रोबोट की तरह काम करने वाले मानवों की फौज तैयार कर ले या दुनिया पर हुकूमत का सपना देख रहा कोई सिरफिरा कुदरत पर इस जीत को मानव सभ्यता के लिए अभिशाप में बदल दे.

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...