शनिवार, 11 जुलाई 2015

सूरज और बादलों की आँख-मिचौली के बीच बेहिसाब झरनों का कलरव


ऐसा लग रहा था मानो सूरज और बादलों के बीच ट्वंटी-ट्वंटी जैसा कोई मुकाबला चल रहा हो..कभी बादल भारी तो कभी सूरज. सूरज को जब मौका मिलता वह बादलों का सीना चीरकर अपनी सुनहरी किरणों को धरती पर बिखेर देता और जब बादल अपनी पर आ जाते तो वे सूरज को भी मुंह छिपाने पर मजबूर कर देते. शिलांग से चेरापूंजी जाते समय आपको आमतौर पर सूरज और बादलों की इस आँख-मिचौली का पूरा आनंद उठाने का मौका मिलता है. तक़रीबन पांच से छः हजार फुट की ऊंचाई पर 10 से 20 डिग्री तापमान में एक ओर रिमझिम फुहारों से तरोताज़ा हुए विविध किस्म के आकर्षक पेड़ कतारबद्ध होकर आपका स्वागत करते हैं तो दूसरी ओर हरियाली की चादर को समेटे गहरे ढलान हमारे मन में खौफ़ जगाने की बजाए उन्हें कैमरों में समेटने की चुनौती सी देते हैं.
यहाँ प्रकृति का इतना मनमोहक रूप किस्मत से ही नसीब होता है क्योंकि दुनियाभर में सबसे ज्यादा बारिश के लिए विख्यात चेरापूंजी यहाँ आने वाले पर्यटकों के सामने अपनी इस विशेषता को प्रदर्शित करने का कोई मौका नहीं छोड़ता. इसके परिणामस्वरूप पूरा सफ़र बस एवं कार की बंद खिड़कियों और इसके बाद भी पूरी बेशर्मी से अन्दर आती पानी की बूंदों से बचने-बचाने की जद्दोजहद में निकल जाता है और लोग यहाँ यत्र-तत्र-सर्वत्र फैले सौन्दर्य को अपनी आँखों में भरकर ले जाने से चुक जाते हैं.
पता नहीं, अब बादलों ने हम पर मेहरबानी दिखाई या फिर सूरज ने पहले ही उनकी नकेल कस दी थी इसलिए लगभग 60 किलोमीटर के इस पर्वतीय सफ़र में बादलों की गुस्ताखी तो पूरी मुस्तैदी के साथ चलती रही परन्तु उनकी इस गुस्ताखी ने सफ़र बिगाड़ने के स्थान पर यात्रा को और भी रमणीय बनाने का काम किया. एक बार पहले भी हम गंगटोक से दार्जिलिंग के सड़क मार्ग से सफ़र के दौरान बादलों और सूरज की ऐसी ही जंग के साक्षी बन चुके हैं लेकिन शिलांग से चेरापूंजी की इस यात्रा की बात ही निराली है. पूरे मार्ग में कहीं पहाड़ी ढलानों में छिपती-छिपाती झरने नुमा पानी की पतली से रुपहली धारा तो कहीं पूरे शोर शराबे के साथ अपने आगमन की सूचना देते छोटे-बड़े जलप्रपातों का समूह आपकी आँखों को स्थित नहीं होने देते.
जैसे ही हम सुनहरी धूप देखकर यहाँ की प्राकृतिक छटा को कैमरे में कैद करने की शुरुआत करते हैं तभी दूर कहीं छिपकर हम पर नजर रखे शरारती बादल एकाएक सामने आकर सुबह को शाम बनाने से नहीं चूकते. अब यह पर्यटकों के कौशल पर निर्भर करता है कि वे कैसे इस हक़ीकत को तस्वीरों में बदल पाते हैं लेकिन दिल से कहें तो बादलों की इन शरारतों के बिना चेरापूंजी का सफ़र अधूरा है. पारदर्शी फुहारों के बीच सात धाराओं को एकसाथ देखने का आनंद कुछ कुछ वैसा ही जैसे बारिश से बचने के लिए हम किसी पेड़ के नीचे खड़े हों और पेड़ हमारे साथ शरारत करने हुए अपनी शाखाओं तथा पत्तियों को हौले से झटक कर तन-मन में फुरफुरी सी पैदा कर दे.
वाकई देश के ईशान कोण में कुछ तो है जो बरबस ही यहाँ खींच लाता है. मेघालय की पहचान चेरापूंजी को पहले सोहरा के नाम से जाना जाता था. बताया जाता है कि अँगरेज़ सोहरा को चेर्रा जैसा कुछ बोलते थे और वहां से बनते-बिगड़ते इसका नाम चेरापूंजी हो गया.हालाँकि अब फिर सरकार ने कागज़ों पर इसका नाम सोहरा ही कर दिया है लेकिन पर्यटन मानचित्र पर चेरापूंजी के सोहरा बनने में अभी समय लग सकता है. यहाँ सालभर में औसतन 11 हजार मिलीमीटर यानि 470 सेंटीमीटर बरसात होती है. दिल्ली-मुंबई में तक़रीबन सालभर में बस 300-600 मिलीमीटर वर्षा होती है पर इतने में भी त्राहि-त्राहि मच जाती है.ऐसे में यदि मेघालय के बादल दिल्ली जैसे महानगरों में चंद मिनट ही डेरा डाल लें तो सोचिए क्या हाल होगा.

बहरहाल, यदि आप प्रकृति से साक्षात्कार करना चाहते हैं तो पूर्वोत्तर और यहाँ भी चेरापूंजी जैसी जगह से बेहतर कोई स्थान नहीं हो सकता. हरियाली की चुनर ओढ़े लजाते-शर्माते से पहाड़, हमारे साथ साथ रेस लगाते पेड़,लुका-छिपी खेलता सूरज और नटखट बादलों की धींगामुश्ती...ऐसा लगता है यही रह जाएँ, बस जाएँ जीवन भर के लिए.  

सोमवार, 6 जुलाई 2015

‘नेट न्यूट्रीलिटी’ यानि इंटरनेट को खेमों में बांटने की साजिश


इन दिनों सोशल मीडिया से लेकर न्यूज़ चैनलों तक और अख़बारों से लेकर पत्रिकाओं तक में ‘नेट न्यूट्रीलिटी’ का मुद्दा छाया हुआ है. देश के बहुसंख्यक लोगों के लिए यह शब्द एकदम नया,अबूझ और कुछ विदेशी रंग लिए हुए है. इसको सही परिपेक्ष्य में समझाने के लिए पहले दूसरे क्षेत्रों के कुछ उदाहरणों की बात करते हैं. मसलन यदि आपने किसी बिल्डर को उसकी मनमानी कीमत देकर मकान ख़रीदा और गृह प्रवेश के साथ ही बिल्डर आपसे कहने लगे कि आप फलां कमरे में नहीं सोएंगे या फलां कमरे को अपना ड्राइंग रूम नहीं बनाएंगे तो आपको कैसा लगेगा.ज़ाहिर सी बात है जब घर आपका है तो यह आप पर निर्भर करता है कि आप उसका कैसे इस्तेमाल करें. इस बात को एक और उदाहरण से समझा जा सकता है मसलन आपने बिजली या पानी का कनेक्शन लिया है और उसका पूरा निर्धारित शुल्क चुका रहे हैं तो कोई कंपनी या सरकार आपसे यह नहीं कह सकती कि आप इस पानी से बर्तन मत साफ़ कीजिए या नहाइए मत या इस बिजली से फ्रिज मत चलाइए इत्यादि. कुछ इसीतरह का मामला इंटरनेट के साथ है और इसके इस्तेमाल में भेदभाव को ख़त्म करने के लिए ही ‘नेट न्यूट्रीलिटी’ शब्द का ईजाद हुआ.
बताया जाता है कि ‘नेट न्यू ट्रलिटी’ शब्द  का सबसे पहले इस्तेेमाल कोलंबिया विश्ववविद्यालय में प्रोफेसर टिम वू ने किया था। ‘नेट न्यूदट्रलिटी’ को हम ‘नेट निरपेक्षता’, तटस्थ  इंटरनेट या नेट का समान इस्तेमाल भी कह सकते हैं। यह मसला पूरी तरह से इंटरनेट की आजादी और बिना किसी भेदभाव के स्वतंत्रता पूर्वक इंटरनेट का इस्तेमाल करने देने का मामला है। सामान्य भाषा में कहें तो कोई भी दूरसंचार कम्पनी या सरकार इंटरनेट के इस्तेमाल में भेदभाव नहीं कर सकती और न ही किसी खास वेबसाइट को फायदा और न ही किसी वेबसाइट को नुकसान पहुँचाने जैसा कदम उठा सकती है.

 इंटरनेट की भाषा में बात करें तो जब आप किसी नेट सेवा प्रदाता या ऑपरेटर से इंटरनेट के उपयोग के लिए कोई डाटा पैक लेते हैं तो यह आपका अधिकार होता है कि आप इसका कैसे इस्तेमाल करें मसलन नेट सर्फ करे या फिर व्हाट्सऐप,स्काइप, वाइबर,हाइक जैसे ऐप के जरिये संदेशों का आदान-प्रदान करें या फिर वॉयस या वीडियो कॉल करे. अब यह तो नहीं हो सकता कि आप को इंटरनेट पैक लेने के बाद भी इन सेवाओं के इस्तेमाल के लिए अलग से पैसा देना पड़े या फिर इंटरनेट सेवा दे रही कंपनी यह तय करे कि आप कौन-कौन सी साईट देखेंगे और कौन सी नहीं? क्योंकि आप पर लगने वाला इंटरनेट शुल्क इस बात पर निर्भर करता है कि आपने इस दौरान कितना डाटा इस्तेमाल किया है। यही नेट न्यूट्रलिटी कहलाती है लेकिन अगर नेट न्यूट्रलिटी खत्म हुई तो हो सकता है कि पैसा चुकाने के बाद भी आपको किसी खास ऐप का इस्तेमाल करने के लिए अलग से शुल्क देना पड़े या कम्पनियां किसी खास एप्लीकेशन के इस्तेमाल से ही आपको रोक दें।

भारत में यह मामला तब चर्चा में आया जब इंटरनेट पर की जाने वाली फोन कॉल्स के लिए दूरसंचार कंपनियों ने अलग कीमत तय करने की कोशिशें की. कंपनियां इसके लिए वेब सर्फिंग से ज़्यादा दर पर कीमतें वसूलना चाहती हैं. इसके बाद दूरसंचार क्षेत्र की नियामक संस्था टेलीकाम रेगुलेटरी अथारिटी आफ इंडिया या भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करते हुए आम लोगों से 'इंटरनेट तटस्थता' पर राय मांगी .

अब सवाल यह उठता है कि टेलीकॉम कंपनियां इस तटस्थता को भंग क्यों करना चाहती
हैं? दरअसल नई तकनीकी ने दूरसंचार कम्पनियों के व्यवसाय को बहुत नुकसान पहुँचाया है. मसलन एसएमएस के जरिये संदेशों का आदान-प्रदान करने की सुविधा को व्हाट्सऐप,स्काइप, वाइबर,हाइक जैसे तमाम ऐप ने लगभग मुफ़्त में देकर कम्पनियों की अकूत कमाई में सेंध लगा दी है. स्काइप के बाद व्हाट्सऐप और इसके जैसी कई इंटरनेट कॉलिंग सेवाओं से देश में और खासकर विदेशी फोन कॉलों पर काफी प्रभाव पड़ रहा है क्योंकि लंबी दूरी की अंतरराष्ट्रीय फोन कॉल के लिहाज से इंटरनेट के जरिए फोन करना कहीं अधिक सस्ता  पड़ता हैं.

यही कारण है कि देश में एयरटेल की अगुआई में देश की तमाम दिग्गज दूरसंचार कंपनियां खुले या छिपे तौर पर गोलबंद होकर व्हाट्सऐप,स्काइप, वाइबर,हाइक जैसे ऐप के बढ़ते उपयोग को देखते हुए अब वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल यानी वीओआईपी सेवाओं के लिए ग्राहकों से अलग से शुल्क वसूलना चाहती हैं। इसकी शुरुआत भी एयरटेल ने की और एक ही डाटा पैक से नेट सर्फ के लिए अलग शुल्क और वाइस कॉल के लिए अलग शुल्क और एयरटेल ज़ीरो जैसी लुभावनी योजनाओं की घोषणा करके नेट निरपेक्षता पर विवाद खड़ा कर दिया। हालांकि जनता,सरकार और इस बदलाव की जद में आने वाली कम्पनियों के दबाव में फोरी तौर पर इन योजनाओं को वापस ले लिया गया लेकिन ‘नेट निरपेक्षता’ का जिन्न अभी पूरी तरह से बोतल में बंद नहीं हुआ है.

वैसे इस मामले में अब तक सरकार का साफ़ कहना है कि इंटरनेट तक पहुंच को लेकर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद कई मंचों पर सरकार की राय स्पष्ट तौर पर रख चुके हैं. उन्होंने इस मामले पर एक कमेटी भी बनाई है जो जल्दी ही इस मसले पर अपनी राय देगी.
इस मुद्दे पर सबसे तीखी प्रतिक्रिया आम जनता या नेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों ने दी है। ट्राई को इस बारे में एक लाख से ज्यादा ईमेल भेजे गए हैं। सोशल मीडिया पर भी यह विषय छाया हुआ है। अब सारा दारोमदार सरकारी रपट,ट्राई की भूमिका और इंटरनेट यूजर्स की एकता पर टिका है क्योंकि मसला लाखों-करोड़ों के मुनाफे का है इसलिए दूरसंचार कम्पनियां इसे इतनी आसानी से नहीं छोड़ सकती. वे ट्राई और सरकार पर बीच का रास्ता तलाशने के लिए दबाव बनाए हुए हैं और चुनावी चंदे की राजनीति में राजनीतिक राय कभी भी परिवर्तित हो सकती है इसलिए यह यूजर्स को ही सुनिश्चित करना होगा कि दूरसंचार कंपनियों के झांसे से कैसे बचना है.
 (चित्र सौजन्य:www.learninginfinite.com)




गुरुवार, 11 जून 2015

मोबाइल खोलेगा घर घर में आईआईएम-आईआईटी जैसे नामी शिक्षा संस्थान

इन दिनों छोटे परदे पर प्रसारित हो रही दूरसंचार सेवा प्रदान करने वाली एक निजी कम्पनी की विज्ञापन श्रृंखला टीवी के साथ साथ सोशल मीडिया पर काफी चर्चित है. रचनात्मक दृष्टि से उत्तम इस विज्ञापन श्रृंखला में उस कम्पनी की मोबाइल इंटरनेट सेवा को किसी विश्वविद्यालय या आईआईएम-आईआईटी जैसे नामी शिक्षा संस्थान की तरह दर्शाया गया है और उस कंपनी के ग्राहक अंग्रेजी सीखने से लेकर हवाई जहाज चलाने और वाहन सुधारने जैसे काम भी मोबाइल कंपनी द्वारा सृजित छदम शैक्षणिक संस्थान से सीखते दर्शाए गए हैं. ये तो रही विज्ञापन की बात परन्तु अब हक़ीकत में भी ऐसा कुछ होने जा रहा है और वो भी सरकारी स्तर पर. फिलहाल यह तो खोज का विषय हो सकता है कि सरकार ने इस कंपनी के विज्ञापनों से प्रेरणा ली है या फिर सरकारी योजना से प्रेरणा लेकर और सरकार में काम की जगजाहिर धीमी रफ़्तार का फायदा उठाकर दूरसंचार कम्पनी ने पहले विज्ञापन शुरू कर दिए. बहरहाल सच्चाई जो भी हो लेकिन इस प्रयास से शिक्षा क्षेत्र में क्रांति आ सकती है.  
दरअसल मानव संसाधन विकास मंत्रालय मंत्रालय देश के पूर्वोत्तर राज्यों और खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में आम लोगों तक गुणात्मक शिक्षा की उपलब्धतता को सुनिश्चित करने के लिए केन्द्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईटी,आईआईएम और एनआईटी जैसे श्रेष्ठतम शिक्षा संस्थानों के सभी डिप्लोमा और कुछ डिग्री पाठ्यक्रमों को देश के सभी नागरिकों को लगभग मुफ़्त में उपलब्ध कराना चाहता है. इस योजना के अंतर्गत आम लोगों को अपने मोबाइल फोन के जरिये मात्र 500 रुपए में देश के इन नामी संस्थानों में पढने,परीक्षा देने और उत्तीर्ण होने का प्रमाणपत्र हासिल करने की सुविधा मिल जाएगी. इसके लिए देशभर में दूरसंचार सेवाओं से सुसज्जित ऐसे 500 केन्द्रों की पहचान की जा रही है जहाँ इन पाठ्यक्रमों से सम्बंधित पढाई और परीक्षा देने की सुविधा मिलेगी.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की मुखिया स्मृति ईरानी ने खुद यह बात हाल ही में पूर्वोत्तर के अपने पहले दौरे के समय पत्रकारों को बतायी. ईरानी का कहना था कि उनका मंत्रालय इसीतरह की कुछ अनूठी योजनाओं पर काम कर रहा है. इन योजनाओं पर अमल से स्कूली शिक्षा ही नहीं बल्कि उच्च शिक्षा भी मोबाइल फोन पर उपलब्ध हो जाएगी और इसका सबसे अधिक फायदा पूर्वोत्तर के राज्यों और इसीतरह के पिछड़ेपन के शिकार अन्य क्षेत्रों के लोगों को होगा.
मानव संसाधन मंत्रालय ने एक मोबाइल ऐप तैयार इसकी शुरुआत भी कर दी है. इस ऐप की मदद से कक्षा पहली से लेकर बारहवीं तक पढाई जाने वाली एनसीआरटीई की सभी पुस्तकें मोबाइल फोन में मुफ़्त डाउनलोड की जा सकेंगी. इससे दूर दराज के इलाकों के बच्चों के सामने समय पर पुस्तकें नहीं मिल पाने की समस्या नहीं रहेगी. इंटरनेट के मामूली शुल्क पर पुस्तकें मिल जाने से अमीर-गरीब सभी परिवारों के बच्चों को न तो हर साल किताबें खरीदनी पड़ेगीं, न ही उन्हें सहेजकर रखने का झंझट होगा और न ही फिर हर दिन बोरे जैसे बस्ते को ढोकर स्कूल ले जाना पड़ेगा बल्कि एक फोन उनका जीवन में पढाई को आसान कर देगा. यह ऐप जल्द जारी होने की सम्भावना है. यही नहीं, दूसरे चरण में अर्थात् दो-तीन माह के भीतर मंत्रालय इसी श्रृंखला का दूसरा ऐप जारी करेगा. यह दूसरा ऐप पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक के बच्चों को इन पुस्तकों पढ़ने और उनके शिक्षकों को इन पुस्तकों से पढ़ाने का तरीका सिखाएगा. इसका तात्पर्य यह हुआ कि देश की समूची स्कूली शिक्षा महज एक मोबाइल फोन में समा जाएगी.

सोचिए, भविष्य में उच्च शिक्षा कितनी सहज,सरल और सस्ती हो जाएगी. घर घर में मोबाइल फोन की तरह आईआईएम-आईआईटी जैसे ‘इलीट’ शिक्षा संस्थानों के डिप्लोमा-डिग्री धारी मिलने लगेंगे और शिक्षा में इन दिनों बन रही अमीर-गरीब,ऊँच-नीच जैसी बुराइयों को जड़ से ख़त्म करने में मदद मिलेगी. सबसे अहम बात तो यह है कि 10 करोड़ से ज्यादा मोबाइल फोन ग्राहकों के फलस्वरूप सभी को शिक्षा देने का संकल्प भी बिना किसी अतिरिक्त खर्च के पूरा किया जा सकेगा. योजना देखने,सुनने,पढने में तो अच्छी लगती है लेकिन यह तो अमल के बाद ही पता चल पायेगा कि जमीनी स्तर पर ये कितनी कामयाब हो पाती हैं और तब तक घर बैठे आईआईएम-आईआईटी में पढ़ने के अपने सपने को जीवित रखिए.

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...