मंगलवार, 5 नवंबर 2019

दोनों हाथ नहीं, फिर भी किया मतदान...!!!


दोनों हाथ न होने के बावजूद दृढ़ इच्छाशक्ति और एक-एक वोट का महत्व समझते हुए मप्र में संस्कारधानी के नाम से मशहूर जबलपुर की एक बेटी ने अपने संस्कारों से न केवल शहर का नाम रोशन कर दिया बल्कि हम जैसे हाथ-आँख-कान वाले लोगों को लोकतंत्र के महापर्व का महत्त्व भी समझा दिया।
लोकतंत्र की सच्ची पहरेदार बिटिया भवानी ने दोनों हाथ नहीं होने के बाद भी मतदान कर एक बेहतरीन मिसाल पेश की है।
ज़ाहिर है यह हमारे लोकतंत्र का सुखद, अविस्मरणीय और खूबसूरत पहलू है। जबलपुर के श्री राम इंजीनियरिंग कालेज की छात्रा भवानी यादव, जिसके दोनों हाथ नहीं है, ने आज अपनी माँ के साथ अन्जुमन स्कूल के पोलिंग बूथ में पहुँचकर मतदान किया। जहां पीठासीन अधिकारी ने तमाम सरकारी औपचारिकताओं को पीछे छोड़कर जमीन पर बैठ कर भवानी के पैर की उंगली में अमिट स्याही का निशान लगा कर ऐसे गर्व की अनुभूति की जो उन्हें ताउम्र अपने इस कार्य के लिए गौरवान्वित करती रहेगी । इसके बाद, अपने नाम को चरितार्थ कर लोकतंत्र की इस दुर्गा (भवानी) ने अपनी पसंद का सांसद चुनने के लिए मां के सहयोग से अपना अमूल्य मतदान किया।
इसे केवल एक चित्र के तौर पर न देखे बल्कि अपने लिए एक सबक/नसीहत और सीख समझे और अपनी नई पीढ़ी को भी दिखाएं-समझाएं कि हमारा लोकतंत्र ऐसी ही वीरांगनाओं के कारण मजबूत हो रहा है,संवर है तो क्यों न हम भी भवानी की ताक़त बने,लोकतंत्र की शक्ति बने और मिल जुलकर ऐसे ही जीवंत लोकतंत्र की नई कहानी के सूत्रधार बने।

सिर ही सिर..हजारों से करोड़ों में बदलते सिर

प्रयागराज कुंभ: जैसा मैंने देखा (6)

10 लाख, 20 लाख,50 लाख,1 करोड़, 5 करोड़, 10 करोड़, 15 करोड़, 20 करोड़......हम-आप गिनते गए और यह संख्या बढती गयी...हमारी-आपकी कल्पना से परे,प्रशासन की गणना से बहुत आगे एवं बीते कुम्भों से अलहदा।..और जब 49 दिन का सफ़र पूरा हुआ तो यह संख्या बढ़कर 24 करोड़ हो गयी....चौबीस करोड़ का मतलब है दुनिया के तक़रीबन सवा दो सौ देशों में आधे से ज्यादा देशों की जनसँख्या से ज्यादा। स्विट्ज़रलैंड और सिंगापुर जैसे देशों से तीन गुना तथा श्रीलंका, सीरिया, रोमानिया, क्यूबा, स्वीडन और बेल्जियम जैसे देशों की जनसँख्या से कहीं ज्यादा। मकर संक्रांति से लेकर महाशिवरात्रि के बीच करोड़ों की इस संख्या का प्रबंधन वाकई किसी चमत्कार से कम नहीं है। मैं आमतौर पर ‘महा’ विशेषण से परहेज करता हूँ लेकिन मैंने अपनी आँखों से अर्ध कुंभ को महाकुंभ में बदलते देखा....दिव्य-भव्य महाकुंभ और वह भी सबसे सुरक्षित और सबसे स्वच्छ।
महाकुंभ में जुटी भीड़ के लिए कोई शब्द तलाशा जाए तो ‘जनसैलाब’ शब्द भी प्रयागराज में उमड़ी भीड़ के सामने लाचार लगा। यदि इससे भी बड़ा कोई शब्द इस्तेमाल किया जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। चारों ओर बस सिर ही सिर नजर आते थे। सभी ओर बस जनसमूह था- प्रयाग आने वाली सभी ट्रेनों में,प्लेटफार्म पर, स्टेशन से आने वाली सड़क पर, बसों में,कार से,पैदल, बस सिर ही सिर ,पोटली लेकर चलते,बैग लादे,बच्चे संवारते, संगम की ओर बढ़ते, गंगा की तेज़ धार से,निर्मल-आस्थावान-सच्चे और सरल लोग। ऐसा लगता था जैसे प्रयाग की सारी सड़कें एक ही दिशा में मोड़ दी गयी हों। बूढ़े, बच्चे, महिलाएं और मोबाइल कैमरों से लैस नयी पीढ़ी, परिवार के परिवार। पूरा देश उमड़ आया था वह भी बिना किसी दबाव या लालच के, अपने आप, स्व-प्रेरणा से...और देश ही क्या विदेशी भी कहाँ पीछे थे। मैंने तो आज तक अपने जीवन में कभी किसी मेले में इतनी भीड़ नहीं देखी। इस कुम्भ का आकर्षण इतना जबरदस्त था कि दुनिया भर से 8 से 10 लाख विदेशी सैलानी भी खिंचे चले आए।इसमें लगभग सवा लाख तो सिर्फ अमेरिका और एक लाख आस्ट्रेलिया से थे।
यह कुंभ कई मायनों में अलग था-महाकुंभ था मसलन कुंभ के इतिहास में संभवतः पहली बार राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कई केंद्रीय मंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों और विभिन्न राज्य सरकारों के मंत्रियों सहित देश में संवैधानिक पदों पर बैठे लगभग सभी प्रमुख लोगों ने न केवल कुंभ का दौरा किया, बल्कि संगम पर डुबकी भी लगाईं।
आमतौर पर कुंभ में स्नान के खास दिनों जैसे मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा, मौनी अमावस्या, वसंत पंचमी, माघी पूर्णिमा और महा शिवरात्रि पर ही भीड़ देखी जाती थी लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि आम दिनों में भी श्रद्धालुओं की भीड़ खास दिनों की तरह बनी रही। पहली बार किसी कुंभ ने तीन विश्व रिकार्ड अपने नाम दर्ज किये और स्वच्छता और सफाई, ट्रैफिक योजना और भीड़ प्रबंधन सहित तीन क्षेत्रों में सफलतापूर्वक अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज करवा लिया।
महाकुंभ तो था ही यह क्योंकि इसका दायरा पिछले कुम्भ के 1600 हेक्टेयर की तुलना में दोगुना यानी 3200 हेक्टेयर से अधिक था। कुंभ 20 क्षेत्रों में विभाजित तो 40 से ज्यादा स्नान घाट 8 किमी के दायरे में फैले थे। विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने और तीर्थयात्रियों को संगम तक पहुंचने के लिए गंगा नदी पर 20 पोंटून पुल अर्थात नाव के अस्थायी पुल बनाए गए थे। । केंद्र और राज्य सरकारों ने कुल मिलाकर महाकुंभ के आयोजन पर 7 हजार करोड़ रुपये खर्च किये थे।वैसे तो यह आंकड़ा भी कुम्भ को महाकुंभ बनाने की कहानी बयान कर देता है क्योंकि 2013 में पिछले कुम्भ पर करीबन 13 सौ करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
प्रयाग कुम्भ वास्तव में इसलिए भी महाकुंभ था क्योंकि इसने 6 लाख से ज्यादा लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार दिया। भारतीय उद्योग परिसंघ के अध्ययन के मुताबिक प्रयाग कुम्भ से उप्र को लगभग 1.2 लाख करोड़ का राजस्व मिला जो उत्तरप्रदेश के सालाना बजट 4.28 लाख करोड़ का एक चौथाई है। सबसे ज्यादा कमाई होटल,खानपान,टूर आपरेटर और परिवहन के क्षेत्रों में हुई है...तो आइए इस सफल और सुरक्षित आयोजन के लिए आयोजकों से ज्यादा हम-आप जैसी आम जनता की पीठ थपथपाएं क्योंकि उसके अनुशासन, जिजीविषा, संयम और सहनशीलता ने कोई हादसे का कलंक इस महाकुंभ पर नहीं लगने दिया और तमाम रिकार्डों के बीच यह आयोजन वास्तव में अपने उद्देश्यों पर खरा उतरा।
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मुलाक़ात एक अनूठे-अद्भुत और सबसे अलग महामंडलेश्वर से

 प्रयागराज कुंभ: जैसा मैंने देखा (5)                     
प्रथम गेट से लेकर मुख्य पंडाल तक श्रद्धालुओं की भीड़ लगी है, कुछ बाहुबली लोग भीड़ को सँभालने में जुटे हैं. मुख्य पंडाल भी खचाखच भरा है- नेता,अभिनेता,मीडिया और साधु-संतों सहित तमाम लोगों को महामंडलेश्वर का इंतज़ार है. किसी तरह जुगाड़ लगाकर अन्दर तक पहुंचकर हमने भी पूछा तो बताया गया कि महामंडलेश्वर तैयार हो रहे हैं तथा अभी उन्हें डेढ़ घंटा और लगेगा...यह सुनकर हमारा चौंकना लाज़िमी था. आखिर किसी संत को तैयार होने में इतना समय कैसे लग सकता है ! लेकिन जब बात किन्नर अखाड़े के श्री अनंत विभूषित आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी लक्ष्मी नारायण जी त्रिपाठी (जैसा उनके भक्त कहते हैं) की हो तो फिर इतना समय तो लगना वाजिब है.
ऐसा भी नहीं है कि महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी(वहीँ जिन्हें अब तक हम सभी लक्ष्मी के नाम से पहचानते थे) पंडाल में उतावले लोगों से अनजान हैं. वे अन्दर से ही हस्तक्षेप कर लोगों को अनावश्यक चर्चा से बचने की सलाह देती हैं. बीच बीच में, उनके खांसने की आवाज़ भी आती है और उनके प्रबंधक बताते हैं कि स्वामी जी की तबियत ठीक नहीं हैं.
बहरहाल, लम्बे इंतज़ार और भारी भीड़ के कारण उमस और गर्मी से हो रही उकताहट को ख़त्म कर महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी हमारे बीच आती हैं. वे पहले से सज्जित एक सिंहासन नुमा आसन पर बैठकर मिलना शुरू करती हैं. उनके श्रृंगार से पता लग जाता है कि उन्हें इतना समय क्यों लगा. हम चूँकि मीडिया से थे इसलिए हमें तुलनात्मक रूप से पहले मिलने का मौका मिल जाता है और प्रसाद के रूप में कुछ सिक्के,रुद्राक्ष भी. हमारे एक साथी बताते हैं कि बुधवार(जिस दिन हम मिले) को किसी भी किन्नर से यह प्रसाद मिलना बड़ा फलदायक होता है. पत्रकारीय आदत के चलते मैंने आग्रह किया कि एक फोटो खींच लें तो लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने मोबाइल तुरंत अपने हाथ में ले लिया और फिर मंझे हुए अंदाज में शानदार सेल्फी ले डाली. इसी बीच स्थानीय के अलावा कई विदेशी चैनल भी उनसे बातचीत के लिए आतुर थे और उनके मुरीदों की भीड़ भी कम होने का नाम नहीं ले रही थी इसलिए हम भी वहां से निकलकर उनके अखाड़े का जायजा लेने में जुट गए. अन्य अखाड़ों की तरह किन्नर अखाड़े में भी एक यज्ञशाला और श्रद्धालुओं के लिए स्वादिष्ट भोजन का प्रबंध था और पूरे परिसर में अखाड़े के अन्य संत-महंतों के टेंट और महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के अलग अलग आकर्षक पोस्टर थे.
ट्रांसजेंडर (थर्ड जेंडर) अधिकारों के लिए काम करने वाली लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी को उज्जैन सिंहस्थ में किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर घोषित किया गया. बताया जाता है कि देश के लगभग 20 लाख किन्नरों की सर्वसम्मति से उन्हें इस पद के लिए चुना गया है. इस बार भी वे तमाम विरोध के बाद भी न केवल प्रयाग कुंभ में अपना अखाड़ा ज़माने में कामयाब रहीं बल्कि उनके अखाड़े में बढ़ती भीड़ ने उन्हें यहाँ रुकने पर मजबूर कर दिया. आमतौर पर सभी अखाड़े अंतिम शाही स्नान के बाद कुम्भ से विदा हो गए थे लेकिन किन्नर अखाड़ा महाशिवरात्रि तक यहीं था.
लक्ष्मी पहले भी बताती रहीं है कि किन्नर अखाड़े को महाकुंभ का हिस्सा बनाने के पीछे उनकी मंशा किन्नरों को समाज में एक सम्मानजनक स्थान दिलाने की है.उनका मानना है कि जब हर कोई हमसे आशीर्वाद और दुआ लेता है तो समाज में किन्नरों के लिए सम्मानजनक स्थान क्यों नहीं होना चाहिए ? अपने समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली तेजतर्रार लक्ष्मी को अपने किन्नर होने पर गर्व है ।
लक्ष्मी पहली किन्नर हैं जो संयुक्त राष्ट्र में एशिया प्रशांत क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं और अपने समुदाय और भारत का प्रतिनिधित्व टोरंटो में विश्व एड्स सम्मेलन जैसे अनेक मंचों पर कर चुकी हैं । वह इस समुदाय के समर्थन और विकास के लिए अस्तित्व नाम का संगठन भी चलाती है । लक्ष्मी बिगबॉस सीजन 5 की प्रतिभागी भी रह चुकी हैं । टीवी शो "सच का सामना", "दस का दम" और "राज पिछले जनम का" में भी उन्हें देखा गया था ।
लक्ष्मी आम किन्नरों की तरह नहीं हैं जो मज़बूरी के कारण इस समुदाय का हिस्सा हैं बल्कि वे बिलकुल अलग हैं. लक्ष्मी का जन्म महाराष्ट्र के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उन्होंने मीठीबाई कॉलेज से आर्ट्स में डिग्री ली और भरतनाट्यम में स्नातकोत्तर भी किया है. वे कुशल वक्ता,अभिनय और नृत्य में निपुण, अपने अधिकारों को लेकर जागरूक मुखिया और शून्य से शिखर तक पहुँचने वाली योद्धा हैं जिन्होंने अपने बलबूते यह मक़ाम हासिल किया है साथ ही अपने परिवार और समुदाय को भी समाज में प्रतिष्ठा दिलाई है. उनकी यही खूबियाँ हम जैसे कई लोगों को उनका प्रशंसक बनाती हैं और यही प्रशंसा उन तक खीच ले जाती है, फिर चाहे मिलने के लिए दो घंटे इंतज़ार ही क्यों न करना पड़े ....तो आइए हम भी उनके आसपास जमा सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ सम्मान से कहें- श्री अनंत विभूषित आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी लक्ष्मी नारायण जी त्रिपाठी, आपका स्वागत है और आपके ज़ज्बे को हमारा सलाम.
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अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...