आपके पास महज एक दिन का वक्त है, पता नहीं फिर ये मौका कब नसीब होगा…मेले,ठेले, शापिंग फेस्टिवल, मॉल और हाट बाजारों की रौनक तो हम अक्सर देखते हैं लेकिन यहां कुछ अलग तरह का हुनर है…यहां पत्थर बोल उठे हैं,अपने अलग अलग रंग, आकार प्रकार और पहचान के बाद भी ये एकरूप होकर दुनिया के सबसे बड़े महामानव के आम इंसान से अहिंसा के पुजारी बनने की गाथा गुनगुना रहे हैं। हम बात कर रहे हैं - भोपाल के स्वराज भवन में 14 से 16 अक्टूबर के बीच आयोजित Anita Dubey की प्रस्तर प्रदर्शनी यानि पत्थरों पर जादूगरी की।
“जुगाली” समाज में आमतौर पर व्याप्त छोटी परन्तु गहराई तक असर करने वाली बुराइयों, कुरीतियों और समस्याओं पर ‘बौद्धिक विलाप’ कर अपने मन का बोझ हल्का करने और अन्य जुगाली-बाज़ों के साथ मिलकर इन बुराइयों को दूर करने के लिए एक अभियान है. आप भी इस मुहिम का हिस्सा बनकर बदलाव के इस प्रयास में भागीदार बन सकते हैं..
बुधवार, 14 दिसंबर 2022
बापू की कहानी,पत्थरों की जुबानी..!!
अब ये पैसे फिर चलन में आ रहे हैं
अब ये पैसे फिर चलन में आ रहे हैं.. चौंकिए मत.. वाकई,पंजी, दस्सी, चवन्नी और अठन्नी कहलाने वाली यह मुद्रा अब फिर से प्रचलन में है…..लेकिन आप इनसे कुछ खरीद नहीं सकते बल्कि अब इन्हें हासिल करने के लिए आपको मौजूदा दौर में चलने वाली मुद्रा खर्च करनी पड़ेगी। दरअसल,अब ये मुद्राएं 'एंटीक ज्वैलरी' में बदल रही हैं और महिलाओं के नाक, कान और गले के सौंदर्य की शोभा बढ़ाती नजर आने लगी है मतलब पहले पैसे से सौंदर्य सामग्री खरीदी जाती थी और अब पैसा खुद सौंदर्य सामग्री बन रहा है।
तेरा ज़िक्र है या इत्र है...महकता हूँ,बहकता हूँ...!!
इन दिनों, रात में आप यदि भोपाल की वीआईपी रोड, मुख्यमंत्री निवास से पॉलिटेक्निक कालेज या फिर तमाम नई बनी कालोनियों के आसपास की सड़कों से गुजरें तो एक भीनी भीनी और मादक सी सुगंध बरबस ध्यान खींचती है। ऐसा लगता है जैसे किसी ने सड़क पर रूम स्प्रे कर दिया है..वाकई,यह रूम स्प्रे ही है लेकिन प्रकृति का। जैसे आम की बौर या मधुमलिती की बेल आसपास के इलाके को महका देती है बिल्कुल उसी तरह इस खास पेड़ की खुशबू हवा में घुलकर मन मोह लेती है..और इन दिनों भोपाल ही नहीं,शायद देश के किसी भी व्यवस्थित शहर में यह इत्र अपनी सुगंध से लोगों का ध्यान खींच रहा होगा। शायद,शीत ऋतु के स्वागत का प्रकृति का यह अपना खास अंदाज़ है।
मंगलवार, 1 मार्च 2022
किसको फुर्सत मुड़कर देखे बौर आम पर कब आता है..
मौसम में धीरे-धीरे गर्माहट बढ़ने लगी है और इसके साथ ही बढ़ने लगी है आम की मंजरियों की मादक खुशबू...हमारे आकाशवाणी परिसर में वर्षों से रेडियो प्रसारण के साक्षी आम के पेड़ों में इस बार भरपूर बौर/मंजरी/अमराई/मोंजर/Blossoms of Mango दिख रही है और पूरा परिसर इनकी मादक गंध से अलमस्त है....ऐसा लग रहा है जैसे धरती और आकाश ने इन पेड़ों से हरी पत्तियां लेकर बदले में सुनहरे मोतियों से श्रृंगार किया है और फिर बरसात की बूंदों से ऐसी अनूठी खुशबू रच दी है जो हम इंसानों के वश में नहीं है। चाँदनी रात में अमराई की सुनहरी चमक और ग़मक वाक़ई अद्भुत दिखाई पड़ रही है। अगर प्रकृति और इन्सान की मेहरबानी रही तो ये पेड़ बौर की ही तरह ही आम के हरे-पीले फलों से भी लदे नज़र आएंगे.....परन्तु आमतौर पर सार्वजनिक स्थानों पर लगे फलदार वृक्ष अपने फल नहीं बचा पाते क्योंकि फल बनने से पकने की प्रक्रिया के बीच ही वे फलविहीन कर दिए जाते हैं....खैर,प्रकृति ने भी तो आम को इतनी अलग अलग सुगंधों से सराबोर कर रखा है कि मन तो ललचाएगा ही..महसूस कीजिए कैसे स्वर्णिम मंजरी की मादकता चुलबुली ‘कैरी’ बनते ही भीनी भीनी खुशबू से मन को लुभाने लगती है और फिर आम के पकने के साथ ही उसकी मीठी-मीठी सुगंध...अहा... मधुमेह से परेशान लोगों के मुंह में भी पानी ला देती है ।
आम की मंजरियों की सुंदरता और मादकता ने हमेशा ही कवियों-लेखकों का मन मोहा है। तभी तो आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है -“कालिदास ने आम्र कोरकों को बसंत काल का 'जीवितसर्वस्वक' कहा था। उन दिनों भारतीय लोगों का हृदय अधिक संवेदनशील था। वे सुंदर का सम्मान करना जानते थे। गृहदेवियाँ इस लाल हरे पीले आम्र कोरक में देखकर आनंद विह्वल हो जाती थी। वे इस 'ऋतुमंगल' पुष्प को श्रद्धा और प्रीति की दृष्टि से देखती थीं। आज हमारा संवेदन भोथा हो गया है। पुरानी बातें पढ़ने से ऐसा मालूम होता है जैसे कोई अधभूला पुराना सपना है। रस मिलता है, पर प्रतीति नहीं होती।‘
वहीं,आम की मंजरियों की मादकता पर क़लम चलाने से जाने माने लेखक विद्यानिवास मिश्र भी खुद को नहीं रोक पाए। उनके शब्दों में - 'आम वसंत का अपना सगा है, क्योंकि उसके बौर की पराग-धूलि से वसंत की कोकिला का कविकंठ कषायित होकर और मादक हो जाता है. आम की बौर, नये पल्लव और नये कर्ले और अंखुए कामदेव के बाण बन जाते हैं।'
आम तो वैसे भी फलों का राजा माना जाता है इसलिए राजा साहब की शान में कशीदे काढ़ने से भला कौन रुक सकता है...लेकिन यदि हम 'आम राजा' की तारीफों में डूब गए तो शब्द कम पड़ जाएंगे इसलिए पीले/रसीले/मीठे आम पर बात फिर कभी..फ़िलहाल अपन तो बौर की मादक गंध में अलमस्त हैं और अपनी बात का समापन कुमार रवींद्र की कविता की उन पंक्तियों से करते हैं, जो इस मादकता से हमें झंझोड़ कर उठाते हुए आम और आज से जुड़ी वास्तविकता से रूबरू कराती है। वे लिखते हैं:
'अरे बावरे
गीत न बाँचो अमराई का
महानगर में
किसको फुर्सत
मुड़कर देखे
बौर आम पर कब आता है।'
#आम #अमराई #मंजरी #mango #blossom #blossombeauty #कैरी
सोमवार, 8 नवंबर 2021
कुछ मीठा हो जाए
कुछ मीठा हो जाए🍬🍫.. के बाद अब कुछ धमाकेदार🗯️ मीठा हो जाए..की बारी है। दीपावली🪔 के अवसर पर बच्चों को लुभाने के लिए चॉकलेट 🍫ने अपना रूप बदल लिया है...त्योहारों पर हमारी पारंपरिक मिठाइयों का सिंहासन हिलाने में पर्याप्त कामयाबी नहीं मिलने के बाद अब चॉकलेट इंडस्ट्री रंग-रूप बदल बदलकर त्योहारों में घुसपैठ कर रही है...ताज़ा उदाहरण है ये तस्वीरें..हैं तो ये चॉकलेट, पर पटाखों/आतिशबाजी का रूप धरकर बिक रही है..उम्मीद है बच्चों के ज़रिए घर घर पहुंच जाएं..आप जरूर सावधान रहिए, कहीं ऐसा न हो चॉकलेट🍫 समझकर पटाखा🤭😱 मुंह में रख ले या फिर पटाखा समझकर मीठी चॉकलेट से हाथ धो बैठे… बहरहाल दीपावली की धमाकेदार शुभकामनाएं🥳
#dewali2021 #depavali #दीवाली
बुधवार, 21 अप्रैल 2021
रूप से ज्यादा गुणों की खान हैं ये विलायती मेमसाहब
यह विलायती जलेबी है..जो पेड़ पर पायी जाती है। आप इन दिनों हर बाग़ बगीचे में इन लाल-गुलाबी जलेबियों से लदे पेड़ देख सकते हैं बिल्कुल गली मोहल्लों में जलेबी की दुकानों की तरह । जलेबी नाम से ही ज़ाहिर है कि यह हमारी चाशनी में तर मीठी और पढ़ते (लिखते हुए भी) हुए भी मुंह में पानी ला देने वाली रसीली जलेबी के खानदान से है । अब यह उसकी बड़ी बहन है या छोटी..यह अनुसंधान का विषय है। वैसे उम्र के लिहाज़ से देखें तो विलायती जलेबी को प्राकृतिक पैदाइश की वजह से बड़ी बहन माना जा सकता है लेकिन जलेबी सरनेम के मामले में जरूर हलवाइयों के कारखानों में बनी जलेबी का पलड़ा भारी लगता है।..शायद, दोनों के आकार-प्रकार,रूप-रंग में समानता के कारण विलायती के साथ जलेबी बाद में जोड़ा गया होगा। इसे विलायती इमली, गंगा जलेबी, मीठी इमली,दक्कन इमली,मनीला टेमरिंड,मद्रास थोर्न जैसे नामों से भी जाना जाता है।
मज़े की बात यह भी है कि जन्म से दोनों ही विदेशी हैं- चाशनी में तर जलेबी ईरान के रास्ते भारत तशरीफ़ लायी है तो उसकी विलायती बहन मैक्सिको से आकर हमारे देश के जंगलों में रम गयीं और दोनों ही अब इतनी भारतीय हो गईं है कि अपनेपन के साथ हर शहर-गांव-गली मोहल्लों में ही रच बस गयीं हैं।
आज बात बस विलायती दीदी की... विज्ञान ने इन्हेँ वानस्पतिक नाम-Pithecellobium Dulce दिया है और इनका रिश्ता नाम की बजाए अपने गठीलेपन के कारण मटर से जोड़ दिया है इसलिए इसे मटर प्रजाति का माना जाता है। इसका फल सफ़ेद और पक जाने पर लाल हो जाता है और स्वाद तो नाम के अनुरूप जलेबी की तरह मीठा होगा ही ।
मैक्सिको से भारत तक के सफ़र के दौरान विलायती जलेबी को दक्षिण पूर्व एशिया खूब पसंद आया इसलिए यहां के तमाम देशों में इसके वंशज फल-फूल रहे हैं। फिलिपीन्स जैसे कई देशों में तो न केवल इसे कच्चा खाया जाता है बल्कि यह कई प्रकार के व्यंजन बनाने में भी उपयोगी है। इसे जबरदस्त इम्युनिटी बूस्टर भी कहा जाता है और इस कोरोना महामारी के दौर में हमें सबसे ज्यादा इम्युनिटी बढ़ाने की ही ज़रूरत है। जानकार तो इसे कैंसर की रोकथाम में भी कारगर बताते हैं।
ख़ास बात यह है कि यह आकार-प्रकार, नाम और कुछ हद तक स्वाद में भले ही जलेबी जैसी है लेकिन गुणों में चाशनी में डूबी जलेबी से बिल्कुल उलट है। मैदे की जलेबी में शुगर के अलावा, न फाइबर होता है और न ही कोई और उपयोगी तत्व जबकि ये विलायती महोदया तो गुणों की खान हैं। इस फल में विटामिन सी, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, थायमिन, राइबोफ्लेविन जैसे तमाम तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसकी छाल के काढ़े से पेचिश तक ठीक हो जाती है। त्वचा रोगों और आँखों की जलन में भी इसे उपयोगी माना गया है। बताते हैं कि इस पेड़ की पत्तियों का रस दर्द निवारक का काम करता है….सबसे महत्वपूर्ण फर्क यह है कि चाशनी वाली जलेबी मधुमेह/डायबिटीज की वजह बन सकती है, वहीं विलायती जलेबी मधुमेह का इलाज है। कहा जाता है कि यदि महीने भर तक नियमित रूप से जंगल जलेबी खाई जाए तो शुगर नियंत्रित हो जाती है… तो फिर इंतज़ार किस बात है,अभी ये विलायती मोहतरमा अपने परवान पर है..भरपूर फल लगे हैं...जाइए-खाइए और अपनों को भी खिलाइए।
# आप जंगल जलेबी खाकर उसके बीज यहां वहां थूंक रहे हैं तो जान लीजिए इसके 15 बीज का एक पैकेट फ्लिपकार्ट पर क़रीब 300 रुपए में बिक रहा है और Exotic Flora नाम की एक वेबसाइट प्रति पौधा 600 से 700 रुपए मांग रही है तो है न इन विलायती मोहतरमा में 'आम के आम, गुठलियों के भी दाम' वाली बात।
#विलायतीजलेबी #जंगलजलेबी #विलायतीइमली #गंगाजलेबी #Manilatamarind #madrasthron #diabities #cancer
मंगलवार, 5 नवंबर 2019
हम बड़ी ई वाले हैं...वाकई ई तो बड़ी ही है
https://www.amazon.in/…/…/ref=cm_sw_r_wa_apa_i_d80mDbX3X8KST
अब बात इस व्यंग्य संग्रह की...
एक व्यंग्यकार की कामयाबी इसी बात को लेकर होती है कि वह स्वयं पर कितना हंस सकता है और संजीव के व्यंग्य का पाठ करते हुए हम पाते हैं कि वे दूसरों पर कम, स्वयं पर ज्यादा चुटकी लेते हैं. यह आसान नहीं है लेकिन जिसने व्यंग्य लेखन की इस बुनियाद को पकड़ लिया, उसकी लेखनी में वह तंज होता है जो भीतर तक जख्मी कर जाए. शायद इसलिए ही कहा गया है कि तीर-तलवार से ज्यादा गहरा घाव कलम करती है. संजीव का यह पहला व्यंग्य संग्रह ‘ई’ बड़ी वाले’ है. चूंकि वे किताब छपाने के लिए व्यंग्य नहीं लिखते हैं इसलिए लेखन का सिलसिला निरंतर जारी है. वे उन लोगों में भी नहीं हैं कि चलो, एक किताब आ जाए और संतुष्ट होकर घर बैठ जाएं. उनका लेखन, सिर्फ लेखन नहीं बल्कि उनके भीतर की पीड़ा है और वे समाज को अपनी पीड़ा से रूबरू कराना चाहते हैं. हमारी कामना होगी कि लेखन और धारदार व्यंग्य लेखन का यह सिलसिला बना रहे. ‘ई’ बड़ी वाले’ का हर पन्ना अर्थवान है और इस अर्थ को समझने के लिए दिमाग से नहीं दिल से पढ़ें।
अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या
कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...
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क्या नियति के क्रूर पंजों में इतनी ताकत है कि वो हमसे हमारा वेद छीन सके? या फिर काल इतना हठी हो सकता है कि उसे पूरी दुनिया में बस हमार...
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महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाले कुछ संगठनों ने इन दिनों एक नया आंदोलन शुरू किया है. इस आंदोलन को “आक्यूपाई मेन्स टायलट”(पुरुषों की जनसु...
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कुछ मीठा हो जाए🍬🍫.. के बाद अब कुछ धमाकेदार🗯️ मीठा हो जाए..की बारी है। दीपावली🪔 के अवसर पर बच्चों को लुभाने के लिए चॉकलेट 🍫ने अपना रूप...