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दिसंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अब डिजिटल दुनिया में भी परचम लहराते आकाशवाणी और दूरदर्शन

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देश में रेडियो और और टेलीविजन की दुनिया में अपना परचम लहराने के बाद अब प्रसार भारती ने डिजिटल क्षेत्र में अपने पैर फैलाने शुरू किए हैं। गौरतलब है कि प्रसार भारती देश में देश में आकाशवाणी और दूरदर्शन के नाम से रेडियो और टीवी चैनलों का संचालन करता है। यह न केवल देश का सबसे लोकप्रिय लोकसेवा प्रसारक है बल्कि अपनी बहुजन हिताय बहुजन सुखाय की नीति का पालन करते हुए देश के कोने कोने में सूचना, मनोरंजन और शिक्षा का सबसे बड़ा माध्यम भी है। दूरदर्शन और आकाशवाणी के जरिए यह देश के साथ-साथ विदेश में भी भारतीय संस्कृति, कला, साहित्य और सरकार से जुड़ी सूचनाएं संप्रेषित कर रहा है ।  डिजिटलीकरण की दिशा में किए जा रहे प्रयासों के पहले मजबूत कदम के रूप में अब तक शार्ट और मीडियम वेब के जरिए अपनी सेवाएं दे रहे आकाशवाणी ने अब डिजिटल तकनीक के सहारे देश के साथ-साथ विदेश में भी क्रिस्टल क्लियर आवाज में अपनी बात पहुंचाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन पहले ही सभी लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मसलन यूट्यूब, ट्विटर,फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपनी पकड़ मजबूत बना रहे हैं। ट्विटर पर आकाशवाणी क...

हमारी एकसाथ यात्रा बहुत छोटी है !

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एक महिला बस में चढ़ी और एक आदमी के बगल में खाली पड़ी सीट पर बैठ गई...जगह कम होने और सामान ज्यादा होने के कारण और शायद जानबूझकर भी, वह महिला अपने सहयात्री को सामान से चोट पहुंचाती रही । जब काफी देर तक भी पुरुष चुप रहा, तो अंततः महिला ने उससे पूछा - क्या मेरे सामान से आपको चोट नहीं पहुंच रही और आपने अब तक कोई शिकायत क्यों नहीं की? उस आदमी ने हल्की सी मुस्कान के साथ उत्तर दिया: "इतनी छोटी सी बात से परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारी *एक साथ यात्रा बहुत छोटी है,* ...मैं अगले पड़ाव पर उतर रहा हूँ।" इस जवाब ने औरत को मानसिक ग्लानि से भर दिया और उसने उस आदमी से माफ़ी माँगते हुए कहा कि आपके इन शब्दों को स्वर्णिम अक्षरों में लिखने की ज़रूरत है !! यह बात हम सभी पर लागू होती है। हम में से प्रत्येक को यह समझना चाहिए कि इस दुनिया में हमारा समय इतना कम है कि इसे बेकार तर्कों, ईर्ष्या, जलन, प्रतिस्पर्धा, नाराज़गी,दूसरों को क्षमा न करने, असंतोष और परस्पर बुरे व्यवहार के साथ अपने समय और ऊर्जा को बेकार में बर्बाद करना कितना उचित है? क्या किसी ने आपका दिल तोड़ा? शांत रहो क्योंक...

आज क्यों जरूरी हैं रसखान और उनका रचना संसार..!!

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यह महाकवि रसखान की समाधि है। भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त रसखान की स्मृति और वर्तमान परिदृश्य में हिंदू-मुस्लिम समभाव का एक सशक्त स्थल । उप्र के मथुरा के क़रीब गोकुल और महावन के बीच मां यमुना के आंचल में स्थित यह समाधि अपने अंदर पूरा इतिहास समेटे है। घने पेड़ों के बीच बनी रसखान की यह समाधि धर्मनिरपेक्ष सरकारों के दौर में रख रखाव के मामले में वाकई 'निरपेक्ष' ही थी पर 8 दिसंबर 2021 में इसकी क़िस्मत पलटी और करीब साढ़े तीन करोड़ रुपए में इस समाधि का जीर्णोद्धार हुआ और तब जाकर इसे यह मौजूदा गौरवमयी स्वरूप मिला। चौतरफा घिरी हरियाली के बीच बेहद साफ-स्वच्छ रसखान समाधि स्थल आपको बरबस ही कुछ वक्त यहां बिताने के लिए मजबूर कर देता है। यहां निशुल्क विशाल पार्किंग के साथ बैठने की बढ़िया व्यवस्था है तो खानेपीने के लिए कैंटीन भी । समाधि स्थल पर लगे पटल के मुताबिक करीब 1551 ईस्वी में मुगल बादशाह हुमायूं के शासनकाल के अंतिम दौर में मची कलह से ऊबकर रसखान बृज भूमि में आ गए थे। ये दिल्ली के एक पठान सरदार थे लेकिन जब लौकिक प्रेम से कृष्ण प्रेम की ओर उन्मुख हुए तो जन्म जन्मांतर तक बृज के होकर रह गए। फि...

ये दाल टिक्कड़ है

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  ये दाल टिक्कड़ है..देशी घी में लहालोट मतलब तरबतर गरमागरम टिक्कड़ और हरी मिर्च के साथ बघारी (फ्राई) गई दाल…इसकी खुशबू और स्वाद के आगे शाही पनीर और मलाई कोफ्ते की भी क्या बिसात। हाल ही में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मप्र के श्योपुर जिले के कूनो नेशनल पार्क और कराहल आए तो उनकी यात्रा को आकाशवाणी भोपाल और #दिल्ली के जरिए देशभर के श्रोताओं तक पहुंचाने के लिए हम भी वहां पहुंचे। चूंकि, भोपाल से श्योपुर क़रीब साढ़े तीन सौ से चार सौ किमी दूर है इसलिए राष्ट्रीय राजमार्ग होने के बाद भी छह से आठ घंटे लग ही जाते हैं। ऐसे में खाने के लिए कुछ नया तलाशने की अपनी आदत के चलते हम गुना के आसपास जाट साहब के इस ढाबे पर पहुंच गए। यहां आए तो थे चाय की तलब लेकर लेकिन अनुशासित ढंग से सजे टिक्कड़ ने अपनी ओर ललचाया और हम भी इनसे मुलाकात करने से अपनी जीभ को नहीं रोक पाए । ..अगर, अब तक न बूझ पाएं हों तो जान लीजिए कि ये गक्कड़ का करीबी रिश्तेदार और हमारी बाटी से अगली पीढ़ी का सदस्य है। दरअसल, पुराने जमाने मे जब यात्री पैदल ही सैकड़ों मील का सफर करते थे तब सीमित संसाधनों में रोटी/पूरी/पराठा या नान तो बन नही...

है न, सब कुछ असाधारण, अविस्मरणीय और अविश्वसनीय..!!

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उज्जैन में भगवान महाकालेश्वर मंदिर परिसर के महाकाल लोक का लोकार्पण करते हुए कहा था- ‘महाकाल लोक’ में लौकिक कुछ भी नहीं है। शंकर के सानिध्य में साधारण कुछ भी नहीं है। सब कुछ अलौकिक है, असाधारण है, अविस्मरणीय है, अविश्वसनीय है….और, महाकाल का आशीर्वाद जब मिलता हैं तो काल की रेखाएँ मिट जाती हैं, समय की सीमाएं सिमट जाती हैं, और अनंत के अवसर प्रस्फुटित हो जाते हैं।"....हो सकता है किसी को ये अतिसंयोक्ति लगे, परन्तु हम ने तो महाकाल लोक के शुभारंभ के अगले ही दिन यह महसूस कर लिया कि उज्जैन के राजाधिराज की इच्छा से बाहर कुछ भी नहीं है। किस्सा कुछ इस तरह से है कि, इस कार्यक्रम के कवरेज के लिए हम भी एक दिन पहले उज्जैन में जम गए थे और 11 अक्टूबर को कवरेज के तत्काल बाद भोपाल लौटने की मनःस्थिति बना चुके थे। वैसे भी वीवीआईपी के कार्यक्रम मिनट टू मिनट तय होते हैं और मोदी जी के कार्यक्रमों में तो यह बात सौ फीसदी सच होती है इसलिए अपन ने भी अपनी वापसी यात्रा तय कर ली थी। प्रधानमंत्री को लोकार्पण और कार्तिक मेला मैदान पर सभा के बाद 8 बजे उज्जैन से इंदौर और फिर वहां से दिल्ल...