मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। 

जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥

सब बिधि सब पुर लोग सुखारी।


रामचंद मुख चंदु निहारी॥


तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगरी के ऐश्वर्य का वर्णन ही नहीं किया जा सकता है। ऐसा जान पड़ता है, मानो ब्रह्मा जी की कारीगरी बस इतनी ही है। श्रीरामचन्द्र जी के मुखचन्द्र की छटा देखकर सभी नगरवासी हर प्रकार से सुख की अनुभूति कर रहे हैं।



अयोध्या हर भारतीय की सांस्कृतिक चेतना को जागृत करने वाला शहर है । मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की जन्म भूमि और सनातन धर्म की आस्था का केंद्र अयोध्या अपने नए भव्य राम मंदिर की दिव्यता के साथ साथ वर्तमान की आवश्यकता और सुनहरे भविष्य को नई दिशा देने में भी जुटी है। अयोध्या में मंदिर के साथ-साथ कई और विकास योजनाओं और कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है और इन परियोजनाओं के जरिए अयोध्या को अंतर राष्ट्रीय पटल पर प्रमुखतम आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र की पहचान दिलाने के लिए तमाम प्रयास किया जा रहे हैं।

 उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को साकार करते हुए अयोध्या में करीब 60,000 करोड रुपए के निवेश से तमाम विकास कार्य किया जा रहे हैं। सदियों  के संघर्ष के बाद अपने विकास और पुरुद्धार से नई कहानी लिख रही सप्तपुरियों में प्रथम अवधपुरी विकास का नया मॉडल बन रही है। 

अयोध्या के चहुंमुखी विकास के लिए आठ परिकल्पनाओं के आधार पर विकास कार्य किया जा रहे हैं जिससे एक बार फिर साकेत पुरी को एश्वर्य पूर्ण नगरी बनाने का सपना साकार हो सके। इन आठ परिकल्पनाओं को सांस्कृतिक अयोध्या, सक्षम अयोध्या, आधुनिक अयोध्या, सुगम्य अयोध्या, सुरम्य अयोध्या, भावात्मक अयोध्या, स्वच्छ अयोध्या और आयुष्मान अयोध्या का नाम दिया गया है। अयोध्या को भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में तैयार किया जा रहा है । यहां मौजूद मठ-मंदिरों और आश्रमों को भव्य रूप प्रदान किया जा रहा है। वहीं, 15 करोड रुपए की लागत से वैभवशाली नगर द्वारों का निर्माण और मंदिर संग्रहालय जैसे तमाम कार्य इस परिकल्पना को नया रूप दे रहे हैं। अयोध्या को सक्षम अयोध्या के रूप में भी तैयार किया जा रहा है। जहां आत्मनिर्भर नगरी के रूप में यह रोजगार, पर्यटन, धर्म और सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिए आजीविका का बड़ा केंद्र बनेगी। अयोध्या को आधुनिक शहर के रूप में विकसित करने के लिए स्मार्ट सिटी, सेफ सिटी, सोलर सिटी और ग्रीन फील्ड टाउनशिप जैसी तमाम योजनाएं आकार ले रही है। अयोध्या का सुगम्य अयोध्या के रूप में भी विकास जारी है। इसके लिए करीब 1400 करोड रुपए की लागत से बना महर्षि वाल्मीकि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाया गया है। यहां से उड़ान सेवाएं शुरू हो गई हैं। इसी तरह करीब ढाई सौ करोड रुपए में अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन का विकास किया गया है जहां पर्यटकों को नवीनतम और आधुनिकतम ट्रेन एवं रेल सुविधाएं मिलेंगी। इनलैंड वॉटरवे जैसे परिवहन के साधनों के जरिए हर व्यक्ति के अयोध्या तक पहुंचने को सुगम बनाया जा रहा है अयोध्या को सुरम्य अयोध्या के रूप में भी तैयार किया जा रहा है । इसके लिए अयोध्या के विभिन्न कुंडों, तालाबों और प्राचीन सरोवरों के सौंदरीकरण के साथ-साथ उनका कायाकल्प भी किया जा रहा है । नए उद्यानों का निर्माण हो या फिर हेरिटेज लाइट्स के जरिए शहर को सुंदर स्वरूप प्रदान करना हो, सड़कों को फसाड लाइटिंग से जगमग करना हो या फिर अन्य इलाकों का सौंदरीकरण… अवधपुरी को हर तरह से मनमोहन नगरी के रूप में विकसित किया जा रहा है। अयोध्या के भावनात्मक पक्ष का खासतौर पर ध्यान रखते हुए इसे सजाया और संवारा जा रहा है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि अवधपुरी के कण कण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम से जुड़ने का भाव बसा हुआ है इसलिए शहर की दीवारों, सड़कों के किनारे और चौक-चौराहों तक को सांस्कृतिक रूप से सुसज्जित किया जा रहा है। अयोध्या की पहचान स्वच्छ अयोध्या के रूप में भी कायम की जा रही है इसलिए यहां साफ सफाई से लेकर ड्रेनेज और सीवर सिस्टम पर भी विस्तार से काम हो रहा है । अयोध्या को आयुष्मान अयोध्या बनाने की भी तैयारी है । यहां आम लोगों को गुणवत्तापूर्ण और आसान सुविधा के साथ चिकित्सकीय सेवाएं प्रदान करने के लिए स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया गया है। यहां के राजर्षि दशरथ स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय में 246 करोड रुपए खर्च कर आपातकालीन चिकित्सा की तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। अयोध्या में मंदिर के अलावा भी आम लोगों के देखने के लिए बहुत कुछ होगा। यहां के मंदिर संग्रहालय में प्रसिद्ध भारतीय मंदिरों के इतिहास की झलक देखने को मिलेगी तो मोम संग्रहालय में रामायण के प्रमुख पात्रों की मूर्तियां भी हो मूर्तियां होगी। 2 एकड़ में फैला यह मोम संग्रहालय अपने आप में अनूठा होगा। अयोध्या आने वाले पर्यटक अयोध्या हाट के जरिए सरयू नदी के किनारे तमाम आध्यात्मिक और पारंपरिक सामग्री की खरीदारी कर सकेंगे । वहीं संध्या सरोवर में खुली हवा के साथ वोटिंग, जिप लाइनिंग और स्लैकलाइनिंग जैसी सुविधाओं और लजीज व्यंजनों का आनंद उठा सकेंगे । इसके अलावा टेंट सिटी भी होगी जहां पर्यटक खुली हवा में सितारों से भरे आसमान का नजारा ले सकेंगे। अयोध्या को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक पर आधारित पहला शहर बनाने के प्रयास भी जारी है । यह शहर अपने भव्य दीपोत्सव के जरिए पहले ही गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कर चुका है इसलिए अब यहां दीपोत्सव के साथ-साथ सभी मेलो को राजकीय दर्जा दिया गया है । अयोध्या में अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थान की स्थापना भी की जा रही है । इसके अलावा 84 कोसी परिक्रमा मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया गया है ताकि आम लोग आसानी से ईश्वर की आराधना कर सकें। भविष्य में यहां करीब 4400 करोड रुपए की लागत से बन रहे 147 किलोमीटर लंबे राम वन गमन पथ का नजारा भी लोगों को देखने को मिलेगा।

सृजनकर्ता के सृजक


बंदउँ बालरूप सोइ रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू॥
मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी॥

भावार्थ- मैं उन्हीं राम के बाल रूप की वंदना करता हूँ, जिनका नाम जपने से सब सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं। मंगल के धाम, अमंगल के हरनेवाले और दशरथ के आँगन में खेलने वाले (बालरूप) राम मुझ पर कृपा करें

महीनों तक बस एक ही धुन…राम नाम की धुन, न भोजन की परवाह और न ही आराम की। परिवार को तो वह लगभग भूल ही गए थे। दिन नहीं, हफ्तों तक परिवार से बात नहीं की। बस ध्यान में था तो यही कि पूर्ण पवित्रता का पालन करते हुए भगवान श्रीराम की ऐसी दिव्य,अलौकिक,मनमोहक और अद्भुत मूर्ति का निर्माण करना था जो पहले कभी नहीं बनी हो। हम बात कर रहे हैं अयोध्या में प्रतिष्ठित हुई राम लला की प्रतिमा को बनाने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज की।

भगवान श्रीराम के बालरूप वाली इस मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच अत्यधिक चिंतन,मनन और अध्ययन के बाद रखी गई है। दरअसल, हमारे देश में 5 वर्षीय बच्चे की लंबाई औसतन लंबाई 51 इंच के आसपास होती है। भारतीय पूजा पद्धति में 51 अंक बहुत शुभ माना जाता है। इन्हीं सब बातों के मद्देनजर  गर्भगृह में स्थापित होने वाली मूर्ति का आकार भी 51 इंच रखा गया है। राम लला की इस मूर्ति का निर्माण खासतौर पर पवित्र और भारतीय देवी देवताओं के निर्माण में होने वाले शालीग्राम पत्थर को तराशकर किया गया है। शालीग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है, जो आमतौर पर नदियों की तलहटी में पाया जाता है। 

अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए चयनित रामलला की दिव्य, अलौकिक और मनमोहक श्याम रंग की मूर्ति को मूर्तिकार अरुण योगीराज ने बनाया है। दरअसल,श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने व्यापक सर्वेक्षण और चर्चा के बाद, प्राण प्रतिष्ठा के लिए तीन अलग अलग कलाकारों से तीन मूर्तियों का निर्माण कराया गया था। मूर्तिकार सत्यनारायण पांडेय ने राजस्थानी संगमरमर शिला से प्रतिमा बनाई थी। वहीं, मूर्तिकार गणेश भट्ट और मूर्तिकार अरुण योगीराज ने शालीग्राम शिला से मूर्तियों का निर्माण किया था। तीनों ही मूर्तियां बेहद ही अलौकिक, मनमोहक और अद्वितीय हैं।  ट्रस्ट के विशेषज्ञों की टीम ने तीनों मूर्तियों को हर पैमाने पर देखने और परखने के बाद, गर्भगृह में स्थापना के लिए अरुण योगीराज की बनाई मूर्ति का चयन  किया। इस प्रतिमा का वजन करीब 200 किलो है। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने भी प्राण प्रतिष्ठा से कुछ दिन पहले ही पत्रकारों से बातचीत में अरुण योगीराज की मूर्ति के चयन की जानकारी दी थी। उन्होंने यह भी बताया था कि बाकी दोनों मूर्तिकारों की प्रतिमाओं का भी यथोचित उपयोग किया जाएगा। 

खूबसूरत और दिव्य प्रतिमाओं के निर्माण में अरुण योगीराज का कोई मुकाबला नहीं है। वे पहले भी कई अनूठी और सजीव प्रतिमाओं का निर्माण कर चुके हैं फिर चाहे वह केदारनाथ धाम में स्थापित आदि शंकराचार्य की प्रतिमा हो, रामकृष्ण परमहंस की या फिर दिल्ली में कर्तव्य पथ पर स्थापित की गई नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा।  अरुण योगीराज के परिवार में पांच पीढ़ियों से मूर्तिकला को  पेशे के तौर पर अपनाया जाता रहा है। अरुण के पिता योगीराज और उनके दादा बसवन्ना शिल्पी भी मशहूर मूर्तिकार हैं। कर्नाटक मूल के अरुण मैसूर के प्रसिद्ध मूर्तिकारों की पांच पीढ़ी से ताल्लुक रखते हैं। अरुण योगीराज के हुनर की सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की है । नेताजी की प्रतिमा के निर्माण के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री को इसकी एक छोटी प्रतिकृति भेंट की थी। एमबीए की पढ़ाई कर चुके अरुण योगीराज का मन कारपोरेट जगत में नहीं लगा और निजी कंपनी की नौकरी छोड़कर वापस अपने पारिवारिक पेशे में लौट आए और फिर उनके हाथ ने ऐसी कमाल की मूर्तियां सृजित की कि लोग वाह वाह कर उठे।  

योगीराज की मां सरस्वती ने कहा कि यह बहुत खुशी की बात है कि उनके बेटे द्वारा बनाई गई मूर्ति को चुन लिया गया है। अरुण योगीराज की पत्नी विजेता भी अपने पति की इस उपलब्धि से बहुत खुश हैं। उन्होंने बताया कि  मूर्ति बनाते समय पत्थर का एक टुकड़ा अरुण की आंख में चला गया था और उसे आपरेशन से बाहर निकाला गया लेकिन उन्होंने अपने काम पर आंच नहीं आने दी। लगातार बारह-12 घंटे काम करके उन्होंने इस जिम्मेदारी को पूरा किया है। देश भले ही अरुण की उपलब्धि पर झूम रहा है लेकिन अरुण को देश से फीडबैक का इंतजार है। उन्होंने कहा कि मूर्ति के चयन से ज्यादा मेरे लिए यह महत्वपूर्ण है कि ये लोगों को पसंद आनी चाहिए. सच्ची खुशी मुझे तब होगी जब लोग इसकी सराहना करेंगे.''

अविस्मरणीय अयोध्या

कोसलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान।

निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूत धनधान्यवान् ॥

अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता |

मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम् ||

 

सरयू नदी के तट पर संतुष्ट जनों से पूर्ण धनधान्य से भरा-पूरा, उत्तरोत्तर उन्नति को प्राप्त कोसल नामक एक बड़ा देश था। इसी देश में मनुष्यों के आदिराजा प्रसिद्ध महाराज मनु की बसाई हुई तथा तीनों लोकों में विख्यात अयोध्या नामक एक नगरी है।


जिस धरा पर भगवान श्री राम ने जन्म लिया हो और जहां की माटी में तीनों लोक के स्वामी खेलकर बड़े हुए हों… उस जगह से पवित्र भूमि इस दुनिया में कोई और नहीं हो सकती । अयोध्या को यह सौभाग्य मिला है कि उसने रामलला की जन्म से लेकर उनके राज्य सिंहासन संभलाने तक के दौर को जिया है । आज एक बार फिर अयोध्या विश्व पटल पर चर्चा में है। इसका कारण भी भगवान श्री राम का दिव्य,भव्य और नवनिर्मित मंदिर है। हो सकता है आज की युवा पीढ़ी अयोध्या को मौजूदा स्वरूप में और इस नए मंदिर के कारण ही जाने  लेकिन असलियत यह है कि अयोध्या का अस्तित्व हजारों सालों से है। हमारे वेदों में, धार्मिक ग्रंथों में और अंग्रेजों से लेकर मुगलो द्वारा लिखे गए इतिहास की पुस्तकों में भी इस पावन नगरी का व्यापक उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि अयोध्या की स्थापना वैवस्वत मनु महाराज ने की थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वैवस्वत भगवान सूर्य के पुत्र थे और उनके पूर्वज भगवान ब्रह्मा के वंशज थे। बाल्मीकि रामायण में भी अयोध्या को वैवस्वत द्वारा स्थापित नगरी बताया गया है । वहीं, सनातन धर्म में सबसे पवित्रम चार वेदों में से एक अथर्ववेद में भी अयोध्या का भरपूर उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद में अयोध्या को स्वर्ग के समान नगरी का दर्जा दिया गया है। अथर्ववेद के दसवें मंडल के दूसरे सूक्त में बताया गया है कि अयोध्या आठ चक्र और नौ द्वारों वाली देवताओं की नगरी है। सनातन संस्कृति की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भारत में सात शहरों को सबसे पवित्र माना गया है और इन्हें सप्तपुरी के नाम से वर्णित किया गया है। सप्तपुरियों में सबसे पहला नाम अयोध्या का  है। अयोध्या के अलावा मथुरा, हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम, उज्जैन और द्वारका शामिल हैं। इसमें उज्जैन को अवंतिका और हरिद्वार को माया नगरी के नाम से दर्शाया गया है।  इसका तात्पर्य यह है कि अयोध्या युगों युगों से धार्मिक महत्व के लिहाज से सनातन संस्कृति का प्रमुख गढ़ रहा है। हिंदू धर्म के अलावा, जैन धर्म के तीर्थंकरों की जन्मस्थली के लिए भी अयोध्या देशभर में प्राचीनकाल से मशहूर है। जैन धर्म के अनुसार कुल 24 तीर्थंकरों में से पांच का जन्म अयोध्या में हुआ है। इनमें पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ, दूसरे अजितनाथ, चौथे अभिनंदननाथ, पांचवें सुमित नाथ और 14वें तीर्थंकर अनंतनाथ का जन्म अयोध्या में माना जाता है। अयोध्या को भगवान श्री राम की जन्मस्थली के अलावा भगवान विष्णु के साथ अन्य स्वरूपों के लिए भी याद किया जाता है। प्राचीन ग्रन्थों के मुताबिक सप्त हरि के नाम से विख्यात भगवान विष्णु के सात रूप-गुप्तहरि, विष्णुहरि, चक्रहरि, पुण्यहरि, चंद्रहरि,धर्महरि और बिल्वहरि नामक सात स्वरूप अयोध्या में ही प्रकट हुए थे। प्राचीन काल में अयोध्या न केवल काफी संपन्न थी। रामायण और रामचरितमानस के अनुसार यहां के लोग भी काफी खुश और संतुष्ट थे। इस धन-धान्य से भरे-पूरे कोसल देश के नाम से जाना जाता था। यदि हम बाल्मीकि रामायण के बालकांड में शामिल श्लोकों  के अनुसार समझे तो अयोध्या 52 योजन लंबी और तीन योजन चौड़ी थी। आज के संदर्भ में देखें तो उस समय अयोध्या या कोसल देश की लंबाई-चौड़ाई 5 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा थी जबकि मौजूदा अयोध्या शहर करीब 120 वर्ग किलोमीटर में बसा है। इस हिसाब से हम कह सकते हैं कि कोसल देश आज की अयोध्या से कई गुना बड़ा और संपन्न शहर था। अयोध्या में 22 जनवरी को हुई भगवान राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से उम्मीद है कि इस नगर को अपना पुराना गौरव और प्रतिष्ठा पुनः हासिल होगी और यह पहले की तरह धन-धान्य, सुख संपदा और धार्मिक मान्यताओं के लिहाज से देश के सबसे प्रमुख शहर के रूप में उभर कर सामने आएगी। सरकार द्वारा अयोध्या में संचालित की जा रही विभिन्न योजनाओं और विकास की ओर बढ़ते कदमों से भी यह लगने लगा है कि अयोध्या को अपना पुराना गौरव मिलने वाला है।


राम लला हुए विराजमान

लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,निज आयुध भुजचारी ।

भूषन बनमाला, नयन बिसाला, सोभासिंधु खरारी ॥


प्रभु के दर्शन नेत्रों को आनंद देने वाले हैं, उनका शरीर मेघों के समान श्‍याम रंग का है तथा उन्होंने अपनी चारों भुजाओं में आयुध धारण किए हैं, दिव्य आभूषण और वन माला धारण की हैं। प्रभु के नेत्र बहुत ही सुंदर और विशाल है। इस प्रकार शोभा के समुद्र और खर नामक राक्षक का वध करने वाले भगवान प्रकट हुए हैं।



चंहुओर घंटे-घड़ियाल,शंख, मंजीरे,खड़ताल, ढोल नगाड़े, मृदंग, बांसुरी, वीणा और चिमटा सहित तमाम वाद्य यंत्र अपनी अलग अलग स्वर लहरियों के बाद भी बस एक ही धुन सुना रहे थे…वह थी राम नाम की धुन। घरों में कोई थाली बजा रहा था तो कोई घंटी,किसी ने तालियों की रफ्तार कम नहीं होने दी तो किसी की अंगुलियां माला के मनकों पर नाच रही थीं…हर कोई मस्त था,अलमस्त, मग्न और आतुर…आखिर, पांच सौ सालों की तपस्या एवं इंतज़ार का फल मिल रहा था और हजारों सालों से हमारी आस्था,विश्वास,संस्कृति और मर्यादा के शिखर पुरुष भगवान श्रीराम पधार रहे थे।


राम की शक्ति और भक्ति का यह आलम था कि कई दिनों से बादलों में छिपकर अयोध्या को कड़ाके की ठंड से तड़फा रहे सूर्यदेव भी राम लला के दर्शन के लिए प्रकट हो गए और पूरी अयोध्या चमकदार धूप और आस्था की गरमाहट से सराबोर हो गई। दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर सर्वोत्तम मुहूर्त में राम लला के चलित और अचल विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा शुरू हुई और 84 सेकेंड में सतत मंत्रोचार,साधना, आराधना और जय जयकार के बीच प्रभु श्री राम विराजमान हो गए। स्वर्ण आभूषणों और पूरे साज श्रृंगार के बाद जब राम लला ने पहले दर्शन दिए तो लोग भाव विव्हल हो उठे, उनकी आंखों से झर झर आंसुओं की धार बह निकली और बस,सब अपलक निहारते रह गए। 



 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के तमाम लोगों की इच्छा आकांक्षा का नेतृत्व करते हुए श्री राम जन्मभूमि गर्भगृह के भीतर रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की। इस दौरान उनके साथ उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल आनंदी बेन,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत समेत मंदिर के पुजारी और आचार्य गण मौजूद थे।  मंत्रोच्चारण और विधि-विधान के साथ रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा संपन्न हुई। इस दौरान मंदिर परिसर में सभी संप्रदायों के 4 हजार से ज्यादा संत, कला और उद्योग सहित तमाम विधाओं के ढाई हजार चुनिंदा अतिथि और हजारों लोग मौजूद थे। इस अवसर प्रधानमंत्री ने उल्लासित जनसमुदाय से कहा- ‘हमारे राम आ गए हैं। मुझे पक्का विश्वास है कि आज जो घटित हुआ है उसकी अनुभूति दुनिया के कोने कोने में हो रही होगी। गुलामी की मानसिकता को तोड़कर उठ खड़ा हुआ राष्ट्र ऐसे ही नव इतिहास का सृजन करता है। हजार साल बाद भी लोग इस पल की चर्चा करेंगे।’


 प्राण प्रतिष्ठा के बाद जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा कि ‘मैं अभी भी भावुक हूं। आज मेरी स्थिति गुरु वशिष्ठ के जैसी है जब भगवान राम वनवास के बाद लौटे थे।’ तो जाने माने गायक गायक-संगीतकार हरिहरन ने कहा, 'मेरी आंखों में खुशी के आंसू थे...मैं इस पल को शब्दों में बयां नहीं कर सकता, यहां हर कोई बहुत खुश है।'


भाव, श्रद्धा और आस्था से परिपूर्ण इस आयोजन को लेकर देश भर में महापर्व का सा आयोजन हुआ। घर घर दीपावली और होली मनाई गई । दुनिया भर के अन्य देशों ने भी इस जश्न में भारत के साथ सुर मिलाए। अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक और नेपाल से लेकर भूटान तक उत्सव और उल्लास में डूबे रहे। इसके साथ ही सन 1528 से चले आ रहे विवाद का सुखद पटाक्षेप हो गया और धर्म संस्कृति के नए युग का सूत्रपात हुआ।



भारतीय पराक्रम की स्वर्णिम गाथा है… ‘विजय दिवस’

सोलह दिसंबर दुनिया के इतिहास के पन्नों पर भले ही महज एक तारीख हो लेकिन भारत,पाकिस्तान और बांग्लादेश के इतिहास में यह तारीख कहीं स्वर्णिम तो कहीं काले हर्फो में दर्ज है। भारत में यह तारीख विजय की आभा में दमक रही है तो बांग्लादेश के लिए तो यह जन्मतिथि है । पाकिस्तान के लिए जरूर यह दिन काला अध्याय है क्योंकि इसी दिन उसका एक बड़ा हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान से बांग्लादेश बन गया था। वैसे भी,पाकिस्तान के लिए यह दिन किसी बुरे सपने से कम नहीं था क्योंकि उसकी हजारों सैनिकों को सर झुकाकर भारत की सरपरस्ती में इतिहास की सबसे बड़ी पराजय स्वीकार करनी पड़ी थी। 

इतिहास के पन्नों में दर्ज निर्णायक तारीख जरूर 16 दिसंबर 1971 है, लेकिन पाकिस्तान की कारगुजारियों ने उसकी नींव कई साल पहले डाल दी थी । जब उसकी सेना के अत्याचारों से कराह रहे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने मदद के लिए भारत से गुहार लगाना शुरू कर दिया था। आखिर, तत्कालीन भारत सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा और फिर भारतीय सैनिकों के शौर्य और पराक्रम का स्वर्णिम पन्ना ‘विजय दिवस’ के नाम से इतिहास में दर्ज हो गया ।

16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तान की ओर से पूर्वी मोर्चे पर कमान संभाल रहे लेफ्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी ने भारतीय सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा और हजारों उत्साही लोगों की भीड़ के समक्ष आत्मसमर्पण के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए। हस्ताक्षर के बाद जनरल नियाजी ने अपनी रिवाल्वर जनरल अरोड़ा को सौंपकर पराजय स्वीकार कर ली। इस ऐतिहासिक अवसर पर बांग्लादेश सशस्त्र बल के डिप्टी कमांडर-इन-चीफ एयर कमोडोर ए के खांडकर और भारत की पूर्वी कमान के लेफ्टिनेंट जनरल जे एफ आर जैकब ने आत्मसमर्पण के गवाह की भूमिका निभाई जबकि पाकिस्तान की ओर से तो उसकी सेना के सर झुकाए 90 हजार सैनिक इस पराजय के साक्षी थे।

भारतीय सेनाओं के अदम्य साहस, वीरता, बलिदान और पराक्रम के लिए दुनिया के सैन्य इतिहास की इस अमिट तिथि को हर साल विजय दिवस के रूप में याद किया जाता है। इस दिन ऐतिहासिक युद्ध में जीत हासिल करने वाले भारतीय सैनिकों को देशभर में विनम्र श्रद्धांजलि दी जाती है। इन कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्री सहित देश और प्रदेश की शीर्ष हस्तियां भी शामिल होती हैं। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर लिखा 'विजय दिवस पर, हम उन सभी बहादुर नायकों को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं जिन्होंने 1971 में निर्णायक जीत सुनिश्चित करते हुए कर्तव्यनिष्ठा से भारत की सेवा की. उनकी वीरता और समर्पण राष्ट्र के लिए अत्यंत गौरव का स्रोत है. उनका बलिदान और अटूट भावना हमेशा लोगों के दिलों और हमारे देश के इतिहास में अंकित रहेगी. भारत उनके साहस को सलाम करता है और उनकी अदम्य भावना को याद करता है.' इस साल,रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने नई दिल्ली में विजय दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अन्य लोगों के साथ नई दिल्ली में आर्मी हाउस में विजय दिवस की पूर्व संध्या पर 'एट होम' रिसेप्शन में शामिल हुईं।

आइए, अब एक नजर इस विजय दिवस की पृष्ठभूमि पर डालते हैं। दरअसल,भारत से बेमेल विभाजन के बाद बने पाकिस्तान में पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच कभी भी एका नहीं रहा और पश्चिमी पाकिस्तान के प्रभुत्व वाले शासकों ने बंगाली बहुल पूर्वी हिस्से को दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यह खाई जब और चौड़ी हो गई तब 1970 के दौरान हुए आम चुनावों में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में शेख मुजीबुर रहमान की अवामी लीग पार्टी को जबरदस्त समर्थन मिला और उसने सरकार बनाने का दावा किया, लेकिन पाकिस्तानी हुकूमत को यह बर्दाश्त नहीं हुआ कि उसकी नाफरमानी करने वाली कोई पार्टी वहां सत्ता संभाले। 

इसलिए जुल्फिकार अली भुट्टो के नेतृत्व वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार ने येन केन प्रकारेण इस बात के प्रयास शुरू कर दिए कि अवामी लीग को सत्ता न मिले। अपने षड्यंत्र को पूरा करने के लिए उसने सेना को भी मोर्चे पर लगा दिया। पर्याप्त जनसमर्थन के बाद भी सत्ता से दूर रखने की साजिश का अवामी लीग ने राजनीतिक स्तर पर विरोध किया और इससे पूर्वी पाकिस्तान में हालात खराब होते चले गए। लोकतंत्र की आवाज़ को दबाने के लिए पाकिस्तान सरकार ने अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया. इस कदम से विरोध हिंसक हो गया और पाकिस्तान के दोनों हिस्सों पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान में हालात बेकाबू होने लगे। पूर्वी पाकिस्तान में हालात बद से बदतर होने के कारण बड़ी संख्या में वहां से शरणार्थी भारत आने लगे।

भारत ने मानवीय आधार पर शरणार्थियों को हरसंभव सहायता प्रदान की। भारत की ओर से मदद देने से पाकिस्तान बौखला गया और उसने भारत को आंख दिखाते हुए हमले करने की धमकियां देना शुरू कर दिया. अपने बिगड़ते अंदरूनी हालात के कारण पाकिस्तानी शासक वास्तव में अपनी सुध बुध खो बैठे और उन्होंने परिणामों और अपने हित अहित की चिंता किए बगैर 3 दिसंबर 1971 को भारत के कई शहरों पर हमला कर दिया. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आधी रात को देश के नाम संबोधन में  पाकिस्तान की ओर से किए गए हमले की जानकारी देते हुए अपनी ओर से भी युद्ध  का ऐलान कर दिया। भारत-पाकिस्तान युद्ध करीब 13 दिन तक चला और 16 दिसंबर को भारत की ऐतिहासिक जीत और बंगलादेश के निर्माण के साथ समाप्त हुआ। युद्ध के समापन पर  93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेनाओं के समकक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी. इस दौरान  करीब 3 हजार 900 भारतीय सैनिकों को अपना सर्वोच्च बलिदान देना पड़ा। पाकिस्तान का तो अंतर राष्ट्रीय बिरादरी के सामने न केवल सर झुका बल्कि उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा । 

पाकिस्तान के साथ इस युद्ध में विजयश्री का वरण करने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान को एक नया राष्ट्र बनाने का एलान किया, जिससे बांग्लादेश का जन्म हुआ. इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने साबित कर दिया कि परम पराक्रमी होने के बाद भी भारतीय नीति के पालन करते हुए कभी भी किसी देश पर हमला नहीं करते लेकिन यदि किसी देश ने गलत इरादों और दुश्मनी की मंशा से भारत पर हमला किया तो वे मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम हैं ।



अपने राम,सबके राम

हरि अनंत हरि कथा अनंता।

कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥

रामचंद्र के चरित सुहाए। 


कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥


हरि अनंत हैं। उनका कोई पार नहीं पा सकता और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। रामचंद्र के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते।


भगवान श्रीराम सर्वव्यापी हैं, वे अनंत हैं,असीमित हैं और अनादि भी। राम सत्यम शिवम् और सुंदरम भी हैं,लोकनायक भी हैं और महानायक भी। राम केवल देवता के रूप में पूज्य नहीं हीं बल्कि मानवीय अवतार में मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर वे परमपूज्य हो जाते हैं। राम का मानवीय स्वरूप न केवल परमसत्ता के प्रति सम्मान का भाव जगाता है बल्कि हर व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष करने की प्रेरणा भी देता है। जाहिर सी बात है जब राम को अनंत रूपों में देखा जाएगा तो उतने ही तरह से उनकी व्याख्या भी होगी इसलिए विश्व में हमें राम और महाग्रंथ रामायण के अनेक रूप देखने को मिलते हैं। रामचरित मानस में तुलसीदास जी ने लिखा भी है कि जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी अर्थात श्रीराम को जिस व्यक्ति ने जिस भावना से देखा उसे वे वैसे ही दिखाई देने लगे।

आमतौर पर हम भगवान श्रीराम का यशगान महर्षि बाल्मिकी रचित रामायण और संत तुलसीदास रचित रामचरित मानस के जरिए ही करते और सुनते आ रहे हैं। असलियत यह है कि इन दोनों पवित्र ग्रंथों के अलावा दुनिया भर में 300 से ज्यादा रामायण चलन में हैं। इसके अलावा कई भाषाओं में भी रामायण उपलब्ध हैं जैसे तमिल भाषा में कंबन रामायण, ओडिशा में विलंका रामायण, कन्नड़ में पंप रामायण, मराठी में भावार्थ रामायण,बांग्ला में रामायण पांचाली के साथ साथ अध्यात्म रामायण,अद्भुत रामायण और आनंद रामायण जैसे कुछ ग्रंथ चर्चा में भी रहते हैं। रामानंद सागर ने जब पहली बार भगवान राम को रामारण धारावाहिक के रूप में पहली बार छोटे परदे पर उतारा था तो उन्होंने भी पटकथा लेखन में इन सभी रामायणों का अध्ययन किया था और इनके चुनिंदा किस्सों को कथानक में इस्तेमाल किया था। इस धारावाहिक ने लोकप्रियता के सभी रिकार्ड ध्वस्त कर दिए थे और आज भी रामायण केंद्रित तमाम धारावाहिकों के बाद भी रामानंद सागर की रामायण सबसे ज्यादा लोकप्रिय है।

देश और दुनिया में सबसे लोकप्रिय बाल्मीकि रामायण में 24 हजार श्लोक और सात कांड  हैं। ऐसा माना जाता है कि महर्षि वाल्मीकि राम के समकालीन थे और राम के बचपन से लेकर उनके पुत्र लव कुश के लालन पालन में भी बाल्मीकि आश्रम की प्रमुख भूमिका थी इसलिए उन्होंने प्रत्यक्ष महसूस करते हुए श्रीराम के मानवीय स्वरूप का संस्कृत भाषा में चित्रण किया है। हालांकि राम की कथाओं को जन जन तक पहुंचाने में संत तुलसीदास द्वारा अवधी भाषा में रचित रामचरित मानस की महत्वपूर्ण भूमिका है। रामचरित मानस में कुल 10 हजार 902 पद हैं जबकि चौपाई की संख्या 9 हजार 388, दोहों की संख्या 1 हजार 172 और सोरठों की संख्या 87,श्लोक की संख्या 47 और 208 छंद हैं। सबसे ज्यादा 359 दोहे बालकांड में और सबसे कम 31 किष्किंधाकांड में हैं जबकि अयोध्याकांड में 314, अरण्यकांड  में 51, सुंदरकांड में 62,युद्धकांड में 148 और उत्तरकांड में 207 दोहे हैं।


दुनिया की बात करें तो कई देशों में अलग अलग रामायण प्रचलित हैं इनमें कंपूचिया की रामकेर्ति या रिआमकेर रामायण,मलेशिया की हिकायत सेरीराम, थाईलैंड की रामकियेन, श्रीलंका में जानकी हरण और मलेराज की कथा, म्यांमार में रामवत्सु, लाओस में रामजातक या फ्रलक फ्रलाम, इंडोनेशिया में रामायण काकावीन, चीन में अनामकं जातकम्' और 'दशरथ कथानम्',जापान में होबुत्सुशू, मंगोलिया में राजा जीवक की कथा, तिब्बत में किंरस-पुंस-पा, तुर्किस्तान में खोतानी रामायण,

और नेपाल में भानुभक्त रामायण आदि प्रचलित हैं। इसके अलावा भी अन्य कई देशों में वहां की भाषा में रामायण लिखी गई हैं। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि प्रभु श्रीराम की लीलाओं का तमाम देशों और हमारे प्रदेशों में तत्कालीन परिस्थितियों के मुताबिक स्थानीय शैली में अलग अलग से दर्शाया गया है। शायद,इसलिए कहा गया है जाकी रही भावना जैसी,प्रभु मूरत देखी तिन तैसी..।



राम के भाल पर भास्कर

अवधपुरी सोहइ एहि भाँती। प्रभुहि मिलन आई जनु राती॥

देखि भानु जनु मन सकुचानी। तदपि बनी संध्या अनुमानी॥

राम के जन्म के बाद अवधपुरी ऐसे सुशोभित हो रही जैसे मानो रात्रि प्रभु से मिलने आई हो और सूर्य को देख सकुचा गई हो. इस तरह मन में विचारकर वह संध्या बन गई.

अयोध्या में भगवान श्री राम मंदिर निर्माण की भव्यता से दुनिया अचंभित है। मंदिर की शैली से लेकर इसकी दिव्यता की चर्चाएं हो रही हैं। वैसे तो मंदिर विशिष्ट और विविधाओं से परिपूर्ण है लेकिन राम मंदिर की एक अनूठी विशेषता इसका सूर्य तिलक तंत्र है, जिसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि हर वर्ष श्रीराम नवमी के दिन दोपहर 12 बजे लगभग 6 मिनट के लिए सूर्य की किरणें भगवान राम की मूर्ति के माथे पर पड़ेंगी। उन्होंने कहा कि राम नवमी हिंदू कैलेंडर के पहले महीने के नौवें दिन मनाई जाती है। यह आमतौर पर मार्च-अप्रैल में आती है, जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम के जन्मदिन का प्रतीक है।

भगवान श्रीराम को सूर्य तिलक में भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बेंगलुरु ने सूर्य पथ पर तकनीकी सहायता प्रदान की और ऑप्टिका, बेंगलुरु लेंस और पीतल ट्यूब के निर्माण में शामिल है। सूर्य तिलक के लिए गियर बॉक्स और परावर्तक दर्पण और लेंस की व्यवस्था इस तरह की गई है कि तीसरी मंजिल से सूर्य की किरणें सूर्य पथ का पालन करते हुए भौतिकी के सिद्धांतों के अनुरूप गर्भ गृह तक पहुंचे।

एक और विशेषता यह है कि राम मंदिर के निर्माण में कहीं भी सीमेंट और लोहे का उपयोग नहीं किया गया है। 3 मंजिला मंदिर का संरचनात्मक डिजाइन भूकंप प्रतिरोधी बनाया गया है और यह 2,500 वर्षों तक रिक्टर पैमाने पर 8 तीव्रता के मजबूत भूकम्पीय झटकों को बर्दाश्‍त कर सकता है।

राम मंदिर के निर्माण में वास्तुकार से लेकर निर्माण कंपनी तक की तो सर्वत्र खूब चर्चा हो रही है लेकिन कुछ ऐसे सरकारी संस्थान भी हैं जिन्होंने बिना किसी प्रचार प्रसार के अहम भूमिका निभाई है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद - सीएसआईआर और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग-डीएसटी के कम से कम चार प्रमुख राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा तकनीकी रूप से सहायता प्रदान की गई है। इसके अलावा, इसरो और आईआईटी जैसे नामी संस्थानों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन केंद्रीय संस्थानों में भवन अनुसंधान संस्थान- सीबीआरआ रूड़की, राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान-एनजीआरआई हैदराबाद, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स- आईआईए बेंगलुरु और इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी- आईएचबीटी पालमपुर,हिमाचल प्रदेश शामिल हैं।

सीबीआरआई रूड़की ने राम मंदिर निर्माण में प्रमुख योगदान दिया है जबकि एनजीआरआई हैदराबाद ने नींव डिजाइन और भूकंपीय सुरक्षा पर महत्वपूर्ण इनपुट दिए हैं। इसी प्रकार आईआईए बेंगलुरु ने सूर्य तिलक के लिए सूर्य पथ पर तकनीकी सहायता प्रदान की और आईएचबीटी पालमपुर ने 22 जनवरी को अयोध्या में दिव्य राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के लिए ट्यूलिप खिलाए ।

सबसे दर्शनीय काम  हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में स्थित आईएचबीटी ने किया है।इस संस्थान ने अयोध्या में बेमौसम में भी ट्यूलिप खिला दिए हैं। आमतौर पर इस मौसम में ट्यूलिप में फूल नहीं आते। यह केवल जम्मू-कश्मीर और कुछ अन्य ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में ही उगता है और वह भी केवल वसंत ऋतु में। लेकिन इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी ने हाल ही में एक स्वदेशी तकनीकी विकसित की है, जिसके माध्यम से ट्यूलिप को उसके मौसम का इंतजार किए बिना पूरे वर्ष उपलब्ध कराया जा सकता है। वैसे, राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान-एनबीआरआई, लखनऊ ने भी ‘एनबीआरआई नमोह 108’नाम से कमल की एक नई किस्म विकसित की है। कमल की यह किस्म - नमोह 108- मार्च से दिसंबर तक खिलती है ।

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...