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मैंने नहीं कहा रेस्ट इन पीस..!!

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मैंने नहीं कहा RIP या भगवान तुम्हारी आत्मा को शांति दे या न ही मैंने दी विनम्र श्रद्धांजलि..क्यों दे, श्रद्धांजलि या क्यों करें तुम्हारी आत्मा की शांति की प्रार्थना…तुमने ऐसा कौन सा तीर मार दिया जो शांति की कामना करें। अरे, कोई ऐसे अपने परिवार को बीच मँझधार में छोड़कर जाता है क्या?  मासूम से प्रांजल का दिल कब तुम्हारी सेवा करते करते कड़ा हो गया,तुम्हें तो ढंग से पता भी नहीं है...भाभी महीनों से कैसे तुमसे अपने आंसू छिपाकर तुम्हें हौंसला देती थी और तुमने एक बार में ही उनके विश्वास को, उनकी तपस्या को तार तार कर दिया। बिटिया प्रियम तो अब तक ठीक से समझ भी नहीं पाई कि तुमने उसके सर से अपने स्नेह की छाया दूर कर दी है । वह आज भी तुम्हारे सभी दोस्तों से वैसे ही आगे बढ़कर मिल रही थी जैसे तुम्हारे सामने मिलती थी। जब तुम एंबुलेंस में अपने पैतृक निवास ललितपुर की यात्रा के लिए लेटे थे और भाभी का करुण क्रंदन बाहर तक द्रवित कर रहा था लेकिन तुम मजबूत कलेजा किए लेटे रहे!! उस चीत्कार पर तुम्हें उठ बैठना था,दिलासा देना था भाभी को,प्रांजल को..लेकिन तुम अपनी ही दुनिया में मगन थे तो हम क्यों तुम्हारी आत्...

रावण के बहाने समाज की बात…!!

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समाज में एक बार फिर रावण ‘आकार’ लेने लगा है। हर साल इन्हीं दिनों में देश के तमाम शहरों में रावण जन्म लेने लगता है और धीरे-धीरे उसका आकार विशाल और रूप भयंकर होता जाता है। आमतौर पर मानव जीवन में बच्चों के जन्म में 9 महीने का समय लगता है लेकिन रावण तो रावण है इसलिए वह 9 महीने का सफर महज 9 दिन में पूरा कर लेता है। वैसे भी बुरी प्रवृत्तियों के विस्तार में समय कहां लगता है। अच्छाइयों को जरूर आदत बनने में कई कसौटियों से गुजरना पड़ता है।   फिलहाल, रावण का धड़ बन गया है। इसमें अहम तथ्य यह है कि जन्म के साथ ही रावण फूलना शुरू कर देता है। यह फुलाव घमंड का हो सकता है,असीमित शक्ति का और शायद संपन्नता का भी। जैसे-जैसे रावण दहन का समय नजदीक आता जाएगा रावण का शरीर और सिर घमंड से बढ़ते जाएंगे। एक सिर वाला रावण दस सिर का हो जाएगा।…और फिर जैसा कि कहावतों/मुहावरों में कहा जाता है कि ‘पाप का घड़ा भर गया है’,’बुराई का अंत निकट है’ या फिर ‘बुराई का अंत अच्छाई से होता है,’ वाले अंदाज में तमाम बड़े आकार प्रकार के बाद भी रावण को अंततः जलना पड़ता है।    वैसे, इन दिनों समाज में समय के साथ-...

हिंदी के हत्यारे…आप/हम,और कौन!!

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' हिंदी के हत्यारे’…पढ़कर आप चौंक गए न और हो सकता है कुछ लोग शायद नाराज भी हो गए होंगे क्योंकि हमारी अपनी सर्वप्रिय और मीठी हिंदी भाषा के साथ हत्यारे जैसा क्रूर शब्द सुनना अच्छा नहीं लगता । लेकिन, जब मैं यह कहूं कि मैं,आप और हम सभी हिंदी के हत्यारे हैं तो शायद आपको और भी ज्यादा बुरा लग सकता है और लगना भी चाहिए क्योंकि जब तक बुरा नहीं लगेगा तब तक हम अपनी गलतियों को सुधारने या खुद को बेहतर बनाने के लिए प्रयास नहीं करेंगे। किसी भाषा में मिलावट, व्याकरण बिगाड़कर,उसकी अनदेखी करना और उसकी बनावट एवं बुनावट से छेड़छाड़ करते जाना उसे तिल तिल कर मारना ही तो है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी कहा कि ‘मातृभाषा का अनादर मां के अनादर के समान है।जो मातृभाषा का अनादर करता है वह देशभक्त कहलाने के लायक नहीं है।’ जब गांधी जी जैसी संजीदा और संयम वाली शख्सियत मातृभाषा का सम्मान नहीं करने वालों को देशद्रोही जैसा मानने की हद तक कट्टर हो सकती है तो हमारी हिंदी भाषा को बर्बाद करने वालों को हिंदी के हत्यारे कहने में क्या बुराई है।  हम सब हिंदी की हत्यारे हैं। यहां हम सब का मतलब मैं/हम/आप/ मीडिया/ सिनेमा/ ब...