क्रिकेट को लेकर यह युद्धोन्माद किसलिए?
पाकिस्तान को पीट दो,आतंक का बदला क्रिकेट से,पाकिस्तान को धूल चटा दो,मौका मत चूको,पुरानी हार का बदला लो,अभी नहीं तो कभी नहीं,महारथियों की महा टक्कर,प्रतिद्वंद्वियों में घमासान,क्रिकेट का महाभारत....ये महज चंद उदाहरण है जो इन दिनों न्यूज़ चैनलों और समाचार पत्रों में छाये हुए हैं.मामला केवल इतना सा है कि विश्व कप क्रिकेट के सेमीफाइनल में भारत और पाकिस्तान की टीमें आमने-सामने हैं.लेकिन मीडिया की खबरों,चित्रों,रिपोर्टिंग,संवाददाताओं की टिप्पणियों और दर्शकों की प्रतिक्रियाओं से ऐसा लग रहा है मानो इन दोनों देशों के बीच क्रिकेट का मैच नहीं बल्कि युद्ध होने जा रहा है.हर दिन उत्तेजना का नया वातावरण बनाया जा रहा है,एक दूसरे के खिलाफ तलवार खीचनें के लिए उकसाया जा रहा है और महज एक स्टेडियम में दो टीमों के बीच होने वाले मुकाबले को दो देशों की जंग में बदल दिया गया है.रही सही कसर सरकार और राजनीतिकों ने पूरी कर दी है. “क्रिकेट डिप्लोमेसी” जैसे नए-नए शब्द हमारे बोलचाल का हिस्सा बन रहे हैं.राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक और मुख्यमंत्री से लेकर बाबूओं तक पर क्रिकेट का जादू सर चढकर बोल रहा है.