संदेश

क्रिकेट को लेकर यह युद्धोन्माद किसलिए?

चित्र
पाकिस्तान को पीट दो,आतंक का बदला क्रिकेट से,पाकिस्तान को धूल चटा दो,मौका मत चूको,पुरानी हार का बदला लो,अभी नहीं तो कभी नहीं,महारथियों की महा टक्कर,प्रतिद्वंद्वियों में घमासान,क्रिकेट का महाभारत....ये महज चंद उदाहरण है जो इन दिनों न्यूज़ चैनलों और समाचार पत्रों में छाये हुए हैं.मामला केवल इतना सा है कि विश्व कप क्रिकेट के सेमीफाइनल में भारत और पाकिस्तान की टीमें आमने-सामने हैं.लेकिन मीडिया की खबरों,चित्रों,रिपोर्टिंग,संवाददाताओं की टिप्पणियों और दर्शकों की प्रतिक्रियाओं से ऐसा लग रहा है मानो इन दोनों देशों के बीच क्रिकेट का मैच नहीं बल्कि युद्ध होने जा रहा है.हर दिन उत्तेजना का नया वातावरण बनाया जा रहा है,एक दूसरे के खिलाफ तलवार खीचनें के लिए उकसाया जा रहा है और महज एक स्टेडियम में दो टीमों के बीच होने वाले मुकाबले को दो देशों की जंग में बदल दिया गया है.रही सही कसर सरकार और राजनीतिकों ने पूरी कर दी है. “क्रिकेट डिप्लोमेसी” जैसे नए-नए शब्द हमारे बोलचाल का हिस्सा बन रहे हैं.राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक और मुख्यमंत्री से लेकर बाबूओं तक पर क्रिकेट का जादू सर चढकर बोल रहा है.        

सेक्स-रिलेक्स और सक्सेस के बीच मस्ती

चित्र
हरे,पीले,नीले लाल,गुलाबी रंग,भांग का नशा,ढोल की मदमस्त थाप,रंग भरे पानी से भरे हौज,बदन से चिपके वस्त्रों में मादकता बिखेरती महिला पात्र और छेड़खानी करते पुरुष....इसे हमारी हिंदी फिल्मों का ‘डेडली कम्बीनेशन’ कहा जा सकता है क्योंकि इसमें ‘सेक्स-रिलेक्स-सक्सेस’ का फार्मूला है और उस पर “होली खेले रघुबीरा बिरज में होली खेले रघुबीरा....” या फिर “रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे..” जैसे गाने....... हमें अहसास होने लगता है कि होली का त्यौहार आ गया है और जब मनोरंजक चैनलों के साथ-साथ न्यूज़ चैनलों पर भी “रंग दे गुलाल मोहे आई होली आई रे..” गूंजने लगता है तो फिर कोई शक ही नहीं रह जाता.आखिर किसी भी त्यौहार को जन-जन में लोकप्रिय बनाने में फिल्मों और फ़िल्मी संगीत की महत्वपूर्ण भूमिका से कौन इनकार कर सकता है. रक्षाबंधन,दीपावली,ईद,स्वतंत्रता दिवस,गणतंत्र दिवस जैसे पर्वों पर फिल्मी गानों की गूंज ही हमें समय से पहले उत्साह,उमंग और जोश से शराबोर कर देती है.फिल्मों का ही प्रभाव है कि करवा चौथ एवं वेलेन्टाइन डे जैसे आयोजन भी राष्ट्रीय पर्व का रूप लेते जा रहे हैं. ‘जय संतोषी माँ’ फिल्म से मिले प्रचार के बाद

आप हुरियारे हैं या हत्यारे!

चित्र
आप होली की अलमस्ती में डूबने वाले हुरियारे हैं या फिर हत्यारे,यह सवाल सुनकर चौंक गए न?दरअसल सवाल भी आपको चौकाने या कहिये आपकी गलतियों का अहसास दिलाने के लिए ही किया गया है.त्योहारों के नाम पर हम बहुत कुछ ऐसा करते हैं जो नहीं करना चाहिए और फिर होली तो है ही आज़ादी,स्वछंदता और उपद्रव को परंपरा के नाम पर अंजाम देने का पर्व.होली पर मस्ती में डूबे लोग बस “बुरा न मानो होली है” कहकर अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं पर वे ये नहीं सोचते कि उनका त्यौहार का यह उत्साह देश,समाज और प्रकृति पर कितना भारी पड़ रहा है.साल–दर-साल हम बेखौफ़,बिना किसी शर्मिन्दिगी और गैर जिम्मेदाराना रवैये के साथ यही करते आ रहे हैं.हमें अहसास भी नहीं है कि हम अपनी मस्ती और परम्पराओं को गलत परिभाषित करने के नाम पर कितना कुछ गवां चुके हैं?..अगर अभी भी नहीं सुधरे तो शायद कुछ खोने लायक भी नहीं बचेंगे. अब बात अपनी गलतियों या सीधे शब्दों में कहा जाए तो अपराधों की-हम हर साल होलिका दहन करते हैं और फिर उत्साह से होली की परिक्रमा,नया अनाज डालना,उपले डालने जैसी तमाम परम्पराओं का पालन करते हैं पर शायद ही कभी हम में से किसी ने भी यह