शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

मातृत्व को तो बख्श दो मेरे भाई..

.आजकल टीवी पर एक विज्ञापन बार-बार दिखाया जा रहा है जिसमें माँ अपने बच्चे को बिना किसी आवाज़ के जन्म दे रही है और बच्चा भी बिना रोये पैदा हो जाता है...विज्ञापन के अंत में आवाज़ आती है अपनी आवाज़ बचाकर रखना इंडिया क्योंकि आस्ट्रेलिया आ रहा है. दरअसल यह विज्ञापन जल्दी ही शुरू होने वाली भारत-आस्ट्रेलिया क्रिकेट को लेकर है.विज्ञापन कहता है कि मैचों के दौरान भारतीय टीम के समर्थन के सभी भारत वासियों को अभी बोलना नहीं चाहिए मतलब अपनी आवाज़ बचाकर रखनी चाहिए ताकि मैचों के समय जमकर शोर मचा सके. इस बात पर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती कि हमें अपनी टीम का समर्थन करना चाहिए लेकिन इस अपील के लिए मातृत्व या कोख का अपमान तो ठीक नहीं है. मातृत्व मानव जीवन की सबसे अनूठी और यादगार उपलब्धि है. पूरे नौ महीने की तपस्या के बाद माँ अपनी कोख से नव-सृजन करती है और जन्म लेते बच्चे का रोना सुनने के लिए माँ ही नहीं पूरा परिवार और यहाँ तक कि डाक्टर-नर्स भी इंतज़ार करते हैं क्योंकि बच्चे के इस रुदन में ही उसके सेहतमंद होने का राज छिपा होता है. इसलिए प्रकृति के इस चमत्कार का अपमान किसी भी सूरत में नहीं किया जाना चाहिए.
 विज्ञापनों में महिलाओं का इस्तेमाल हालाँकि कोई नई बात नहीं है. इन दिनों टीवी पर दिखाए जा रहे डियोडेरेन्ट और परफ्यूम के विज्ञापनों में हमें जिस स्त्री के दर्शन हो रहे हैं वह कहीं से भी हमें अपनी सी नहीं लगती. यौन-उन्मांद से रची-बसी ये महिलाएं एक खास कंपनी के उत्पाद का इस्तेमाल करने वाले पुरुषों पर हमला सा करती नज़र आती हैं,उसे देखकर आहें भरती हैं, ऐसी भाव-भंगिमाएँ प्रदर्शित करती हैं मानो उनके जीवन में यौन संबंधों के अलावा और कुछ नहीं है और वे सेक्स के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं. अब ये उस उत्पाद का असर है या हमारी महिलाएं बदल रही हैं? इसका विश्लेषण तो समाजविज्ञानी ही बेहतर कर सकते हैं पर अपनी सामान्य समझ के हिसाब से मैं इतना ज़रूर कह सकता हूँ कि ये कम से कम हमारे-आपके घर की महिलाएं तो नहीं हैं. तो क्या बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने उत्पाद बेचने/थोपने के लिए हमारी महिलाओं और संस्कृति को बिगाड़ने की साजिश रच रही हैं? या फिर देश में दुग्ध क्रांति,हरित क्रांति की तर्ज़ पर यौन क्रांति का दौर आ गया है?
     आज ये पैसा कमाने के लिए  विज्ञापनों में रचनात्मकता के नाम पर मातृत्व का इस्तेमाल कर रहे हैं तो फिर भविष्य में और किस हद तक जा सकते हैं ...इसकी कल्पना से ही डर लगता है....

3 टिप्‍पणियां:

  1. आप सही कह रहे हैं कि दुनिया में या हमारे देश में यौन क्रांति का युग आ गया है। पूर्व में समाज पुरुषों को संस्‍कारित करता था लेकिन वर्तमान में महिलाओं को काम भाव से जागृत किया जा रहा है। इसी का उदाहरण हैं ये डियोडरेन्‍ट का विज्ञापन। मातृत्‍व वाला तो अभी देखा नहीं।

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  2. विज्ञापनों का तिलिस्माई संसार है.... यहाँ संवेदनाओं और भावनाओं का क्या मोल.....?
    बाकी आपने बहुत ही अच्छे विषय पर बात की अच्छा लगा.....

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  3. ये विज्ञापनों का चटकीला बाज़ार
    जीवन की सारी स्वाभाविकता को चाटे डाल रहा है,सब कुछ दिखाऊ माल बनता जा रहा है !

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