बुधवार, 25 दिसंबर 2013

कोई घर तोड़ रहा है तो कोई कर रहा है सरेआम अपमान



हाल ही में फिल्म अभिनेता ऋतिक रोशन और उनकी पत्नी सुजैन खान के बीच तलाक़ की ख़बरों ने मुझे एक सरकारी क्षेत्र के बैंक के विज्ञापन की याद दिला दी. यह विज्ञापन आए दिन टीवी पर आता रहता है. इस विज्ञापन में एक युवा जोड़े को सड़क पर छेड़छाड़ करते दिखाया गया है. युवक बार बार युवती से काफी शॉप में या कहीं और मिलने का आग्रह करता है और युवती उससे दूर चलते हुए कभी बाबूजी देख लेंगे तो कभी माँ देख लेगी कहते हुए बचती सी नजर आती है.इसी तरह छेड़छाड़ करते हुए वे एक घर तक पहुँच जाते हैं और फिर घर का दरवाजा खोलते हुए एक बुजुर्ग महिला युवती से पूछती है ‘बहू, आज बहुत देर कर दी’ और युवती के स्थान पर युवक उत्तर देता है ‘हाँ, माँ वो आज देर हो गयी’. तब जाकर दर्शकों को यह समझ में आता है कि वे वास्तव में पति-पत्नी हैं लेकिन इसके पहले कि दर्शकों के चेहरे पर उनकी छेड़छाड़ को लेकर मुस्कान आए विज्ञापन कहता है कि ‘हम समझते हैं कि रिश्तों के लिए अपना घर होना कितना जरुरी है’. ऋतिक और सुजैन के तलाक़ के मामले में भी यह बात कही जा रही है कि सुजैन ने रोशन परिवार से अलग रहने के लिए दवाब बनाया था जबकि वे दोनों पूरी तरह से अलग फ्लोर पर रहते थे. अब यदि इस संदर्भ में बैंक के उस विज्ञापन के सन्देश पर गौर किया जाए तो उसका मतलब तो यही हुआ न कि अगर आपको मस्ती भरी-बेफिक्र जीवन शैली चाहिए तो अपने माँ-बाप/परिवार से दूर अलग घर लेकर रहो. अब जब भारत तो क्या पश्चिमी देश भी संयुक्त परिवार का महत्व समझने लगे हैं तब देशी लोगों को परिवार तोड़ने का सन्देश देना कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता. पहले ही हमारे टीवी सीरियल संयुक्त परिवार तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. ऐसे में इस प्रकार के विज्ञापन निश्चित तौर पर सोच और युवा समझ पर असर डालेंगे ही.
       यह कोई इकलौता विज्ञापन नहीं है बल्कि इन दिनों ऐसे कई विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं जो सीधे नहीं तो अप्रत्यक्ष तौर पर हमारी मानसिकता को नकारात्मक सोच से भर रहे हैं. टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित हो रहा ऐसा ही एक विज्ञापन वाटर हीटर बनाने वाली एक नामी कम्पनी का है. इस विज्ञापन में एक सौम्य महिला से पहले बस में छेड़छाड़ होती है और फिर घर के पास भी कुछ शोहदे सीटी मारकर छेड़ते हैं... जवाब में वह महिला डरी-सहमी सी चुपचाप घर जाकर इस कम्पनी के वाटर हीटर के गर्म पानी से नहाती है और विज्ञापन कहता है-"धो डालिए सभी परेशानियों को." मुझे लगता है विज्ञापन सीधे-सीधे महिलाओं को छेड़ने और छेड़छाड़ को चुपचाप सहते रहने का समर्थन कर रहा है. अरे भैया यह विज्ञापन छेड़छाड़ करने वालों को करारा जवाब देकर भी तो बनाया जा सकता था जैसे वह महिला इसी वाटर हीटर के पानी से नहाकर जब घर से निकलती और बस में धक्का मुक्की करने वाले को ऐसा जोर का धक्का/झटका देती कि उसे अपनी नानी याद आ जाती और घर के पास सीटी मार रहे शोहदों को करारा थप्पड़ रसीद करती और फिर विज्ञापन कहता-"गर्माहट ऐसी की अच्छे-अच्छों को ठंडा कर दे..". इससे प्रचार भी हो जाता और गलत इरादे रखने वालों को सन्देश भी मिलता...!!!
      इसी तरह ठण्ड से बचाव पर केन्द्रित एक अन्य नामी कंपनी के थर्मोवियर(गर्म कपड़ों) के विज्ञापन में कई लोग ठण्ड से बचने के लिए लकड़ियाँ जलाकर आग ताप रहे हैं.लकड़ियाँ कम होने पर वे एक असहाय और चलने-फिरने में असमर्थ बुजुर्ग को नीचे लिटाकर उसकी चारपाई को आग के हवाले कर देते हैं...विज्ञापन की अगली लाइन में वे दूसरे दिन ठण्ड से बचने के जुगाड़ के लिए एक और बुजुर्ग की ओर देखते हैं जो अपाहिज है और चलने-फिरने के लिए लकड़ी की बैसाखियों पर आश्रित है. आग ताप रहे लोग उसकी बैसाखियों की ओर क्रूरता से देखते हैं और वह बुजुर्ग डरकर बैसाखी पीछे छिपा लेता है....अब भला अपने गर्म कपड़े बेचने के लिए किसी असहाय व्यक्ति की शारीरिक कमजोरी का इस्तेमाल करना कैसे उचित माना जा सकता है. यह कैसी रचनात्मकता है जो बुजुर्गो-अपाहिजों का मज़ाक उड़ाती है ? क्या अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर हम कुछ भी दिखा-सुना सकते हैं. इन विज्ञापनों से सीधे प्रभावित होने वाली हमारी युवा और किशोर पीढ़ी क्या सीखेगी ? क्या महज पैसे कमाना ही जीवन का एकमात्र ध्येय रह गया है और पैसे के लिए संस्कार,सभ्यता,शिष्टता जैसे जीवन के मूलभूत सिद्धांत कोई मायने नहीं रह गए हैं. अभी भी यदि हमने इस बारे में नहीं सोचा था तो शायद भविष्य में पछतावे के अलावा हमारे हाथ में कुछ और नहीं रह जाएगा. 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बारीक नजर।
    ऐसा ही काम मादक व नशीले पदार्थों के विज्ञापन पर प्रतिबंध के चलते surrogate advertisements के जरिये किया जाता है और हैरत ये है कि इसे रचनाधर्मिता का जामा पहनाकर न्यायोचित भी ठहराया जाता है।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-12-2013 को चर्चा मंच की चर्चा - 1473 ( वाह रे हिन्दुस्तानियों ) पर दिया गया है
    कृपया पधारें
    आभार

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  3. आपने आज के सच को पूरी तरह से शब्दांकित कर दिया है । अफ़सोस मगर सच यही है कि आज बदलाव इसी दिशा में अग्रसर है , सोचने को विवश करती पोस्ट

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  4. डिअर संजीव जी
    बहुत अच्छा लगा आज आपका जुगाली ब्लॉग पढ़कर. अपने गंभीर मुद्दों को अच्छे ढंग से उठाया है.आपकी बात बिलकुल सही है आज ध्यान खींचने के लिए अच्छे,बुरे,फूहड़ और भद्दे या भोंडे होने की परवाह नहीं की जारही है.catching the eyeball and catching the attention के लिए कुछ भी चलेगा का मामला हो गया है.

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