‘मुकुटधारी बहुरुपिया’....लेकिन है बड़े काम का
अन्नानास का नाम लेते ही मुंह में पानी आ
जाता है.अपने रसीले और अनूठे स्वाद के अलावा यह अनूठा फल पोषक तत्वों का भण्डार भी
है. हम इसे बहुरुपिया और मुकुटधारी भी कह सकते हैं. दरअसल फल बनने से बाजार में
बिक्री के लिए आने तक यह लगातार रंग बदलता रहता है और क्रमशः लाल,वैगनी ,हरा और
फिर पीला रंग धारण करता है. वहीँ,पत्तों का शानदार मुकुट तो इसके सिर पर सदैव सजा ही
रहता है.
अन्नानास की बात हो और असम का उल्लेख न हो
ऐसा हो ही नहीं सकता. बंगाली में अनारस, असमिया में माटी कठल और अंग्रेजी में पाइन
एप्पल के नाम से विख्यात इस फल की इन दिनों असम और खासकर राज्य की बराक वैली में
बहार आई हुई है. मैग्नीशियम ,पोटेशियम,विटामिन सहित कई उपयोगी तत्व भरपूर अन्नानास
के ढेर जून-जुलाई और फिर अक्तूबर-दिसंबर तक यहाँ कि हर गली,बाज़ार और नुक्कड़ पर देखने
को मिल सकते है.
दिल्ली-मुंबई
जैसे महानगरों में जाकर भले ही इस रसीले फल के भाव आसमान छूने लगते हों परन्तु
बराक वैली में यह बेभाव है. यह बात शायद कम ही लोग जानते होंगे कि बराक वैली में अन्नानास
को अमूमन जोड़े में बेचा जाता है. वैसे तो पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्यों में पाइन
एप्पल का भरपूर उत्पादन होता है परन्तु इसमें असम का योगदान काफी ज्यादा है.
आंकड़ों के मुताबिक देश में अन्नानास के कुल उत्पादन में पूर्वोत्तर का योगदान 40
फीसदी है वही सिर्फ असम का योगदान 15 प्रतिशत से ज्यादा है. सबसे अच्छी बात यह है
कि यहाँ पैदा होने वाला अधिकतर अन्नानास आर्गनिक होता है और उसमें किसी भी तरह की
रासायनिक खादों की मिलावट नहीं होती इसलिए देश ही दुनियाभर में यहाँ के अन्नानास
की ज़बरदस्त मांग है. कहते हैं कि लखीपुर के मार क्यूलिन इलाक़े का पाइन एप्पल
ब्रिटेन से लेकर अमेरिका तक के प्रथम परिवारों की पहली पसंद है. इस तरह यह ‘फ्रूट
डिप्लोमेसी’ में भी अहम भूमिका निभा रहा है. ‘मार क्यूलिन’ का अर्थ है - मार
आदिवासियों का क्यूलिन यानी बड़ा गाँव. आज भी यहाँ के उत्पादन का अधिकतर हिस्सा
विदेश भेज दिया जाता है. इस इलाक़े में तक़रीबन 20-25 किलोमीटर के दायरे में भरपूर
अन्नानास होता है. वैसे असम के कछार, एनसी हिल्स, कर्बी आंगलोंग और नगांव में
बहुतायत में अन्नानास का उत्पादन होता है.
अन्नानास के बारे में एक रोचक तथ्य यह है कि यह
शतायु है .एक बार अनानास का पौधा लगाने के बाद वह लगभग 70 से 100 साल तक बिना किसी
अतिरिक्त खर्च और परिश्रम के पूरी मुस्तैदी के साथ वर्ष में दो बार फल देता रहता
है. मतलब यदि एक बार यह फसल लगा ली तो फिर कई पुश्तें बिना किसी लागत के बस बैठकर
खाएँगी. यही नहीं, इसका हर पौधा दूसरे नए पौधों को भी तैयार करता है.
हम कह सकते हैं कि चाय उत्पादन के अलावा
अन्नानास की असम की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका है. जानकारों का कहना है कि यदि राज्य
में सरकारी और गैर सरकारी तौर पर अन्नानास उत्पादन को और बेहतर ढंग से प्रोत्साहित
किया जाए तो कश्मीर के सेब और नागपुर के संतरों की तरह अन्नानास भी असम की न केवल
पहचान बल्कि पर्यटन का प्रमुख आधार भी बन सकता है.
उपयोगी सामग्री।
जवाब देंहटाएंbahut sundar prastuti
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