नोटबंदी के बाद मीडिया में आ रही निराशाजनक ख़बरों के बीच रोशनी की किरणें बन रही........ असल किरदारों की सच्ची कहानियां

एक: रणविजय महज 22 साल के हैं और सिविल इंजीनियर होने के बाद भी पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण सिलचर (असम) में अपने पैतृक फल व्यवसाय में पिता का हाथ बंटाते हैं. जब उन्होंने 8 नवम्बर के बाद आम लोगों को छोटे नोटों के लिए जूझते/मारामारी करते देखा तो खुद के पास मौजूद 10 हज़ार मूल्य के सौ-सौ के नोट लेकर खुद ही बैंक पहुँच गए और बदले में बड़े नोट ले आए. इतना ही नहीं, फिर इन्होने अपने आस-पास के फल व्यवसायियों को समझाना शुरू किया और चार दिन बाद ही स्टेट बैंक की लाइन में नोट बदलने के लिए लगे सैंकड़ों लोगों की तालियों के बीच उन्होंने 50 हज़ार के छोटे नोट बैंक को सौंपे...अब वे इस राशि को और बढ़ाने की योजना में जुटे हैं....सलाम रणविजय दो: प्रमोद शर्मा युवा व्यवसायी हैं और सिलचर के व्यापारिक क्षेत्र गोपालगंज में रहते हैं. नोटबंदी/बदलाव के बाद,वे रोज देखते थे कि आम लोग दो हज़ार का नया नोट लेकर छुट्टे पैसे के लिए यहाँ-वहां भटक रहे हैं और अपने लिए जरुरी सामान भी नहीं खरीद पा रहे. उन्होंने राजू वैद्य,शांति सुखानी और अबीर पाल जैसे अपने अन्य दोस्तों से सलाह मशविरा किया और जुट गए आम लोगों को ब...