ज़िन्दगी की जंग हारकर भी जीत गया ‘बंग बहादुर’
जिन्दगी और मौत की जंग
में मौत भले ही एक बार फिर जीत गयी हो लेकिन बंग बहादुर ने अपनी जीवटता,जीने की
लालसा,जिजीविषा और दृढ मनोबल से मौत को बार बार छकाया और पूरे पचास दिन तक वह मौत
को अपने मज़बूत इरादों से परास्त करता रहा. उसे इंतज़ार था कि सत्तर के दशक की लोकप्रिय
फिल्म ‘हाथी मेरे साथी’ की तर्ज पर कोई इंसान उसे समय रहते बचा लेगा. बंग बहादुर
को बचाने के इंसानी प्रयास तो हुए लेकिन वे सरकारी थे और नाकाफ़ी भी, इसलिए शायद
कामयाब नहीं हो पाए.
बंग बहादुर ने अपनी
हिम्मत, संघर्ष शीलता और जीने की इच्छाशक्ति के फलस्वरूप जीवटता की नई कहानी लिख
दी. एक ऐसी कहानी जिसे सालों-साल दोहराया जायेगा. दरअसल बंग बहादुर सुदूर
पूर्वोत्तर में असम का एक हाथी था और उसकी जीवटता के कारण ही उसे ‘बंग बहादुर’ नाम
दिया गया था.
दरअसल बह्मपुत्र में आई
विकराल बाढ़ के चलते लगभग चार टन का यह हाथी असम में अपने झुंड से 27 जून को
अलग हो गया था और बाढ़ के पानी में बहते-बहते बांग्लादेश तक पहुंच गया । भीषण बाढ़
के बीच प्रतिकूल परिस्थितियों में करीब 1,700 किलोमीटर बहने
के बाद भी उसने हिम्मत नहीं हारी और पानी में फंसा होने के बाद भी स्वयं को बचाने
के लिए लगातार संघर्ष करता रहा.
केवल पानी के सहारे तो
इतने लम्बे समय तक इंसानी जीवन भी मुश्किल है फिर वह तो चार टन का भारी-भरकम हाथी
था. बंग बहादुर नाम मिलने के बाद भी यह शाकाहारी प्राणी अपना स्वभाव नहीं बदल पाया
अन्यथा मछलियाँ खाकर अपना पेट भर सकता था. न तो उसे रसीले गन्ने मिले और न ही
पेड़ों की पत्तियां क्योंकि बाढ़ की विकरालता में कुछ भी टिक पाया. बस टिका रहा तो
बंग बहादुर लेकिन बाढ़ में घिरे होने के कारण बंग बहादुर को पर्याप्त मात्रा में
भोजन नहीं मिल पाया. भोजन के अभाव में उसकी शक्ति धीरे धीरे कम होती गई और कमजोरी
के कारण उसकी हिम्मत जवाब दे गयी।
जब उसकी जीवटता को
स्थानीय मीडिया में जगह मिली तो सम्बंधित विभागों की तन्द्रा टूटी और फिर उसे बचने
के प्रयास शुर हुए. भारत और बंगलादेश दोनों ही देशों ने संयुक्त रूप से इस हाथी को
बचाने के लिए टीम बना दी. यही नहीं, हाथी को बचाने के लिए असम के पूर्व
मुख्य वन संरक्षक के नेतृत्व में भारत का एक विशेषज्ञ दल भी बांग्लादेश भेजा गया
था.
छह हफ्तों के अथक प्रयास
के बाद, 11 अगस्त को किसी तरह पानी से बाहर निकाल लिया गया
लेकिन अब तक अपने दम पर अनहोनी और आशंका के बीच संघर्ष कर रहा बंग बहादुर एकाएक
अपने इर्द-गिर्द इतने इंसानों को देखकर घबरा गया और कमज़ोरी के बाद भी भाग निकला,
लेकिन इस दौरान एक गड्ढे में गिरने से यह अचेत हो गया । वन
अधिकारियों और ग्रामीणों ने उसे किसी तरह गड्ढे से बाहर निकाला। ढाका से करीब 200
किलोमीटर दूर उत्तरी जमालपुर जिले के कोयरा गांव से उपचार के लिए
सफारी पार्क ले जाने की प्रक्रिया के दौरान 17 अगस्त को बंग बहादुर की मौत हो गई।
बंग बहादुर का
पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सकों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि हाथी की मौत गर्मी
के चलते दिल का दौरा पडऩे से हुई। उधर,बचाव दल के सदस्यों ने भी मान लिया कि भरसक
कोशिश के बाद भी वे बंगबहादुर को बचा नहीं पाए परन्तु उसकी मौत का दुख है क्योंकि
हम भी इस बहादुर हाथी को खोना नहीं चाहते थे। जो भी हो, दो महीने तक मौत से जंग
लड़ने वाला बंग बहादुर तो हारकर भी जीत गया लेकिन हम इंसानों को एक शर्मनाक स्थिति
में भी छोड़ गया. आखिर हमने उसके दो माह के संघर्ष पर अपनी बेपरवाही से पानी जो फेर
दिया.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "सबसे तेज क्या? “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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