शनिवार, 7 अक्तूबर 2023

भोपाल में क्यों मंडरा रहे हैं खौफनाक गर्जना के साथ लड़ाकू विमान...!!


आमतौर पर अपनी शांत तासीर के लिए मशहूर भोपाल का आसमान इन दिनों लड़ाकू विमानों की गड़गड़ाहट से गूंज रहा है, बिल्कुल युद्ध सा माहौल है…सुखोई,जगुआर,मिराज जैसे दुश्मन के कलेजे में खौफ पैदा कर देने वाले 50 से ज्यादा लड़ाकू एवं परिवहन विमान और हेलीकाप्टर भोपाल के ऊपर मंडरा रहे है। उनकी गर्जना से पूरे शहर और खासतौर पर मुख्यमंत्री निवास,भारत भवन, श्यामला हिल्स और न्यू मार्केट सहित तमाम इलाक़े इन विमानों की गर्जना से थरथरा रहे हैं। आलम यह है कि नए जमाने की तकनीक संपन्न कारें इन विमानों की गर्जना से पिपयाने लगती हैं और जैसे ही वे किसी तरह शांत होती हैं फिर कोई विमान गड़गड़ाहट के जरिए अपनी आन-बान और शान का मुजाहरा पेश करते हुए गुजर जाता है और फिर बेचारी कारें डर के कारण घिघयाने लगती हैं।

हालांकि,बच्चों और महिलाओं को यह गर्जना अचंभित कर रही है तो युवाओं के लिए यह किसी जयघोष के समान है,देश की शक्ति संपन्नता का जयकार और सुरक्षित भविष्य का विजयनाद है। वहीं,बुजुर्ग हो चली पीढ़ी के लिए आसमान में मंडरा रहे ये विमान पुराने युद्धों पर यादों की जुगाली का मसाला प्रदान कर रहे हैं।

विमानों की यह चहलकदमी बीते कुछ दिनों से जारी है और 30 सितंबर तक इसी तरह अपने अट्टाहस से आसमां को गुंजायमान रखेगी। भोपाल के बतोलेबाज कभी इसे प्रधानमंत्री की भोपाल यात्रा की ड्रिल करार देते हैं तो कभी इसे चुनावों से तो कभी पाकिस्तान से युद्ध की तैयारी बना देते हैं। असलियत यह है कि, भारतीय वायुसेना इस साल वायुसेना दिवस के अवसर पर इसे जनभागीदारी का और जनता का उत्सव बनाने में जुटी है इसलिए दिल्ली में सालाना तौर पर होने वाला फ्लाईपास्ट देश के अलग अलग शहरों में हो रहा है।

भोपाल को जरूर पहली बार इतने बड़े पैमाने पर हो रहे फ्लाईपास्ट यानि लड़ाकू विमानों के कारनामों की मेजबानी का अवसर मिला है इसलिए लोग अचंभित है और उल्लासित भी। वायुसेना द्वारा दी गई आधिकारिक जानकारी के मुताबिक फ्लाईपास्ट में विभिन्न किस्म के 50 के करीब विमान शामिल होंगे और वे 30 सितंबर को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह सहित कई सैन्य-असैन्य दिग्गजों की मौजूदगी में सुबह 10 बजे से क़रीब घंटे भर तक भोपाल के आकाश में हैरतअंगेज अठखेलियां करेंगे। इनमें लड़ाकू विमानों के साथ सूर्यकिरण और सारंग नामक हेलीकाप्टर टीमों के कारनामे तो दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर कर देते हैं। 30 तारीख को फाइनल प्रदर्शन से पहले 28 सितंबर को फुल ड्रेस रिहर्सल यानि सौ टका टंच अभ्यास होगा और उसके पहले कुछ दिन तक सामान्य अभ्यास जिससे तमाम कौशल के बाद भी चूक की कोई गुंजाइश न रहे…इसलिए भोपाली दिल धड़का देने वाली गर्जना के लिए कुछ और दिन अपने कान और कलेजा मजबूत किए रहें और फिर पूरे जोश,उल्लास और देश प्रेम के साथ सपरिवार आनंद लें अनूठे एयर शो का..जो शायद वर्षों तक उनके दिलो दिमाग पर छाया रहेगा।

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चार देश चालीस कहानियां

 पुस्तक: चार देश चालीस कहानियां


लेखक:संजीव शर्मा

विधा: यात्रा वृतांत/रिपोर्ताज

पृष्ठ: 164

मूल्य: 200 रुपए

प्रकाशक: लोक प्रकाशन, भोपाल

समीक्षक: प्रवीण दुबे,वरिष्ठ पत्रकार

इन दिनों अपने नए काम की व्यस्तता में इतना उलझा हूँ कि कुछ पढने लिखने का वक्त ही नहीं मिल पा रहा है..इस बीच संजीव शर्मा जी की नई किताब "चार देश चालीस कहानियां" की प्रति प्राप्त हुई... अमूमन मैं कोई भी किताब निरंतरता में ही पढ़ता हूँ यानी जब तक ख़त्म नहीं होती,तब तक छोड़ता नहीं... इसके साथ वैसी संभावना मेरी नई ज़िम्मेदारियों के चलते नहीं थी लेकिन जैसे ही मैंने पढ़ना शुरू किया तो इतनी रोचक और इतने प्रवाह के साथ इसमें तथ्यों को पिरोया गया है कि वही पाठक वाली निरंतरता इसमें भी बनी रही... पूरा पढने के बाद खुद तय नहीं कर पाया कि इसे किस श्रेणी में रखा जाए...ये यात्रा संस्मरण है....रिपोर्ताज है..सांस्कृतिक संकलन है...या फिर किसी यायावरी का दस्तावेज...चूंकि संजीव जी खुद बेहतरीन पत्रकार हैं..भाषा पर नियंत्रण उनका बहुत अच्छा है...दूसरे, वे उस इलाके से आते हैं जहाँ भगोने का पका हुआ एक चावल देखना हो तो ओशो और यदि दूसरा चावल देखना हो तो दादा आशुतोष राणा... कहने का आशय ये है कि उस इलाक़े में मां सरस्वती की कृपा कैसे बरसती है, ये दो नाम ही उसे झलकाने के पर्याप्त है.... संजीव शर्मा जी ने भी अपने उस इलाकाई गौरव को जीवंत रखा है... जब वे जापान में रहने वालों की देहयष्टि का जिक्र करते हैं तो, जो उनके अपने क्षेपक होते हैं,वे बेहद लाजवाब होते हैं... नार्थ ईस्ट के बारे में इतने रोचक तरीक़े से तथ्यों का प्रतुतिकरण मैंने नहीं पढ़ा कहीं और....मैं उस इलाके में जाने का इच्छुक बहुत हूँ लेकिन अब तक कोई ऐसा संयोग उपस्थित नहीं हो पाया...इनकी किताब के ज़रिए मैंने वहां की यात्रा सी कर ली..वो भी घर बैठे बैठे... बेहतरीन संग्रह है यदि आप अलग अलग जगह के लोगों की तासीर समझने के इच्छुक रहते हैं तो इसे पढ़ना 

चाहिए।

फ्लाईपास्ट और आलू की सब्जी-पूरी…

हालांकि, बीच में एक दौर ऐसा भी आया था जब हवाई यात्रा के दौरान भी कभी-कभार पूरी-सब्जी महकने लगी थी। यह वह दौर था, जब केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए पूर्वोत्तर राज्यों, कश्मीर और लद्दाख की यात्रा के दौरान हवाई यात्रा के दरवाजे खोल दिए थे। तब, पहली बार परिवार के परिवार इस उड़न खटोले की यात्रा का स्वप्न लेकर अचार-पूरी के साथ हवाई अड्डों पर नजर आने लगे थे। हवाई जहाज़ में सीट पर पालती मारकर आलू की सब्जी और पूरी के साथ चूड़ा/नमकीन खाते परिवारों ने 'इलीट क्लास' या संपन्न वर्ग को नाक-मुंह सिकोड़ने पर मजबूर कर दिया था। हालांकि, अब तो ट्रेन में भी घर की बनी आलू-पूरी का स्थान जोमेटो, स्वीगी और इस तरह के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए सुविधा के साथ मिलने वाले गर्मागर्म चाइनीज और पिज़्ज़ा-बर्गर ने ले लिया है, बिल्कुल वैसे ही, जैसे पानी के लिए घर की खूबसूरत छोटी सी सुराही की जगह ट्रेन में प्लास्टिक की बॉटल काबिज हो गई है।

खैर, विषय पर लौटते हैं और फ्लाईपास्ट में आलू-पूरी की गुत्थी सुलझाते हैं। भारतीय वायुसेना इस साल अपना 91 वा स्थापना दिवस मना रही है और आम लोगों को वायुसेना से जोड़ने के लिए अलग-अलग शहरों में विविध कार्यक्रम किए जा रहे हैं। जनभागीदारी के साथ उत्सव की इस श्रृंखला में भोपाल के हिस्से में वायुसेना का फ्लाईपास्ट आया और 30 सितंबर को हैरत अंगेज प्रदर्शन से पहले ही लड़ाकू विमानों की गर्जना ने भोपालियोँ को नींद से जगा दिया था। सोशल मीडिया में छाई तस्वीरों, इंस्टाग्राम रील,वीडियो और आसमान में गूंजती गड़गड़ाहट ने भोपालियों को पहले ही मुख्य इवेंट के लिए तैयार कर दिया था। इस शहर के लोग तो सौ रुपए टिकट देकर भी घण्टे भर के नाटक के लिए घंटों लाइन में लगने से भी परहेज नहीं करते तो फिर ये तो फ्लाईपास्ट था और वो भी मुफ़्त। ऐसा फ्लाईपास्ट, जो इस शहर में पहली बार हो रहा था…बस,फिर क्या था हो गई तैयारी शुरू और फिर परिवार कुटुंब में बदले और एकल फैमिली कालोनी में। कहने का आशय यह है कि भोपाल के लोगों के लिए यह पिकनिक का दिन था,उत्सव का दिन था,उल्लास का और एकजुट होकर मस्ताने का मौका था। अल सुबह से ही बड़े तालाब के रास्तों पर भीड़ उमड़ने लगी। प्रशासन ने मुख्यमंत्री निवास से बोट क्लब तक 'पास' अनिवार्य किया तो भोपाल के लोगों ने उसका भी रास्ता निकाल लिया । वे पास की अनिवार्यता लागू होने के पहले ही दरी-चटाई और सब्जी-पूरी के साथ आयोजन स्थल पर जम गए। जैसे ही आसमान में विमानों की अठखेलियां शुरू हुई, तो धरती पर चटाई दरी बिछ गई…धीरे-धीरे थैलों से डिब्बे और फिर डिब्बों के अंदर से डिब्बे तथा थर्मस निकलने लगे और अचार से लेकर चाय तक की खुशबू से बोट क्लब और वीआईपी रोड महकने लगी।

तेज़ धूप में डेढ़ घंटे के फ्लाईपास्ट के बाद जब पासधारी तबका भीड़ से किसी तरह निकलने की जद्दोजहद में जुटा था, वीआईपी कारें अपने हूटर के जरिए अपने ख़ास होने के दर्जे के बाद भी हजारों लोगों की भीड़ में छटपटा रही थीं और उनके प्रोटोकाल/सुरक्षा कर्मी ढंग से खुद निकलने का रास्ता भी नहीं बना पा रहे थे तब स्मार्ट भोपाली पूरी तरह से बोट क्लब पर फैल पसर चुके थे और तल्लीनता के साथ आलू की सब्जी पूरी, अचार के साथ चाय की चुस्कियां ले रहे थे। हम जैसे भीड़ में फंसे लोगों के साथ साथ कार में एसी की ठंडक में कैद वीआईपी लोगों को भी भोपालियों के इस मज़े से पक्का जलन हो रही होगी। इन लोगों को न जाम की परवाह थी, न आराम की और न ही घर जाने की। चार घंटे की भरपूर पिकनिक, तसल्ली से पेटपूजा और बच्चों की जीभर के धमा-चौकड़ी के बाद यहां से वापसी शुरू हुई। तब तक जाम भी खुल गया था और रास्ते भी…इसलिए लोग सुकून से घर लौटे और फिर किसी नए आयोजन की तैयारी में जुट गए क्योंकि कल इतवार है और सोमवार को बापू की मेहरबानी से एक और छुट्टी।

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...