शनिवार, 7 अक्तूबर 2023

चार देश चालीस कहानियां

 पुस्तक: चार देश चालीस कहानियां


लेखक:संजीव शर्मा

विधा: यात्रा वृतांत/रिपोर्ताज

पृष्ठ: 164

मूल्य: 200 रुपए

प्रकाशक: लोक प्रकाशन, भोपाल

समीक्षक: प्रवीण दुबे,वरिष्ठ पत्रकार

इन दिनों अपने नए काम की व्यस्तता में इतना उलझा हूँ कि कुछ पढने लिखने का वक्त ही नहीं मिल पा रहा है..इस बीच संजीव शर्मा जी की नई किताब "चार देश चालीस कहानियां" की प्रति प्राप्त हुई... अमूमन मैं कोई भी किताब निरंतरता में ही पढ़ता हूँ यानी जब तक ख़त्म नहीं होती,तब तक छोड़ता नहीं... इसके साथ वैसी संभावना मेरी नई ज़िम्मेदारियों के चलते नहीं थी लेकिन जैसे ही मैंने पढ़ना शुरू किया तो इतनी रोचक और इतने प्रवाह के साथ इसमें तथ्यों को पिरोया गया है कि वही पाठक वाली निरंतरता इसमें भी बनी रही... पूरा पढने के बाद खुद तय नहीं कर पाया कि इसे किस श्रेणी में रखा जाए...ये यात्रा संस्मरण है....रिपोर्ताज है..सांस्कृतिक संकलन है...या फिर किसी यायावरी का दस्तावेज...चूंकि संजीव जी खुद बेहतरीन पत्रकार हैं..भाषा पर नियंत्रण उनका बहुत अच्छा है...दूसरे, वे उस इलाके से आते हैं जहाँ भगोने का पका हुआ एक चावल देखना हो तो ओशो और यदि दूसरा चावल देखना हो तो दादा आशुतोष राणा... कहने का आशय ये है कि उस इलाक़े में मां सरस्वती की कृपा कैसे बरसती है, ये दो नाम ही उसे झलकाने के पर्याप्त है.... संजीव शर्मा जी ने भी अपने उस इलाकाई गौरव को जीवंत रखा है... जब वे जापान में रहने वालों की देहयष्टि का जिक्र करते हैं तो, जो उनके अपने क्षेपक होते हैं,वे बेहद लाजवाब होते हैं... नार्थ ईस्ट के बारे में इतने रोचक तरीक़े से तथ्यों का प्रतुतिकरण मैंने नहीं पढ़ा कहीं और....मैं उस इलाके में जाने का इच्छुक बहुत हूँ लेकिन अब तक कोई ऐसा संयोग उपस्थित नहीं हो पाया...इनकी किताब के ज़रिए मैंने वहां की यात्रा सी कर ली..वो भी घर बैठे बैठे... बेहतरीन संग्रह है यदि आप अलग अलग जगह के लोगों की तासीर समझने के इच्छुक रहते हैं तो इसे पढ़ना 

चाहिए।

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