असम अपनी कड़क और तन-मन में ऊर्जा का संचार कर देने वाली चाय के लिए मशहूर है. राज्य में चाय बागान बेरोज़गारी को कम करने और राज्य की वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाने में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं. यहाँ चाय उत्पादन में बराक घाटी के नाम से मशहूर दक्षिण असम की अहम भूमिका है. हाल ही में बराक घाटी में सेहत के अनुकूल पर्पल यानि बैंगनी चाय के उत्पादन की संभावनाए भी नजर आई हैं. ऐतिहासिक रूप से नज़र डाले तो सुरमा घाटी और अब बराक घाटी के नाम से विख्यात दक्षिण असम के चाय बागानों का इतिहास सौ साल से भी ज्यादा पुराना है. यहाँ प्रतिकूल मौसमीय परिस्थितियों के बाद भी चाय उत्पादन में लगभग 3 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है और कछार चाय की कीमत में भी तुलनात्मक रूप से 8 फीसदी से ज्यादा का इज़ाफा हुआ है. जानकारों का कहना है कि यदि परिवहन,बिजली और संचार सुविधाएँ बेहतर हो जाएँ तो कछार चाय देश के कुल चाय उत्पादन में और भी ज्यादा योगदान दे सकती है. जिसका असर पूर्वोत्तर के विकास पर भी स्पष्ट नज़र आएगा. वैसे,असम में कुल मिलाकर 70 हज़ार से ज्यादा छोटे-बड़े चाय बागान हैं और लाखों परिवारों की रोजी-रोटी इन बागानों के सहारे चल
“जुगाली” समाज में आमतौर पर व्याप्त छोटी परन्तु गहराई तक असर करने वाली बुराइयों, कुरीतियों और समस्याओं पर ‘बौद्धिक विलाप’ कर अपने मन का बोझ हल्का करने और अन्य जुगाली-बाज़ों के साथ मिलकर इन बुराइयों को दूर करने के लिए एक अभियान है. आप भी इस मुहिम का हिस्सा बनकर बदलाव के इस प्रयास में भागीदार बन सकते हैं..