शनिवार, 7 अक्तूबर 2023

भोपाल में क्यों मंडरा रहे हैं खौफनाक गर्जना के साथ लड़ाकू विमान...!!


आमतौर पर अपनी शांत तासीर के लिए मशहूर भोपाल का आसमान इन दिनों लड़ाकू विमानों की गड़गड़ाहट से गूंज रहा है, बिल्कुल युद्ध सा माहौल है…सुखोई,जगुआर,मिराज जैसे दुश्मन के कलेजे में खौफ पैदा कर देने वाले 50 से ज्यादा लड़ाकू एवं परिवहन विमान और हेलीकाप्टर भोपाल के ऊपर मंडरा रहे है। उनकी गर्जना से पूरे शहर और खासतौर पर मुख्यमंत्री निवास,भारत भवन, श्यामला हिल्स और न्यू मार्केट सहित तमाम इलाक़े इन विमानों की गर्जना से थरथरा रहे हैं। आलम यह है कि नए जमाने की तकनीक संपन्न कारें इन विमानों की गर्जना से पिपयाने लगती हैं और जैसे ही वे किसी तरह शांत होती हैं फिर कोई विमान गड़गड़ाहट के जरिए अपनी आन-बान और शान का मुजाहरा पेश करते हुए गुजर जाता है और फिर बेचारी कारें डर के कारण घिघयाने लगती हैं।

हालांकि,बच्चों और महिलाओं को यह गर्जना अचंभित कर रही है तो युवाओं के लिए यह किसी जयघोष के समान है,देश की शक्ति संपन्नता का जयकार और सुरक्षित भविष्य का विजयनाद है। वहीं,बुजुर्ग हो चली पीढ़ी के लिए आसमान में मंडरा रहे ये विमान पुराने युद्धों पर यादों की जुगाली का मसाला प्रदान कर रहे हैं।

विमानों की यह चहलकदमी बीते कुछ दिनों से जारी है और 30 सितंबर तक इसी तरह अपने अट्टाहस से आसमां को गुंजायमान रखेगी। भोपाल के बतोलेबाज कभी इसे प्रधानमंत्री की भोपाल यात्रा की ड्रिल करार देते हैं तो कभी इसे चुनावों से तो कभी पाकिस्तान से युद्ध की तैयारी बना देते हैं। असलियत यह है कि, भारतीय वायुसेना इस साल वायुसेना दिवस के अवसर पर इसे जनभागीदारी का और जनता का उत्सव बनाने में जुटी है इसलिए दिल्ली में सालाना तौर पर होने वाला फ्लाईपास्ट देश के अलग अलग शहरों में हो रहा है।

भोपाल को जरूर पहली बार इतने बड़े पैमाने पर हो रहे फ्लाईपास्ट यानि लड़ाकू विमानों के कारनामों की मेजबानी का अवसर मिला है इसलिए लोग अचंभित है और उल्लासित भी। वायुसेना द्वारा दी गई आधिकारिक जानकारी के मुताबिक फ्लाईपास्ट में विभिन्न किस्म के 50 के करीब विमान शामिल होंगे और वे 30 सितंबर को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह सहित कई सैन्य-असैन्य दिग्गजों की मौजूदगी में सुबह 10 बजे से क़रीब घंटे भर तक भोपाल के आकाश में हैरतअंगेज अठखेलियां करेंगे। इनमें लड़ाकू विमानों के साथ सूर्यकिरण और सारंग नामक हेलीकाप्टर टीमों के कारनामे तो दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर कर देते हैं। 30 तारीख को फाइनल प्रदर्शन से पहले 28 सितंबर को फुल ड्रेस रिहर्सल यानि सौ टका टंच अभ्यास होगा और उसके पहले कुछ दिन तक सामान्य अभ्यास जिससे तमाम कौशल के बाद भी चूक की कोई गुंजाइश न रहे…इसलिए भोपाली दिल धड़का देने वाली गर्जना के लिए कुछ और दिन अपने कान और कलेजा मजबूत किए रहें और फिर पूरे जोश,उल्लास और देश प्रेम के साथ सपरिवार आनंद लें अनूठे एयर शो का..जो शायद वर्षों तक उनके दिलो दिमाग पर छाया रहेगा।

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चार देश चालीस कहानियां

 पुस्तक: चार देश चालीस कहानियां


लेखक:संजीव शर्मा

विधा: यात्रा वृतांत/रिपोर्ताज

पृष्ठ: 164

मूल्य: 200 रुपए

प्रकाशक: लोक प्रकाशन, भोपाल

समीक्षक: प्रवीण दुबे,वरिष्ठ पत्रकार

इन दिनों अपने नए काम की व्यस्तता में इतना उलझा हूँ कि कुछ पढने लिखने का वक्त ही नहीं मिल पा रहा है..इस बीच संजीव शर्मा जी की नई किताब "चार देश चालीस कहानियां" की प्रति प्राप्त हुई... अमूमन मैं कोई भी किताब निरंतरता में ही पढ़ता हूँ यानी जब तक ख़त्म नहीं होती,तब तक छोड़ता नहीं... इसके साथ वैसी संभावना मेरी नई ज़िम्मेदारियों के चलते नहीं थी लेकिन जैसे ही मैंने पढ़ना शुरू किया तो इतनी रोचक और इतने प्रवाह के साथ इसमें तथ्यों को पिरोया गया है कि वही पाठक वाली निरंतरता इसमें भी बनी रही... पूरा पढने के बाद खुद तय नहीं कर पाया कि इसे किस श्रेणी में रखा जाए...ये यात्रा संस्मरण है....रिपोर्ताज है..सांस्कृतिक संकलन है...या फिर किसी यायावरी का दस्तावेज...चूंकि संजीव जी खुद बेहतरीन पत्रकार हैं..भाषा पर नियंत्रण उनका बहुत अच्छा है...दूसरे, वे उस इलाके से आते हैं जहाँ भगोने का पका हुआ एक चावल देखना हो तो ओशो और यदि दूसरा चावल देखना हो तो दादा आशुतोष राणा... कहने का आशय ये है कि उस इलाक़े में मां सरस्वती की कृपा कैसे बरसती है, ये दो नाम ही उसे झलकाने के पर्याप्त है.... संजीव शर्मा जी ने भी अपने उस इलाकाई गौरव को जीवंत रखा है... जब वे जापान में रहने वालों की देहयष्टि का जिक्र करते हैं तो, जो उनके अपने क्षेपक होते हैं,वे बेहद लाजवाब होते हैं... नार्थ ईस्ट के बारे में इतने रोचक तरीक़े से तथ्यों का प्रतुतिकरण मैंने नहीं पढ़ा कहीं और....मैं उस इलाके में जाने का इच्छुक बहुत हूँ लेकिन अब तक कोई ऐसा संयोग उपस्थित नहीं हो पाया...इनकी किताब के ज़रिए मैंने वहां की यात्रा सी कर ली..वो भी घर बैठे बैठे... बेहतरीन संग्रह है यदि आप अलग अलग जगह के लोगों की तासीर समझने के इच्छुक रहते हैं तो इसे पढ़ना 

चाहिए।

फ्लाईपास्ट और आलू की सब्जी-पूरी…

हालांकि, बीच में एक दौर ऐसा भी आया था जब हवाई यात्रा के दौरान भी कभी-कभार पूरी-सब्जी महकने लगी थी। यह वह दौर था, जब केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए पूर्वोत्तर राज्यों, कश्मीर और लद्दाख की यात्रा के दौरान हवाई यात्रा के दरवाजे खोल दिए थे। तब, पहली बार परिवार के परिवार इस उड़न खटोले की यात्रा का स्वप्न लेकर अचार-पूरी के साथ हवाई अड्डों पर नजर आने लगे थे। हवाई जहाज़ में सीट पर पालती मारकर आलू की सब्जी और पूरी के साथ चूड़ा/नमकीन खाते परिवारों ने 'इलीट क्लास' या संपन्न वर्ग को नाक-मुंह सिकोड़ने पर मजबूर कर दिया था। हालांकि, अब तो ट्रेन में भी घर की बनी आलू-पूरी का स्थान जोमेटो, स्वीगी और इस तरह के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए सुविधा के साथ मिलने वाले गर्मागर्म चाइनीज और पिज़्ज़ा-बर्गर ने ले लिया है, बिल्कुल वैसे ही, जैसे पानी के लिए घर की खूबसूरत छोटी सी सुराही की जगह ट्रेन में प्लास्टिक की बॉटल काबिज हो गई है।

खैर, विषय पर लौटते हैं और फ्लाईपास्ट में आलू-पूरी की गुत्थी सुलझाते हैं। भारतीय वायुसेना इस साल अपना 91 वा स्थापना दिवस मना रही है और आम लोगों को वायुसेना से जोड़ने के लिए अलग-अलग शहरों में विविध कार्यक्रम किए जा रहे हैं। जनभागीदारी के साथ उत्सव की इस श्रृंखला में भोपाल के हिस्से में वायुसेना का फ्लाईपास्ट आया और 30 सितंबर को हैरत अंगेज प्रदर्शन से पहले ही लड़ाकू विमानों की गर्जना ने भोपालियोँ को नींद से जगा दिया था। सोशल मीडिया में छाई तस्वीरों, इंस्टाग्राम रील,वीडियो और आसमान में गूंजती गड़गड़ाहट ने भोपालियों को पहले ही मुख्य इवेंट के लिए तैयार कर दिया था। इस शहर के लोग तो सौ रुपए टिकट देकर भी घण्टे भर के नाटक के लिए घंटों लाइन में लगने से भी परहेज नहीं करते तो फिर ये तो फ्लाईपास्ट था और वो भी मुफ़्त। ऐसा फ्लाईपास्ट, जो इस शहर में पहली बार हो रहा था…बस,फिर क्या था हो गई तैयारी शुरू और फिर परिवार कुटुंब में बदले और एकल फैमिली कालोनी में। कहने का आशय यह है कि भोपाल के लोगों के लिए यह पिकनिक का दिन था,उत्सव का दिन था,उल्लास का और एकजुट होकर मस्ताने का मौका था। अल सुबह से ही बड़े तालाब के रास्तों पर भीड़ उमड़ने लगी। प्रशासन ने मुख्यमंत्री निवास से बोट क्लब तक 'पास' अनिवार्य किया तो भोपाल के लोगों ने उसका भी रास्ता निकाल लिया । वे पास की अनिवार्यता लागू होने के पहले ही दरी-चटाई और सब्जी-पूरी के साथ आयोजन स्थल पर जम गए। जैसे ही आसमान में विमानों की अठखेलियां शुरू हुई, तो धरती पर चटाई दरी बिछ गई…धीरे-धीरे थैलों से डिब्बे और फिर डिब्बों के अंदर से डिब्बे तथा थर्मस निकलने लगे और अचार से लेकर चाय तक की खुशबू से बोट क्लब और वीआईपी रोड महकने लगी।

तेज़ धूप में डेढ़ घंटे के फ्लाईपास्ट के बाद जब पासधारी तबका भीड़ से किसी तरह निकलने की जद्दोजहद में जुटा था, वीआईपी कारें अपने हूटर के जरिए अपने ख़ास होने के दर्जे के बाद भी हजारों लोगों की भीड़ में छटपटा रही थीं और उनके प्रोटोकाल/सुरक्षा कर्मी ढंग से खुद निकलने का रास्ता भी नहीं बना पा रहे थे तब स्मार्ट भोपाली पूरी तरह से बोट क्लब पर फैल पसर चुके थे और तल्लीनता के साथ आलू की सब्जी पूरी, अचार के साथ चाय की चुस्कियां ले रहे थे। हम जैसे भीड़ में फंसे लोगों के साथ साथ कार में एसी की ठंडक में कैद वीआईपी लोगों को भी भोपालियों के इस मज़े से पक्का जलन हो रही होगी। इन लोगों को न जाम की परवाह थी, न आराम की और न ही घर जाने की। चार घंटे की भरपूर पिकनिक, तसल्ली से पेटपूजा और बच्चों की जीभर के धमा-चौकड़ी के बाद यहां से वापसी शुरू हुई। तब तक जाम भी खुल गया था और रास्ते भी…इसलिए लोग सुकून से घर लौटे और फिर किसी नए आयोजन की तैयारी में जुट गए क्योंकि कल इतवार है और सोमवार को बापू की मेहरबानी से एक और छुट्टी।

शनिवार, 8 जुलाई 2023

मप्र और आकाशवाणी भोपाल के बीच है जन्मजात रिश्ता

ये आकाशवाणी भोपाल है...सुबह घर घर में गूंजने वाली यह आवाज़ किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं।आज भी कई पीढ़ियों की आंख इस धुन और आवाज़ के साथ खुलती है। हालांकि अब  दिन के कुछ घंटों के दौरान इसे आकाशवाणी मध्य प्रदेश के नए और बड़े दायरे वाले नाम से भी पुकारा जाने लगा है।

 मप्र और आकाशवाणी भोपाल के बीच जन्मजात रिश्ता है। बस,दोनों के जन्म में महज 24 घंटों का अंतर है और इस फर्क के लिहाज़ से आकाशवाणी भोपाल को मप्र का बड़ा भाई होने का गौरव हासिल है। दरअसल, आकाशवाणी भोपाल की स्थापना 31अक्तूबर 1956 में एक छोटे से काशाना बंगले से प्रायोगिक स्टूडियो और महज 200 वॉट के ट्रांसमीटर से हुई थी जबकि मप्र राज्य की इसके केवल एक दिन बाद, यानि 1 नवंबर 1956 को। हां, भोपाल से समाचारों का प्रसारण ज़रूर मध्य प्रदेश के जन्म के साथ ही हुआ । आकाशवाणी भोपाल ने मध्य प्रदेश की स्थापना के दिन से ही यहां की विकास यात्रा,संस्कृति,विरासत,साहित्य,संगीत और राजनीतिक घटनाक्रम को पूरी विश्वसनीयता के साथ बताना और सहेजना शुरू कर दिया था। 

करीब तीन दशक से ज्यादा समय से भोपाल केंद्र की इस यात्रा के साक्षी अनिल मुंशी बताते है कि 'भोपाल ने दिसंबर 1984 में दुनिया की सबसे भीषण आपदा का सामना किया तब भी आकाशवाणी ने यहां के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इस भयावह दुर्घटना का सामना किया था । भोपाल गैस त्रासदी के दौरान जब लोग घरों से वापस निकलने में घबरा रहे थे तब आकाशवाणी भोपाल ने मौके पर जाकर जुटाए गए तथ्यपरक समाचारों और जन सरोकारी कार्यक्रमों से न केवल लोगों का मनोबल बढ़ाया बल्कि सही समय पर मदद पहुंचाने में भी भूमिका निभाई।'

इस दौरान कार्यक्रम अधिकारी रहे चित्रेंद्र स्वरूप राजन बताते हैं कि आकाशवाणी भोपाल ने आपदा में भी नॉन स्टॉप प्रसारण जारी रखा।उन्होंने बताया कि 'गैस त्रासदी के अलावा, मानस गान और फिर 104 एपिसोड की मानव का विकास श्रृंखला का उर्दू अनुवाद जैसे कार्यक्रमों से भी इस केंद्र ने खूब नाम कमाया है।'

हाल ही में कोरोना संक्रमण के दौरान समाचारों का घर से प्रसारण कर भोपाल के प्रादेशिक समाचार एकांश ने ऐसी मिसाल कायम की कि प्रसार भारती के तत्कालीन सीईओ शशि शेखर वैंपति तक ने इसकी जमकर सराहना की थी।


अब हो सकता है रेडियो सेट के जरिए आकाशवाणी भोपाल से जुड़ने वाले श्रोता कम हो लेकिन न्यूज ऑन एआईआर ऐप और  5यूट्यूब, ट्विटर और फेसबुक के जरिए नई पीढ़ी भी तेजी से जुड़ रही है इसलिए छह दशक बाद भी मप्र के साथ आकाशवाणी भोपाल की यह यात्रा लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रही है।


अब करिए प्रधानमंत्री के साथ कदमताल और खिंचवाइए तस्वीर...!!

एक समय हम आप अपने पसंदीदा नेता की एक झलक देखने के लिए परेशान रहते थे लेकिन अब आप उनके साथ तस्वीर निकलवा सकते हैं,घूम सकते हैं और उनके ऑटोग्राफ हासिल कर सकते हैं…वह भी महज पचास रुपए में। इतने कम पैसे में इंदिरा गांधी आपको हस्ताक्षरित पत्र लिख सकती हैं और पचास रुपए में ही अटल बिहारी वाजपेई आपके साथ फोटो खिंचवा सकते हैं..कुछ और पैसे खर्च करें तो आप सौ रुपए में पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर लाल बहादुर शास्त्री तक और राजीव गांधी से लेकर चंद्रशेखर तक किसी के भी साथ वॉक कर सकते हैं…और बिना फूटी कौड़ी खर्च किए भी आप अपनी तस्वीर के साथ ज्ञान बांट सकते हैं और हाथों में हाथ डालकर एकता श्रृंखला यानि यूनिटी चेन बना सकते हैं… इतना ही नहीं, और भी बहुत कुछ है दिल्ली में सुप्रसिद्ध तीन मूर्ति के साथ बने अनूठे प्रधानमंत्री संग्रहालय यानि पीएम म्यूज़ियम में। वैसे, प्रधानमंत्री संग्रहालय में लगने वाली फीस केवल हमारे अंदर जिम्मेदारी का भाव जगाने के लिए है क्योंकि मुफ़्त में तो ताजमहल की भी कद्र नहीं है। 

43 गैलरी में सजायी गई 15 प्रधानमंत्रियों की जीवन गाथा,उपलब्धियों,फैसलों और तस्वीरों को ऑडियो,वीडियो, लाइटिंग,आईटी और एआई जैसी तमाम तकनीकों के जरिए इतने अद्वितीय तरीके से संजोया गया है कि आप यहां घंटों गुजारने के बाद भी अतृप्त लौटते हैं। हमारी आज़ादी की लड़ाई से लेकर उसके बाद के 75 सालों की सभी बड़ी घटनाएं यहां जीवंत हो उठी हैं। 

हम कह सकते हैं कि प्रधानमन्त्री संग्रहालय स्वतंत्रता के बाद से भारत के प्रत्येक प्रधान मंत्री को एक आदरांजलि है, और पिछले 75 वर्षों में हमारे देश के विकास में उनके योगदान का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है। यह प्रधानमंत्रियों के सामूहिक प्रयास का इतिहास है और भारत के लोकतंत्र की रचनात्मक सफलता का शक्तिशाली प्रमाण भी ।

इसलिए, दिल्ली जाएं तो प्रधानमंत्री संग्रहालय ज़रूर जाए…यह इंडिया गेट,नया संसद भवन और कर्तव्य पथ जैसा ही एक प्रमुख आकर्षण है।

मानवीय बुद्धिमत्ता के सामने कृत्रिम ज्ञान की क्या बिसात…!!


इन दिनों सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल है जिसमें एआई यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए बने फोटो से यह बताया जा रहा है कि भगवान राम 21 साल की उम्र में कैसे दिखते थे!! इसमें दावा किया गया है कि फोटो के लिए राम के स्वरूप के इनपुट देश विदेश में उपलब्ध रामायणों, रामचरित मानस और भगवान राम पर केंद्रित पुस्तकों से लिए गए हैं। सीधी भाषा और बिना किसी लाग लपेट के कहा जाए तो सभी मसालों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मिक्सी में मिलाकर पीस दिया। हालांकि, यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि फेसबुक और इंस्टाग्राम पर ऐसे तमाम एप्लिकेशन हैं जो हमें यह बताते रहते हैं कि हम बचपन में कैसे दिखते थे या वृद्धावस्था में कैसे दिखेंगे। बस,इस बार नया यह था कि भगवान के स्वरूप के साथ छेड़छाड़ की गई।

अब बंदर के हाथ में उस्तरा की तर्ज पर सोशल मीडिया के नौसिखियों के हाथ चैट जीपीटी नाम का नया खिलौना लग गया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (अलादीन) के चिराग़ से निकले इस नए जिन्न ने तूफ़ान सा ला दिया है। यह वाकई जिन्न की तरह चमत्कारी है और बस आपके आदेश देते ही जो हुक्म मेरे आका के अंदाज़ में उस आदेश पर झट से अमल कर देता है। यह काम भी यह चैट जीपीटी इतने सपाटे और सफाई से करता है कि दुनिया भर के विषेशज्ञ चमत्कृत और सहमे हुए हैं।

सबसे पहले यह जान लेते हैं कि आख़िर यह चैट जीपीटी है क्या बला? चैट जीपीटी (Chat GPT) का पूरा नाम चैट जेनरेटिव प्री ट्रेंड ट्रांसफार्मर (Chat Generative Pre-trained Transformer) है । इसके माध्यम से आप किसी भी सवाल का जवाब जान सकते हैं । यहां तक इसकी प्रक्रिया गुगल सर्च की तरह ही है लेकिन दोनों का फर्क इसके बाद दिखता है । गूगल सर्च और चैट जीपीटी के बीच में सबसे बड़ा अंतर ये है कि गूगल सर्च में हम किसी विषय को सर्च करते है और गूगल हमें उस विषय से संबंधित विभिन्न वेबसाइट पर ले जाता है जबकि चैट जीपीटी विभिन्न वेबसाइटों को खंगालकर सवालों का सीधा जवाब बनाकर देता है। इसमें वांछित उत्तर तलाशने के लिए संबंधित वेबसाइट पर जाने की जरूरत नहीं होती बल्कि पका पकाया उत्तर मिल जाता है। एक और बड़ा अंतर यह है कि चैट जीपीटी पर प्रश्नों के उत्तर भर नहीं बल्कि निबंध, स्क्रिप्ट, कवर लेटर, बायोग्राफी, छुट्टी की एप्लीकेशन,समीक्षा,शोध जैसे तमाम काम कराए जा सकते हैं । 

चैट जीपीटी की खूबियों में यह भी शामिल है कि यह अपने यूजर की सौ फीसदी संतुष्टि तक काम करता है मसलन यदि यूजर चैट जीपीटी द्वारा दी गई जानकारी से सन्तुष्ट नहीं है तो Chat GPT अपने डेटा में फिर से बदलाव कर प्रदर्शित करता है। यह लगातार तब तक अपने डेटा में परिवर्तन करता रहता है जब तक की यूजर्स जानकारी से संतुष्ट नहीं हो जाता।

इटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक़ चैट जीपीटी को 30 नवंबर 2022 में सैम अल्टमैन ने लांच किया था और इतने कम समय में ही इसके यूजर की संख्या कई मिलियन तक पहुंच गई है। इसके साथ एलन मस्क और बिल गेट्स जैसे दिग्गज कभी न कभी जुड़े रहे हैं। चैट जीपीटी की मातृ वेबसाइट chat.openai.com है और कंपनी ने इसे फिलहाल अंग्रेजी भाषा में लांच किया गया है लेकिन इसको लेकर आम लोगों में जिसतरह उत्साह दिख रहा है उससे साफ जाहिर है कि जल्दी ही यह उन सभी भाषाओं में उपलब्ध होगा जिनकी दुनिया भर में मांग है और क़रीब 130 करोड़ की आबादी के कारण भारत और हिंदी सहित हमारी भाषाएं इसकी पहुंच से दूर नहीं हैं। कंपनी की तरफ से भी संकेत दिए जा रहे है कि आने वाले दिनों में यह कई भाषाओं में उपलब्ध होगा।  

अब सवाल यह उठता है कि जब चैट जीपीटी इतना अच्छा है तो फिर दिक्कत कहां है और इसको लेकर विवाद क्यों है? दरअसल, दिक्कत चैट जीपीटी या इसकी चमत्कारिक कार्यप्रणाली में नहीं है बल्कि विभिन्न कंपनियों द्वारा इसके इस्तेमाल में है। अभी तक विवाद कुछ उसी अंदाज़ में सामने आ रहे हैं जैसे रोबोट की लांचिंग के समय आए थे। आपको याद होगा कि एक समय रोबोट को मानव जाति के लिए खतरा मान लिया गया था। कुछ ऐसी ही चिंता अभी चैट जीपीटी को लेकर हो रही है। कोई इसे रचनात्मक लेखन के लिए खतरा बता रहा है तो कोई शोध के लिए और कोई रोज़गार के लिए। इस चिंता के कारण भी हैं क्योंकि कथित प्रयोगधर्मी कंपनियां लेखन के बाद चैट जीपीटी के जरिए एआई बेस्ड हेल्पलाइन, वकील,सलाहकार और समाचार वाचक तक बनाने लगी हैं। इसका अर्थ यह है कि आपकी मानसिक या कानूनी समस्या का समाधान कोई मानवीय संवेदनाओं वाला व्यक्ति या विशेषज्ञ नहीं बल्कि चैट जीपीटी से तैयार डाटा करेगा। इसी प्रकार किसी समाचार चैनल पर आपको चैट जीपीटी द्वारा तैयार समाचार पढ़ती कोई मशीन दिख सकती है या भविष्य का कोई संपादक चैट जीपीटी जैसे किसी एआई से बना हो सकता है। इसमें सबसे बड़ा खतरा सूचनाओं के गलत विश्लेषण का है जो सुरक्षा से लेकर परस्पर संबंधों तक के लिए खतरनाक हो सकता है। अभी एआई आधारित तमाम ऐप प्रायोगिक परीक्षण की स्थिति में है और उनके उपयोग को लेकर सरकारों के स्तर पर कोई गाइड लाइन नहीं बनी हैं इसलिए इनके उपयोग से धोखाधड़ी का खतरा है। विदेशों में तो ऐसे ऐप द्वारा यूज़र के साथ बदतमीजी करने या गलत भाषा का इस्तेमाल करने की खबरें भी आई हैं। वहीं, कुछ लोगों ने इसे कमाई का धंधा बना लिया है। जैसे लेंस जंक नामक एक शख्स ने एक ऑनलाइन कोर्स लॉन्च किया था. ये कोर्स लोगों को चैट जीपीटी इस्तेमाल करना सिखा रहा है और वह अब करीब 28 लाख रुपए कमा चुका है।

इस सारी कवायद का लब्बो लुआब यह है कि चैट जीपीटी हो या कोई अन्य एप्लीकेशन, वह होगा तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित ही। जब उसका ज्ञान ही आर्टिफिशियल या कृत्रिम है तो वह मूल या मानवीय ज्ञान की बराबरी कैसे कर सकता है। वह उपलब्ध आंकड़ों के गुणा भाग से कोई समाधनपरक जवाब तो बना देगा लेकिन मानवीय सोच,समझ और त्वरित बौद्धिकता का मुकाबला कैसे करेगा। खुद चैट जीपीटी की मातृ कंपनी OpenAI ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि यह एप्लीकेशन कभी-कभी ऐसा उत्तर या लेखन करता है जो देखने में तो प्रशंसनीय लगता है लेकिन होता गलत या निरर्थक है।इसलिए फिलहाल चिंतित होने की नहीं बल्कि चैट जीपीटी को परखने की जरूरत है।

ढाई राज्यपाल और दो मुख्यमंत्रियों वाला अनूठा शहर…!!

ढाई राज्यपाल और दो मुख्यमंत्री…शीर्षक चौंकाता है न? वैसे, पत्रकारिता की पहली सीख  यही है कि शीर्षक चौंकाने वाला या आश्चर्य चकित करने वाला हो ताकि पाठक आपकी ख़बर पढ़ने के लिए मजबूर हो जाए लेकिन यहां शीर्षक से ज्यादा कमाल का यह शहर है जो खुद आपको अपनी कहानी सुनाने के लिए मजबूर करता है। 

अब तक मुख्यमंत्री पद पर एक से ज्यादा दावेदारियां, ढाई-ढाई के मुख्यमंत्री और कई उपमुख्यमंत्री जैसी तमाम कहानियां हम आए दिन समाचार पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ते रहते हैं लेकिन कोई शहर अपने सीने पर बिना किसी विवाद के दो मुख्यमंत्रियों की कुर्सी रखे हो और उस पर तुर्रा यह कि मुख्यमंत्रियो से ज्यादा राज्यपाल हों तो उस शहर पर बात करना बनता है। 

देश का सबसे सुव्यवस्थित शहर चंडीगढ़ वैसे तो अपने आंचल में अनेक खूबियां समेटे है लेकिन दो मुख्यमंत्री और ढाई राज्यपाल की खूबी इसे देश ही क्या दुनिया भर में अतिविशिष्ट बनाती है। जैसा की हम सभी जानते हैं कि चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा की राजधानी है इसलिए यहां पंजाब के मुख्यमंत्री भी रहते हैं तो हरियाणा के मुख्यमंत्री का भी सचिवालय है। अब जब मुख्यमंत्री दो हैं तो पंजाब और हरियाणा के राज्यपालों को मिलाकर राज्यपाल भी दो ही होंगे? लेकिन लेख का शीर्षक तो 'ढाई राज्यपाल' की बात कर रहा है तो फिर सवाल उठता है कि यह आधे राज्यपाल का क्या गणित है? 

दरअसल चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा की राजधानी होने के साथ साथ केंद्रशासित प्रदेश भी है इसलिए यहां लेफ्टिनेंट गवर्नर भी होते हैं। चूंकि, अभी यह दायित्व भी पंजाब के राज्यपाल के पास है इसलिए हम उन्हें आम बोलचाल में समझने के लिए आधा राज्यपाल कह सकते हैं। वैसे, लेफ्टिनेंट गवर्नर के 'पॉवर' की बात करें तो कई मामलों में आधा राज्यपाल पूरे मुख्यमंत्री पर भारी पड़ता है और दिल्ली से बेहतर इसका ज्वलंत उदाहरण और क्या हो सकता है।

राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों के कारण चंडीगढ़ का सेक्टर एक और दो वीआईपी रुतबा रखते हैं पर इतना अहम शहर होने के बाद भी यहां 'वीआईपी मूवमेंट' हमारे शहरों की तरह परेशान नहीं करता बल्कि आम लोगों की आवाजाही के बीच वीआईपी भी समन्वय के साथ 'मूव' करते रहते हैं। वैसे चंडीगढ़ का इतिहास और दो मुख्यमंत्रियों वाला शहर बनने की कहानी तो हम सब जानते ही हैं कि आजादी के बाद कैसे पंजाब का एक हिस्सा पाकिस्तान चला गया और उसकी तत्कालीन राजधानी लाहौर भी।  फिर शेष पंजाब,हरियाणा और हिमाचल को मिलाकर बने संयुक्त प्रांत की राजधानी के लिए 1953 में चंडीगढ़ बनाया गया। बताया जाता है कभी शिमला भी पंजाब की राजधानी थी। एक नवम्बर 1966 को पंजाब और हरियाणा अलग हो गए और इसके बाद, 1971 में हिमाचल प्रदेश का स्वतंत्र अस्तित्व वजूद में आ गया। हिमाचल को तो शिमला के रूप राजधानी की सौगात मिल गई परंतु हरियाणा और पंजाब का मन चंडीगढ़ पर अटक गया और महाभारत में द्रौपदी को पांच पांडवों को पत्नी का दर्जा मिला था तो चंडीगढ़ को दो राज्यों की राजधानी का गौरव। तब यही तय हुआ था कि हरियाणा के लिए अलग राजधानी मिलने तक चंडीगढ़ उसकी भी राजधानी बनी रहेगी। खास बात यह है कि छह दशक पूरे करने जा रहे इस शहर ने द्रौपदी की तरह कभी अपने आत्मसम्मान को खंडित नहीं होने दिया और अपने गौरव को हमेशा सर्वोपरि रखा है। शायद, इस शहर की खूबसूरती, व्यवस्थापन, पर्यावरण देखकर ही केंद्र सरकार का भी इस पर मन आया होगा और 1966 में उसने अपना एक प्रतिनिधि यहां बिठा दिया और इस तरह देश के खूबसूरत शहरों में से एक चंडीगढ़ दो मुख्यमंत्रियों और ढाई राज्यपालों का अनूठा शहर बन गया।

#Chandigarh #CityOfBeauty  #Rock Garden 

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगर...