शनिवार, 8 जुलाई 2023

मप्र और आकाशवाणी भोपाल के बीच है जन्मजात रिश्ता

ये आकाशवाणी भोपाल है...सुबह घर घर में गूंजने वाली यह आवाज़ किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं।आज भी कई पीढ़ियों की आंख इस धुन और आवाज़ के साथ खुलती है। हालांकि अब  दिन के कुछ घंटों के दौरान इसे आकाशवाणी मध्य प्रदेश के नए और बड़े दायरे वाले नाम से भी पुकारा जाने लगा है।

 मप्र और आकाशवाणी भोपाल के बीच जन्मजात रिश्ता है। बस,दोनों के जन्म में महज 24 घंटों का अंतर है और इस फर्क के लिहाज़ से आकाशवाणी भोपाल को मप्र का बड़ा भाई होने का गौरव हासिल है। दरअसल, आकाशवाणी भोपाल की स्थापना 31अक्तूबर 1956 में एक छोटे से काशाना बंगले से प्रायोगिक स्टूडियो और महज 200 वॉट के ट्रांसमीटर से हुई थी जबकि मप्र राज्य की इसके केवल एक दिन बाद, यानि 1 नवंबर 1956 को। हां, भोपाल से समाचारों का प्रसारण ज़रूर मध्य प्रदेश के जन्म के साथ ही हुआ । आकाशवाणी भोपाल ने मध्य प्रदेश की स्थापना के दिन से ही यहां की विकास यात्रा,संस्कृति,विरासत,साहित्य,संगीत और राजनीतिक घटनाक्रम को पूरी विश्वसनीयता के साथ बताना और सहेजना शुरू कर दिया था। 

करीब तीन दशक से ज्यादा समय से भोपाल केंद्र की इस यात्रा के साक्षी अनिल मुंशी बताते है कि 'भोपाल ने दिसंबर 1984 में दुनिया की सबसे भीषण आपदा का सामना किया तब भी आकाशवाणी ने यहां के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इस भयावह दुर्घटना का सामना किया था । भोपाल गैस त्रासदी के दौरान जब लोग घरों से वापस निकलने में घबरा रहे थे तब आकाशवाणी भोपाल ने मौके पर जाकर जुटाए गए तथ्यपरक समाचारों और जन सरोकारी कार्यक्रमों से न केवल लोगों का मनोबल बढ़ाया बल्कि सही समय पर मदद पहुंचाने में भी भूमिका निभाई।'

इस दौरान कार्यक्रम अधिकारी रहे चित्रेंद्र स्वरूप राजन बताते हैं कि आकाशवाणी भोपाल ने आपदा में भी नॉन स्टॉप प्रसारण जारी रखा।उन्होंने बताया कि 'गैस त्रासदी के अलावा, मानस गान और फिर 104 एपिसोड की मानव का विकास श्रृंखला का उर्दू अनुवाद जैसे कार्यक्रमों से भी इस केंद्र ने खूब नाम कमाया है।'

हाल ही में कोरोना संक्रमण के दौरान समाचारों का घर से प्रसारण कर भोपाल के प्रादेशिक समाचार एकांश ने ऐसी मिसाल कायम की कि प्रसार भारती के तत्कालीन सीईओ शशि शेखर वैंपति तक ने इसकी जमकर सराहना की थी।


अब हो सकता है रेडियो सेट के जरिए आकाशवाणी भोपाल से जुड़ने वाले श्रोता कम हो लेकिन न्यूज ऑन एआईआर ऐप और  5यूट्यूब, ट्विटर और फेसबुक के जरिए नई पीढ़ी भी तेजी से जुड़ रही है इसलिए छह दशक बाद भी मप्र के साथ आकाशवाणी भोपाल की यह यात्रा लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रही है।


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