बहिष्कार नहीं, बलशाली भारत है चीन का इलाज
इन दिनों सोशल मीडिया पर
चीन में बने सामान का बहिष्कार करने की अपील को लेकर होड़ मची है. यहाँ तक परस्पर
व्यापार, राजनयिक लोकाचार और आर्थिक ताने-बाने को समझने वाले लोग भी चीनी सामान के
बहिष्कार की भेड़चाल में शामिल हैं. बहिष्कार के लिए चीन की बनी लाइट, आतिशबाजी,
दिए नुमा मोमबत्ती और दीपावली की सजावट से जुडी सामग्री नहीं खरीदने की अपील की जा
रही है. कई राजनीतिक दल, मुख्यमंत्री और इसी कद के तमाम नेता भी अपनी सभाओं में
बहिष्कार की बातें जोर-शोर से उठा रहे हैं.
आम तौर पर सभी अपीलों में
यही बताया जा रहा है कि चीन ने हर कदम पर पकिस्तान का साथ दिया है और दे भी रहा है
इसलिए उसे सबक सिखाने के लिए चीन में बने इन सामानों का बहिष्कार कीजिए जिससे चीन
को व्यापारिक नुकसान हो और आर्थिक दबाव में उसे भारत विरोधी रुख छोड़ना पड़े. मैं भी
इस बात से पूरी तरह इत्तेफ़ाक रखता हूँ कि कोई भी देश, जो हमारे राष्ट्रीय हितों के
खिलाफ काम कर रहा है उसे सबक सिखाया जाना जरुरी है. फिर चाहे इसके लिए उस देश में
बने सामानों का बहिष्कार करना पड़े या फिर उस देश का ही. इस बात पर दो राय नहीं हो सकती कि चीन आरम्भ से पकिस्तान को अपनी
गोद में बिठाकर भारत विरोध की नीति अपनाता रहा है. उसके इसी रवैये के कारण एक बार
युद्ध भी हो चुका है और परिणामस्वरूप आज भी कई जगह सीमा विवाद को लेकर गाहे-बगाहे
दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने आ जाते हैं.
चीन के विरोध के कारण ही
भारत को अब तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता नहीं मिल पायी है
क्योंकि जब भी तमाम देश भारत के पक्ष में एकमत होते हैं चीन अपने वीटो पावर का
इस्तेमाल कर इसमें अडंगा लगा देता है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के नियम ही
कुछ ऐसे जटिल और मनमाने बनाए गए हैं कि एक भी सदस्य देश आपत्ति कर दे तो फिर वह
मामला अगली बैठक तक तो टल ही जाता है. चीन के कारण ही हाफ़िज़ सईद जैसे आतंकी खुले
घूम रहे हैं और दुनिया भर के देशों के चाहने के बाद भी केवल चीन के विरोध के कारण
अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित नहीं किया जा सका है. ऐसे और भी कई मुद्दे हैं जो चीन
के अड़ियल रवैये के कारण परवान नहीं चढ़ पाए हैं और उसका खामियाजा हमारे देश को
भुगतना पड रहा है. कहने का आशय है कि ऐसे एक नहीं बल्कि अनेक ठोस कारण है जो हमें
चीन के बहिष्कार और उस पर दबाव बनाने के लिए प्रेरित करते हैं और बहिष्कार होना भी
चाहिए.
अब सवाल यह है कि आधी-अधूरी
तैयारी के साथ बहिष्कार से कहीं हम अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी तो नहीं मार रहे ?
व्यापार-व्यवसाय की मामूली समझ रखने वाले लोग भी जानते हैं कि किसी भी बड़े
त्यौहार-पर्व के लिए उपयोगी सामग्री के लिए थोक व्यवसायी सामान्य तौर पर महीनों पहले
आर्डर दे देते हैं और यही हाल छोटे खुदरा व्यापारियों का होता है क्योंकि उन्हें
भी थोक व्यापारी से माल एडवांस देकर बुक कराना होता है. इसका मतलब है कि चीन या
किसी भी देश से खरीददारी के सौदे काफी पहले हो चुके हैं और गाँव-देहात से लेकर
शहरों के विक्रेता भी इसी श्रृंखला(चेन) में जुड़कर अपने अपने सामान के लिए आर्डर
दे चुके हैं. अब इस सूरत में बहिष्कार का मतलब तो यही होगा कि हम चीन के नाम पर
अपने देश/शहर/क़स्बे के व्यापारियों को नुकसान पहुंचा रहे हैं ? यदि बहिष्कार की
मुहिम कामयाब रही तो चीन की कम्पनियां और व्यापारी तो मुनाफ़े में रहेंगे पर हमारे
व्यवसायियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है. ऐसे मामलों में बहिष्कार की योजना सही
समय पर बनायीं जानी चाहिए ताकि ‘सही वक्त पर सही जगह चोट’ की जा सके. ऐसा न हो कि ‘होम
करते समय हम अपने ही हाथ जला’ बैठे.
दूसरी बात, चंद लाइटिंग, मूर्तियों
और पटाखों का बहिष्कार कर हम चीन जैसी महाशक्ति को क्या और कितना नुकसान पहुंचा
सकते हैं ? हाँ, इससे हमारे स्थानीय कलाकारों, कुम्हार और स्थानीय स्तर पर सामान
बनाने वालों को तो फायदा होगा और यह उनकी माली हालत को देखते हुए अच्छा भी है, वहीँ
हम अपने पैरों पर भी कुल्हाड़ी मार लेंगे. बेहतर होता है कि अगले साल के बहिष्कार
के लिए अभी से मुहिम चलायी जाती, व्यवसाइयों को भी साथ जोड़ा जाता और फिर एक साथ
मिलकर चीनी कम्पनियों को इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा से ही बाहर कर दिया जाता. तब
चीन को चोट भी लगती और दिखती भी. दरअसल चीनी सामान के बहिष्कार को लेकर हमारी कथनी
और करनी में जमीन आसमान का फर्क है क्योंकि हमें मोबाइल तो चीन का चाहिए परन्तु चीन
की बनी सस्ती की लाइट से आपत्ति है. दरअसल हम मध्यम वर्ग के लोग अपनी सुविधा के
हिसाब से काम करते हैं. जो चीज हमारे फायदे की है उसे अपना लेते हैं और जिससे
हमारी आर्थिक सेहत पर ज्यादा असर नहीं पड़ता उसे छोड़ देने की अपील करने में जुट
जाते हैं. फिलहाल यही स्थिति है क्योंकि हमें चीन के बने सस्ते और तकनीकी रूप से
अव्वल मोबाइल फोन, लैपटाप, कंप्यूटर, टीवी, माइक्रोवेब ओवन, वाशिंग मशीन जैसी
सुविधाभोगी वस्तुएं तो चाहिए लेकिन सस्ते दिए,लाइट,मोमबत्ती,लाइट,सजावटी सामग्री
से हमारे जेब पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा इसलिए हम उनके पीछे पड़ गए हैं. हम में से
कितने लोग है जो देश की खातिर अपनी इन सुविधाओं मसलन टीवी/मोबाइल इत्यादि को घर से
बाहर फेंकने के लिए तैयार है? या कितनों ने अब तक इन्हें घर से बाहर निकाल दिया !
आम लोगों की जानकारी के लिए यह बताना जरुरी है कि भारत-चीन के बीच परस्पर व्यापार
लगभग 80 लाख बिलियन डालर का है और पिछली यूपीए सरकार ने इसे 100 बिलियन डालर तक
पहुँचाने के लिए बाकायदा समझौता किया था. वैसे, इसमें चीन का हिस्सा ही ज्यादा है.
चीन से हमारा देश लाखों करोड़ का सामान खरीदता है जिसमें बड़े बिजली संयंत्र से लेकर
सौर ऊर्जा यंत्र, टीबी और सफ़ेद दाग जैसे रोगों की दवाइयां और दीवाली के दिए तक
शामिल हैं. बाकी संचार उपकरण, ईयर फोन, स्पीकर और ऊपर गिनाई गई टीवी-मोबाइल जैसी चीजों
की तो गिनती नहीं है. अब सोचिए, क्या हम इस स्थिति में हैं कि इन जीवनरक्षक दवाओं
का बहिष्कार कर सकते हैं. गाँव-गाँव में बिजली का पर्याय बन चुकी चीनी टार्च छोड़
सकते हैं या देश के विकास का आधार बिजली उत्पादन के संयंत्र बंद कर सकते हैं !
असलियत में हमारी/देश/समाज
की बेहतरी इसी में है कि हम अपने देश को इतना शक्तिशाली बनाए कि चीन तो क्या
अमेरिका/रूस या फिर किसी भी अन्य देश के साथ आँख में आँख डालकर बात कर सकें और कोई
भी देश हमारी बात टालने की या हमें अनदेखा करने की सोच भी न सके. यह भी किसी से
छिपा नहीं है कि अब दुनिया में वक्त आर्थिक महाशक्तियों का है क्योंकि पैसे की
ताक़त है तो बाकी चीजें अपने आप आसन होती जाती हैं. देश को आर्थिक तौर पर शक्तिशाली
बनाने के लिए हमें बिल्कुल उसी तरह से सामूहिक प्रयास करने होंगे जैसे हम अभी
बहिष्कार के लिए कर रहे हैं. सबसे पहले तो हमें अपने हिस्से का आयकर या जो भी कर
बनता है उसे देने की ईमानदार पहल करनी होगी. काला धन और जमाखोरों के खिलाफ
कार्रवाई में सरकार का साथ देना होगा. इसीतरह देश के कुटीर उद्योगों को पुनः उनके
पैरों पर खड़ा करने के लिए हस्तशिल्प सामग्री, खादी को जीवन में अपनाना होगा. इसके
अलावा तकनीकी कौशल को निखारना और प्रोत्साहन देना भी जरुरी है तभी स्थानीय स्तर पर
गुणात्मक उत्पादन कर चीन के उत्पादों के फैलाव को रोका जा सकता है. मुझे लगता है
कि अभी चीनी सामान के बहिष्कार से ज्यादा जरुरी है देश में काले धन का बहिष्कार, भ्रष्टाचार
का बहिष्कार और आर्थिक तौर पर देश को मजबूत करने के लिए तमाम आर्थिक लेन-देन एक
नंबर में करने का अभियान. एक बार भारत आर्थिक महाशक्ति बनने की राह पर चल पड़ा तो
फिर चीन खुद सर झुकाए हमारी बात मानेगा और पकिस्तान तो हमारी इस प्रगति में ही
झुलस कर नेस्तनाबूद हो जायेगा.
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