बुरांश में आग भी है और यौवन का फाग भी..!!

देश के मैदानी इलाकों में इन दिनों जहां पलाश और गुलमोहर दहक रहे हैं, वहीं पहाड़ों पर बुरांश अपनी मुस्कराहट से लालिमा बिखेर रहा है। हिमाचल प्रदेश में पेड़ों पर झुंड के झुंड बुरांश पहाड़ों को खूबसूरत बना रहे हैं। देश के अन्य पर्वतीय राज्यों का हाल भी शायद ऐसा ही होगा। पहाड़ों पर वैसे तो देवदार का कब्जा है और वे अपनी ऊंचाई से कई बार पहाड़ों के शिखर को भी बोना साबित करते नजर आते हैं लेकिन देवदार के बीच से झांकता लाल रंग का बुरांश खूबसूरती से हमारे दिल में उतर जाता है। बुरांश पर कवियों ने खूब कलम चलाई है। सुप्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ने तो कुमाऊंनी में लिखा है:

‘सार जंगल में त्वे जस

क्वे न्हां रे बुरांश, 

खिलन क्ये छै जंगल 

जस जलि जा, सल्ल छ, दयार छ, 

पई छ, अयार छ, 

सबन में पुंगनक भार छ, 

पर त्वी में दिलै की आग छ, 

त्वी में जवानिक फाग छ।’

इसका तात्पर्य है कि बुरांश तुझ सा सारे जंगल में कोई नहीं है। जब तू फूलता है, सारा जंगल मानो जल उठता है। जंगल में और भी कई तरह के वृक्ष हैं पर एकमात्र तुझमें ही दिल की आग और यौवन का फाग दोनों मौजूद हैं।

पहाड़ी इलाकों की प्रकृति और प्रवृत्ति से अनजान लोगों की सुविधा के लिए बताते चले कि बुरांश एक खूबसूरत और औषधीय गुणों से भरपूर फूलों वाला पेड़ है जो मुख्य रूप से हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। यह पूरीतरह से भारतीय है और पूरे हिमालयी इलाकों  के साथ साथ कई अन्य देशों में भी पाया जाता है। यह हिमाचल प्रदेश का राजकीय फूल है। जबकि उत्तराखंड में इसे राजकीय वृक्ष तो नेपाल में राष्ट्रीय पुष्प का रुतबा हासिल है। 

बुरांश को वैज्ञानिक रूप से रोडोडेंड्रोन अर्बोरियम  के नाम से जाना जाता है। रोडोडेंड्रोन दो ग्रीक शब्दों रोडन यानि गुलाब और डेंड्रोन अर्थात् पेड़ से बना है। जिसका अर्थ है गुलाब का पेड़। दरअसल बुरांश दूर से लाल गुलाब की तरह ही खूबसूरत नज़र आता है। सामान्य तौर पर मार्च और अप्रैल के महीनों में खिलने वाले बुरांश से पहाड़ मनमोहक हो जाते हैं। गर्मियों के दिनों में ऊंची पहाड़ियों पर बुरांश के सूर्ख फूलों के गुच्छों से यहां का परिदृश्य लाल हो जाता है। बताया जाता है कि बुरांश के फूल कई रंग के होते हैं लेकिन हमें तो केवल मासूमियत से भरा लाल बुरांश ही देखने को मिला।

 बुरांश केवल अपनी खूबसूरती के लिए ही नहीं, बल्कि सेहत से जुड़े फायदों और सांस्कृतिक महत्व के लिए भी प्रसिद्ध है। देवभूमि हिमाचल में इसे प्रकृति का आशीर्वाद माना जाता है। स्थानीय लोग इसे बराह या ब्रांस जैसे नामों से भी पुकारते हैं। वसंत के मौसम में इसके फूलों का खिलना एक उत्सव की तरह होता है, जो पहाड़ी जीवन की जीवंतता को दर्शाता है।

बुरांश के फूलों और पत्तियों में कई औषधीय गुण होते हैं, जिनका उपयोग आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा में सदियों से किया जाता रहा है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-वायरल गुण पाए जाते हैं। बुरांश के फूलों से बना शरबत हृदय रोगियों के लिए लाभकारी माना जाता है। यह कोलेस्ट्रॉल को कम करने और रक्त संचार को बेहतर करने में मदद करता है। इसमें आयरन की अच्छी मात्रा होती है, जो खून की कमी को दूर करने और हीमोग्लोबिन बढ़ाने में सहायक है। फूलों में मौजूद कैल्शियम हड्डियों को मजबूत करता है और जोड़ों के दर्द में राहत देता है।

बुरांश के फूलों का उपयोग विभिन्न रूपों में किया जाता है। इसके फूलों से जूस, शरबत, जैम और चटनी बनाते हैं। बुरांश का महत्व केवल औषधीय ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी है। बुरांश के पेड़ नमी को संरक्षित करने और पेयजल स्रोतों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के कारण इसके खिलने का समय प्रभावित हो रहा है। कई बार यह सामान्य से पहले खिल जाता है, जो ग्लोबल वार्मिंग का संकेत माना जा रहा है।

कुल मिलाकर बुरांश का फूल न केवल प्रकृति की खूबसूरती का प्रतीक है, बल्कि एक औषधीय खजाना भी है। यह पहाड़ी इलाकों में लोगों के जीवन का अभिन्न अंग है। तभी तो कवियत्री हनी हिमांशु लिखती हैं:

किसी को प्रेयसी के माथे में चमकती

लाल बिंदी सा लगता है बुरांश,

किसी को कानों में लटकती बाली सा लगता है बुरांस

कहीं अंधेरे में रोशन एक चिराग सा चमकता बुरांश,

हाँ देखो,रंग भरने 

संवारने आसमान की चादर

मुस्कुराते हुए 

खिल आया है बुरांश।

अगली बार जब आप हिमालय की वादियों में समाए किसी राज्य में घूमने जाएं, तो बुरांश के फूलों की खूबसूरती और इसके जादुई गुणों का आनंद लेना न भूलें।




 


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