रईसों के आँख-कान नहीं होते....
क्या रईसों के आँख-कान नहीं होते? क्योंकि उनके पास दिल तो वैसे भी नहीं होता.कम से कम महान अभिनेता ‘पद्मश्री’ अवतार कृष्ण हंगल की बदहाली देखकर तो यही लगता है. शोले फिल्म के अमर संवादों में एक था-“यहाँ इतना सन्नाटा क्यों है भाई” और इसी के साथ याद आ जाता है मशहूर अभिनेता अवतार कृष्ण हंगल उर्फ ए के हंगल का चेहरा.भारतीय फिल्मों में आम आदमी का प्रतिनिधि चेहरा,नई पीढ़ी को पुराने दौर की याद दिलाता चेहरा और आम इन्सान के डर/झिझक/मज़बूरी को अभिव्यक्त करता चेहरा.सवा सौ से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके हंगल साहब के पास इलाज के पैसे नहीं है यह सुनकर शायद शाहरुख,सलमान और अमिताभ को जानने वाली पीढ़ी भरोसा न करे क्योंकि उसे तो यह पाता है कि इन्हें एक-एक फिल्म करने के लिए १० से २० करोड़ रूपए मिलना आम बात है और शायद यही कारण है कि नई पीढ़ी फिल्मों में जाने के लिए अपना चरित्र तक न्यौछावर करने को तैयार है .पर यदि उन्हें हंगल साहब और उन्ही की तरह के अन्य महान पर, दाने-दाने को मोहताज अभिनेताओं के बारे में बताया जाए तो वे शायद फिल्में देखना भी छोड़ देंगे.हंगल साहब को हाल ही में ‘लगान’ में एक चरित्र भूमिका में देखा ग