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बापू की कहानी,पत्थरों की जुबानी..!!

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आपके पास महज एक दिन का वक्त है, पता नहीं फिर ये मौका कब नसीब होगा…मेले,ठेले, शापिंग फेस्टिवल, मॉल और हाट बाजारों की रौनक तो हम अक्सर देखते हैं लेकिन यहां कुछ अलग तरह का हुनर है…यहां पत्थर बोल उठे हैं,अपने अलग अलग रंग, आकार प्रकार और पहचान के बाद भी ये एकरूप होकर दुनिया के सबसे बड़े महामानव के आम इंसान से अहिंसा के पुजारी बनने की गाथा गुनगुना रहे हैं। हम बात कर रहे हैं - भोपाल के स्वराज भवन में 14 से 16 अक्टूबर के बीच आयोजित Anita Dubey की प्रस्तर प्रदर्शनी यानि पत्थरों पर जादूगरी की। अब तक, हम-आपने महात्मा गांधी को विविध कैनवासों और तस्वीरों में देखा है लेकिन इस प्रस्तर प्रदर्शनी में बापू अलग ही रूप में नजर आते हैं। युवा गांधी, बैरिस्टर गांधी,असहयोग करते,चरखा चलाते, बा के साथ, गोलमेज सम्मेलन में, दांडी यात्रा करते और न जाने कितने रूपों में छोटे बड़े पत्थरों के जरिए प्रतिबिंबित होते गांधी। 45 फ्रेम्स और 15 कोटेशन में अनीता दुबे ने साबरमती आश्रम से लेकर चंपारण तक और गांधी टोपी से लेकर उनके तीन बंदरों और बकरी निर्मला तक महात्मा गांधी से जुड़े हर अहम किस्से को अपने पत्थरों से साकार कर दिय...

अब ये पैसे फिर चलन में आ रहे हैं

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  अब ये पैसे फिर चलन में आ रहे हैं.. चौंकिए मत.. वाकई,पंजी, दस्सी, चवन्नी और अठन्नी कहलाने वाली यह मुद्रा अब फिर से प्रचलन में है…..लेकिन आप इनसे कुछ खरीद नहीं सकते बल्कि अब इन्हें हासिल करने के लिए आपको मौजूदा दौर में चलने वाली मुद्रा खर्च करनी पड़ेगी। दरअसल,अब ये मुद्राएं 'एंटीक ज्वैलरी' में बदल रही हैं और महिलाओं के नाक, कान और गले के सौंदर्य की शोभा बढ़ाती नजर आने लगी है मतलब पहले पैसे से सौंदर्य सामग्री खरीदी जाती थी और अब पैसा खुद सौंदर्य सामग्री बन रहा है। पंजी, दस्सी, चवन्नी और अठन्नी..हो सकता है नए दौर के बच्चों को यह रैप या रिमिक्स जैसा कोई प्रयोग लगे लेकिन हमारे दौर में इनकी अहमियत आज के पांच और दस रुपए के बराबर थी..इन्हें हम पंजी यानि पांच पैसे, दस्सी दस पैसे, चवन्नी पच्चीस पैसे और अठन्नी को पचास पैसे के तौर पर जानते थे। चवन्नी और अठन्नी तो हाल के कुछ वर्षों तक प्रचलन में थीं। इस तस्वीर में ध्यान से देखे तो इसमें एक,दो और तीन पैसे भी नज़र आ सकते हैं। कभी एक पैसा आज के एक रुपए जैसी हैसियत रखता था। हमसे से पहले की पीढ़ी इकन्नी, दुअन्नी से भी परिचित रही है पर हमें ये ...

तेरा ज़िक्र है या इत्र है...महकता हूँ,बहकता हूँ...!!

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इन दिनों, रात में आप यदि भोपाल की वीआईपी रोड, मुख्यमंत्री निवास से पॉलिटेक्निक कालेज या फिर तमाम नई बनी कालोनियों के आसपास की सड़कों से गुजरें तो एक भीनी भीनी और मादक सी सुगंध बरबस ध्यान खींचती है। ऐसा लगता है जैसे किसी ने सड़क पर रूम स्प्रे कर दिया है..वाकई,यह रूम स्प्रे ही है लेकिन प्रकृति का। जैसे आम की बौर या मधुमलिती की बेल आसपास के इलाके को महका देती है बिल्कुल उसी तरह इस खास पेड़ की खुशबू हवा में घुलकर मन मोह लेती है..और इन दिनों भोपाल ही नहीं,शायद देश के किसी भी व्यवस्थित शहर में यह इत्र अपनी सुगंध से लोगों का ध्यान खींच रहा होगा। शायद,शीत ऋतु के स्वागत का प्रकृति का यह अपना खास अंदाज़ है। अपूर्व सुंगध के साथ अपने आकार प्रकार में भी आकर्षक इस पेड़ को सप्तपर्णी कहा जाता है। सप्तपर्णी का अर्थ है सात पत्तियों वाला..इस पेड़ की लंबी पत्तियां सात की संख्या में परस्पर साथ होती है और यही इस पेड़ की सुंदरता का सबसे बड़ा कारण है। जहां तक,विशिष्ट सुगंध की बात है तो इन दिनों मतलब अक्तूबर नवंबर से जनवरी फरवरी तक सप्तपर्णी में विशेष प्रकार के छोटे छोटे सफेद फूल आते हैं जो अपनी महक स...

किसको फुर्सत मुड़कर देखे बौर आम पर कब आता है..

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 मौसम में धीरे-धीरे गर्माहट बढ़ने लगी है और इसके साथ ही बढ़ने लगी है आम की मंजरियों की मादक खुशबू...हमारे आकाशवाणी परिसर में वर्षों से रेडियो प्रसारण के साक्षी आम के पेड़ों में इस बार भरपूर बौर/मंजरी/अमराई/मोंजर/Blossoms of Mango दिख रही है और पूरा परिसर इनकी मादक गंध से अलमस्त है....ऐसा लग रहा है  जैसे धरती और आकाश ने इन पेड़ों से हरी पत्तियां लेकर बदले में सुनहरे मोतियों से श्रृंगार किया है और फिर बरसात की बूंदों से ऐसी अनूठी खुशबू रच दी है जो हम इंसानों के वश में नहीं है। चाँदनी रात में अमराई की सुनहरी चमक और ग़मक वाक़ई अद्भुत दिखाई पड़ रही है।  अगर प्रकृति और इन्सान की मेहरबानी रही तो ये पेड़ बौर की ही तरह ही आम के हरे-पीले फलों से भी लदे नज़र आएंगे.....परन्तु आमतौर पर सार्वजनिक स्थानों पर लगे फलदार वृक्ष अपने फल नहीं बचा पाते क्योंकि फल बनने से पकने की प्रक्रिया के बीच ही वे फलविहीन कर दिए जाते हैं....खैर,प्रकृति ने भी तो आम को इतनी अलग अलग सुगंधों से सराबोर कर रखा है कि मन तो ललचाएगा ही..महसूस कीजिए कैसे स्वर्णिम मंजरी की मादकता चुलबुली ‘कैरी’ बनते ही भीनी भीनी खुशबू से मन क...

कुछ मीठा हो जाए

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  कुछ मीठा हो जाए🍬🍫.. के बाद अब कुछ धमाकेदार🗯️ मीठा हो जाए..की बारी है। दीपावली🪔 के अवसर पर बच्चों को लुभाने के लिए चॉकलेट 🍫ने अपना रूप बदल लिया है...त्योहारों पर हमारी पारंपरिक मिठाइयों का सिंहासन हिलाने में पर्याप्त कामयाबी नहीं मिलने के बाद अब चॉकलेट इंडस्ट्री रंग-रूप बदल बदलकर त्योहारों में घुसपैठ कर रही है...ताज़ा उदाहरण है ये तस्वीरें..हैं तो ये चॉकलेट, पर पटाखों/आतिशबाजी का रूप धरकर बिक रही है..उम्मीद है बच्चों के ज़रिए घर घर पहुंच जाएं..आप जरूर सावधान रहिए, कहीं ऐसा न हो चॉकलेट🍫 समझकर पटाखा🤭😱 मुंह में रख ले या फिर पटाखा समझकर मीठी चॉकलेट से हाथ धो बैठे… बहरहाल दीपावली की धमाकेदार शुभकामनाएं🥳 #dewali2021 #depavali #दीवाली

रूप से ज्यादा गुणों की खान हैं ये विलायती मेमसाहब

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यह विलायती जलेबी है..जो पेड़ पर पायी जाती है। आप इन दिनों हर बाग़ बगीचे में इन लाल-गुलाबी जलेबियों से लदे पेड़ देख सकते हैं बिल्कुल गली मोहल्लों में जलेबी की दुकानों की तरह । जलेबी नाम से ही ज़ाहिर है कि यह हमारी चाशनी में तर मीठी और पढ़ते (लिखते हुए भी) हुए भी मुंह में पानी ला देने वाली रसीली जलेबी के खानदान से है । अब यह उसकी बड़ी बहन है या छोटी..यह अनुसंधान का विषय है। वैसे उम्र के लिहाज़ से देखें तो विलायती जलेबी को प्राकृतिक पैदाइश की वजह से बड़ी बहन माना जा सकता है लेकिन जलेबी सरनेम के मामले में जरूर हलवाइयों के कारखानों में बनी जलेबी का पलड़ा भारी लगता है।..शायद, दोनों के आकार-प्रकार,रूप-रंग में समानता के कारण विलायती के साथ जलेबी बाद में जोड़ा गया होगा। इसे विलायती इमली, गंगा जलेबी, मीठी इमली,दक्कन इमली,मनीला टेमरिंड,मद्रास थोर्न जैसे नामों से भी जाना जाता है। मज़े की बात यह भी है कि जन्म से दोनों ही विदेशी हैं- चाशनी में तर जलेबी ईरान के रास्ते भारत तशरीफ़ लायी है तो उसकी विलायती बहन मैक्सिको से आकर हमारे देश के जंगलों में रम गयीं और दोनों ही अब इतनी भारतीय हो गईं है कि अपनेपन के साथ हर श...

हम बड़ी ई वाले हैं...वाकई ई तो बड़ी ही है

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हम बड़ी ई वाले हैं' व्यंग्य संग्रह पर विस्तार से चर्चा के पहले यह जानना जरूरी है कि इसे आप कैसे और कहां से खरीद सकते हैं क्योंकि पढ़ेंगे तो तभी न,जब खरीदेंगे... इसके प्रकाशक पल पल इंडिया हैं, कीमत किताब की गुणवत्ता और सामग्री के अनुसार मात्र 100 रुपये है, जो आज के संदर्भों में बहुत कम है। अमेजॉन पर उपलब्ध है, जिसका लिंक नीचे दिया गया है: https://www.amazon.in/…/…/ref=cm_sw_r_wa_apa_i_d80mDbX3X8KST अब आप ये सोच रहे होंगे कि पुस्तक समीक्षा का ये कौन सा तरीका है...सीधे खरीदने की ब ात,तो पुस्तकों और खासकर हिंदी पुस्तकों के सामने सबसे बड़ा संकट खरीददारों की कमी और मुफ़्तखोर पाठकों का है इसलिए अच्छी किताबे असमय दम तोड़ देती हैं इसलिए 'हम बड़ी ई वाले हैं' तत्काल खरीदिए-पढ़िए-पढ़ाइए ताकि लेखक का हौंसला बढ़े और प्रकाशकों का भी। अब बात इस व्यंग्य संग्रह की... किसी भी विधा का लेखन तभी सार्थक माना जा सकता है, जब वह अर्थवान हो. ऐसे में जब व्यंग्य लेखन की चर्चा में किसी संग्रह की चर्चा की जाए तो यह और भी आवश्यक हो जाता है. हर युवा में जो बदलाव की चाहत होती है और जयप्रकाश नारायण की तरह वे...

जापान में लियोनार्डो दा विंची से मुलाकात....!!!!

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जापान जैसा मैंने जाना-समापन क़िस्त लगभग एक माह से आपके सहयोग और उत्साहवर्धन के फलस्वरूप मैं अपनी जी-20 शिखर सम्मेलन के कवरेज के लिए हुई जापान यात्रा को एक श्रृंखला में पिरो पाया।आपने भी हर पोस्ट में अपनी प्रतिक्रियाओं से आगे लिखने का हौंसला दिया। अब तक की सात पोस्ट में हमने जापान के खानपान, संस्कृति,सफाई और प्रबंधन सहित तमाम मसलों पर चर्चा की। इस समापन पोस्ट को शब्दों की जुगलबंदी की बजाए कुछ आकर्षक तस्वीरों के जरिए सजाने के प्रयास कर रहा हूँ। दरअसल जापान सरकार ने इस शिखर सम्म ेलन में आये विदेशी मेहमानों के लिए एक अनूठी प्रदर्शनी लगायी थी जिसमें यहां की सांस्कृतिक विरासत से लेकर तकनीकी विकास तक को समाहित किया था। इसमें आप मोनालिजा सहित अनेक कालजयी कृतियों के लिए मशहूर चित्रकार लियोनार्डो दा विंची के सजीव स्टेच्यू से भी रूबरू हो रहे हैं।जापान श्रृंखला फिलहाल समाप्त,अगली यात्रा पर फिर कुछ नई जानकारियों के साथ बातचीत होगी। आइए, नज़र डालते हैं इन रोचक तस्वीरों पर…. # Japan   # G20   # Osaka   # PrimeMinister   # LeonardoDaVinchi   # Monalisa

ओसाका कैसल: जापानी वास्तुकला का एक सुंदर वसीयतनामा

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जापान जैसा मैंने जाना-7 ओसाका कैसल या ओसाका महल निश्चित रूप से जापान में सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यह जापान के तीन सबसे प्रमुख महलों में से एक है। ओसाका कैसल के बारे में भले ही आपको मेरी जापान यात्रा की आखिरी कड़ियों में पढ़ने को मिल रहा हो लेकिन हक़ीक़त यह है कि मैंने ओसाका में सबसे पहले ओसाका कैसल ही देखा था। दरअसल जापान में हवाई अड्डे से हमारी सहयोगी (गाइड-दुभाषिया) ने इस महल की इतनी तारीफ़ कर दी थी कि हमने हो टल जाने के बजाए पहले इस महल को देखने का फ़ैसला किया और अब मैं दावे से कह सकता हूँ कि हमने सबसे पहले ओसाका कैसल जाकर कोई गलती नहीं की। लगभग 450 साल पुराना यह पाँच मंजिला महल देश के सबसे अधिक और सबसे प्राचीन दर्शनीय रचनाओं में शामिल है। ओसाका कैसल को हम पारंपरिक जापानी वास्तुकला का एक सुंदर वसीयतनामा कह सकते है। महल के अंदर प्रत्येक मंजिल पर ओसाका के व्यापक इतिहास को कलाकृतियों के माध्यम से प्रतिबिंबित किया गया है। स्थानीय लोगों के मुताबिक सदियों से यह महल कई उल्लेखनीय ऐतिहासिक घटनाओं का मंच रहा है। ओसाका कैसल अपनी विशाल आकार वाली पत्थर की दीवार के लिए भी ...

ऑलंपिक खेलों की मशाल हाथ में.... एक सपना सच हो गया...!!

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जापान जैसा मैंने जाना-6 अपन के हाथ में ऑलंपिक मशाल.. टोक्यो में 2020 में होने वाले ऑलंपिक खेलों की मशाल...वह भी वास्तविक,बिना किसी मिलावट के।इन तस्वीरों के गलियारे में थोड़ा और आगे बढ़ेंगे तो इन खेलों के शुभंकर ‘मिराइतोवा’ को भी आप मेरे साथ देख पाएंगे...लगता है मुझे यहाँ के हैप्पीनेस शुभंकर ‘बिलिकेन’की दुआएं मिल गयी हैं तभी तो सालभर पहले और यहाँ तक कि ऑलंपिक खेलों की आधिकारिक तौर पर मशाल यात्रा शुरू होने के पहले ही मशाल को हाथ में लेने का अवसर मिल गया. बिलिकेन को आप भूले तो नहीं न क्योंकि पिछली एफिल टावर वाली कड़ी में ही तो हमने उनकी चर्चा की थी. बहरहाल,अब से ठीक साल भर बाद दुनिया भर के दिग्गज खिलाड़ी टोक्यो में 2020 में होने वाले ऑलंपिक खेलों में एक-एक पदक के लिए अपनी पूरी ताक़त दांव पर लगा रहे होंगे।...आखिर खेलों के इस महाकुम्भ में अपना जलवा दिखाने और अपने देश के राष्ट्रध्वज-राष्ट्रगान के साथ गर्व से सीना चौड़ा कर, सैकड़ों कैमरों की चकाचौंध का सामना करने के लिए ही तो वे सालों-साल अपनी यह ऊर्जा संजो कर रखते हैं। वहीँ, खिलाडियों ही नहीं,खेलों से दूर रहने वालों के लिए भी ऑलंपिक खेलों ...