भारत में रेडियो की विकास यात्रा
भारत में रेडियो का इतिहास एक महत्वपूर्ण और दिलचस्प यात्रा है। इसकी शुरुआत करीब सौ साल पहले एक छोटे से प्रयोग से हुई थी, लेकिन समय के साथ यह देश के सांस्कृतिक, सामाजिक, और राजनीतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया। रेडियो के माध्यम से न केवल सूचना और मनोरंजन प्रदान किया जाता है, बल्कि यह एक सशक्त माध्यम के रूप में समाज की जागरूकता बढ़ाने का कार्य भी करता है। भारत में रेडियो की विकास यात्रा के विभिन्न चरणों पर बात करें तो हम उन्हें कुछ इस प्रकार विभाजित कर सकते हैं:
1. प्रारंभिक चरण (1920-1947)
भारत में रेडियो की शुरुआत ब्रिटिश काल के दौरान हुई। 1920 में, भारत में पहली बार रेडियो प्रसारण का प्रयोग हुआ। यह प्रसारण भारत में पहली बार कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था। इसका उद्देश्य संगीत, समाचार और जानकारी फैलाना था।
· 1927 में, भारत में 'Indian Broadcasting Company' (IBC) की स्थापना की गई। हालांकि, यह कंपनी आर्थिक कारणों से अधिक समय तक नहीं चल पाई। बॉम्बे प्रेसिडेंसी रेडियो क्लब और अन्य रेडियो क्लबों के कार्यक्रमों के साथ ब्रिटिश राज के दौरान जून 1923 में प्रसारण आरम्भ हुआ। 23 जुलाई 1927 को दो रेडियो स्टेशन शुरू हुए. 23 जुलाई 1927 को बॉम्बे स्टेशन आरम्भ हुआ और कलकत्ता स्टेशन 26 अगस्त 1927 को आरम्भ हुआ था।
· इसके बाद, 1930 में भारतीय सरकार ने रेडियो प्रसारण की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ली और All India Radio (AIR) की स्थापना की। 1 अप्रैल 1930 को दो वर्ष के लिए प्रायोगिक आधार पर भारतीय स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस (ISBS) की शुरुआत की और मई 1932 में स्थायी रूप से ऑल इंडिया रेडियो बन गया। इसका उद्देश्य सूचना प्रसारण और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रसार करना था।
2. स्वतंत्रता के बाद का दौर (1947-1970)
भारत की स्वतंत्रता के बाद, रेडियो प्रसारण के महत्व में वृद्धि हुई। सरकार ने इसका इस्तेमाल राष्ट्रीय एकता, शिक्षा और जागरूकता फैलाने के लिए किया।
· 1947 के बाद, AIR का दायरा बढ़ाया गया और इसे देशभर में फैला दिया गया। इसके माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम के नायकों की जीवनी, सांस्कृतिक कार्यक्रम और समसामयिक घटनाओं के बारे में जानकारी दी गई।
· 1950 में, AIR ने अपनी पहली राष्ट्रीय सेवा शुरू की, जो प्रमुख रूप से समाचार और शैक्षिक कार्यक्रमों पर केंद्रित थी। विविध भारती की शुरुआत 3 अक्टूबर 1957 को हुई थी। यह देश मे सार्वजनिक क्षेत्र के रेडियो की एक प्रमुख प्रसारण सेवा है। भारत में श्रोताओं के बीच ये सर्वाधिक सुनी जाने वाली और बहुत लोकप्रिय सेवा है।
· 1957 में, भारत ने टेलीविजन प्रसारण की दिशा में भी कदम बढ़ाए, लेकिन रेडियो का महत्व तब भी बरकरार रहा।
· 1970 के दशक में, रेडियो का विस्तार हुआ और विभिन्न भाषाओं में कार्यक्रमों की प्रस्तुति शुरू हुई। AIR ने विभिन्न राज्यों में अपनी क्षेत्रीय सेवाएं शुरू की और इसके कार्यक्रमों में विविधता आई।
· आकाशवाणी का समाचार सेवा प्रभाग (NSD) भारत और विदेशों में श्रोताओं को समाचार और चर्चाएँ प्रसारित करता है। 1939-40 में 27 समाचार बुलेटिनों से, आकाशवाणी आज राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और विदेशी सेवाओं में 82 भाषाओं/बोलियों में प्रतिदिन लगभग 52 घंटे में 510 से अधिक बुलेटिन प्रसारित करता है। इनमें से, 89 बुलेटिन प्रतिदिन अंग्रेजी, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में दिल्ली से प्रसारित किए जाते हैं। 44 क्षेत्रीय समाचार इकाइयाँ (RNU) 67 भाषाओं में 355 दैनिक समाचार बुलेटिन प्रसारित करती हैं। इसमें 22 आकाशवाणी स्टेशनों से विशेष रूप से एफएम ‘गोल्ड’ चैनल पर प्रसारित समाचार बुलेटिन शामिल हैं। दैनिक समाचार बुलेटिनों के अलावा, समाचार सेवा प्रभाग प्रतिदिन दिल्ली और कुछ अन्य क्षेत्रीय समाचार इकाइयों से सामयिक विषयों पर कई समाचार-आधारित कार्यक्रम भी प्रसारित करता है।
3. एफएम रेडियो का आगमन (1990-2000)
1990 के दशक में, भारत में एफएम-फ्रीक्वेंसी मॉडुलेशन रेडियो का आगमन हुआ, जिसने रेडियो प्रसारण के परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया। एफएम रेडियो का मुख्य आकर्षण इसके बेहतर ध्वनि गुणवत्ता और संगीत पर आधारित कार्यक्रम थे।
· भारत में एफएम प्रसारण पहले केवल सरकारी नियंत्रण में था। यह प्रसारण अधिकतर शहरी इलाकों तक सीमित था। भारत सरकार ने एफएम रेडियो के निजीकरण की प्रक्रिया शुरू की और निजी एफएम रेडियो चैनल्स को अनुमति दी। इससे रेडियो पर विविधता और प्रतिस्पर्धा बढ़ी, और शहरी जनता को अधिक कार्यक्रमों का चयन करने का अवसर मिला।
- भारत में पहली एफएम सेवा 23 जुलाई, 1977 को मद्रास में शुरू हुई थी। 1983 में, एआईआर बड़ौदा एक सीबीएस स्टेशन बन गया जबकि 1984 में, पहला स्थानीय स्टेशन नागरकोइल में शुरू हुआ। सरकार ने दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में निजी एफएम प्रसारण के साथ प्रयोग किया। 2001 में, रेडियो सिटी बैंगलोर भारत का पहला निजी एफएम रेडियो स्टेशन बन गया।
4. डिजिटल रेडियो और इंटरनेट का युग (2000-आजकल)
2000 के दशक के अंत में, तकनीकी विकास के साथ रेडियो प्रसारण में भी परिवर्तन हुआ। इंटरनेट रेडियो और डिजिटल रेडियो प्रसारण की शुरुआत के बाद, रेडियो का स्वरूप पूरी तरह बदल गया।
· 2006 में भारत में डिजिटल रेडियो प्रसारण की शुरुआत की गई।
· इसके अलावा, इंटरनेट के माध्यम से रेडियो सुनने की प्रक्रिया भी लोकप्रिय हुई। ऑनलाइन रेडियो और पॉडकास्टिंग का विस्तार हुआ, जिससे रेडियो श्रोताओं के लिए नई संभावनाओं का द्वार खुला।
5. वर्तमान स्थिति और भविष्य
· आजकल भारत में रेडियो का स्वरूप पूरी तरह से बदल चुका है। अब यह न केवल सूचना और मनोरंजन का साधन है, बल्कि समाज के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी जानकारी देने और जागरूकता फैलाने का भी एक प्रभावी माध्यम बन चुका है। हाल ही ऑल इंडिया रेडियो का नाम बदलकर हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी में भी आकाशवाणी कर दिया गया है. फिलहाल आकाशवाणी के 742 ट्रांसमीटर हैं जो एफ़एम ट्रांसमीटरों का कवरेज क्षेत्र के हिसाब से 90% और जनसंख्या के हिसाब से 98% क्षेत्र कवर कर रहे हैं .
आज के डिजिटल युग में रेडियो ने अपने पारंपरिक रूप से एक सशक्त और आधुनिक रूप में बदलाव देखा है। टेक्नोलॉजी में तेजी से बदलाव और इंटरनेट की उपलब्धता ने रेडियो के स्वरूप, प्रसारण विधि और श्रोताओं के साथ इसके संबंध को बदल दिया है। आज रेडियो केवल एक एंटरटेनमेंट का माध्यम नहीं, बल्कि सूचना, शिक्षा और सामाजिक जागरूकता का महत्वपूर्ण स्रोत बन चुका है। आइए, जानते हैं आधुनिक समय में रेडियो के बदलते रूप के बारे में:
1. एफएम रेडियो का विस्तार और विविधता
एफएम रेडियो (Frequency Modulation) का आगमन पिछले कुछ दशकों में रेडियो प्रसारण का स्वरूप पूरी तरह से बदल चुका है। एफएम रेडियो ने उच्च गुणवत्ता वाली आवाज़, साफ़ ध्वनि, और प्रचलित संगीत के कार्यक्रमों के कारण श्रोताओं को आकर्षित किया। एक रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रसार भारती के अंतर्गत 470 से ज्यादा और निजी क्षेत्र के 388से ज्यादा चैनल हैं. जो पूरे देश का मनोरंजन कर रहे हैं. इसके अलावा, आगामी FM रेडियो स्पेक्ट्रम नीलामी में भाग लेने के लिए 20 कंपनियों ने रुचि दिखाई है। ये नीलामी 254 कस्बों और अर्ध-शहरी क्षेत्रों को कवर करेगी।
· निजी एफएम चैनलों की संख्या में वृद्धि ने रेडियो को ज्यादा प्रतिस्पर्धी और विविध बनाया है। अब विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम जैसे संगीत, समाचार, टॉक शो, लाइव इंटरव्यू, खेल, और शिक्षा पर आधारित शो हर प्रकार के श्रोताओं की जरूरतों को पूरा करते हैं।
· शहरी क्षेत्रों में, जहां रेडियो स्टेशन अधिक होते हैं, एफएम चैनल्स की विविधता और स्थानीय भाषा में कार्यक्रमों का प्रसारण भी बढ़ा है।
2. डिजिटल रेडियो और इंटरनेट रेडियो
इंटरनेट के विकास के साथ रेडियो का रूप और भी अधिक वैश्विक हो गया है। अब रेडियो प्रसारण इंटरनेट के माध्यम से सुनने की सुविधा मिलती है। भारत में डिजिटल रेडियो की शुरुआत 2017 में हुई थी। भारत सरकार ने डिजिटल रेडियो को बढ़ावा देने के लिए "डिजिटल रेडियो मिशन" शुरू किया है। इस मिशन का लक्ष्य सभी रेडियो प्रसारण को डिजिटल में बदलना है। सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने भारत के 13 प्रमुख शहरों में डिजिटल FM रेडियो प्रसारण शुरू करने की योजना बनाई है। यह कदम रेडियो इंडस्ट्री को आधुनिक बनाने और स्पेक्ट्रम दक्षता को बेहतर करने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
डिजिटल रेडियो का आगमन रेडियो की ध्वनि गुणवत्ता को बेहतर बनाने में सहायक हुआ है। अब सिग्नल की कोई समस्या नहीं होती, और श्रोता बिना किसी व्यवधान के विभिन्न कार्यक्रम सुन सकते हैं।
ऑनलाइन रेडियो और पॉडकास्ट के रूप में एक नई शुरुआत हुई है। लोग अब इंटरनेट के माध्यम से कहीं भी, कभी भी अपने पसंदीदा रेडियो चैनल्स को सुन सकते हैं। इस प्रकार, रेडियो अब सीमाओं से बाहर निकलकर विश्व भर में उपलब्ध हो गया है। भारत में इंटरनेट रेडियो प्लेटफ़ॉर्म, ऑनलाइन रेडियो स्टेशन और पॉडकास्ट को सुनने के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं मसलन ऑनलाइन रेडियो स्टेशन,पॉडकास्ट,मोबाइल ऐप,स्मार्ट स्पीकर,डेस्कटॉप और इंटरनेट रेडियो प्रसारण सॉफ़्टवेयर. आकाशवाणी का न्यूज़ ऑन एआईआर बहुत लोकप्रिय है.
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· पॉडकास्टिंग का भी विस्तार हुआ है। श्रोताओं को उनकी रुचि के अनुसार खास विषयों पर आधारित रिकॉर्डेड शो उपलब्ध होते हैं, जिन्हें वे अपनी सुविधा से सुन सकते हैं। देश में इन दिनों स्पॉटीफाई, जिओ सावन, गाना, विंक म्यूजिक, एप्पल पॉडकास्ट्स, पॉकेट एफएम और सुनो इंडिया जैसे कई लोकप्रिय पॉडकास्ट प्लेटफार्म हैं.
3. मोबाइल ऐप्स और स्मार्ट डिवाइस के माध्यम से रेडियो
अब स्मार्टफोन और अन्य स्मार्ट डिवाइस के माध्यम से रेडियो सुनना बहुत ही आसान हो गया है।
· रेडियो ऐप्स जैसे TuneIn, Gaana, JioSaavn, और अन्य प्लेटफ़ॉर्म्स के जरिए श्रोता पूरी दुनिया के रेडियो स्टेशन सुन सकते हैं। ये ऐप्स न केवल पारंपरिक रेडियो, बल्कि डिजिटल और ऑनलाइन रेडियो भी उपलब्ध कराते हैं। आकाशवाणी का न्यूज़ ऑन एआईआर बहुत लोकप्रिय है.
· स्मार्ट स्पीकर्स (जैसे Alexa, Google Home) के जरिए भी रेडियो सुनना अब बहुत सरल हो गया है। श्रोता सिर्फ एक कमांड दे कर अपने पसंदीदा रेडियो चैनल्स और कार्यक्रमों का आनंद ले सकते हैं।
4. लोकल और कम्युनिटी रेडियो
· अब रेडियो केवल बड़े शहरों और राज्यों तक सीमित नहीं है। छोटे शहरों और गांवों में भी कम्युनिटी रेडियो स्टेशन का प्रचलन बढ़ा है। देश में पांच सौ से ज्यादा सामुदायिक रेडियो स्टेशन (सीआरएस) हैं. भारत में सामुदायिक रेडियो की यात्रा वर्ष 2002 में उस समय शुरू हुई, जब भारत सरकार ने आईआईटी/आईआईएम सहित विभिन्न प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों को सामुदायिक रेडियो स्टेशनों की स्थापना के लिए लाइसेंस देने की नीति को मंजूरी दी। पहले सामुदायिक रेडियो स्टेशन का उद्घाटन भारत रत्न श्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा 1 फरवरी 2004 को किया गया।
· कम्युनिटी रेडियो का उद्देश्य स्थानीय समुदाय को जानकारी और शिक्षा प्रदान करना है। ये छोटे रेडियो स्टेशन स्थानीय मुद्दों, संस्कृति, परंपराओं, और घटनाओं पर आधारित कार्यक्रम प्रसारित करते हैं। देश में 2024 तक सामुदायिक रेडियो स्टेशनों की संख्या 481 हो गई थी.
· लोकल कंटेंट पर आधारित रेडियो स्टेशन श्रोताओं से सीधे जुड़ते हैं और उनकी समस्याओं और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम प्रसारित करते हैं। सामुदायिक रेडियो स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, कृषि आदि से संबंधित मुद्दों पर स्थानीय समुदाय के बीच स्थानीय आवाजों को प्रसारित करने का एक मंच प्रदान करता है।
5. रेडियो और सोशल मीडिया का संयोजन
आजकल रेडियो और सोशल मीडिया के बीच कड़ी साझेदारी देखी जा रही है। देश में आकाशवाणी सहित रेडियो स्टेशन अब सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी मौजूद होते हैं, जैसे Youtube,Facebook, Instagram, और Twitter (अब X) पर।
· लाइव इंटरएक्टिव शोज: श्रोता अब लाइव शो के दौरान सोशल मीडिया के माध्यम से सवाल पूछ सकते हैं या कार्यक्रम में भाग ले सकते हैं। यह श्रोताओं को कार्यक्रम से और भी अधिक जुड़ने का मौका देता है।
· सहयोग और प्रचार: रेडियो और सोशल मीडिया के बीच सहयोग से विज्ञापन और प्रचार के नए तरीके पैदा हुए हैं। यह रेडियो चैनल्स को अपने श्रोताओं के साथ अधिक प्रभावी रूप से संवाद करने का अवसर प्रदान करता है।
6. पर्सनलाइज्ड रेडियो एक्सपीरियंस
आधुनिक समय में रेडियो का अनुभव पहले से कहीं अधिक व्यक्तिगत हो गया है। अब श्रोता अपनी पसंद के अनुसार कार्यक्रमों को चुन सकते हैं और अपने हिसाब से सुन सकते हैं। सारेगामा कारवां जैसे रेडियो प्रयोगों ने भी इसकी लोकप्रियता बढाने का काम किया है.
· कस्टमाइज्ड प्ले लिस्ट: श्रोता अपनी पसंद का संगीत और कंटेंट चुन सकते हैं। उदाहरण के लिए, Spotify, Apple Music, और Gaana जैसी ऐप्स श्रोताओं को उनके पसंदीदा गाने, कलाकार, और शैलियों के आधार पर प्ले लिस्ट तैयार करने की सुविधा देते हैं।
· ऑन डिमांड कंटेंट: अब श्रोता जब चाहें तब अपने पसंदीदा रेडियो शो और पॉडकास्ट को सुन सकते हैं, जिससे रेडियो का अनुभव और भी व्यक्तिगत बन जाता है।
रेडियो की उपयोगिता
रेडियो की उपयोगिता बहुत व्यापक और महत्वपूर्ण है। यह केवल एक मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि समाज, शिक्षा, सूचना और जागरूकता फैलाने का प्रभावी माध्यम भी है। निम्नलिखित बिंदुओं में रेडियो की उपयोगिता को समझा जा सकता है:
1. सूचना का प्रभावी स्रोत
रेडियो का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग सूचना प्रसारण के रूप में होता है। यह एक त्वरित और विश्वसनीय माध्यम है जिसके द्वारा समाचार और समसामयिक घटनाओं के बारे में तुरंत जानकारी प्राप्त होती है। यह विशेष रूप से प्राकृतिक आपदाओं, राष्ट्रीय संकटों और महत्वपूर्ण घटनाओं के समय में अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मामलों पर अद्यतन जानकारी प्रदान करता है।
2. शिक्षा का साधन
रेडियो शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विशेषकर दूरदराज और ग्रामीण इलाकों में जहां इंटरनेट और अन्य डिजिटल माध्यमों तक पहुंच नहीं होती, रेडियो शैक्षिक कार्यक्रमों के माध्यम से छात्रों को शिक्षा प्रदान करता है।
· व्यक्तिगत विकास और करियर मार्गदर्शन जैसे विषयों पर जागरूकता फैलाता है।
· साक्षरता अभियानों और हेल्थ संबंधी जागरूकता के कार्यक्रमों के लिए रेडियो का उपयोग किया जाता है।
3. मनोरंजन का स्रोत
रेडियो मनोरंजन का एक सस्ता और सुलभ साधन है। यह:
· संगीत और चर्चित कार्यक्रमों के माध्यम से श्रोताओं को मनोरंजन प्रदान करता है।
· लाइव शो, इंटरव्यू, कॉमेडी और कहानी प्रसारण के द्वारा श्रोताओं का मनोरंजन करता है।
4. सामाजिक जागरूकता और संवाद
रेडियो एक महत्वपूर्ण मंच है जिसके द्वारा:
· समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए जागरूकता फैलाई जाती है। जैसे, स्वास्थ्य, पर्यावरण, और महिलाओं के अधिकारों पर कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।
· यह स्थानीय समुदायों को एकजुट करने और उनके मुद्दों को उजागर करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनता है।
5. आपातकालीन सेवाएं
आपातकाल के दौरान, रेडियो एक तत्काल सूचना स्रोत के रूप में कार्य करता है। प्राकृतिक आपदाओं, युद्ध, या किसी भी अन्य संकट की स्थिति में रेडियो:
· प्रभावित क्षेत्रों में शरणार्थियों और नागरिकों को आपातकालीन जानकारी और सहायता प्रदान करता है।
· खतरे की चेतावनी और सुरक्षित स्थानों की जानकारी देता है।
6. लोकल और क्षेत्रीय संस्कृति का संरक्षण
रेडियो स्थानीय और क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृतियों को जीवित रखने का एक प्रभावी तरीका है। यह:
· स्थानीय भाषा में कार्यक्रम प्रसारित करता है, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं का संरक्षण होता है।
· स्थानीय लोक संगीत, कला, और सांस्कृतिक कार्यक्रम के जरिए संस्कृति को बढ़ावा देता है।
7. सस्ता और सुलभ माध्यम
रेडियो अन्य मीडिया के मुकाबले एक सस्ता और सुलभ माध्यम है। यह:
· कम लागत में अधिक श्रोताओं तक पहुंचने में सक्षम होता है।
· विभिन्न जगहों और परिस्थितियों में आसानी से सुना जा सकता है, जैसे गाड़ी में, घर में या खेतों में काम करते समय।
8. प्रचार और विज्ञापन का प्लेटफ़ॉर्म
व्यवसायों के लिए रेडियो एक प्रभावी विज्ञापन माध्यम बन चुका है। यह:
· स्थानीय उत्पादों और सेवाओं के प्रचार के लिए एक सस्ता और प्रभावी तरीका प्रदान करता है।
· स्मरणीय और आकर्षक विज्ञापन के द्वारा व्यवसायों की पहुंच बढ़ाने का एक अच्छा साधन बनता है।
आधुनिक समय में रेडियो ने अपनी पारंपरिक सीमाओं को पार करते हुए डिजिटल, इंटरनेट, और स्मार्ट डिवाइस जैसे आधुनिक तकनीकी रूपों में खुद को ढाल लिया है। अब यह न केवल एक मनोरंजन का स्रोत है, बल्कि सूचना, शिक्षा, और जागरूकता फैलाने का एक अत्यधिक प्रभावी और पहुंच योग्य माध्यम बन चुका है। रेडियो का बदलता रूप समाज में इसके महत्व को और बढ़ाता है, और यह भविष्य में और भी नए रूपों में विकसित होता रहेगा।
भारत में रेडियो की विकास यात्रा न केवल तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव भी गहरा रहा है। आज भी, रेडियो एक सशक्त और सामर्थ्यवान माध्यम बना हुआ है, जो न केवल शहरों, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों के बीच जागरूकता फैलाने का काम कर रहा है। भविष्य में भी रेडियो के तकनीकी विकास और विविधता के साथ यह और भी अधिक प्रभावी बन सकता है।
(यह लेख शोध पत्रिका समागम में भी प्रकाशित हुआ है)
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