भारत के लिए भी सबक है पाकिस्तान का ट्रेन हाइजैक!!
अभी तक इस ट्रेन हाइजैक की गुत्थियां और असल परते खुलना बाकी हैं। अभी पाकिस्तान की सेना और बलूचिस्तान के लड़ाकों के दावों प्रतिदावों की पुष्टि नहीं हो पाई है। शायद, समय के साथ तथ्य और खुलकर सामने आ पाएंगे और तभी दुनिया इस घटना की वास्तविक भयावहता से रूबरू हो पाएगी।
खैर, हमारा विषय कौन सही और कौन गलत नहीं है तथा न ही हम तथ्यों की छानबीन में जुटना चाहते हैं। हमारा मकसद इस घटना से पूरी दुनिया के सामने मंडराने वाले खतरे के प्रति आगाह करना है। ट्रेन हाइजैक केवल पाकिस्तान भर के लिए खतरा नहीं है बल्कि भारत सहित उन सभी मुल्कों के लिए खतरे की घंटी है जो दुर्गम से दुर्गम इलाकों तक ट्रेन सेवाएं उपलब्ध कराकर आम लोगों को सस्ती एवं सुलभ परिवहन सेवा उपलब्ध कराकर उनका जीवन आसान बना रहे हैं।
आज के दौर में ट्रेन हाइजैक की यह हरकत अमेरिका में हवाई जहाज के जरिए ट्विन टावर पर हमले से कम नहीं है। सोचिए, जब एक विमान के अपहरण से आतंकी संगठन सरकारों को झुकने पर मजबूर कर देते हैं तो पूरी की पूरी ट्रेन के अपहरण के बाद तो वे सरकारों को घुटने पर ला सकते हैं। वैसे भी ट्रेन संचालन एयर सेवाओं की तरह एक्सक्लूसिव और सीमित नहीं है बल्कि ट्रेन तो असीमित हैं और दुर्गम से दुर्गम क्षेत्रों से गुजरती हैं। भारत जैसे देश में तो ट्रेन परिवहन का सबसे साथ और सुलभ साधन तो है ही,देशव्यापी पहुंच रखता है।
भारत क्या, किसी भी देश के लिए यह संभव नहीं है कि वह हर ट्रेन की चाक चौबंद सुरक्षा सुनिश्चित कर सके क्योंकि 22 से 24 कोच की ट्रेन में सरकार कुछ सुरक्षा कर्मी तो तैनात कर सकती हैं लेकिन हर कोच में बड़ी संख्या में सुरक्षा उपलब्ध कराना मुश्किल है। इसके लिए बड़े पैमाने पर मानव और अन्य संसाधनों की जरूरत पड़ेगी और यह खर्चीला भी है। ऐसी सूरत में कश्मीर से लेकर पंजाब तक और नक्सलियों से लेकर पाकिस्तान परस्त आतंकियों तक कोई भी सिरफिरा संगठन बलूची लोगों से प्रेरित होकर इसतरह की साजिश रच सकता है।
हमारे देश के लिए तो यह वाकई चिंता की बात है और मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा भरोसा है कि सरकार और उसकी सुरक्षा एजेंसियों ने इस दिशा में सोचना शुरू भी कर दिया होगा। भारतीय रेलवे, दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है, जिसका कुल ट्रैक नेटवर्क लगभग 68 हजार 103 किलोमीटर है, जिसमें करीब 7 हजार 349 रेलवे स्टेशन शामिल हैं। प्रतिदिन चलने वाली 9 हजार से ज्यादा ट्रेनों में लगभग ढाई करोड़ यात्री सफर करते हैं। इसके अलावा, कीमती सामान और खाद्य पदार्थों को देश के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचाने वाली ट्रेनों की संख्या अलग है।
भारतीय ट्रेनें डेढ़ लाख से ज्यादा छोटे बड़े पुल और हजारों सुरंगों से होकर गुजरती हैं। रेलवे में बड़ी संख्या में सुरंगे हैं और उनका लगातार निर्माण भी जारी है। सिर्फ उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेल लिंक परियोजना में 38 सुरंगें हैं । इनमें सबसे लंबी सुरंग 12.75 किलोमीटर की है । इसके अलावा, कश्मीर में पीर पंजाल टनल, संगलदहन टनल, कोंकण रेलवे की करबूड टनल और महाराष्ट्र की नाथूवाडी टनल जैसी अनेक विशाल सुरंगें भी हैं जहां से ट्रेन प्रतिदिन गुजरती है।
देश में रामेश्वरम को जोड़ने वाला पंबन पुल, नीलगिरी पर्वतीय मार्ग, कालका शिमला रेल मार्ग,मेट्टुपालयम-ऊटी नीलगिरी रूट और जम्मू- ऊधमपुर- श्रीनगर- बारामुला रेलवे लिंक जैसे खतरनाक रेल रूट पहले से मौजूद हैं जो हमारे इंजीनियरों के दिमाग और सरकार के हौंसले के सशक्त उदाहरण हैं।
कहने का आशय यह है कि हमारे देश में रेल नेटवर्क इतना व्यापक है कि वह कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैला है और आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों के साथ पूर्वोत्तर में उग्रवाद संक्रमित क्षेत्रों तक से गुजरता है।
इतने विशाल नेटवर्क की सुरक्षा आसान काम नहीं है और पग पग पर पहरा बिठाना किसी भी देश के लिए असंभव है। फिर भी हमें बलूचिस्तान की ट्रेन हाइजैक की घटना से सबक लेते हुए न केवल ज्यादा चौकस होने की जरूरत है बल्कि ज्यादा से ज्यादा तकनीक को सुरक्षा से जोड़ने की भी जरूरत है ताकि ऐसे किसी षडयंत्र के दौरान वक्त पर तत्काल कदम उठाएं जा सकें और देशद्रोहियों के मंसूबों पर पानी फेरते हुए उन्हें तत्काल सबक सिखाया जा सके।
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