संदेश

बूंदों,बादलों,पानी और हरियाली का मेला!!

चित्र
नीचे लबालब पानी,ऊपर शरारती बूंदें और चारों ओर मानसून में नहाकर चमकदार हरे रंग में रंगे वृक्षों से भरा घना जंगल। हम किसी अबूझ द्वीप या विदेश की किसी सिनेमाई लोकेशन की बात नहीं कर रहे बल्कि अपने शहर भोपाल के इर्द गिर्द बसे कई प्राकृतिक श्वसन तंत्रों में से एक कोलार डैम की बात कर रहे हैं। इन दिनों यहां प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता कई गुना बढ़ गई है।   चेहरे के साथ अठखेलियां करती कभी नन्हीं तो कभी बादलों से तर माल उड़ाकर आईं मोटी बूंदे, कभी भिगोकर तो कभी छींटें मारकर हमारे आसपास अपनी मौजूदगी का सतत अहसास कराती रहती हैं। वहीं, काले, घने, मचलते बादल एक छोर से दूसरे छोर तक रेस लगाते से नज़र आते हैं। ऐसा लगता है अभी टूटकर बरस पड़ेंगे और आपके पास छाते में छिपकर कार में घुसने के अलावा कोई और विकल्प नहीं रहेगा..लेकिन जैसे ही आप डरकर भागते हैं,ये नटखट और बदमाश बादल खिलखिलाते हुए कोलार बांध को दूर से निहारने के लिए कहीं ओर टहलने निकल जाते हैं।  आप, बादलों और बूंदों के खेल में ठीक से शामिल भी नहीं हो पाते हो कि नीचे कोलाहल करती विशाल जलराशि अपनी ओर ध्यान खींचने का पुरजोर प्रयास करती दिखती है। अथाए पा

समोसे-कचौरी पर क्यों मेहरबान हैं ‘सरकार’

चित्र
आप इन दिनों किसी भी सरकारी या गैर सरकारी आयोजन में जाइए, वहां खाने-पीने के नाम पर जो पैकेट दिए जाते हैं या फिर जो सामग्री परोसी जाती है उसमें समोसे, कचौरी, हॉट डॉग, बर्गर और गुलाब जामुन होना सामान्य बात है। वहीं, सामान्य ट्रेन तो छोड़िए वंदे भारत, शताब्दी और राजधानी जैसी प्रीमियम ट्रेनों में भी ब्रेकफास्ट से लेकर खाने तक के मैन्यू में समोसा, कचौरी, आइसक्रीम और गुलाब जामुन मिलना आम है। समोसा कचौरी और आइसक्रीम तो ट्रेन के खानपान का सबसे अनिवार्य हिस्सा है। कोई भी मौसम हो आपको भोजन के साथ दिन हो या रात आइसक्रीम जरूर दी जाएगी। हाल ही में मुझे विज्ञान के आईआईटी-आईआईएम स्तर के एक संस्थान के कार्यक्रम में शामिल होने का मौका मिला। वहां भी अतिथियों से लेकर विद्यार्थियों तक को खाने के नाम पर समोसा, कचौरी, हॉट डॉग और पेटिस जैसी सामग्री परोसी गई । हर सरकारी और प्राइवेट सेक्टर की कैंटीन में समोसा-कचौरी का सबसे अहम स्थान पर बैठकर इठलाना आम बात है। समोसा और कचौरी ही क्यों, गोलगप्पे, चाट, जलेबी, पकोड़े, सैंडविच, केक, ब्रेड, ब्रेड पकौड़े, मोमोज, चाउमिन, पराठे, कटलेट, फ्रेंच फ्राइज़ जैसी तमाम स्वादिष्ट

एक शहर से साक्षात्कार…!!

चित्र
नब्बे के दशक में जवानी की दहलीज पर पांव रखते और आंखों में उजले सपने लिए हम लोग अपने अपने कस्बों से भोपाल के लिए उड़ चले थे। पृष्ठभूमि समान थी और परवरिश भी,सपने भी साझा थे और संघर्ष भी, पैसे भी सीमित थे और परिवारिक संस्कार भी एक जैसे, इसलिए ‘दुनिया गोल है’ के सिद्धांत पर अमल करते हुए हम साल-छह महीने के अंतराल में आखिर एक दूसरे से मिल ही गए और फिर हमने शुरू किया अपने सपनों का साझा सफर। तब एक गीत की यह पंक्तियां हमें राष्ट्रीय गीत सी लगती थी: ‘छोटे-छोटे शहरों से, खाली भोर-दुपहरों से, हम तो झोला उठाके चले। बारिश कम-कम लगती है, नदियां मद्धम लगती है, हम समंदर के अंदर चले।’ वाकई, हमारा सफर कुएं से समंदर का था..अपने कस्बे से भोपाल जैसे बड़े शहर और प्रदेश की राजधानी में आना, किसी समंदर से कम नहीं था। यह बात अलग है कि प्रदेश की राजधानी भी बाद में पीछे छूट गई और कैरियर के विस्तार की रफ्तार राष्ट्रीय राजधानी तक ले गई। बहरहाल,सफर साझा था तो सामान भी,साथ भी और परस्पर सहयोग भी साझा ही था। इसका परिणाम यह हुआ कि ‘हम’ यानि मैं, इस पुस्तक के लेखक संजीव परसाई,मित्र संजय सक्सेना और अग्रज जैसे मित्र और इस प

अब्बू खां का कुत्ता

चित्र
भोपाल का नाम तो सुना ही होगा आपने...तालाबों-झीलों और खूबसूरत वादियों वाला शहर अपनी फुट-हिल्स और हरियाली के लिए प्रसिद्ध है. यहाँ का बड़ा तालाब समंदर सा नजर आता है और पूरे शहर की प्यास बुझाने का काम करता है.  बड़े तालाब के किनारे बसा है भोपाल का सबसे वीआईपी और सुन्दर इलाका श्यामला हिल्स. यही की एक बस्ती में रहते थे अब्बू खां. वैसे तो अब्बू खां का भरा पूरा परिवार था लेकिन जवान होते ही बच्चे पंख फैलाकर उड़ गए और उन्होंने शहर में दीगर ठिकानों पर अपने घोंसले बना लिए. बेग़म असमय ही खुदा को प्यारी हो गयीं और अब्बू खां निपट अकेले रह गए. दरअसल, वे अपने खानदानी आशियाने का मोह छोड़ नहीं पाए और बच्चों के दड़बे नुमा घोंसलों में इतनी जगह नहीं थी कि वे अपनी हसरतों के साथ अब्बू खां की इच्छाओं को जगह दे सकें.  जैसा की होता है, अब्बू खां और बच्चों के बीच ईद का समझौता हो गया मतलब ईद पर बच्चे या तो अब्बू खां से मिलने आ जाते या फिर अब्बू खां किसी बच्चे के साथ ईद मनाने चले जाते. समय सुकून से गुजर रहा था और रही अकेलेपन की बात तो अब्बू खां को कुत्ता पालने का शौक था और वे कुत्ते को ही अपना साथी बना लेते थे,,,इससे सम

ढाई राज्यपाल और दो मुख्यमंत्रियों वाला अनूठा शहर…!!

चित्र
एक शहर में ढाई राज्यपाल और दो मुख्यमंत्री!!…पढ़कर आप भी चौंक गए  न? हम-आप क्या, कोई भी आश्चर्य में पड़ जाएगा कि कैसे एक शहर या सीधे शब्दों में कहें तो एक राजधानी में कैसे दो मुख्यमंत्री और ढाई राज्यपाल हो सकते हैं। राजनीति की स्थिति तो यह है कि अब एक ही दल में वर्तमान मुख्यमंत्री अपने ही दल के पूर्व मुख्यमंत्री को बर्दाश्त नहीं करते तो फिर एक ही शहर में यह कैसे संभव है कि ढाई राज्यपाल और दो मुख्यमंत्री हों और फिर भी कोई राजनीतिक विवाद की स्थिति नहीं बनती।   अब तक मुख्यमंत्री पद पर एक से ज्यादा दावेदारियां, ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री और कई उपमुख्यमंत्री जैसी तमाम कहानियां हम आए दिन समाचार पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ते रहते हैं लेकिन कोई शहर अपने सीने पर बिना किसी विवाद के दो मुख्यमंत्रियों की कुर्सी रखे हो और उस पर तुर्रा यह कि मुख्यमंत्रियो से ज्यादा राज्यपाल हों तो उस शहर पर बात करना बनता है।   देश का सबसे सुव्यवस्थित शहर चंडीगढ़ वैसे तो अपने आंचल में अनेक खूबियां समेटे है लेकिन दो मुख्यमंत्री और ढाई राज्यपाल की खूबी इसे देश ही क्या दुनिया भर में अतिविशिष्ट बनाती है। जैसा की हम सभी जान

‘बालूशाही’ के बहाने बदलाव की बात…!!

चित्र
बालूशाही के बहाने आज बदलाव की बात…दरअसल, पिछले कुछ महीनों का अनुभव है कि बालूशाही एक बार फिर मिठाइयों की जीतोड़ प्रतिस्पर्धा में अपनी पहचान बनाती दिख रही है। पिछले दिनों हुए कुछ बड़े और अहम् आयोजनों में मिठाई के लिए आरक्षित स्थान पर बालूशाही ठाठ से बैठी दिखी…कहीं इसे गुलाब जामुन का साथ मिला तो कहीं किसी और मिठाई का और कहीं-कहीं तो इसकी अकेले की बादशाहत देखने को मिली। इससे शुरूआती नतीजा यही निकाला कि बालूशाही मिठाइयों की मुख्य धारा में लौट रही है और धीरे-धीरे अपना खोया हुआ अस्तित्व पुनः हासिल कर रही है।  इन दिनों पिज़्ज़ा, बर्गर,केक और पेस्ट्री में डूब-उतरा रही नयी पीढ़ी ने तो शायद बालूशाही का नाम भी नहीं सुना होगा। इस पीढ़ी को समझाने के लिए हम कह सकते हैं कि बालूशाही हमारे जमाने का मीठा बर्गर था या फिर आज का उनका प्रिय डोनट। समझाने तक तो ठीक है, लेकिन ‘कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली’ वाले अंदाज में कहें तो बालूशाही की बात और अंदाज़ ही निराला है।  मैदे और आटे की देशी घी के साथ गुत्थम गुत्था वाली नूराकुश्ती के बाद उठती सौंधी और भीनी सुगंध और फिर चीनी की चाशनी में इलायची की खुशबू के साथ गोते लग

वे अपने से हैं, सभी के हैं, तभी तो परम प्रिय हैं गणेश…,!!

चित्र
वे खुश मिजाज हैं, बुद्धि, विवेक, शक्ति, समृद्धि, रिद्धि-सिद्धि के दाता हैं, अष्ट सिद्धि और नौ निधि के ज्ञानी हैं, फिर भी उनमें जरा भी घमंड नहीं है, बिलकुल सहज और सरल हैं इसलिए लोकप्रिय है और प्रथम पूज्य भी । भक्तों की रक्षा के लिए वे दुष्टों का संहार करते हैं तो भक्तों की इच्छा पर अपना सर्वत्र देने में भी पीछे नहीं रहते। वे सभी के हैं…सभी के लिए हैं तभी तो परम प्रिय हैं गणेश।    वे सहज हैं, सरल हैं और सर्व प्रिय भी। बच्चों को वे अपने बालसखा लगते हैं तो युवा उन्हें सभी परेशानियों का हल मानते हैं । बुजुर्गों के लिए वे आरोग्यदाता और विघ्नहर्ता हैं तो महिलाओं के लिए सुख समृद्धि देने वाले मंगलमूर्ति। यह देवताओं में तुलना की बात नहीं है लेकिन भगवान गणेश जैसी व्यापक, सर्व वर्ग और हर उम्र में लोकप्रियता ईश्वर के किसी भी अन्य रूप को इतने व्यापक स्तर पर हासिल नहीं है। सभी वर्ग, जाति और उम्र के लोग श्री गणेश को अपने सबसे करीब पाते हैं इसलिए वे लोक देव हैं।    उनकी भक्ति और आराधना के कोई कठोर नियम नहीं हैं। उनकी पूजा में सरलता, सार्वभौमत्व और व्यापक अपील है। आप ढाई दिन पूजिए या दस दिन, मिट्टी से ब