बुधवार, 25 सितंबर 2024

समोसे-कचौरी पर क्यों मेहरबान हैं ‘सरकार’

आप इन दिनों किसी भी सरकारी या गैर सरकारी आयोजन में जाइए, वहां खाने-पीने के नाम पर जो पैकेट दिए जाते हैं या फिर जो सामग्री परोसी जाती है उसमें समोसे, कचौरी, हॉट डॉग, बर्गर और गुलाब जामुन होना सामान्य बात है। वहीं, सामान्य ट्रेन तो छोड़िए वंदे भारत, शताब्दी और राजधानी जैसी प्रीमियम ट्रेनों में भी ब्रेकफास्ट से लेकर खाने तक के मैन्यू में समोसा, कचौरी, आइसक्रीम और गुलाब जामुन मिलना आम है। समोसा कचौरी और आइसक्रीम तो ट्रेन के खानपान का सबसे अनिवार्य हिस्सा है। कोई भी मौसम हो आपको भोजन के साथ दिन हो या रात आइसक्रीम जरूर दी जाएगी। हाल ही में मुझे विज्ञान के आईआईटी-आईआईएम स्तर के एक संस्थान के कार्यक्रम में शामिल होने का मौका मिला। वहां भी अतिथियों से लेकर विद्यार्थियों तक को खाने के नाम पर समोसा, कचौरी, हॉट डॉग और पेटिस जैसी सामग्री परोसी गई । हर सरकारी और प्राइवेट सेक्टर की कैंटीन में समोसा-कचौरी का सबसे अहम स्थान पर बैठकर इठलाना आम बात है। समोसा और कचौरी ही क्यों, गोलगप्पे, चाट, जलेबी, पकोड़े, सैंडविच, केक, ब्रेड, ब्रेड पकौड़े, मोमोज, चाउमिन, पराठे, कटलेट, फ्रेंच फ्राइज़ जैसी तमाम स्वादिष्ट और जीभ ललचाने वाली और जंक फूड परिवार का अभिन्न अंग सामग्रियां हर छोटे बड़े शहर और दफ्तर का अनिवार्य हिस्सा हैं। ये सभी सामग्रियां स्वाद से भरपूर हैं और निश्चित ही यह लेख पढ़ते वक्त आपके मुंह में भी पानी आ रहा होगा लेकिन क्या आप जानते हैं कि तेल, नमक, चीनी और फैट से भरपूर यह खान-पान हमारी सेहत को कितना नुकसान पहुंचा रहा है? सोचिए, जिस देश में मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या करोड़ों में हो और उतनी ही संख्या में लोग बीपी यानी उच्च रक्तचाप से पीड़ित हो वहां ट्रेन से लेकर शैक्षणिक संस्थानों तक और सरकारी आयोजनों से लेकर गैर सरकारी पार्टियों तक में खुलकर जंक फूड परोसा जाता है। हम सब जानते हैं कि जंक फूड का मतलब ऐसे खाने से है जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है। फिर भी न तो इस बात की फिक्र आयोजकों को है और न ही आम तौर पर खाने वालों को। बाजार में तो जंक फूड की दुकानें सजी हुई है। रेहड़ी पटरी से लेकर लक दक मॉल में बड़े बड़े ब्रांड के खान-पान सेंटर तक में इनकी भरमार है। रही सही कसर, पिज़्ज़ा-बर्गर और इसी तरह के अन्य विदेशी खान-पान ने पूरी कर दी है। परिवार के परिवार बिना अपनी सेहत की चिंता किए आए दिन जंक फूड की पार्टियां कर रहे हैं । बाजार का तो समझ में आता है क्योंकि वह मुनाफे के लिए ही काम करता है लेकिन आम लोगों और खासकर शैक्षणिक और सरकारी संस्थाओं का क्या? उन्हें तो कम से कम इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने खान-पान के जरिए आदर्श स्थापित करें। एक और सरकार मोटे अनाज को भगवान का प्रसाद यानी श्रीअन्न कहकर बढ़ावा दे रही है, वहीं उसके ही मातहत संस्थान दिन रात जंक फूड खिलाकर आम लोगों को बीमार बनाने का काम कर रहे हैं।


इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन की रिपोर्ट के अनुसार 20 से 79 साल की उम्र के 463 मिलियन लोग डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित हैं। यह इस आयु वर्ग में दुनिया की 9.3 फीसदी आबादी है। रिपोर्ट कहती है कि चीन, भारत और अमेरिका में सबसे अधिक डायबिटीज के वयस्क मरीज हैं।


2021 के अध्ययन के अनुसार, भारत में 10 करोड़ से ज्यादा लोग मधुमेह से ग्रसित हैं और इतने ही  प्री-डायबिटीज थे, जबकि 31 करोड़ से ज्यादा लोगों को उच्च रक्तचाप था। इसके अलावा, 25 करोड़ से ज्यादा लोग मोटापे का शिकार हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा 2017 में जारी अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, अनुमान है कि भारत में गैर संचारी रोग के कारण होने वाली मौतों का अनुपात 1990 में 37.9 प्रतिशत से बढ़कर 2016 में 61.8 प्रतिशत हो गया है । भारत में मधुमेह और इसके दुष्प्रभावों की वजह से दस करोड़ से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है । जबकि इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन की रिपोर्ट कहती है कि 20-79 आयु वर्ग को होने वाली डायबिटीज के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। 


जिस देश में जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों की स्थिति इतनी भयानक हो और हम फिर भी शौक से हर शादी/पार्टी में जंक फूड ठूंस ठूंस कर खा रहे हैं तो हमारा भविष्य क्या और कैसा होगा,इसका सहज अंदाजा लगा सकते हैं। 2019 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि खराब आहार से वैश्विक स्तर पर तंबाकू की तुलना में ज्‍यादा लोगों की मौत होती है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वयस्‍क किसी न किसी रूप में अस्‍वस्‍थ खा रहे हैं, जिससे कुपोषण जैसी समस्‍याएं बढ़ती जा रही हैं। हमारे आहार में जंक फूड का दायरा इतना बढ़ चुका है कि भारत में 25 प्रतिशत से ज्‍यादा वयस्‍क सप्ताह में एक बार भी हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन नहीं करते। नतीजा वे बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। 


जंक फूड में मैदा और आलू से भी ज्यादा हानिकारक तेल होता है। वही तेल, जिसमें डूबते उतराते समोसे-कचौरी और ब्रेड पकौड़े देखकर हमारी लार टपकने लगती  है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया) के अनुसार एक बार खाद्य तेल के प्रयोग के बाद दोबारा उपयोग करने से कैंसर जैसी बीमारी का खतरा रहता है। तेल को बार-बार गर्म करने से धीरे-धीरे फ्री रेडिकल्स बनने से एंटी आक्सीडेंट की मात्रा खत्म होने लगती है। इसमें खतरनाक कीटाणु जन्म लेने लगते हैं, जो खाने के साथ चिपक कर हमारी सेहत को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे बॉडी में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा भी तेजी से बढ़ जाती है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण की गाइडलाइन के अनुसार खाद्य तेल को तीन बार से ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए । लेकिन घर से लेकर बाजार तक एक ही तेल का बार बार इस्तेमाल सामान्य बात है और मजे की बात यह है कि नियम जो भी हों परंतु तेल के बार बार उपयोग पर किसी को आपत्ति नहीं है।


भारत में जंक फूड के उत्पादन और 22सेबिक्री को नियंत्रित करने वाले कोई विशेष कानून नहीं हैं। देश में खाद्य उत्पादों की सुरक्षा और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ही जिम्मेदार है। हालांकि, जंक फूड से संबंधित नियम इसके उपभोग से संबंधित बढ़ती चिंताओं को दूर करने के लिए पर्याप्त व्यापक नहीं है। प्राधिकरण ने उच्च वसा, नमक और चीनी वाले खाद्य पदार्थों की बिक्री और विपणन के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि ऐसे खाद्य पदार्थों को स्कूलों के 50 मीटर के भीतर बेचा या विज्ञापित नहीं किया जा सकता है, और इन खाद्य पदार्थों के विज्ञापन टेलीविजन पर बच्चों के कार्यक्रमों के दौरान प्रसारित नहीं किए जा सकते हैं। हालाँकि, ये दिशा-निर्देश स्वैच्छिक हैं, और इनका पालन न करने पर कोई दंड नहीं है। इसलिए सबसे जरूरी है कि जंक फूड को स्वाद के साथ सेहतमंद बनाने के लिए कुछ अनिवार्य कानूनी पहल होनी चाहिए मसलन कुछ देशों में शुरुआत हुई है जैसे कोलंबिया में ऐसे खाद्य पदार्थों पर टैक्स की दर बढ़ा दी गई है। द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, प्रभावित खाद्य पदार्थों पर अतिरिक्त टैक्‍स 10 फीसदी से शुरू होगा, जो अगले साल बढ़कर 15 प्रतिशत हो जाएगा और 2025 में 20 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। हेल्थ पॉलिसी वॉच वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, टैक्‍स के दायरे में ऐसे सभी अल्ट्रा-प्रोसेस्‍ड फूड शामिल किए गए हैं, जिनमें ज्‍यादा चीनी, नमक और सैचुरेटेड फैट , सॉसेज, अनाज, जेली और जैम, प्यूरी, सॉस और मसाला शामिल हैं। मैक्सिको जैसे कुछ अन्य देशों में भी कदम उठाए गए हैं लेकिन हम नियमों और जागरूकता के अभाव में अपने पेट को बीमारियों की गोदाम और देश को बीमारियों का गढ़ बना रहे हैं।


 क्या हम खानपान में कुछ अभिनव प्रयास नहीं कर सकते!! खासतौर पर ट्रेन, स्कूल कालेज की कैंटीन,सरकारी दफ्तरों की कैंटीन और सरकारी आयोजनों में मोटे अनाज से बने सेहतमंद खाद्य पदार्थ ही उपलब्ध हों, ट्रेन में शाकाहारी/मांसाहारी खाने की चॉइस के साथ साथ मधुमेह और उच्च रक्तचाप वाले लोगों के लिए अलग खाना परोसा जाए और समोसे कचौरी या आइसक्रीम को सरकारी मैन्यू से पूरीतरह बाहर कर दिया जाए। मैदे के बिस्किट और कुकीज़ को आटे या श्रीअन्न से बनाया जाए और ट्रेन/कैंटीन में पोहा,उपमा, इडली सांभर, बाजरे की खिचड़ी, चीला जैसे लज़ीज़ और सेहतमंद खानपान को शामिल किया जाए। पहले ही हम बहुत देर कर चुके हैं,यदि अभी भी जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो हमारे साथ साथ नई पीढ़ी भी बीमार बनती जाएगी और आने वाले सालों में हमारा युवा ‘डिविडेंड’ के स्थान पर देश के लिए बोझ बन जाएगा।


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