“जुगाली” समाज में आमतौर पर व्याप्त छोटी परन्तु गहराई तक असर करने वाली बुराइयों, कुरीतियों और समस्याओं पर ‘बौद्धिक विलाप’ कर अपने मन का बोझ हल्का करने और अन्य जुगाली-बाज़ों के साथ मिलकर इन बुराइयों को दूर करने के लिए एक अभियान है. आप भी इस मुहिम का हिस्सा बनकर बदलाव के इस प्रयास में भागीदार बन सकते हैं..
बुधवार, 25 सितंबर 2024
आइए, मेघा रे मेघा रे...के कोरस से करें 'मानसून' का स्वागत
मेघा रे मेघा रे...सुनते ही आँखों के सामने प्रकृति का सबसे बेहतरीन रूप साकार होने लगता है, वातावरण मनमोहक हो जाता है और पूरा परिदृश्य सुहाना लगने लगता है। भीषण गर्मी और भयंकर तपन, उमस, पसीने की चिपचिपाहट के बाद मानसून हमारे लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण प्रकृति,जीव जंतु और पक्षियों के लिए एक सुखद अहसास लेकर आता है। मई की चिलचिलाती गर्मी के साथ ही पूरा देश मानसून की बात जोहने लगता है और जैसे जैसे मानसून के करीब आने का संदेशा मिलता है मन का मयूर नाचने लगता है। पहली बारिश की ठंडक भरी फुहारों में भीगते लोग, पानी में धमा-चौकड़ी करती बच्चों की टोली, झमाझम बारिश के बीच गरमागरम चाय पकौड़े, कोयले की सौंधी आंच पर सिकते भुट्टे....क्या हम इससे अच्छे और मनमोहक दृश्य की कल्पना कर सकते हैं। वैसे भी,भारत में मानसून आमतौर पर 1 जून से 15 सितंबर तक 45 दिनों तक सक्रिय रहता है और देश के ज्यादातर राज्यों में दक्षिण-पश्चिम मानसून ने दस्तक दे दी है। समुद्र की ओर बढ़ते मेघ जल की लहरों के साथ मिल जाते हैं, जो एक स्थल की खूबसूरती को दोगुना कर देते हैं। उनके संगम पर सूरज की किरणों का खेल, उनकी तेज रोशनी और चांद की रोशनी के साथ एक अद्वितीय और अविस्मरणीय दृश्य बनाता है। मेघों की सुंदरता को वर्णित करना कठिन है, क्योंकि वे प्राकृतिक रूप से बेहद आकर्षक, खूबसूरत और चमकीले होते हैं। मेघों का गगन में आवरण, उनकी बृहत्ता, और उनके रूपांतरण की रौनक देखकर आत्मा को अद्वितीय सुंदरता का अनुभव होता है। मेघों की उच्चता, गहराई, और उनकी चलने की गति से हमें व्यापकता का अनुभव होता है, जो हमें अद्भुतता का अनुभव देता है।मेघों के रंग, आकार और आकृति उन्हें एक अनूठी पहचान देती है। मेघों की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है, क्योंकि वे वर्षा की सूचना देते हैं और प्राकृतिक प्रक्रियाओं का एक अभिन्न हिस्सा हैं। इसके अलावा, मेघों शांति और संतोष की भावना पैदा करता है। मानसून के आगमन से धरती का चेहरा बदल जाता है। यह एक ऐसा अवसर होता है जब वायु में ठंडक आ जाती है और वातावरण प्राकृतिक सौंदर्य से भर जाता है। मानसून भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो जीवन को नई ऊर्जा और उत्साह से भर देती है। मानसून के दौरान धरती खूबसूरत हो जाती है क्योंकि वर्षा से प्राकृतिक रंग-बिरंगी वनस्पतियों की खूबसूरती और बढ़ जाती है। पेड़-पौधों का हरा रंग और फूलों की विविधता धरती को विशेष रूप से आकर्षक बनाती है। इसके साथ ही, मानसून के समय में धरती पर बरसने वाली वर्षा से प्राकृतिक जल स्रोतों की चमक बढ़ जाती है, जो नदियों और झीलों को जीवंत करती है। इस प्रकार, मानसून के समय में धरती की सुंदरता और जीवनशैली में विविधता बढ़ जाती है। मानसून हमेशा ही फिल्मों,कवियों और संगीतकारों का पसंदीदा विषय रहा है। हिंदी फिल्मों में किसी समय में बारिश के गीत के बिना फिल्म पूरी ही नहीं होती थी। सुपर स्टार अमिताभ बच्चन से लेकर हेमा मालिनी तक और माधुरी दीक्षित-श्रीदेवी से लेकर रवीना टंडन तक ने बारिश पर केन्द्रित सुपरहिट गीत प्रस्तुत किये हैं। इन गीतों ने मानसून के उल्हास व उन्माद को सुन्दर शैली में प्रदर्शित किया है। उनमें प्रदर्शित भावनाएं हमारे हृदय को छू जाती हैं। बचपन में वर्षा के बीच छप-छप से लेकर प्रेम में सराबोर प्रेमीजोड़ों की एक दूसरे से मिलने की तड़प तक और मानसून की बाट जोहते किसानों के बूंदे देखते ही उल्हास में परिवर्तित होते भावों को हिंदी फिल्मों के गीतों में मनमोहक चित्रण देखने को मिलता है। इन सदाबहार गीतों से तन के साथ-साथ मन भी भीग जाता है। जैसे गीत प्यार हुआ इकरार हुआ..., हाय हाय ये मजबूरी ये मौसम और ये दूरी..,इक लड़की भीगी भागी..,जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात..., काटे नहीं कटते, ये दिन ये रात...,लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है.., रिमझिम रिमझिम, रूमझुम रूमझुम...,कोई लड़की है जब वो हंसती है .., अब के सावन.., घनन घनन जब घिर आये बदरा.., बरसों रे मेघा मेघा..., आज रपट जाएं तो हमें न उठइयो..., भीगी भीगी रातों में..., टिप टिप बरसा पानी.. और जो हाल दिल का, इधर हो रहा है.. जैसे लोकप्रिय, कर्णप्रिय, दर्शनीय और मनमोहक गीतों के बिना इन फिल्मों की कल्पना की जा सकती है। बारिश पर कविताएँ हमेशा ही रोमांटिक होती हैं और तमाम नामी कवि भी बारिश के आकर्षण से बच नहीं सके हैं जैसे हरिवंश राय बच्चन ने बादल घिर आए कविता में लिखा है: बादल घिर आए, गीत की बेला आई। आज गगन की सूनी छाती भावों से भर आई, चपला के पांवों की आहट आज पवन ने पाई, बादल घिर आए, गीत की बेला आई। वहीं,बारिश की बूंदे कविता में कंचन अग्रवाल लिखती हैं: छम छम पड़ती बारिश की बूंदे, भले ही बैरंग होती हैं l लेकिन जब धरती पर पड़ती हैं, तो उसका रंग निखार देती हैं l टप टप पड़ता बारिश का पानी, जब धरती की मिट्टी को गले लगाता है l इस अदृश्य मिलाप से धरती का रंग, कुछ ही दिनों में हरा भरा हो जाता है। वहीँ, सुप्रसिद्ध गीतकार कवि गुलज़ार बारिश होती है तो कविता में कहते हैं: बारिश होती है तो पानी को भी लग जाते हैं पाँव दर-ओ-दीवार से टकरा के गुज़रता है गली से और उछलता है छपाकों में किसी मैच में जीते हुए लड़कों की तरह मानसून भारतीय मौसम का एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह वर्षा के मौसम को संदर्भित करता है जो भारतीय उपमहाद्वीप में जुलाई से सितंबर तक चलता है। मानसून भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए तो और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह फसलों के लिए पानी प्रदान करता है और खेती को समृद्धि प्रदान करता है। मानसून देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग समय में प्रारंभ होता है और उसकी उस इलाके के हिसाब से अलग अलग विशेषताएं भी होती हैं। मानसून के आने से पहले, हवा ऊपरी समुद्री सतह पर संग्रहित गर्म होती है, और जब यह हवा स्थलीय तापमान से ठंडी होती है, तो वह वर्षा के रूप में गिरती है। मानसून दो प्रकार के होते हैं: उत्तरी मानसून और दक्षिणी मानसून। भारत में, उत्तरी मानसून गर्मियों में होता है जबकि दक्षिणी मानसून शीतकाल में होता है। भारत में बारिश की मात्रा क्षेत्र और समय के आधार पर भिन्न होती है। कुछ क्षेत्रों में अधिक बारिश होती है जबकि कुछ में कम। विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा की सामान्य मात्रा 500 मिमी से 3000 मिमी तक हो सकती है। उत्तर पश्चिमी और पूर्वी भारत में, बारिश का समय और मात्रा भी अलग-अलग होता है। हालांकि, मानसून के साथ हादसे भी आते हैं, जैसे की बाढ़ और चक्रवात। इन हादसों से नुकसान होता है, जिससे लोगों को पीड़ा और परेशानी का सामना करना पड़ता है। पूर्वी भारत और खासतौर पर बिहार,असम में तो मानसून जीवन मरण का कारण बन जाता है। लेकिन मानसून के न होने से खेतों में पानी की कमी हो सकती है, जिससे फसलों का प्रभावित हो सकता है और खेती पर असर पड़ सकता है। इसी तरह, मानसून के न होने से पानी की कमी हो सकती है, जो पीने के पानी और सामान्य उपयोग के लिए अधिकतम विपरीत प्रभाव डाल सकती है। मानसून के न होने से जलवायु परिवर्तन हो सकता है, जैसे कि तापमान में वृद्धि, सूखा, और वनों में पेड़ों की असामयिक मृत्यु। मानसून के न होने से सबसे ज्यादा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है, क्योंकि खेती, पर्यटन, उत्पादन और अन्य क्षेत्रों में व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। जिसका असर देश की अर्थव्यवस्था और विकास पर भी पड़ सकता है...इसलिए मानसून हमारे लिए सबसे जरुरी है तो आनंद लीजिये मानसून का,रिमझिम फुहारों का और प्रकृति के बदलते नज़रों का। छतरियां हटाके मिलिए इनसे। ये जो बूंदे हैं, बहुत दूर से आईं हैं।।
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