महात्मा गाँधी से जुड़ा एक मशहूर किस्सा है.उनके पास एक महिला अपने बच्चे को लेकर आई .महिला ने बताया कि उसका बेटा बहुत ज्यादा गुड़ खाता है और वह उसकी इस आदत को छुड़ाना चाहती है.मैंने सुना है कि यदि गांधीजी किसी को समझा दे तो वह एक ही बार में अपनी बुरी आदत छोड़ देता है इसलिए मैं इसे आपके पास लेकर आयीं हूँ.गांधीजी ने उस महिला से कहा कि वह एक हफ्ते बाद आये.बापू की बात मानकर महिला चली गयी और सप्ताह भर बाद पुनः आई.गांधीजी ने उसके बेटे को गुड़ की अच्छाई और बुराइयां दोनों बताई और ज्यादा गुड़ नहीं खाने की सलाह दी.महिला के जाने के बाद उनके एक शिष्य ने पूछा-बापू यह बात तो आप हफ्ते भर पहले भी बता सकते थे तो फिर आपने महिला को सप्ताह भर बाद क्यों बुलाया था?गांधीजी ने उत्तर दिया-दरअसल हफ्तेभर पहले तक मैं खुद भी गुड़ खाता था.जो काम मैं खुद कर रहा हूँ तो दूसरे को कैसे मना कर सकता हूँ.सप्ताह भर में मैंने अपनी गुड़ खाने की आदत को त्याग दिया इसलिए उस बच्चे को भी ऐसा कर पाने की बात आत्मविश्वास के साथ समझा पाया लेकिन हमारा मीडिया बापू की तरह महान नहीं है.वह जो काम खुद करता है वही दूसरों को करने से रोकता है.
आपको याद होगा कि पिछले दिनों एक न्यूज़ चैनल ने एक स्टिंग आपरेशन कर यह साबित किया था कि दिल्ली अब महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं रह गयी है और दिल्ली के पुरुषों के पास महिलाओं-युवतियों को घूरने के अलावा और कोई काम नहीं हैं.चैनल ने अपनी एक रिपोर्टर युवती को माडलों के अंदाज़ में सजा-धजा कर राजधानी के कई इलाकों में खड़ा कर दिया और अपने कैमरे लगाकर आते-जाते लोगों की गतिविधियाँ रिकार्ड की,इसके बाद अपने चैनल पर बताया कि देखो दिल्ली वाले कैसे हैं,युवतियों को कैसे घूर-घूरकर देखते हैं?जहाँ तक मेरी जानकारी है तो दिल्ली को तो दिलवालों का शहर कहा जाता है .अब दिलवाले ही दिल्लगी नहीं करेंगे तो फिर कौन करेगा.खैर यह तो हुई मज़ाक की बात पर हक़ीक़त में सवाल यह है कि आम लोगों में महिलाओं और युवतियों के प्रति खुलेआम आकर्षण के प्रदर्शन की आदत किसने डाली? इसी मीडिया ने और किसने.आप किसी भी दिन का हिंदी-अंग्रेज़ी का समाचार पत्र उठा लीजिये या फिर दिन भर में कोई भी न्यूज़ चैनल देख लीजिये महिलाओं की बेहूदा एवं उल-ज़लूल तस्वीरों के अलावा होता क्या है?अंग्रेज़ी के अखब़ार तो विदेशी समाचार पत्रों की नक़ल अपना अधिकार मानते हैं इसलिए देशी-विदेशी महिलाओं की लगभग नग्न तस्वीरें और सेक्स से जुड़ी गोसिप छापना अपना कर्तव्य मानते हैं.वहीँ हमारे हिंदी के अखब़ार भी अंग्रेज़ी न्यूज़ पेपरों से कमतर नहीं दिखने के लिए उनके पिछलग्गू बने हुए हैं इसलिए मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता परोस रहे हैं.अब समाचार पत्रों के साथ साप्ताहिक आने वाले मनोरंजक परिशिष्ट दैनिक हो गए हैं.जिनमे सिवाय फ़िल्मी चित्रों के कुछ नहीं होता.न्यूज़ चैनलों का तो और भी बुरा हाल है उनका तो अधिकतर वक्त राखी सावंत,मल्लिका सहरावत,सर्लिन चोपड़ा के चुम्बन-नग्नता और फूहड़ कारनामों के बखान में ही बीतता है.कभी डांस शो के नाम पर तो कभी द्विअर्थी कामेडी के नाम पर तो कभी ख़बर के नाम पर वे खुलेआम अश्लीलता परोसते रहते हैं.
मीडिया के महिला प्रेम के नवीनतम उदाहरण माडल विवेका बाबाजी की आत्महत्या और दिल्ली विश्वविध्यालय के एडमिशन हैं.जब विवेका ने आत्महत्या की तब भोपाल गैस कांड के पीड़ितों के साथ अन्याय की बात सुर्ख़ियों में थी लेकिन विवेका की ग्लैमरस स्टोरी हाथ आते ही न्यूज़ चैनल गैस पीड़ितों का दर्द भूल गए और दिन-रात विवेका की माडलिंग वाली अर्धनग्न तस्वीरें दिखाने लगे.वहीँ दिल्ली यूनिवर्सिटी के एडमिशन के दौरान तो ऐसा लगता है मानो यहाँ केवल लड़कियां ही पढने आती हैं.इन दिनों सारे अखब़ार और चैनल युवतियों के चेहरों,कपड़ों,फैशन,बैग,जूतों की समीक्षा में जुट जाते हैं.खासतौर पर उन युवतियों को अखबारी पन्नों और न्यूज़ चैनलों में खूब जगह मिलती है जिन्होंने छोटे कपडे पहने हों.इस दौरान बेचारे लड़के तो गायब ही हो जाते हैं?वे कितनी भी फैशन कर ले पर टीवी कैमरों को अपनी और नहीं खींच पाते और लड़कियां कुछ भी पहन ले अखब़ार में फोटो छपवा लेने में कामयाब हो जाती हैं.जब मीडिया खुद ही इसतरह का पक्षपात कर रहा हो तो फिर उसे यह कहने का क्या हक़ है कि पुरुष बस महिलायों को घूरते रहते हैं?पहले आप अपने गिरेबान में तो झाँकों और अपना खुद 'स्टिंग आपरेशन' करके देखो फिर पूरे पुरुष समाज को कटघरे में खड़ा करो?हो सकता है कुछ मात्रा ऐसे पुरुषों की हो जो वाकई में "छिछोरे" हो पर सभी पुरुषों पर अंगुली उठाना,वह भी जब आप खुद वही काम कर रहे हैं ,तो ठीक नहीं है?
सलीम ख़ान, July 23, 2010 5:28 PM
sahmat !!
media kii maan ki aankh !!
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’, July 23, 2010 5:47 PM
सही कहा आपने, साचने की बात है।
………….
ये ब्लॉगर हैं वीर साहसी, इनको मेरा प्रणाम
anshumala, July 23, 2010 5:51 PM
आपकी बात से सहमत हु
अच्छी पोस्ट
वाणी गीत, July 24, 2010 5:46 AM
Nice Post ..!
“जुगाली” समाज में आमतौर पर व्याप्त छोटी परन्तु गहराई तक असर करने वाली बुराइयों, कुरीतियों और समस्याओं पर ‘बौद्धिक विलाप’ कर अपने मन का बोझ हल्का करने और अन्य जुगाली-बाज़ों के साथ मिलकर इन बुराइयों को दूर करने के लिए एक अभियान है. आप भी इस मुहिम का हिस्सा बनकर बदलाव के इस प्रयास में भागीदार बन सकते हैं..
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