"हम भारत के लोग…!!"
हमारे संविधान की प्रस्तावना की शुरुआत ही इन शब्दों से होती है, ‘हम भारत के लोग’..। हम भारत के लोग वाकई अद्भुत हैं और अलग भी। हमें समझना आसान नहीं है पर हमसे जुड़ना बहुत सरल है क्योंकि हम सहज हैं। शायद तभी ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ फिल्म में गीतकार ने लिखा है:
हम भारत के लोग… वाकई दुनिया से अलग हैं और शायद इसी वजह से पूरी दुनिया में कभी भी-कहीं भी घुल मिल जाते हैं और मौका मिलते ही उस देश के रंग में पूरी तरह मिलकर वहीं बस तक जाते हैं लेकिन फिर भी अपनी पहचान का सबसे गाढ़ा रंग सहेजकर रखते हैं यह रंग है भारतीयता का और उदघोष है हम भारत के लोग का। हम, अमेरिका में भी भारतीय बने रहते हैं और कई बार भारत में भी ‘मेड इन यूएसए’ (उल्लासनगर सिंधी एसोसिएशन) जैसा कारनामा कर दिखाते हैं। हम इतने बेफिक्र हैं कि कारगिल पर पाकिस्तानी घुसपैठियों को नजर अंदाज़ करते रहते हैं लेकिन जब उन्हें मारकर बाहर निकालने की ठान लेते हैं तो फिर ‘ये दिल मांगे मोर’ को जयघोष बनाकर उन्हें कारगिल की उन्हीं बर्फीली चोटियों पर दफन करके ही छोड़ते हैं। हम हफ्तों तक सुरंग में दिन गुजारने का हौंसला रखते हैं और इसके उलट मामूली सी परेशानी में भी घबराकर पूरे परिवार के साथ आत्महत्या करने जैसा दुस्साहस भी कर डालते हैं।
हम भारत के लोग..दुनिया भर के लोगों से वाकई अलग हैं। यही वजह है कि कोरोना संक्रमण के भीषण दौर में भी हम बिंदास होकर बीमारी से नहीं बल्कि पुलिस से बचने के लिए मास्क लगाते थे जैसे आज भी बाइक पर हेलमेट और कार में सीट बेल्ट बस पुलिस को दिखाने के लिए लगाते हैं। हम हेलमेट भी सुरक्षा की दृष्टि से कम फैशन के लिहाज से ज्यादा खरीदते हैं। लेकिन हमारा यही खिलंदड़पन हमें कोरोना के भीषणतम संक्रमण से भी बचा ले जाता है। यह हमारी सहजता ही है कि हम वायरस को ताली,थाली और दिए से भी भगाते हैं और फिर वैक्सीन लगवाने में भी दुनिया में रिकार्ड बना देते हैं। हम देशसेवा से लेकर समाजसेवा का ज्ञान देने में कभी पीछे नहीं रहते लेकिन जब उस पर अमल करने की बारी आती है तो हम उम्मीद करते हैं कि शुरुआत पड़ोसी के घर से हो।
हम भारत के लोग…वाकई,सबसे अलग हैं तभी तो स्वच्छता अभियान में जी जान से जुट जाते हैं और अपने शहर को नंबर वन बनाने में भी पीछे नहीं रहते लेकिन अगले ही पल उस दीवार को पान गुटखे की पीक से जरूर रंगते हैं जहां लिखा होता है कि ‘यहां थूकना मना है’। दीवारों को गीला करने में तो हमारा कोई सानी नहीं है। हम अन्न की बरबादी पर ज्ञान पेलने में सबसे आगे रहते हैं लेकिन किसी शादी-ब्याह में प्लेट भरकर खाना लेकर छोड़ देना हमारी फितरत का हिस्सा है। हम अपनी बेटी की शादी में दहेज के विरोधी हैं लेकिन बेटे की शादी में भरपूर दहेज की उम्मीद करते हैं। आपदा के समय हम घर के जेवर तक दे देते हैं, जरूरतमंदों के लिए खाने-पीने से लेकर जूते चप्पल तक जुटा लेते हैं और फिर स्थिति सामान्य होते ही मनमाना मुनाफा कमाने से भी नहीं चूकते। तभी तो फिल्म ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ के गीत की पंक्तियां आगे कहती है:
“अपनी छतरी तुमको दे दे
कभी जो बरसे पानी
कभी नए पैकट मे बेचे
तुमको चीज पुरानी।”
हम भारत के लोग…सबसे जुदा हैं तभी तो एक सौ चालीस करोड़ की आबादी में महज तीन फ़ीसदी लोग ही टैक्स देना जरूरी समझते हैं और यहां चार्टर्ड एकाउंटेंट का काम वित्तीय लेनदेन में ईमानदारी से ज्यादा टैक्स बचाने के नुस्खे बांटना है लेकिन सार्वजनिक सुविधाओं में कमी के लिए सरकार को कोसने में सबसे आगे रहते हैं। हम क्रिकेट पर जान छिड़कते हैं और विश्व कप में हार पर ‘राष्ट्रीय मातम’ मनाते हैं लेकिन अगले ही दिन मिली जीत पर पटाखे चलाने से भी नहीं चूकते। हम प्रदूषण के खिलाफ़ खुलकर बोलते हैं पर अंधेरे में सड़क पर कचरा फेंकने या फिर सड़कों पर कानफोडू हॉर्न बजाने को अपना अधिकार समझते हैं। हम बच्चों को आदर्श नागरिक बनाना चाहते हैं लेकिन अगले ही पल ‘कह दो पापा घर पर नहीं हैं’ जैसे झूठ बोलने से या बच्चों के सामने सिग्लन जंप करने से परहेज नहीं करते।
हम भारत के लोग… सब कुछ हो सकते हैं झूठे,मक्कार,लालची,बिकाऊ,स्वार्थी सब कुछ,लेकिन जब बात लोकतंत्र की मजबूती की हो तो हम पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अपनी समझ से अच्छे अच्छे राजनीतिक पंडितों के होश उड़ा देते हैं।..और जब बात देश की आन-बान-शान की हो तो ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,झंडा ऊंचा रहे हमारा’ का नारा देश का मंत्र बन जाता है। फिल्म ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ के गीत की ये पंक्तियां हम भारत के लोगों पर सटीक बैठती हैं:
“थोड़ी मजबूरी है लेकिन
थोड़ी है मनमानी
थोड़ी तू तू मै मै है
और थोड़ी खींचा तानी
हम में काफी बाते हैं
जो लगती है दीवानी।”
हम भारत के लोग…वाकई,दीवाने हैं, विरले हैं, सबसे अलग हैं पर जैसे भी हैं सबसे अच्छे हैं। (28 Nov 2023)
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