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ये चमक, ये दमक, फूलवन में महक, सब कुछ सरकार तुम्हई से है..।

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यह उन दिनों की बात है…90 का दशक था और हम मध्यप्रदेश के संस्कारधानी के नाम से मशहूर जबलपुर शहर के नामी शासकीय मॉडल विज्ञान कॉलेज से फूल पत्तियों से जुड़े विषय वनस्पति विज्ञान (बॉटनी) में एमएससी की अंतिम परीक्षा देकर बनी बनाई लकीर पर चलते हुए एम फिल और फिर  पीएचडी के सपने बुन रहे थे। सब कुछ ठीक था, अंक भी अच्छे थे,विषय भी और वातावरण भी अनुकूल था लेकिन फिर भी मन में एक बेचैनी थी..मन कुछ और करना चाहता था..कुछ लीक से हटकर। लेकिन पता नहीं था कि क्या और कैसे?   तभी अचानक एक दिन अखबार में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता संस्थान का विज्ञापन प्रकाशित हुआ। आज के विद्यार्थियों के लिए संस्थान शब्द अचरज लग सकता है क्योंकि उनके लिए तो यह विश्वविद्यालय है। वे भी सही हैं और हम भी क्योंकि उन दिनों यह संस्थान ही था, विश्वविद्यालय बाद में बना।  खैर, इस विज्ञापन में जनसंपर्क और पत्रकारिता के दो पाठ्यक्रमों के लिए 20-20 सीटों पर देश भर से आवेदन आमंत्रित किए गए थे । पहली बात तो यह है कि यह प्रदेश में अपनी तरह का पहला संस्थान था और दूसरा इसमें जनसंपर्क जैसा बिल्कुल नया पाठ्यक्रम प्रस...

सायोनारा भोपाल…अल्पविराम के बाद फिर रचेंगे किस्सों का नया संसार!!

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मेरे लिए भी यह बहुत ही भावुक और खास पल हैं। जिस शहर में पत्रकारिता का ककहरा सीखा, जहां ‘जब हम जवां होंगे..’ से ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे.. ‘ मार्का दिन गुजारे..उसे कैसे छोड़कर जा सकते हैं?   जहां दोस्ती और रिश्तों को सतत संवाद के साथ बुना-गढ़ा और निरंतर मुलाकात की खाद-पानी से जीवंत बनाए रखा..उस शहर एवं वहां बने रिश्तों के ताने बाने से बाहर निकलना आसान कैसे हो सकता है ?   भोपाल ने पहली नौकरी से लेकर नौकरी की अंतिम पंचवर्षीय पारी के पहले तक फ्रंट फुट पर खुलकर बल्लेबाजी करने का मौका दिया …उस महबूब शहर भोपाल से फिर कुछ साल दूर जाना वाकई मुश्किल है।  दरअसल, नौकरी की अपनी सीमाएं, दुश्वारियां, परिवार की जरूरत और शहर से प्यार के बीच के उलझे धागों को सुलझाना आसान नहीं है । शहर और परिवार में से किसी एक को चुनना तो और भी जटिल था..काफी सोच विचारकर मैंने परिवार चुना और शायद कोई भी भावनात्मक व्यक्ति यही करता।  वैसे भी, शहर तो स्थायी है,कायम है ही अपनी जगह पर,लेकिन परिवार के सदस्यों की जरूरत समय के साथ घटती बढ़ती रहती है और जब बात इकलौती बिटिया के स्नेह एवं साथ की हो तो...

शिमला: प्रेम की कविता सा अहसास

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‘क्वीन ऑफ हिल्स’ के नाम से विख्यात शिमला इन दिनों घनी धुंध और अल्हड़ बादलों की एक अलौकिक चादर में लिपटी हुई है, मानो प्रकृति ने इस पहाड़ी नगर को अपने रोमांटिक रहस्य में छिपा लिया हो। ऐसा लगता है जैसे स्वप्नदर्शी निर्देशक राज कपूर ने अपनी फिल्म राम तेरी गंगा मैली का लोकप्रिय गीत कोहरे की चादर लपेटे हूं.. इसी शहर से प्रेरित होकर फिल्माया था। यहां की यह अनूठी सुंदरता पर्यटकों और इस स्वनिल आभाष से अनजान हम जैसे लोगों को एक अलग ही दुनिया का अहसास कराती है। शहर की ढलान वाली सड़कों पर बने घरों की लाल और हरी छतें कोहरे की सफेद परतों से ढककर दूर से देखने पर किसी काल्पनिक चित्र की तरह प्रतीत होती हैं। ये घर, पुराने औपनिवेशिक आकर्षण के साथ, कोहरे में तैरते हुए एक ऐसी शांति और गहराई पैदा करते हैं, जो  सीधे दिल को छू जाती है। हवा में फैली हल्की ठंडक और नटखट बादलों से जन्म लेती रिमझिम फुहारें चेहरे को हौले से छूकर हनीमून के लिए आए प्रेमियों के लिए रोमांटिक माहौल रच देती हैं । रिज पर चर्च के सामने दिन भर हाथों में हाथ डाले प्रेमी जोड़े जमा रहते हैं। उनके पीछे शिमला का मशहूर चर्च कोहरे से ढका हुआ ...

स्वर्ण जयंती अंदाज कुछ इस तरह का हो !!

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आज 10 जुलाई 2025 को मनीषा जी का 50वां जन्मदिन है..स्वर्ण जयंती वर्ष..जीवन की साझा स्वर्णिम यादों का साल और हमारे रजत जयंती साथ का सुनहरा अध्याय। मनीषा जी सिर्फ मेरी पत्नी ही नहीं, बल्कि हमारे परिवार की धुरी हैं, उन्होंने प्यार, त्याग और समर्पण से हमारे घर को स्वर्ग बनाया है। यह दिन केवल उम्र का उत्सव नहीं, बल्कि मनीषा जी के अनमोल योगदान का सम्मान है। मनीषा जी मेरे जीवन की वह रोशनी हैं, जिन्होंने हर अंधेरे को दूर किया। आधी सदी का यह सफर एक अनमोल तोहफा है। तुम्हारी मुस्कान, तुम्हारी हिम्मत, और तुम्हारा अटूट प्यार हमेशा प्रेरणा का स्रोत रहा है। तुम्हारी छोटी-छोटी बातें—सुबह की चाय में तुम्हारा प्यार, खाने में मिठास, पल पल का साथ, कठिन दिनों में तुम्हारा धैर्य और हर खुशी में तुम्हारा साथ—ये सब मेरे जीवन की सबसे अनमोल यादें हैं। तुमने मेरे साथ हर चुनौती को मुस्कुराते हुए अपनाया है। इन 50 वर्षों में मनीषा जी ने हर भूमिका—माँ, पत्नी, बहू, और दोस्त—को इतने प्यार और जिम्मेदारी से निभाया कि हम सभी कायल हैं। इनकी हंसी बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाती है, और धैर्य मुश्किल वक्त में हिम्मत देता है। ह...

न्यूजरूम परिवार के नाम एक पाती

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  मेरे न्यूजरूम परिवार के सभी प्रिय सदस्यों, सभी को नमस्कार मजरूह सुल्तानपुरी  मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया आज मेरे लिए एक ऐसा क्षण है, जो मन में मिश्रित भावनाओं का तूफान लिए हुए है—खुशी, गर्व, और कहीं न कहीं एक हल्की-सी उदासी। सात साल पहले जब मैंने इस दफ्तर में कदम रखा था, तब यह स्थान मेरे लिए सिर्फ एक कार्यस्थल था। लेकिन आप सभी ने इसे मेरे लिए एक घर बना दिया, एक ऐसा परिवार जहाँ हर दिन नई सीख, हँसी, और अपनत्व का एहसास हुआ। आज, जब मैं ट्रांसफर के साथ एक नए सफर की ओर बढ़ रहा हूँ, तो यह विदाई मेरे लिए उतनी ही मुश्किल है, जितनी किसी अपने को अलविदा कहना। इन सात सालों में हमने मिलकर अनगिनत चुनौतियों का सामना किया। चाहे वो डेडलाइन का दबाव हो, प्रोजेक्ट्स की जटिलताएँ हों, या फिर नई योजनाओं को आकार देना हो—आप सभी का साथ मेरे लिए एक ढाल की तरह रहा। कॉफी ब्रेक में की गई हल्की-फुल्की बातें, लंच टाइम की वो छोटी-छोटी कहानियाँ, और उत्सवों में एक साथ नाचना-गाना—ये वो पल हैं जो मेरे दिल में हमेशा जिंदा रहेंगे। आप में से हर एक ने मुझे कुछ न कुछ सिखाय...

अभिशाप नहीं,सीधे संवाद का सटीक माध्यम है भी सोशल मीडिया

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इन दिनों इलेक्ट्रानिक मीडिया खासकर न्यूज़ चैनलों और सोशल मीडिया को खरी-खोटी सुनाना एक फैशन बन गया है. मीडिया की कार्यप्रणाली के बारे में ‘क-ख-ग’ जैसी प्रारंभिक समझ न रखने वाला व्यक्ति भी ज्ञान देने में पीछे नहीं रहता. हालाँकि यह आलोचना कोई एकतरफा भी नहीं है बल्कि टीआरपी/विज्ञापन और कम समय में ज्यादा चर्चित होने की होड़ में कई बार मीडिया भी अपनी सीमाएं लांघता रहता है और निजता और सार्वजनिक जीवन के अंतर तक को भुला देता है. वैसे जन-अभिरुचि की ख़बरों और भ्रष्टाचार को सामने लाने के कारण न्यूज़ चैनल तो फिर भी कई बार तारीफ़ के हक़दार बन जाते हैं लेकिन सोशल मीडिया को तो समय की बर्बादी तथा अफवाहों का गढ़ माना लिया गया है.  आलम यह है कि सोशल मीडिया पर वायरल होते संदेशों के कारण अब ‘वायरल सच’ जैसे कार्यक्रम तक आने लगे हैं  लेकिन, वास्तविक धरातल पर देखें तो न्यू मीडिया के नाम से सुर्खियाँ बटोर रहे  मीडिया के इस नए स्तम्भ का सही ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो यह वरदान बन सकता है. कई बार मुसीबत में फंसे लोगों तक सहायता पहुँचाने में फेसबुक,ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के लोकप्रिय प्लेटफार्म ने गज़ब की त...

बस,चाय पकौड़े की कमी थी..

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ऐसा लगा जैसे प्रकृति अपने पूरे शबाव के साथ हमारे इस्तकबाल के लिए आ गई है। भोपाल से दिल्ली और फिर पंचकूला तक यात्रा सामान्य सी ही रही लेकिन जैसे ही हमने welcome to Himachal Pradesh का बोर्ड पार किया…बादलों के एक युवा उत्साही समूह ने तेज फुहारों के साथ हुलसकर हमारा स्वागत किया बिल्कुल वैसे ही जैसे किसी नए हवाईजहाज की पहली यात्रा में पानी की फुहारों से वेलकम किया जाता है।  इस दौरान मौसम इतना खुशगवार था कि चाय पकौड़े की कमी खलने लगी। अब प्रकृति भले ही अपने बंधु बांधवों के साथ पूरे मूड में थी लेकिन चलती सड़क पर बारिश के बीच हमारे लिए चाय और पकौड़े बनाने की हिम्मत कौन दिखाता। बारिश ने विराम लिया तो धुंध को चीरकर पहाड़ों और घने पेड़ों ने हमें निहारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फिर धुंध भी छट गई और हमें हिमाचल के असली सौंदर्य से साक्षात्कार  का मौका मिलने लगा। बीच बीच में सड़क किनारे परिवार के साथ भुट्टे और गरमागरम मैगी खाते लोग अपने शहर भोपाल का अहसास करा रहे थे और यह संदेश भी दे रहे थे कि मौसम के अनुकूल खाने के मामले में हम सब एक हैं।  सड़क के बीचों बीच निडर होकर इठलाते कनेर और बो...

परंपराएं तोड़कर बदलाव की अंगड़ाई लेता रेडियो

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कल्पना कीजिए कि आप रेडियो पर फरमाइशी गीत जैसा कोई कार्यक्रम सुन रहे हैं और अपने फिल्म नदिया के पार का कौन दिशा में ले के चला रे गीत सुनाने का अनुरोध किया है। जैसे ही गीत शुरू होता है आपके मोबाइल या रेडियो सेट पर इस गाने के दृश्य भी दिखाई देने लगें। इसी तरह, आप रेडियो पर समाचार सुन रहे हैं और एकाएक न्यूज रीडर की जानी पहचानी आवाज़ के साथ उसका चेहरा भी दिखने लगे…आश्चर्य हो रहा है न!! तो इस अचंभे के लिए तैयार रहिए क्योंकि जल्दी ही नए जमाने का यह रेडियो आपके जीवन का हिस्सा बनने वाला है। इसे फिलहाल विजुअल रेडियो नाम दिया गया है। विजुअल रेडियो वास्तव में रेडियो प्रसारण का भविष्य है, जो ऑडियो और विजुअल अनुभव को एक साथ लाता है।  विजुअल रेडियो में एक आधुनिक प्रसारण तकनीक है जो पारंपरिक रेडियो की ऑडियो सामग्री को दृश्य तत्वों (विजुअल्स) के साथ जोड़ती है। इसमें रेडियो प्रसारण के साथ-साथ चित्र, वीडियो, ग्राफिक्स, टेक्स्ट, और अन्य मल्टीमीडिया सामग्री को एकीकृत किया जाता है, जिसे श्रोता रेडियो सेट, मोबाइल ऐप, या इंटरनेट के माध्यम से सुनने के साथ साथ रेडियो प्रसारण को देख भी सकते हैं। इसको हम प्रध...

शिमला में स्कैंडल पॉइंट!! क्या है असल माजरा

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पर्यटन स्थल में स्कैंडल प्वाइंट…पर्यटन स्थलों या नामचीन शहरों में सन सेट प्वाइंट, माउंटेन व्यू, लेक व्यू और सुसाइड प्वाइंट जैसे नाम तो हम सभी ने आमतौर पर सुने हैं और ये हमेशा ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहते हैं लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के सबसे लोकप्रिय स्थान का नाम स्कैंडल प्वाइंट भी हो सकता है? हिमाचल प्रदेश ही नहीं देश दुनिया के सबसे चर्चित पर्यटन स्थल शिमला में पर्यटकों के सर्वाधिक आकर्षण की केंद्र मॉल रोड (स्थानीय लोगों के लिए केवल मॉल) पर स्थित है यह स्कैंडल प्वाइंट। मौजूदा दौर में यह मॉल रोड के उन चुनिंदा स्थानों में से एक है जहां सबसे ज्यादा संख्या में लोग जुटते हैं और ठंड के दिनों में धूप तापते हैं। पर्यटकों की सुविधा के लिए प्रशासन ने यहां भरपूर मात्रा में बेंच भी लगाई हुई हैं ताकि वे आराम से बैठ सकें। जैसा कि हम सभी जानते है कि शिमला, हिमाचल प्रदेश की राजधानी के साथ साथ भारत का एक प्रमुख हिल स्टेशन भी है। यह अपने औपनिवेशिक आकर्षण और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए खास तौर पर प्रसिद्ध है। शिमला के केंद्र में स्थित माल रोड को शहर की धड़कन माना...

अब दो जून की नहीं, डिजिटल रोटी कहिए जनाब!!

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वक्त बदल गया है और उसके साथ बदल गई है हमारी दो जून की रोटी। कभी वह गोल, मुलायम, माँ के हाथ की थी, जिसकी खुशबू से पेट के साथ-साथ तन मन भी भर जाता था। लेकिन अब तो रोटी भी स्टार्टअप हो गई है। पहले रोटी केवल रोटी थी, अब वह ग्लूटेन-फ्री, कीटो-फ्रेंडली, ऑर्गेनिक, मल्टीग्रेन, प्रोटीन-लोडेड हो गई है। बाजार में अब एक रोटी के साथ इतने टैग लगे होते हैं कि लगता है, ये खाने की चीज कम, इंस्टाग्राम की रील ज्यादा है। पहले माँ प्यार से पुचकारती थी कि रोटी खा लो, ठंडी हो जाएगी लेकिन अब रोटी खुद बताती है कि मुझे माइक्रोवेव में गरम करो, वरना मज़ा नहीं आएगा। और अब रोटी दो जून वाली नहीं रही बल्कि कीमती हो गई है। अब दो जून की रोटी कमाने के लिए अब चार पहर काम करना पड़ता है। पहले रोटी गेहूँ खेत से आए घर के गेहूं से बनती थी, अब रोटी सुपरमार्केट से आती है, और उसका दाम सुनकर लगता है जैसे रोटी गेहूँ की नहीं, सोने से बनी है । एक रोटी की कीमत में पहले पूरी थाली आ जाती थी मतलब दाल, चावल, सब्जी, और ऊपर से पापड़ अचार और सलाद फ्री। अब भरपेट रोटी ही मिल जाए तो बहुत है। अब समय खाली पेट भरने का नहीं है बल्कि हेल्थ कॉन्शस भ...

शान और सेहत की सवारी साइकिल

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आज विश्व साइकिल दिवस है। हर साल 3 जून को यह दिवस मनाया जाता है। इस दिन उद्देश्य लोगों को साइकिल चलाने के प्रति जागरुक करना है। इतना तो हम सभी जानते हैं कि नियमित तौर पर साइकिल चलाना शरीर के लिए काफी फायदेमंद है। हमने भी कैंची से लेकर सीट तक भरपूर साइकिल चलाई है। मोटापा घटाने से लेकर शरीर की तंदुरुस्ती के लिए नियमित साइकिल चलाना वरदान है। जानकर कहते हैं कि रोजाना आधा घंटा साइकिल चलाने से हृदय रोग, मोटापा, मानसिक बीमारी, मधुमेह, गठिया रोग जैसी कई गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है।   3 जून, 2018 के दिन पहली बार विश्व साइकिल दिवस मनाए जाने की घोषणा की गई। इसके बाद से हर साल 3 जून के दिन विश्व साइकिल दिवस मनाया जाता है। आज के समय मोटर वाहनों को बढ़ते उपयोग के कारण वातावरण में प्रदूषण काफी बढ़ रहा है। इस कारण वातावरण को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए साइकिल का उपयोग जरूरी हो गया है।  इस साल विश्व साइकिल दिवस की थीम एक सतत भविष्य के लिए साइकिल चलाना है। तो आइए, हम भी नियमित साइकिल चलाने का प्रयास करें और साइकिल न भी चला पाएं तो कम से कम कार चलाते समय साइकिल सवार लोगों का सम्मान जरूर ...

भगवान न्यूज चैनलों को सद् बुद्धि दे!!

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इन दिनों यदि आप कोई भी न्यूज चैनल देख रहे हैं और उस पर प्रसारित खबरों से आपका बीपी न बढ़े, आपको गुस्सा न आए और आप झटके से टीवी बंद न करें..ऐसा हो ही नहीं सकता। इसके बाद आपका मन करता है उस चैनल के खिलाफ भड़ास निकालने का लेकिन या तो हम लिख नहीं पाते या शायद अभिव्यक्ति का मंच नहीं मिल पाता और वह गुस्सा मन ही मन में रह जाता है लेकिन यदि मौका मिला तो वह खुलकर बाहर भी आ जाता है।  शायद, यही कारण है कि जैसे ही वरिष्ठ पत्रकार सुधीर निगम ने सोशल मीडिया मुखपोथी पर न्यूज चैनलों के मौजूदा रवैये पर प्रतिक्रिया ज़ाहिर करते हुए लिखा कि ‘नीचता की पराकाष्ठा क्या होती है? घटियापन की इंतहा क्या होती है। जानना चाहते हैं, तो न्यूज चैनल देखिए’…तो उस पर प्रतिक्रियाओं की लाइन लग गई। ऐसा लगा जैसे तमाम पत्रकार, चिंतक, विचारक या न्यूज चैनलों के सतत् पराभव से चिंतित आम लोग ऐसी किसी कठोर और खरी खरी पोस्ट का इंतजार कर रहे थे। न्यूज चैनलों की हठधर्मिता, अमानवीयता और दुःख को बेचने की हरक़त के खिलाफ अधिकतर लोगों में नाराजगी नई बात नहीं है और खासतौर पर समाज का बौद्धिक तबका तो कथित मीडिया की नौटंकी और बेहूदगी से कुलब...

किन्नर समुदाय का रचनात्मक इंद्रधनुष है पुस्तक ‘पूर्ण इदम’ !!

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‘पूर्ण इदम’ का अर्थ है संसार की तमाम संरचनाओं की तरह यह भी पूर्ण है। ‘पूर्ण इदम: सकारात्मक किन्नर विमर्श का संचय’ नामक किताब किन्नर समुदाय पर एक अनूठा और विचारोत्तेजक संकलन है जो समुदाय की जटिल जिंदगियों, उनकी आंतरिक और बाहरी यात्रा,उनके सुख-दुख और भारतीय समाज में उनकी स्थिति को गहनता से प्रस्तुत करता है। किताब का शीर्षक उपनिषदों के दर्शन से प्रेरित है, जो किन्नर समुदाय की संपूर्णता और मानवीय गरिमा को रेखांकित करता है।  किताब में लेखों, कविताओं,नाटक, संस्मरण,कहानियों, लघुकथाएं और साक्षात्कारों का मिश्रण न केवल किन्नर समुदाय के अनुभवों को उजागर करता है, बल्कि पाठकों को उनके प्रति सहानुभूति और समझ विकसित करने के लिए प्रेरित करता है। वैसे,यदि हम किन्नर समुदाय पर उपलब्ध कुछ चर्चित पुस्तकों का उल्लेख करें तो इनमें राहुल सांकृत्यायन की ‘किन्नर देश में’, डॉ बंशीराम शर्मा की ‘किन्नर साहित्य’, प्रदीप सौरभ की ‘तीसरी ताली’ और  महेंद्र भीष्म की ‘मैं पायल हूं’ प्रमुख हैं। इसके अलावा, डॉ मधु शर्मा की ‘किन्नर की कन्या’, ए रेवंती की ‘द ट्रुथ अबाउट मी: ए हिजड़ा लाइफ स्टोरी’ और सुप्रसिद्ध लक्ष्...

हिंदी पत्रकारिता दिवस: गौरवशाली अतीत का गुणगान

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आज 30 मई को  ‘हिंदी पत्रकारिता दिवस’ है..हमारे गौरव और गर्व का दिन। यह ‘उदन्‍त मार्त्‍तण्‍ड’ से हिंदी पत्रकारिता का परचम लहराने वाले पंडित युगल किशोर शुक्ल जैसे महारथियों और उनके बाद इस गौरवशाली विरासत और परंपरा को पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजने/संवारने और विकसित करने वाले तमाम दिग्गज संपादकों और पत्रकारों का पुण्य स्मरण करने का दिन है। इस पवित्र पेशे की गुणवत्ता को कायम रखने वाले ‘नींव के पत्थरों’ से मौजूदा पीढ़ी को बताने का दिन है।  इसके पहले कि आप में से कोई यह टिप्पणी करें कि ‘उदन्‍त मार्त्‍तण्‍ड’ के ध्वजवाहक का नाम युगल किशोर शुक्ल नहीं बल्कि जुगल किशोर शुक्ल था तो आपकी जानकारी के लिए मैं यहां पद्मश्री से सम्मानित और अपनी तरह के इकलौते माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय और शोध संस्थान, भोपाल के संस्थापक और वरिष्ठ पत्रकार विजय दत्त श्रीधर का स्पष्टीकरण उद्धृत करना चाहूंगा। उन्होंने अपनी एक पोस्ट में बताया है कि “बांग्‍ला में ‘य’ का उच्‍चारण ‘ज’ होता है। इसलिए उन्‍हें पं. जुगल किशोर शुक्‍ल भी कहा जाता है।” मुझे भी इस अनूठे संस्थान के परामर्श मंडल का सदस्य होने का गौरव हासिल ...

तो हो जाए…एक कप अदरक इलायची वाली चाय!!

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गरमागरम चाय की चुस्की के साथ अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस की शुभकामनाएँ..हर साल आज के दिन यानि 21 मई को अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस (International Tea Day) मनाया जाता है, जो न केवल एक पेय की महिमा का उत्सव है, बल्कि इसके पीछे छिपी सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक कहानियों का भी सम्मान करता है।   चाय, जिसे भारत में "चाय" और दुनिया के कई हिस्सों में "टी" के नाम से जाना जाता है, सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि एक जीवनशैली, परंपरा और आत्मीयता का प्रतीक है। वैसे तो, चाय की कहानी हजारों साल पुरानी है, जो चीन से शुरू होकर विश्व के कोने-कोने तक फैली लेकिन भारत में चाय ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान लोकप्रिय हुई, और आज यह देश की आत्मा का हिस्सा है। असम, दार्जिलिंग और नीलगिरी की चाय ने विश्व स्तर पर अपनी सुगंध और स्वाद से पहचान बनाई है।   चाय सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि संस्कृतियों को जोड़ने का माध्यम है। भारत में सुबह की चाय परिवार के साथ बातचीत का बहाना है, तो दोस्तों के साथ "चाय पर चर्चा" विचारों का आदान-प्रदान। चाय उद्योग लाखों लोगों के लिए आजीविका का स्रोत है। भारत, चीन, श्रीलंका, और ...

सौ रुपए में मूक संवाद..!!

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सरहद पर स्थित एक कस्बे में एक व्यक्ति रोज अपने शहर के एटीएम में जाता और  मात्र ₹100 निकालकर वापस लौट आता। उसका यह सिलसिला लगभग रोज चलता रहा । उस एटीएम में तैनात गार्ड को भी आश्चर्य होता कि यह व्यक्ति रोज केवल ₹100 निकालने आता है जबकि वह चाहे तो सामान्य लोगों की तरह एक बार में अपनी जरूरत की राशि निकाल सकता है और बार-बार एटीएम आने से भी बच सकता है, लेकिन अपनी नौकरी की सीमाओं के कारण वह चुपचाप देखता रहता है और कुछ नहीं पूछता।  उस व्यक्ति के रोज आने की वजह से स्वाभाविक तौर पर उनमें नमस्कार जैसा शुरुआती संवाद भी होने लगा । जब उस व्यक्ति के एटीएम आने का यह सिलसिला एक पखवाड़े से भी ऊपर तक चलता रहता है तो गार्ड का धैर्य जवाब दे गया और उसकी जिज्ञासा हिलोरे मारने लगी । अंततः गार्ड ने एक दिन उस व्यक्ति को रोककर पूछ ही लिया  कि साहब,मैं, कई दिन से देख रहा हूं कि आप प्रतिदिन एटीएम आते हैं और केवल ₹100 निकाल कर चले जाते हैं जबकि आप चाहे तो एक ही बार में आपकी जरूरत का पैसा निकाल सकते हैं।  गार्ड के सवाल पर उस व्यक्ति ने मुस्करा कर जो जवाब दिया उससे गार्ड की आँखें भी नम हो गईं। उस व...

क्या है मध्यप्रदेश की पहचान…पोहा जलेबी या कुछ और !!

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लिट्टी चोखा कहते ही हमारे सामने बिहार की छवि उभर आती है। वही, बड़ापाव बोलते ही महाराष्ट्र याद आने लगता है। इडली-बड़ा या डोसा सुनते ही तमिलनाडु से लेकर आंध्र प्रदेश तक तस्वीर सामने आ जाती है और मोमोज सुनते ही पूर्वोत्तर की झलक मिल जाती है… लेकिन, क्या हमारे अपने प्रदेश मध्य प्रदेश का ऐसा कोई खानपान है जिसका नाम लेते ही पूरे प्रदेश की तस्वीर उभर कर सामने आ जाती हो? दरअसल, यह प्रश्न हाल ही में सामने आया जब हमारे प्रदेश की यात्रा पर आए एक परिचित ने पूछा कि जिसतरह हर राज्य के कुछ खान-पान,कपड़े, हस्तशिल्प या अन्य सामग्री वहां की पहचान है तो मध्य प्रदेश की पहचान क्या है? सवाल जरूरी भी है और मौजू भी।  आखिर, हर राज्य की अपनी एक पहचान होती है और होनी भी चाहिए।  यह पहचान उस राज्य की संस्कृति, परंपरा और मोटे तौर पर वहां के उत्पादों की झलक पेश करती है । अब कुछ लोग कह सकते हैं कि हम भी ‘दाल बाफले’ को अपने प्रदेश की पहचान के तौर पर प्रस्तुत कर सकते हैं। निश्चित तौर पर, दाल बाफले लोकप्रिय व्यंजन है लेकिन इसकी लोकप्रियता मालवा क्षेत्र में ज्यादा है जबकि बुंदेलखंड, बघेल या अन्य क्षेत्र में लोग ...