सौ रुपए में मूक संवाद..!!
सरहद पर स्थित एक कस्बे में एक व्यक्ति रोज अपने शहर के एटीएम में जाता और मात्र ₹100 निकालकर वापस लौट आता। उसका यह सिलसिला लगभग रोज चलता रहा । उस एटीएम में तैनात गार्ड को भी आश्चर्य होता कि यह व्यक्ति रोज केवल ₹100 निकालने आता है जबकि वह चाहे तो सामान्य लोगों की तरह एक बार में अपनी जरूरत की राशि निकाल सकता है और बार-बार एटीएम आने से भी बच सकता है, लेकिन अपनी नौकरी की सीमाओं के कारण वह चुपचाप देखता रहता है और कुछ नहीं पूछता।
उस व्यक्ति के रोज आने की वजह से स्वाभाविक तौर पर उनमें नमस्कार जैसा शुरुआती संवाद भी होने लगा । जब उस व्यक्ति के एटीएम आने का यह सिलसिला एक पखवाड़े से भी ऊपर तक चलता रहता है तो गार्ड का धैर्य जवाब दे गया और उसकी जिज्ञासा हिलोरे मारने लगी । अंततः गार्ड ने एक दिन उस व्यक्ति को रोककर पूछ ही लिया कि साहब,मैं, कई दिन से देख रहा हूं कि आप प्रतिदिन एटीएम आते हैं और केवल ₹100 निकाल कर चले जाते हैं जबकि आप चाहे तो एक ही बार में आपकी जरूरत का पैसा निकाल सकते हैं।
गार्ड के सवाल पर उस व्यक्ति ने मुस्करा कर जो जवाब दिया उससे गार्ड की आँखें भी नम हो गईं। उस व्यक्ति ने बताया कि मैं फौजी हूं और अभी इस इलाके में सीमा की पहरेदारी करने आया हूं। जहां तैनात हूं वहां से फोन करना सुरक्षित नहीं है और फोन के सिग्नल मिलना और भी मुश्किल। परंतु इस बैंक खाते से जुड़ा मोबाइल मेरी पत्नी के पास है और मेरे ₹100 निकालने के साथ ही प्रतिदिन बैंक के मैसेज से पत्नी को यह सूचना मिल जाती है कि मैं सुरक्षित हूं और जीवित भी ।
सोचिए, संवाद का यह कितना अद्भुत तरीका है। बिना कुछ कहे और बिना कुछ सुने अपने लोगों को खुद के सुरक्षित होने की जानकारी दे देना । कुछ समय पहले, ऐसी ही एक कहानी और पढ़ने को मिली थी जिसमें मैसेज से जीवन के होने या न होने का सार छिपा था । दरअसल, एक बड़े शहर की एक संभ्रांत कॉलोनी में एकाएक एक बुजुर्ग महिला की मृत्यु हो जाती है और तुरंत ही उस कॉलोनी के लोग विदेश में बसे उसके बेटे को खबर भेज देते हैं । अंतिम संस्कार की तमाम औपचारिकताओं के बाद बेटा उस कॉलोनी के लोगों से पूछता है कि मैं भी मां के नियमित संपर्क में रहता हूं लेकिन आपको इतनी जल्दी कैसे पता चल गया कि मेरी मां अब इस दुनिया में नहीं रहीं। तो इसके उत्तर में कॉलोनी के लोगों ने जो बात बताई वह आज नहीं तो कल हम सबके जीवन में लागू होने लायक है।
उन्होंने कहा कि हमने अपनी कॉलोनी के सभी बुजुर्गों का एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया हुआ है। इस ग्रुप का सबसे सख्त, कठोर या कहें कि अनिवार्य नियम यह है कि आप कितने भी व्यस्त हों लेकिन आपको हर घंटे में ग्रुप में एक मैसेज अवश्य करना है। जरूरी नहीं है कि वह मैसेज कोई ज्ञान, फोटो, विचार या कुछ और हो । आप केवल हेलो लिखकर, हाय लिखकर या फिर कोई इमोजी डालकर भी मैसेज भेज सकते हैं । यदि उस घंटे में किसी बुजुर्ग का मैसेज नहीं आता है तो तत्काल हमारे साथी उनके घर जाकर उनका हाल-चाल पूछते हैं। इससे फायदा यह है कि हम हर घंटे एक दूसरे की सेहत की निगरानी करते रहते हैं। यदि कोई बीमार है तो उसे तत्काल अस्पताल पहुंचा दिया जाता है। बस, इसी नियमित मैसेजिंग प्रक्रिया के कारण आपकी मां की मृत्यु का समाचार हम तत्काल आप तक पहुंचा पाए।
हो सकता है किसी को सुनने में यह बेफिजूल की कहानी लगें लेकिन असल जिंदगी में ये उदाहरण बहुत मायने रखते हैं। महज एक मैसेज के जरिए आप किसी की जिंदगी में अपनी मौजूदगी दर्ज कर सकते हैं या उसकी जिंदगी बचा भी सकते हैं । इसलिए यदि कोई आपको सुबह गुड मॉर्निंग जैसा कोई फॉरवर्ड मैसेज भी भेजता है तो उसे डाटा या समय की बर्बादी समझकर उस पर अपनी खीज निकालने की बजाए यह सोचिए कि उस व्यक्ति के लिए आपकी कितनी अहमियत है। तभी तो वह सबसे पहले अपने दिन की शुरुआत आपको शुभकामना संदेश भेजकर कर रहा है।
इस छोटे से मैसेज के जरिए वह न केवल आपके सेहतमंद होने की कामना कर रहा है बल्कि अपने खुद के सेहतमंद होने की जानकारी भी दे रहा है। अब जबकि, हम सब अपने अपने दायरे में इतने सिमट गए हैं कि जन्मदिन और त्यौहारों जैसे जीवन के तमाम शुभ अवसरों पर परस्पर एक दूसरे के घर जाने की बजाय या फोन पर बात करने के स्थान पर रेडीमेड मैसेज का सहारा लेने लगे हैं तो ऐसी सूरत में यदि वाकई कोई आपकी चिंता कर रहा है तो आपको उसकी सराहना तो करनी ही चाहिए बल्कि कुछ इसी तरह की सार्थक पहल को आगे बढ़ाना भी चाहिए ताकि छोटे-छोटे समूह में ही सही हम एक दूसरे से या एक दूसरे के हालात से अनजान न रहे।
कहीं, ऐसा न हो कि किसी के चले जाने के बाद आपको पता चले और फिर आप ताउम्र यह अफसोस मनाते रहे कि काश,समय से पता चल जाता तो हम कुछ कर पाते…संवाद करिए,जुड़िए,जोड़िए क्योंकि बचपन से पढ़ाया जा रहा है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इसलिए समाज में रहिए और सामाजिक बनिए भी।
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