हिंदी पत्रकारिता दिवस: गौरवशाली अतीत का गुणगान
इसके पहले कि आप में से कोई यह टिप्पणी करें कि ‘उदन्त मार्त्तण्ड’ के ध्वजवाहक का नाम युगल किशोर शुक्ल नहीं बल्कि जुगल किशोर शुक्ल था तो आपकी जानकारी के लिए मैं यहां पद्मश्री से सम्मानित और अपनी तरह के इकलौते माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय और शोध संस्थान, भोपाल के संस्थापक और वरिष्ठ पत्रकार विजय दत्त श्रीधर का स्पष्टीकरण उद्धृत करना चाहूंगा। उन्होंने अपनी एक पोस्ट में बताया है कि “बांग्ला में ‘य’ का उच्चारण ‘ज’ होता है। इसलिए उन्हें पं. जुगल किशोर शुक्ल भी कहा जाता है।” मुझे भी इस अनूठे संस्थान के परामर्श मंडल का सदस्य होने का गौरव हासिल है।
शायद, कम लोग जानते होंगे कि हमारी हिंदी पत्रकारिता अब 200 साल की मजबूत बुनियाद पर डटी है। 30 मई, 1826 को कोलकाता से शुरू हुई इस पावन यात्रा ने आज 199 साल पूरे कर लिए हैं और अब द्वि शताब्दी वर्ष का आग़ाज़ हो गया है। दो सौ सालों का सफर कोई छोटी बात नहीं है। कितनी पीढ़ियों के परिश्रम से यह वट वृक्ष अपनी विशालता एवं हरियाली के साथ करोड़ों पाठकों का सूचना और सुरक्षा कवच बना है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक और चैट जीपीटी से लेकर ग्रोक तक कितने भी झंझावात आते रहे हों लेकिन हिंदी की प्रिंट पत्रकारिता मजबूती से डटी हुई है और इस स्वर्णिम विरासत का मस्तूल आज भी कई दिग्गज पूरे भरोसे से थामकर आगे बढ़ रहे हैं।
अपने लिए तो हिंदी,पत्रकारिता और हिंदी पत्रकारिता…ये नाम नहीं, रोजी रोटी का जरिया है इसलिए ‘हिंदी पत्रकारिता दिवस’ अपने लिए मई दिवस भी है और दीपावली भी और होली भी…सभी संगी साथियों को असंख्य बधाइयां। यदि हिंदी भाषा और पत्रकारिता की पढ़ाई, पेशा और फिर उसके माध्यम से कुछ और सीढियां चढ़ते को नहीं मिलती तो न यह पहचान मिलती और न ही सम्मान और न ही वर्तमान की पहचान परवान चढ़ पाती।
‘ये चमक,ये दमक
फुलवन मा महक
सब कुछ सरकार तुम्हई से है।’
‘हिंदी पत्रकारिता दिवस’ की बधाई
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