क्या है मध्यप्रदेश की पहचान…पोहा जलेबी या कुछ और !!

लिट्टी चोखा कहते ही हमारे सामने बिहार की छवि उभर आती है। वही, बड़ापाव बोलते ही महाराष्ट्र याद आने लगता है। इडली-बड़ा या डोसा सुनते ही तमिलनाडु से लेकर आंध्र प्रदेश तक तस्वीर सामने आ जाती है और मोमोज सुनते ही पूर्वोत्तर की झलक मिल जाती है… लेकिन, क्या हमारे अपने प्रदेश मध्य प्रदेश का ऐसा कोई खानपान है जिसका नाम लेते ही पूरे प्रदेश की तस्वीर उभर कर सामने आ जाती हो? दरअसल, यह प्रश्न हाल ही में सामने आया जब हमारे प्रदेश की यात्रा पर आए एक परिचित ने पूछा कि जिसतरह हर राज्य के कुछ खान-पान,कपड़े, हस्तशिल्प या अन्य सामग्री वहां की पहचान है तो मध्य प्रदेश की पहचान क्या है? सवाल जरूरी भी है और मौजू भी। 

आखिर, हर राज्य की अपनी एक पहचान होती है और होनी भी चाहिए।  यह पहचान उस राज्य की संस्कृति, परंपरा और मोटे तौर पर वहां के उत्पादों की झलक पेश करती है । अब कुछ लोग कह सकते हैं कि हम भी ‘दाल बाफले’ को अपने प्रदेश की पहचान के तौर पर प्रस्तुत कर सकते हैं। निश्चित तौर पर, दाल बाफले लोकप्रिय व्यंजन है लेकिन इसकी लोकप्रियता मालवा क्षेत्र में ज्यादा है जबकि बुंदेलखंड, बघेल या अन्य क्षेत्र में लोग दाल बाफले को लेकर उतने लालायित नहीं दिखते। यहां बाफले की जगह दाल के साथ बाटी ज्यादा पसंद की जाती है। 

कुछ लोगों ने पोहा को मध्य प्रदेश की पहचान बताई। हालांकि, यह बात सौ फीसदी सच है कि पोहा मध्य प्रदेश में जबरदस्त लोकप्रिय है लेकिन तकनीकी रूप से यह मध्य प्रदेश की बजाय महाराष्ट्र की पहचान है। यह मूल रूप से महाराष्ट्र से चलकर हमारे प्रदेश में आया है। यह बात जरूर है कि हमने पोहा के साथ जलेबी की जोड़ी बनाकर ‘पोहा-जलेबी’ को अपनी पहचान बना लिया है। यही कारण है कि प्रदेश के लगभग हर शहर की नींद सुबह पोहा जलेबी के साथ ही खुलती है। भले ही पोहे का रूप इंदौर से लेकर जबलपुर तक बदलता रहता हो। जलेबी के साथ भजिया (पकौड़े) भी पोहे के बाद लोकप्रियता में दूसरे स्थान पर हैं। आलूबड़ा/ आलूगोंडा पहले ही पाव के घर बसाकर महाराष्ट्र का हो चुका है और अब तो बड़ा पाव, भाजीबड़ा, मिसल पाव जैसे कई स्वादों में राज्यव्यापी है। 

उधर, समोसा तो राज्यों की सीमा को पार कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रुतबा हासिल कर चुका है। अब तो यह आलू जैसे अपने स्थायी साथी के अलावा चाइनीज, मिठाई, मीट,मैगी के साथ जोड़ी बनाकर बहुरूपिया हो गया है।बुरहानपुर की मशहूर जलेबी, मालपुआ, या इंदौर के रतलामी सेव भी मध्यप्रदेश की एक स्वादिष्ट पहचान के विकल्प हो सकते है लेकिन ये भी राज्यव्यापी न  होकर क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व ज्यादा करते हैं।  

कुछ लोगों ने कहा कि गोंड, भील और सहारिया जैसे आदिवासी हमारी मूल पहचान है इसलिए इनके खानपान को मध्य प्रदेश की मूल पहचान बनाया जा सकता है। यह सुझाव अच्छा है लेकिन अब तो आदिवासी समाज भी आधुनिकता के रंग में रंगने लगा है और उनका खानपान बस मेलों-ठेलों की रौनक बनकर रह गया है। इसके अलावा, आदिवासी भोजन के ऑथेंटिक रेस्त्रां की कमी, सभी जगह सहज उपलब्धता जैसे तमाम कारण हैं जिनकी वजह से यह पूरे राज्य का प्रतिनिधि भोजन नहीं बन पा रहे हैं।

तो, सोचिए..आप भी दिमाग दौड़ाइए और बताइए कि क्या हो हमारे प्रदेश की पहचान…जो स्वादिष्ट भी हो,विशिष्ट भी,लोकप्रिय भी और लिट्टी या इडली की तरह सर्वसुलभ और सबसे जरूरी पॉकेट फ्रैंडली भी!! एक खास बात और, आपकी सोच का दायरा बस स्नैक्स/नाश्ते तक सीमित मत रखिए बल्कि सम्पूर्ण भोजन तक विस्तारित कीजिए😋😋


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कुछ तो अलग था हमारे वेद में .....!

आज ‘भारत रत्न’ तो कल शायद ‘परमवीर चक्र’ भी!

भारत में महिलाएं कैसे करेंगी पुरुषों के “टायलट” पर कब्ज़ा