समय से पहले आई खूबसूरती से क्यों भयभीत हैं पहाड़ के लोग!!
हम बात कर रहे हैं कि पर्वतीय राज्यों के सबसे खूबसूरत वरदान बुरांश की। बुरांश का पेड़ और इसके फूल हिमाचल प्रदेश सहित देश के तमाम पर्वतीय राज्यों के सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और प्राकृतिक संस्कारों से जुड़े हैं। बुरांश न केवल खूबसूरत है बल्कि सेहत की अनेक नेमतों से परिपूर्ण भी है। यह अर्थव्यवस्था का भी एक अनिवार्य हिस्सा है। बुरांश के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि आईआईटी मंडी और इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (आईसीजीईबी) के शोधकर्ताओं ने बुरांश की पंखुड़ियों में मौजूद फाइटोकेमिकल्स की पहचान की है जो कोविड-19 वायरस को रोक सकते हैं। एक अध्ययन में पाया गया है कि बुरांश के फूल में एंटीवायरल गुण होते हैं, जो SARS-CoV-2 से संक्रमित कोशिकाओं के इलाज में मदद कर सकते हैं। कुछ शोधों में यह भी पाया गया है कि बुरांश के जूस का सेवन दिल और लीवर के लिए फायदेमंद हो सकता है।
हिमालय को मिला प्रकृति का यह उपहार यानि बुरांश का फूल ही यहां खतरे का संकेत दे रहा है। पिछले कुछ सालों से यह फूल समय से पहले खिलने लगा है और यही पर्वतीय लोगों के साथ साथ वैज्ञानिकों के लिए भी चिंता का सबब है। बुरांश का समय से पहले खिलना बर्फबारी कम होने का संकेत है और कम वर्षा का भी। शिमला या इस जैसे तमाम पर्यटन स्थलों का सौंदर्य और आर्थिक प्रगति बर्फबारी (snow fall) पर निर्भर है। बीते कुछ सालों में न केवल शिमला सहित अधिकतर पर्वतीय इलाकों की सर्दी कम हुई है बल्कि बर्फबारी के दिन भी कम होते जा रहे हैं। पहले शिमला शहर में ही जमकर बर्फ गिरती थी लेकिन अब बर्फबारी कुफरी,ठियोग और नारकंडा की ओर खिसकते जा रही है। इससे पर्यटन पर भी असर पड़ रहा है। इस समस्या को विकराल बनाने में पहाड़ों का सीना चीरकर दौड़ रही हजारों कारों ने भी अहम भूमिका निभाई है। इस सबसे, मौसम बदल रहा है और इसलिए बुरांश भी समय से पहले खिलने लगा है।
डाउन टू अर्थ पत्रिका में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक तापमान और वर्षा तथा बर्फ में आए बदलावों के प्रति बुरांश पौधों की संवेदनशीलता और प्रतिक्रियाओं ने चिंता बढ़ा दी है। फूलों के पैटर्न में बदलाव के लिए काफी हद तक ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार माना जा रहा है। इसके फलस्वरूप बदल रहे मौसम के तेवरों का नुकसान बुरांश के फूलों को उठाना पड़ रहा है। मसलन बारिश की कमी के कारण इनमें रसीले पन का अभाव हो जाता है। बुरांश के फूलों के फूलने की प्रक्रिया को समझे तो सामान्य रूप से जनवरी से फरवरी माह में बुरांस के फूल कलियों के रूप में रहते हैं। चूंकि उस समय तापमान बहुत कम होता है और बहुत कम तापमान में कलियां खराब न हो जाए, इसके लिए प्राकृतिक तौर पर पंखुड़ियां सुरक्षा घेरे के रूप में कलियों को बाहर से ढके रहती हैं। यह तभी हटती हैं, जब तापमान 20 से 25 डिग्री पर पहुंच जाता है। अनुकूल तापमान पाकर पेड़ का आंतरिक सूचना तंत्र (डीएनए) कोशिकाओं को संकेत भेजता है और फूलों के फूलने की प्रक्रिया के लिए हार्मोंस सक्रिय हो जाते हैं।
यदि समय से पहले ही तापमान अधिक हो जाता है तो फूल के विकास पर असर पड़ता है और उसके रंग रूप से लेकर आर्थिक और स्वास्थ्य प्रद गुणों पर भी असर पड़ता है। इसके अलावा, अगर ये फूल समय से पहले यानी सर्दियों के अंत में ही खिलने लगते हैं तो उस समय मधुमक्खियाँ या परागण करने वाले कीड़े सक्रिय नहीं होते इसलिए परागण पूरी तरह नहीं हो पाता, जिससे पौधों के बीज या फल विकसित नहीं हो पाते। तापमान में उतार चढ़ाव से पहले से खिले फूल मुरझा जाते हैं या मर जाते हैं।
बुरांश के फूलों के जल्दी खिलने का असर पारिस्थितिकीय तंत्र पर भी पड़ता है। दरअसल, बुरांश के फूलों पर कई पक्षी, कीड़े और अन्य जीव आश्रित होते हैं। यदि फूल समय से पहले या अनियमित रूप से खिलते हैं, तो यह खाद्य श्रृंखला गड़बड़ा जाती है। बुरांश के फूलों का उपयोग सिरप और जूस आदि बनाने में होता है। अनियमित फूलों की वजह से इनमें रस कम बनता है और किसानों और स्थानीय लोगों की कमाई भी प्रभावित होती है। यही लोगों की चिंता का कारण है।
अब अगर पहाड़ों का सौंदर्य, तापमान, बर्फ,बुरांश और प्राकृतिक चक्र बनाए रखना है तो प्रकृति का संरक्षण करना होगा, अंधाधुंध फैलते कंक्रीट के जंगल की रफ्तार थामनी होगी और पहाड़ों को रौंदती मोटरगाड़ियों की संख्या को नियंत्रित करना होगा वरना पहाड़ और प्लेन में कोई अंतर नहीं रह जाएगा।
(यह लेख रागदिल्ली डॉट कॉम में भी प्रकाशित हुआ है।)
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