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महालया पर सभी ने पूरी कर ली अपनी मुराद

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  सिलचर में मानो जनसैलाब उमड़ आया । जनसैलाब शब्द भी बराक नदी के किनारे उमड़ी भीड़ के लिए छोटा प्रतीत होता है । यदि इससे भी बड़ा कोई शब्द इस्तेमाल किया जाए तो अतिसयोक्ति नहीं होगी । चारों ओर बस सिर ही सिर नजर आ रहे थे । सभी ओर बस जनसमूह था- पुल पर , सड़कों पर , नदी की ओर आने वाले रास्तों पर । ऐसा लग रहा था जैसे आज शहर की सारे मार्ग एक ही दिशा में मोड़ दिए गए हों। बूढ़े , बच्चे , महिलाएं और मोबाइल कैमरों से लैस नयी पीढ़ी , परिवार के परिवार चले आ रहे थे । सुबह चार बजे से शुरू हुआ यह सिलसिला कई घंटों तक जारी रहा । इस तरह की भीड़ मैंने तब देखी थी जब वर्षों के इंतज़ार के बाद पहली ब्राडगेज ट्रेन ने यहाँ का रुख किया था या फिर महालया पर। विभिन्न उम्र , जाति और धर्मों के लोग खास बंगाली वेश - भूषा में गाजे - बाजे के साथ बराक घाटी में देवी दुर्गा के स्वागत के लिए एकत्रित हुए। बराक नदी की ओर जाने वाली सड़कें खचाखच भरी हुई थीं और लोग ढोल - ढमाके के बीच देवी की आराधना में जुटे थे।इस दिन का सबसे बड़ा आकर्षण आकाशवाणी से सुप्रसिद्ध गायक बीरेंद्र कृष्ण भद्र के चंडी पाठ का विशेष प्रसारण भी है। आकाशवाणी सिल...

कड़क चाय नहीं, सफ़ेद चाय पीजिए जनाब !!

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सफ़ेद   चाय ... और   कीमत   तक़रीबन   12  हजार   रुपए   किलो  !!!  हाल ही में   अरुणाचल प्रदेश के पूर्व सियांग जिले में स्थित डोनी पोलो चाय बागान की  सफेद चाय को  12,001  रुपये प्रति किग्रा कीमत मिली। यह तमाम प्रकार की  चायों के लिए सबसे ज्यादा कीमत है। असम के गुवाहाटी  स्थित टी नीलामी केंद्र (जीटीएसी) में पहली बार शुरू हुई सफेद चाय की नीलामी  में इस नई नवेली चाय ने सबसे ज्यादा कीमत हासिल कर यहां के सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए। मजे की बात तो यह है कि डोनी पोलो उद्यान  के पास भी बिक्री के लिए केवल  5.7 किलोग्राम चाय थी और वह भी हाथों हाथ बिक गयी। वह भी तब, जब भारत में सफेद चाय बनाने वाले सबसे अच्छे उद्यान दार्जिलिंग के माने जाते  हैं। हम यहाँ     ज्यादा   दूध   और   कम   पत्ती   डालकर   बनायीं   गयी सफ़ेद   चाय   की बात नहीं   कर रहें है   बल्कि हम उस चाय की बात कर रहे हैं जो उत्पादन   के   स्तर   पर...

बिना पंखों के शिखर छूती प्रतिभाएं

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प्रतिभाएं कभी सुविधाओं की मोहताज नहीं होती बल्कि वे अवसरों का इंतज़ार करती हैं ताकि वक्त की कसौटी पर स्वयं को कस सकें. असम बोर्ड की इस बार की परीक्षाओं में कई ऐसे मेधावी छात्रों ने अपने परिश्रम का लोहा मनवाया है जिनके घर में पढाई का खर्च निकालना तो दूर, दो वक्त के खाने के भी लाले पड़े रहते हैं.  सिलचर के राज सरकार के पास रंग और ब्रश खरीदने के पैसे नहीं हैं फिर भी उसने फाइन आर्ट्स में पूरे राज्य में अव्वल स्थान हासिल किया है. राज को 100 में से 100 अंक मिले हैं. आलम यह है कि उसके स्कूल में इस विषय को पढ़ाने-सिखाने वाले शिक्षक तक नहीं है और उसके माता-पिता भी दैनिक मजदूर हैं इसलिए घर में इस कला को समझने वाला कोई नहीं है लेकिन एकलव्य की तरह साधना करते हुए राज ने अपने परिश्रम से ऐसा मुकाम हासिल कर लिया है अब राज्य सरकार से लेकर कई स्थानीय संस्थाएं भी उसकी मदद को आगे आ रही हैं. राजदीप दास की कहानी तो और भी पीड़ादायक है. बचपन से ही पोलियो के कारण वह चल फिर नहीं सकता था लेकिन पढाई के प्रति लगन देखकर उसके पिता प्रतिदिन गोद में लेकर स्कूल आते थे. ऐन परीक्षा के पहले उसके दाहिने हाथ ने ...

अब नहीं सुनाई देगी ‘बाउल’ के बाज़ीगर की मखमली आवाज़

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ढपली, ढोलक और डुगडुगी जैसे वाद्ययंत्र तो बंगाल की प्रसिद्ध लोकशैली ‘बाउल’ में अब भी अपनी मौजूदगी उतनी ही शिद्दत से दर्ज कराएँगे लेकिन शायद उनमें वो चिर-परिचित तान/खनक और जोश नहीं होगा क्योंकि लोक संगीत ‘बाउल’ के बाज़ीगर कालिका प्रसाद भट्टाचार्य की मखमली आवाज़ जो अब हमारे बीच नहीं होगी। बंगाल के मशहूर लोक गीत गायक कालिका प्रसाद भट्टाचार्य का 7 मार्च 2017 को पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर एक्सप्रेस वे पर एक सड़क हादसे में निधन हो गया था। वे अपने बैंड "दोहार" के सदस्यों के साथ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में पेश करने जा रहे थे। कालिका प्रसाद की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया था। गायक एवं संगीतकार शांतनु मोइत्रा ने भट्टाचार्य के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा था , ‘‘ मैं चाहता हूं कि यह खबर गलत हो। '' वहीँ, संगीतकार देबोज्योति मिश्रा ने कहा , ‘‘ बंगाली संगीत में नए लोक तत्वों को शामिल करने का श्रेय उन्हें ही जाता है और जब भी मैं उनसे मिलता था उनकी रचनात्मक सोच मुझे स्तब्ध कर देती थी। ...

किगाली से सीखिए सफाई क्या होती है..!!!

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My visit to Rwanda-Uganda with Vice President: Three  हमारे देश में भले ही आज भी एक बड़ा वर्ग सरकार के स्वच्छता अभियान को बेमन से स्वीकार कर सफाई के नाम पर ढकोसला कर रहा हो लेकिन पूर्वी अफ़्रीकी देश रवांडा में सफाई ढकोसला नहीं दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा है और हर महीने के आखिरी शनिवार को यह साफ़ नजर भी आता है जब पूरा देश अनिवार्य रूप से साफ़-सफाई में जुट जाता है. रवांडा में 18 साल से लेकर 65 साल तक के हर महिला-पुरुष को सफाई अभियान में शामिल होना अनिवार्य है वरना उसे कठोर सज़ा का सामना करना पड़ता है. यहाँ तक की रवांडा के राष्ट्रपति से लेकर हर आम-ओ-खास को स्वच्छता अभियान में अनिवार्य रूप से शामिल होना पड़ता है तथा वह भी तस्वीर भर खिंचाने के लिए नहीं बल्कि वास्तविक सफाई के लिए और यह रवांडा के हर गली-कूंचे की सफाई को देखकर समझा जा सकता है. यही वजह है कि रवांडा की राजधानी किगाली को अफ्रीका के सबसे साफ़-सुथरे और सुरक्षित शहर का तमगा हासिल है एक और बात, यहाँ 2008 से किसी भी तरह के प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध है और यह कोई दिखावटी प्रतिबन्ध नहीं है बल्कि इस पर कड़ाई से अमल होता है....