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असम का नया कानून बदल सकता है देश में बुजुर्गों की स्थिति !!

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                 जाति-धर्म-सम्प्रदाय,बाबा,साध्वी और नेताओं के विवादित बोल से लेकर न जाने कैसे-कैसे फ़िजूल विषयों पर आँखें तरेरने वाला हमारा कथित ‘जन-सरोकारी मीडिया’ अमूमन ऐसे विषयों पर चुप्पी साध लेता है जो वास्तव में जन सामान्य के लिए उपयोगी होते हैं।  हाल ही  में मीडिया के एक बड़े तबके ने एक बार फिर एक ऐसे विषय की अनदेखी कर दी जिसे सरकारों और समाज के हर आम-ओ-खास को जानना चाहिए।  न तो किसी चैनल ने इसे ब्रेकिंग न्यूज़ के लायक समझा और न ही बड़ी बहस , हल्ला बोल या मुक़ाबला नुमा कार्यक्रमों के लिए जरुरी । किसी ने टिकर यानि टीवी स्क्रीन में नीचे की ओर चलने वाली ख़बरों में शामिल किया तो किसी ने 5 मिनट में 50 ख़बरों टाइप हड़बड़ी वाली न्यूज़ का हिस्सा बनाकर इतिश्री कर ली। टीवी स्क्रीन पर देश-समाज की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले तमाम सेलिब्रिटी एंकर भी इस विषय से कन्नी काट गए। हाँ , प्रिंट मीडिया ने ज़रूर जिम्मेदारी निभाई और कम से कम दो कालम की ख़बरें कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों में देखने को मिली। पूर्वोत्तर में आतंकवाद को छोड़कर किसी और विषय को ...

महालया पर सभी ने पूरी कर ली अपनी मुराद

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  सिलचर में मानो जनसैलाब उमड़ आया । जनसैलाब शब्द भी बराक नदी के किनारे उमड़ी भीड़ के लिए छोटा प्रतीत होता है । यदि इससे भी बड़ा कोई शब्द इस्तेमाल किया जाए तो अतिसयोक्ति नहीं होगी । चारों ओर बस सिर ही सिर नजर आ रहे थे । सभी ओर बस जनसमूह था- पुल पर , सड़कों पर , नदी की ओर आने वाले रास्तों पर । ऐसा लग रहा था जैसे आज शहर की सारे मार्ग एक ही दिशा में मोड़ दिए गए हों। बूढ़े , बच्चे , महिलाएं और मोबाइल कैमरों से लैस नयी पीढ़ी , परिवार के परिवार चले आ रहे थे । सुबह चार बजे से शुरू हुआ यह सिलसिला कई घंटों तक जारी रहा । इस तरह की भीड़ मैंने तब देखी थी जब वर्षों के इंतज़ार के बाद पहली ब्राडगेज ट्रेन ने यहाँ का रुख किया था या फिर महालया पर। विभिन्न उम्र , जाति और धर्मों के लोग खास बंगाली वेश - भूषा में गाजे - बाजे के साथ बराक घाटी में देवी दुर्गा के स्वागत के लिए एकत्रित हुए। बराक नदी की ओर जाने वाली सड़कें खचाखच भरी हुई थीं और लोग ढोल - ढमाके के बीच देवी की आराधना में जुटे थे।इस दिन का सबसे बड़ा आकर्षण आकाशवाणी से सुप्रसिद्ध गायक बीरेंद्र कृष्ण भद्र के चंडी पाठ का विशेष प्रसारण भी है। आकाशवाणी सिल...

कड़क चाय नहीं, सफ़ेद चाय पीजिए जनाब !!

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सफ़ेद   चाय ... और   कीमत   तक़रीबन   12  हजार   रुपए   किलो  !!!  हाल ही में   अरुणाचल प्रदेश के पूर्व सियांग जिले में स्थित डोनी पोलो चाय बागान की  सफेद चाय को  12,001  रुपये प्रति किग्रा कीमत मिली। यह तमाम प्रकार की  चायों के लिए सबसे ज्यादा कीमत है। असम के गुवाहाटी  स्थित टी नीलामी केंद्र (जीटीएसी) में पहली बार शुरू हुई सफेद चाय की नीलामी  में इस नई नवेली चाय ने सबसे ज्यादा कीमत हासिल कर यहां के सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए। मजे की बात तो यह है कि डोनी पोलो उद्यान  के पास भी बिक्री के लिए केवल  5.7 किलोग्राम चाय थी और वह भी हाथों हाथ बिक गयी। वह भी तब, जब भारत में सफेद चाय बनाने वाले सबसे अच्छे उद्यान दार्जिलिंग के माने जाते  हैं। हम यहाँ     ज्यादा   दूध   और   कम   पत्ती   डालकर   बनायीं   गयी सफ़ेद   चाय   की बात नहीं   कर रहें है   बल्कि हम उस चाय की बात कर रहे हैं जो उत्पादन   के   स्तर   पर...