संदेश

कारगिल युद्ध: स्वर्णिम वीरता की रजत जयंती

चित्र
आज की ही सी बात लगती है जब कैप्टन विक्रम बत्रा के शब्द ‘ये दिल मांगे मोर’ देश के हर घर का प्रिय मंत्र बन गए थे और ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे, लेफ्टिनेंट बलवान सिंह, कैप्टन एन केंगुरुसे, कैप्टन अनुज नैयर और राइफलमैन संजय कुमार जैसे तमाम बहादुरों की वीरता के किस्से घर घर में कहानियों की तरह गूंजने लगे थे। इसी तरह तोलोलिंग, टाइगर हिल, द्रास,  मरपोला, काकसर, मुस्कोह और बटालिक जैसे अनजान नाम आम लोगों की जुबां पर चढ़ गए थे। दुनिया की सबसे कठिन जंग में युवा सैनिकों के जोश, होश, जज्बे,रणनीति, साहस और चट्टान की तरह बुलंद हौसलों के कारण सुरक्षित और मजबूती से किलेबंदी कर चुकी दुश्मन की सेना को एक बार फिर करारी पराजय की धूल चाटना पड़ा था। साथ ही, दुनिया भर में किरकिरी हुई वह अलग। भारत हमेशा ही शांति से किसी समस्या के समाधान का पक्षधर रहा है और पहले हमला नहीं करने की अपनी नीति पर देश आज भी कायम है लेकिन जब बात देश की अस्मिता, सुरक्षा और सम्प्रभुता पर आए जाए तो फिर देश के सम्मान और आन बान शान की खातिर युद्ध ही एकमात्र विकल्प शेष रह जाता है। इस साल हम भारतीय रण बां...

सेहत के साथ पॉकेट और पर्यावरण फ्रैंडली भी है साइकिल

चित्र
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बढ़िया सूट-बूट पहने कोई व्यक्ति साइकिल चला रहा हो या कोई महिला साल-दो साल के बच्चे को लेकर साइकिल पर बाज़ार करने या ऑफिस जाने को निकली हो,वो भी बेखौफ-बिंदास-बेझिझक!..हमारे देश में कोई ऐसा करेगा तो शायद दूसरे दिन अख़बारों में उसकी फोटो छप जाए लेकिन जापान में यह आम बात है। मुझे कुछ साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जापान की यात्रा का अवसर मिला था। हम लोग मुख्य तौर पर ओसाका में रहे,जहाँ जी-20 देशों का शिखर सम्मेलन हुआ था। ओसाका में बड़ी संख्या में महिला/पुरुष/युवा/बच्चे सभी बड़े आराम से साइकिल पर घूमते नजर आते थे और वहां के लोगों से बातचीत में पता चला कि पूरे जापान में साइकिल के प्रति इसीतरह का प्रेम है।  साइकिल पर बात करने का कारण यह है कि जून माह को विश्व साइकिल दिवस के लिए भी जाना जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हर साल 3 जून को विश्व साइकिल दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य लोगों को साइकिल चलाने के प्रति जागरुक करना है। इतना तो हम सभी जानते हैं कि नियमित तौर पर साइकिल चलाना शरीर के लिए काफी फायदेमंद है।  हम सभी ने भी कभी न कभी कैंची स...

‘ओटीपी पापा’...पिताओं की नई जमात !!

चित्र
ओटीपी पापा…जी हां, क्या आप भी ओटीपी पापा हैं!! यह पढ़कर आप भी चौंक गए न। आज जब सोशल मीडिया पापा, पॉप्स, बाबूजी, दादा, अब्बा, पापाजी, बाबा और डैड जैसे-जैसे तमाम संबोधन के जरिए पिताओं के योगदान को सराह रहा है, उनका गुणगान कर रहा है और उनसे मिली शिक्षाओं का बढ़ चढ़कर बयान कर रहा है तब ‘ओटीपी पापा’ कहना चौंकाता है और चौंकना भी चाहिए क्योंकि अब तक आपने भी पिताजी के लिए यह संबोधन नहीं सुना होगा।    कुछ साल पहले की बात है जब दिल्ली में अक्सर ‘संडे पापा’ को लेकर चर्चा होती थी । दरअसल दिल्ली में नौकरी करने वाले बहुत सारे हमारे साथी ऐसे थे जो मेरठ, अलीगढ़ और इसी तरह दिल्ली के आसपास के शहरों से अप-डाउन करते थे । उस समय न तो आवागमन के इतने ज्यादा साधन थे और न ही आज की तरह तेज रफ्तार गाड़ियां। इसलिए, उन्हें सुबह नौ-साढ़े नौ बजे का ऑफिस मिलाने के लिए घर से बहुत जल्दी निकलना पड़ता था और तब बच्चे सोते रहते थे। इसीतरह शाम को 6 बजे तक की ड्यूटी करने के बाद दोस्तों के चाय पानी करते हुए वे देर रात की ट्रेन से घर पहुंच पाते थे । ऐसी स्थिति में उनके छोटे बच्चे सो जाते थे। ऐसी सूरत में बच्चों क...

आर यू वेजीटेरियन? सिंपल या हिन्दू वेजीटेरियन

चित्र
कैथी पेसिफिक एयरलाइन्स के विमान में खाना परोसते हुए एयर होस्टेस ने पूछा- यू आर वेजीटेरियन? मेरे हाँ कहते ही उसने तत्काल दूसरा सवाल दागा- विच टाइप आफ वेजीटेरियन....मीन्स सिंपल वेजीटेरियन या हिन्दू वेजीटेरियन? अपनी लगभग ढाई दशक की नौकरी में यह सवाल चौंकाने वाला था क्योंकि अब तक तो शाकाहारी का एक ही प्रकार अपने को ज्ञात था। अब शाकाहार भी हिन्दू-मुस्लिम टाइप होता है!! इसकी जानकारी जापान यात्रा के दौरान ही मिली। खैर मैंने बताया कि हिन्दू वेजीटेरियन तो उसने कहा कि आपको 20 मिनट इंतज़ार करना होगा क्योंकि मुझे आपके लिए खाना पकाना पड़ेगा ! अब सोचिए विदेशी विमान में कोई विदेशी व्योमबाला (एयर होस्टेस) कहे कि मैं आपके लिए खाना बनाकर लाती हूँ तो दिल में लड्डू फूटना स्वाभाविक है। लगभग 20-25 मिनट के इंतज़ार के बाद वह बटर में बघारी हुई खिचड़ी,चने की दाल और रोटी के नाम पर ब्रेड के टुकड़े लेकर हाज़िर हुई। उसने भरसक प्रयास किया था कि खाना स्वादिष्ट रहे और अपन ने भी दबाकर खा लिया ताकि उसे भी महसूस हो कि खाना स्वादिष्ट ही था।..खैर इस एक किस्से से यह तो साफ़ हो गया था कि जापान में शाकाहार के लिए संघर्ष करना पड़ेगा औ...

"मिज़ाज का हिस्सा बनता स्वच्छता का संकल्प"

चित्र
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल आज देश में स्वच्छता का एक नया अध्याय लिख रही है। एक समय था जब यह शहर भी अन्य शहरों की तरह कचरे और गंदगी से जूझता था। लेकिन आज यह शहर देश के सबसे स्वच्छ शहरों में शुमार है। कभी जर्दा, परदा के साथ अपनी गर्दा यानि धूल के लिए बदनाम भोपाल आज देश की स्वच्छतम राजधानी है। बीते स्वच्छ सर्वेक्षण में झीलों का शहर भोपाल सबसे स्वच्छ राज्य की राजधानियों में शीर्ष पर है और देश भर के शीर्ष 10 स्वच्छ शहरों में 5वें नंबर पर है। इस बदलाव के पीछे कई कारण हैं मसलन: नागरिकों की जागरूकता: भोपाल के नागरिक अब स्वच्छता को लेकर जागरूक हो गए हैं। वे अपने घरों और आसपास के क्षेत्रों को साफ रखने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। नगर निगम के प्रयास: नगर निगम ने शहर को स्वच्छ बनाने के लिए कई पहल की हैं। इनमें कचरा निस्तारण की बेहतर व्यवस्था, सड़कों की नियमित सफाई, और नागरिकों को जागरूक करने के अभियान शामिल हैं। स्वच्छ सर्वेक्षण: स्वच्छ सर्वेक्षण ने शहरों के बीच स्वच्छता को लेकर एक प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाया है। भोपाल ने इस प्रतिस्पर्धा में लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है। भोपाल में कचरे का वै...

सर्दियों की धूप...।

चित्र
 सर्दियों की धूप...। सर्दियों की धूप होती है कुछ अलग सी बिल्कुल मां बाप के आशीष सी कम मांगों तो ज्यादा मिल जाती है। मुट्ठी भर धूप की  तमन्ना की तो अंजुरी भर गयी और भरनी चाही अँजुरी तो पूरे आँचल में समा गयी। सर्दियों की धूप होती है कुछ अलग सी बिल्कुल मां बाप के आशीष सी। गर रूठ गयी धूप  समा गई बादलों के आगोश में फिर तरसाती है तड़फाती है सर्दियों की धूप बिल्कुल मां बाप के आशीष सी। मां बाप रुठे तो रूठ जाती है किस्मत गर उठ गया आशीष का साया तो थम सा जाता है दुआओं का काफ़िला। न बचता है मुट्ठी भर न अँजुरी भर और न ही आँचल भर आशीष बिल्कुल सर्दियों की धूप की तरह ज़रूरी है सहेजना धूप भी, आशीष भी ताकि  जब न रहें दोनों फिर भी महसूस हो गरमाहट धूप की, आशीष की दिन भर-जीवन भर।। सर्दियों की धूप...।

देशी मिठाइयों में विदेशी मेहमान

चित्र
ये कुनाफा है..हमारे देशी मिठाई परिवार में विदेशी मेहमान। कुछ लोग इसे कुनाफ़े, कनाफ़े, कोनाफी, कुनाफ़्ता, कुनेफे और किनाफा जैसे तमाम नामों से जानते हैं। ये तुर्किए (पहले टर्की) से आकर हमारे मिठाई परिवार में घुसपैठ कर रहा है। खानपान की अरबी किताबों की कहानियों में बताया गया है कि उस दौर में और खासकर रमजान में बादशाह/अमीर/खलीफा नित नए मीठे की मांग करते थे और उनके खानसामा मिठाइयों में प्रयोग करते रहते थे और इसी प्रयोग में कुनाफा का जन्म हो गया। वैसे, तुर्की की मिठाई के नाम पर चौंकने वालों को शायद पता नहीं होगा कि हमारे शहर शहर मिलने वाली और घर घर में खाई जाने वाली रसीली और लज़ीज़ जलेबी भी यहीं से आई है।  खैर, कुनाफा एक पारंपरिक अरब मिठाई है और पूरे अरब जगत में लोकप्रिय है। इसे अक्सर विशेष अवसरों और छुट्टियों में खाया और खिलाया जाता है। पिछले कुछ समय से भारत में भी कुनाफा के मुरीद तेजी से बढ़े हैं और अब दिल्ली मुंबई ही नहीं भोपाल इंदौर जैसे शहरों में भी यह उपलब्ध है। वैसे, भारत में आकर इसने भी पिज़्ज़ा की तरह रूप और स्वाद बदलकर भारतीय चोला पहन लिया है जैसे पिज़्ज़ा ने पनीर और कबाब के साथ ...

ये नहीं प्यारे कोई मामूली अंडा..!!

चित्र
  ‘आओ सिखाऊँ तुम्हें, अंडे का फंडा इसमें छिपा है जीवन का फलसफ़ा अंडे में अंडा,फंडे में फंडा…।’ फिल्म ‘जोड़ी नंबर-एक’ का यह गाना भले ही मनोरंजन के लिए हो लेकिन अंडों में वाकई जीवन का फलसफा छिपा होता है और यदि वह अंडा ‘संडे हो या मंडे, रोज खाएं अंडे’ विज्ञापन वाला या हमारे राज्य की शान ‘कड़कनाथ’ का न होकर दुनिया के सबसे बड़े और शायद सबसे खतरनाक डायनासोर का हो तो सारा स्वाद धरा रह जाएगा।  डायनासोर तो अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनके अंडे जरूर इतिहास से वर्तमान को जोड़ने की अहम कड़ी हैं। अब करोड़ों साल पहले पाए जाने वाले डायनासोर के अंडे कोई समोसा या ब्रेड पकौड़ा तो हैं नहीं कि कहीं भी मिल जाएंगे। सबसे पहले तो इन अंडों का मिलना और फिर इतने साल बाद देखने का अवसर मिलना वाकई प्रकृति और विज्ञान के समन्वय के चमत्कार से कम नहीं है। वैसे, व्यंग्यात्मक अंदाज में  कहें तो असल डायनासोर भले ही नहीं बचे लेकिन इंसानों के भेष में डायनासोर लगातार बढ़ रहे हैं। इनमें से कोई अरबों रुपए खा जाता है तो कोई सोना निगलने-उगलने लगता है। खैर, मूल विषय पर लौटते हैं…हाल ही भोपाल में अंतरराष्ट्रीय वन ...

चालीस साल का कलंक है, मिटने में समय तो लगेगा

चित्र
जैसे-जैसे कंटेनरों का काफिला धीरे-धीरे भोपाल की सरहद को पार करते हुए आगे बढ़ रहा था वैसे-वैसे भोपाल के लोगों की जान में जान आ रही थी। आखिर, दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंककर पीता है और जब बात हजारों-लाखों परिवारों की तबाही के दर्द की हो तो अतिरिक्त सावधानी तो बनती ही है। इसलिए प्रशासन ने भी सुरक्षा,सतर्कता,सजगता, सावधानी और समझाइश में अधिकतम मानकों का पालन कर अपनी ओर से कोई कमी नहीं रहने दी।  हम बात कर रहे हैं, भोपाल में दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना की जन्मदाता यूनियन कार्बाइड फैक्टरी में जमा अवशिष्ट या सरल भाषा में कहें तो जहरीले कचरे को यहां से हटाने की । हो सकता है कि दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में कचरे के पहाड़ों के साए में रह रहे लोगों के लिए यह सामान्य कचरा प्रबंधन की कवायद हो या फिर देशव्यापी स्वच्छता मुहिम का एक हिस्सा, लेकिन भोपाल के लोगों के लिए यह 40 साल के डर के बाद चिर परिचित दुश्मन से मिली मुक्ति है, आसन्न मंडराते खौफ से छुटकारा है, नासूर बन गए घाव की मरहम पट्टी है और देश की स्वच्छतम राजधानी के माथे पर लगा कलंक कुछ कम करने जैसी उपलब्धि है।  यूनियन कार्बाइ...

एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग..!!

चित्र
हम इंसान भी विचित्र होते हैं। एक चेहरे में कई चेहरे छुपाकर रखते हैं। नए साल में नए विचार और नए संकल्प लेना भी कुछ इसी तरह का मामला होता है । हाल ही में इंदौर के एक नव निर्मित मॉल के प्ले जोन में बने ऐसे कक्ष में जाने का मौका मिला जिसमें मिरर के जरिए एक ही तस्वीर की कई इमेज रची जा रही थीं,तभी यह ख्याल आया कि वास्तविक जीवन में भी हमें कितनी भूमिकाओं का निर्वाह करना पड़ता है और इसके लिए हमें एक चेहरे में कितने चेहरे लगाने पड़ते हैं। फिल्म दाग़ में साहिर लुधियानवी भी कुछ इसी तरह की बात कह चुके हैं। उन्होंने लिखा है: ‘एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग, जब चाहें बना ले अपना किसी को, जब चाहें अपनों को भी,  बेगाना बना देते हैं लोग।’ जैसा कि हम जानते हैं कि एक चेहरे में कई चेहरे छुपे होते हैं…का मतलब है कि एक व्यक्ति का बाहरी रूप या व्यक्तित्व उसके अंदर छिपे कई पहलुओं को पूरी तरह से नहीं दर्शाता। हर इंसान के अंदर एक से अधिक रूप, विचार, भावनाएँ और अनुभव होते हैं, जो समय, स्थिति और परिवेश के साथ बदलते रहते हैं। इसका मतलब यह है कि एक व्यक्ति केवल अपनी बाहरी पहचान के आधार पर नहीं पहचाना जा ...