कारगिल युद्ध: स्वर्णिम वीरता की रजत जयंती

आज की ही सी बात लगती है जब कैप्टन विक्रम बत्रा के शब्द ‘ये दिल मांगे मोर’ देश के हर घर का प्रिय मंत्र बन गए थे और ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे, लेफ्टिनेंट बलवान सिंह, कैप्टन एन केंगुरुसे, कैप्टन अनुज नैयर और राइफलमैन संजय कुमार जैसे तमाम बहादुरों की वीरता के किस्से घर घर में कहानियों की तरह गूंजने लगे थे। इसी तरह तोलोलिंग, टाइगर हिल, द्रास, मरपोला, काकसर, मुस्कोह और बटालिक जैसे अनजान नाम आम लोगों की जुबां पर चढ़ गए थे। दुनिया की सबसे कठिन जंग में युवा सैनिकों के जोश, होश, जज्बे,रणनीति, साहस और चट्टान की तरह बुलंद हौसलों के कारण सुरक्षित और मजबूती से किलेबंदी कर चुकी दुश्मन की सेना को एक बार फिर करारी पराजय की धूल चाटना पड़ा था। साथ ही, दुनिया भर में किरकिरी हुई वह अलग। भारत हमेशा ही शांति से किसी समस्या के समाधान का पक्षधर रहा है और पहले हमला नहीं करने की अपनी नीति पर देश आज भी कायम है लेकिन जब बात देश की अस्मिता, सुरक्षा और सम्प्रभुता पर आए जाए तो फिर देश के सम्मान और आन बान शान की खातिर युद्ध ही एकमात्र विकल्प शेष रह जाता है। इस साल हम भारतीय रण बां...