कारगिल युद्ध: स्वर्णिम वीरता की रजत जयंती

आज की ही सी बात लगती है जब कैप्टन विक्रम बत्रा के शब्द ‘ये दिल मांगे मोर’ देश के हर घर का प्रिय मंत्र बन गए थे और ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे, लेफ्टिनेंट बलवान सिंह, कैप्टन एन केंगुरुसे, कैप्टन अनुज नैयर और राइफलमैन संजय कुमार जैसे तमाम बहादुरों की वीरता के किस्से घर घर में कहानियों की तरह गूंजने लगे थे। इसी तरह तोलोलिंग, टाइगर हिल, द्रास,  मरपोला, काकसर, मुस्कोह और बटालिक जैसे अनजान नाम आम लोगों की जुबां पर चढ़ गए थे। दुनिया की सबसे कठिन जंग में युवा सैनिकों के जोश, होश, जज्बे,रणनीति, साहस और चट्टान की तरह बुलंद हौसलों के कारण सुरक्षित और मजबूती से किलेबंदी कर चुकी दुश्मन की सेना को एक बार फिर करारी पराजय की धूल चाटना पड़ा था। साथ ही, दुनिया भर में किरकिरी हुई वह अलग।


भारत हमेशा ही शांति से किसी समस्या के समाधान का पक्षधर रहा है और पहले हमला नहीं करने की अपनी नीति पर देश आज भी कायम है लेकिन जब बात देश की अस्मिता, सुरक्षा और सम्प्रभुता पर आए जाए तो फिर देश के सम्मान और आन बान शान की खातिर युद्ध ही एकमात्र विकल्प शेष रह जाता है। इस साल हम भारतीय रण बांकुरों की इसी स्वर्णिम वीरता की रजत जयंती मना रहे हैं। आज से 25 वर्ष पहले भारत के चिर-परिचित दुश्मन पाकिस्तान ने हमेशा की तरह अपनी नापाक हरकतों से दोनों देशों को युद्ध के मुहाने पर ला खड़ा किया था। भारतीय सेना की ओर से प्रतिउत्तर की कवायद दो माह की लम्बी लड़ाई के बाद फतह में तब्दील हो पाई। इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ एक लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी। भारतीय जवानों ने अपने खून से भारत माता के माथे पर शौर्य का टीका लगाकर उसके मान में श्रीवृद्धि की।  


कारगिल युद्ध के नाम से विख्यात भारतीय सैनिकों की इस वीरगाथा को ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है। 26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में विजय हासिल की थी। इस दिन को हर वर्ष विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। करीब दो महीने तक चला कारगिल युद्ध भारतीय सेना के साहस और जाँबाजी का ऐसा उदाहरण है जिस पर हर भारतीय देशवासी को गर्व है। करीब 15 हजार से 18 हजार फीट की ऊँचाई और माइनस 10 डिग्री तापमान पर बर्फीली चोटियों पर लड़ी गई इस जंग में कारगिल वॉर मेमोरियल की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक 674 बहादुर सैनिकों ने शहादत दी। इनमें से 4 को सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र,10 को महावीर चक्र और 70 को वीर चक्र से सम्मानित किया गया। युद्ध में 1300 से ज्यादा सैनिक घायल हुए थे। वहीं, भारतीय सैनिकों ने विपरीत हालात में युद्ध करते हुए भी 2700 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था जबकि 750 पाकिस्तानी सैनिक मैदान में पीठ दिखाकर भाग गए थे।


भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष की नींव पाकिस्तान ने ही रखी थी । पाकिस्तान की सेना ने उग्रवादियों की आड़ लेकर भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की थी। पाकिस्तान ने दावा किया कि लडऩे वाले सभी कश्मीरी उग्रवादी हैं, लेकिन युद्ध में बरामद हुए दस्तावेज़ों और पाकिस्तानी नेताओं के बयानों से साबित हुआ कि पाकिस्तान की सेना प्रत्यक्ष रूप में इस युद्ध में शामिल थी। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर ताबड़तोड़ हमलों और अंतर राष्ट्रीय कूटनीति से पाकिस्तान को मुंह की खाकर वापस जाने पर मजबूर कर दिया था  । यह युद्ध ऊँचाई वाले इलाके पर हुआ और भारतीय सेनाओं को लडऩे में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।  युद्ध की शुरुआत 3 मई 1999 को हो गई थी जब पाकिस्तान ने कारगिल की ऊंची पहाडिय़ों पर घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था। l बताया जाता है कि 8 मई 1999 को पाकिस्तान की 6 नॉर्दर्न लाइट इंफैंट्री और पाकिस्तानी स्पेशल सर्विसेस ग्रुप ने कारगिल की चोटियों पर राशन पानी और अत्याधुनिक हथियारों के साथ कब्जा जमा लिया था। बताया जाता है कि पाकिस्तानी घुसपैठियों को सेना के साथ कश्मीरी गुरिल्ला और अफगानी लड़ाकों का भी साथ मिला था. लेकिन कुछ भारतीय चरवाहों की नजर उन पर पड़ गई और उन्होंने भारतीय सेना को इसकी खबर दे दी। इस घटना और सैन्य सजगता ने पाकिस्तान के नापाक इरादों की पोल खोल दी।


बताया जाता है कि पाकिस्तान ने नेशनल हाइवे 1ए पर कब्जा कर इस पूरे इलाके को भारत से अलग करने की साजिश रची थी। इस हाइवे को श्रीनगर और लेह की लाइफलाइन माना जाता है. इस पूरे इलाके में केवल यही एक ऐसी सड़क है जो हर मौसम में उपयोगी है और सरहद पर रसद पहुंचाने का एकमात्र जरिया।पाकिस्तान ने एक तरह से सियाचिन ग्लेशियर क्षेत्र में भारत की सप्लाई लाइन काट कर उस पूरे इलाके पर नियंत्रण पाने की साजिश रची थी जिससे कश्मीर को हथियाने का वर्षों पुराना ख्वाब पूरा किया जा सके। 


कारगिल की लड़ाई शुरू में भारत के लिए काफी मुश्किल साबित हुई थी, लेकिन भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस,बोफोर्स तोपों और भारतीय वायुसेना की त्रिमूर्ति ने जंग की पूरी तस्वीर बदल दी। बोफोर्स तोपों के सटीक और जोरदार हमलों ने पाकिस्तानी चौकियों को पूरी तरह तबाह कर दिया । ऊंचाई पर होने के कारण मजबूत स्थिति और पूरी तैयारी के बाद भी पाकिस्तानी सैनिकों की  भारतीय सैनिकों की दिलेरी के आगे एक नहीं चल पाई और उन्हें बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी । 84 दिनों तक भारत-पाक के बीच चले इस युद्ध में थल सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ के जरिए दुश्मनों को धूल चटाई तो वायु सेना के ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ ने दुश्मन देश के हौसलों को पस्त कर दिया था। कारगिल में वायु सेना ने आक्रामक के साथ मनोवैज्ञानिक भूमिका निभाई। पहले तो बर्फीली पहाड़ियों पर लड़ाकू विमानों की धमाचौकड़ी ने पाकिस्तानी सैनिकों के दिल में खौफ पैदा कर दिया और फिर वायुसेना ने ताबड़तोड़ बम बरसाकर मजबूत दुश्मन को बर्फ में दबा दिया। भारतीय वायुसेना के मिग-27 और मिग-29 विमानों और एमआई 17 हेलीकाप्टर ने कहर बरपा दिया।  इस युद्ध में बड़ी संख्या में रॉकेट और बमों का इस्तेमाल किया गया। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक कारगिल युद्ध के दौरान कुल मिलाकर, भारतीय वायुसेना ने लगभग 5,000 स्ट्राइक मिशन, 350 टोही मिशन और लगभग 800 एस्कॉर्ट उड़ानें भरीं।  इस युद्ध में भारत ने तो कम खोया, पर पाकिस्तान बर्बाद हो गया। जंग के बाद पाकिस्तान में राजनैतिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ गई और नवाज शरीफ की सरकार को हटाकर परवेज मुशर्रफ सत्ता पर काबिज हो गए। वहीं, भारत में जंग ने देशप्रेम की गंगा बहा दी और अर्थव्यवस्था को भी काफी मजबूती मिली। 


कारगिल की लड़ाई से सीख लेकर भारत ने सीमा पर सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम किए। सरकार ने एक तरफ जहां रक्षा बजट को और बढ़ाया, वहीं सेना की क्षमता बढ़ाने पर भी काम शुरू हुआ।  कारगिल युद्ध इतिहास के पन्नों में पाकिस्तान की पराजय और भारत की स्वर्णिम विजय के रूप में दर्ज है।कारगिल युद्ध की इस विजय ने साबित कर दिया था कि भारत मां की रक्षा के लिए इसके वीर सपूत अपने लहू से देश की धरती को सींच सकते हैं, लेकिन देश की अखंडता और संप्रभुता पर आंच नहीं सहन कर सकते. यह युद्ध दुश्मन की कायरता और हिंदुस्तान के रणबांकुरों के शौर्य की अनूठी दास्तां है।



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