कब तक हमसे बचोगे धुस्का..!!

इतनी शिद्दत से यदि भगवान को भी याद किया होता तो शायद वे भी पसीज जाते लेकिन ‘धुस्का’ को मुझ पर कोई दया नहीं आई। 

धुस्का की तलाश में हमने रांची के वे सभी इलाके छान मारे, जहां आमतौर पर धुस्का की मौजूदगी पाई जाती है लेकिन तलाश पूरी नहीं हो पाई। धुस्का और इसकी उपलब्धता के इलाकों के जानकार साथियों की सहायता भी ली लेकिन उनमें से अधिकतर ने हाथ खड़े कर दिए। यहां तक कि वापिसी में एयरपोर्ट के रास्ते में हमने सभी संभावित ठिकानों पर छापेमारी की लेकिन जैसे ईडी, सीबीआई या पुलिस के डर से अपराधी छिप जाते हैं,इसी तरह धुस्का भी जैसे गायब हो गया था। 

आखिर,हमने ही हार मान ली और दिल पक्का कर अगली बार धुस्का के लिए ही झारखंड की यात्रा करने की प्रतिज्ञा के साथ वापसी की उड़ान पकड़ ली।  झारखंड-बिहार से बाहर के मित्रों के लिए धुस्का कुछ उसी तरह की अबूझ पहेली है जैसे महानगरों के लोगों और शायद नई पीढ़ी के लिए टपका। 

धुस्का और टपका वैसे तो अलग अलग विषय हैं और इनमें कोई समानता भी नहीं है।  लेकिन,हमने फिर भी एक समानता तलाश ही नहीं…पानी। टपका आमतौर पर बारिश में पैदा होता है और घर के कोने कोने में प्रकट होकर रहवासियों का जीना दूभर कर देता है। नई पीढ़ी की जानकारी के लिए टपका घर की छत से टपकते पानी को कहते हैं। पक्की छत पर तो वाटर प्रूफिंग जैसे उपायों से इसे रोक सकते हैं लेकिन कच्चे घरों में यह नींद हराम कर देता है। वहीं,धुस्का मुंह में पानी ला देता है और न मिल पाए तो मन में बैचेनी।  

खैर, ज्यादा पहेलियां न बुझाते हुए साफ कर दूं कि ‘धुस्का’ दरअसल झारखंड का एक पारंपरिक व्यंजन है जिसे सामान्य रूप से नाश्ते में खाया जाता है। शहरी अंदाज में इसे देशी स्नैक्स कह सकते हैं। आंचलिक बोलियों में इसे ढुस्का, दुष्का, दुस्का और ढूस्का जैसे तमाम नामों से जाना जाता है। बोलचाल की भाषा में और गैर झारखंडी लोगों के समझने और बनाने के तरीके के कारण हम इसे मालपुआ का गरीब भाई कह सकते और इसमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री के लिहाज़ से यह इडली डोसा खानदान का लगता है। यह चावल की बहुतायत वाले क्षेत्रों के अनुरूप व्यंजन है लेकिन स्वाद और ऊर्जा से भरपूर।    

धुस्का, सामान्यतः चावल,चने और उड़द की दाल को निर्धारित मात्रा में मिलाकर बनाया जाता है। थोड़ी बहुत कोशिश के बाद गूगल गुरु इसको बनाने की चुनिंदा विधियां भी पेश कर देते हैं।धुस्का बनाने के लिए चावल और दालों को रात भर पानी में फुलाने के बाद इन्हें मिक्सी में पीस लेते हैं। फिर अदरक, मिर्ची और मनचाहे मसालों के साथ थोड़ा सा ईनो मिला कर धुस्का बनाने का पहला चरण पूरा हो जाता है। फिर इस बेसन के पकौड़े जैसे घोल/बैटर को बड़े चम्मच से तेल में डालकर सुनहरा होने तक तलते हैं। 

धुस्का को आमतौर पर आलू या छोले की सब्जी के साथ खाया जाता है।  धुस्का से हमारी मुलाकात भलेहि इस दफे टल गई लेकिन उसने एक फ़िक्र भी बढ़ा दी। 


दरअसल, चिंता की बात यह है कि, झारखंड क्या सभी राज्यों से उनके मूल या पारंपरिक व्यंजन लुफ्त होते जा रहे हैं और उनका स्थान मोमो, पिज्जा, बर्गर, चाउमीन जैसे व्यंजन तेजी से ले रहे हैं। झारखंड में भी अब सार्वजनिक आयोजनों, शादी विवाह और अन्य पार्टियों में चाइनीज तो दिखता है लेकिन धुस्का गायब होता जा रहा है। अभी लिट्टी चोखा जरूर बिहार के साथ साथ यहां भी अपनी बादशाहत बनाए हुए है लेकिन यही हाल रहा तो लिट्टी भी धुस्का, छिलका रोटी या माडूआ रोटी की तरह स्थानीय खानपान का हिस्सा नहीं रह जाएगी।

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