लू से भी बचिए और लू उतारने से भी..!!
आमतौर पर परस्पर बोलचाल में लू या लपट से जुड़े एक मुहावरे का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है। यह मुहावरा है ‘लू उतारना’। कहीं भी, विवाद बढ़ने पर यह कहा जाता है कि हम ‘दो मिनट में तुम्हारी लू उतार’ देंगे। इस मुहावरे में लू से आशय निश्चित तौर पर घमंड उतारने या बेइज्जती करने से है, लेकिन तकनीकी तौर पर देखें तो यह मुहावरा भी लू से जुड़ी गर्मी की वजह से ही रचा गया होगा । दिमाग पर गर्मी चढ़ना भी एक तरह से लू लगने जैसा ही है । हम सब जानते हैं कि गर्मी के दिनों में लू किस हद तक खतरनाक होती है। अब आपके दिमाग में यह सवाल जरूर आ सकता है कि विदा लेते मानसून और ठंडक के आगमन के बीच लू का क्या काम? लू, बेमौसम बरसात की तरह अभी कैसे टपक पड़ी तो इसकी जरूरत इसलिए पड़ी है क्योंकि मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में लू को लेकर एक बड़ा फैसला किया है। इस फैसले में लू को प्राकृतिक आपदा में शामिल कर लिया गया है । यह कदम उठाने वाला मप्र देश का संभवतः तीसरा या चौथा राज्य है। अब तक केरल या दक्षिण के गंभीर लू ग्रस्त राज्यों ने ही इस दिशा में पहल की है। इस फैसले का फायदा यह होगा कि अब लू से होने वाली मृत्यु के दौरान मप्र में भी मृतक के परिजनों को उसी तरह से आर्थिक सहायता मिल सकेगी जिस तरह अन्य प्राकृतिक आपदाओं में मिलती है। हमारे प्रदेश में सामान्य तौर पर प्राकृतिक आपदाओं में मृत्यु पर 4 लाख रुपए की मुआवजा राशि या आर्थिक सहायता सरकार की ओर से दी जाती है। अब यह सहायता लू से प्रभावित परिवारों को भी मिल सकेगी। एयर कंडीशंड घरों और एसी कारों में जीवन यापन करने वाले लोगों के लिए शायद लू किसी चिंता का विषय न हो लेकिन हाड़-तोड़ मेहनत कर जीवनयापन करने वाले लोगों के लिए लू हर साल किसी संकट से काम नहीं है। खास तौर पर अप्रैल,मई और जून के महीने उनके लिए किसी आपदा से काम नहीं होते। आए दिन लू लगने और लू से मृत्यु की खबरें अखबार के पन्नों को रंगती रहती है लेकिन यह शायद कम लोग ही जानते होंगे की लू से होने वाली मौतें कई बीमारियों से होने वाली मौतों को भी पीछे छोड़ देती हैं। एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में हर साल लू के कारण डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों की मृत्यु होती है। इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि दुनिया भर में हर साल लू से होने वाली मौतों में भारत का हिस्सा सबसे ज़्यादा है। भारत के बाद चीन और रूस का नंबर आता है। आस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी में किए गए अध्ययन के मुताबिक, लू से होने वाली मौतें गर्मी से जुड़ी सभी मौतों का करीब एक तिहाई होती हैं। इसी अध्ययन के मुताबिक, दुनिया भर में होने वाली कुल मौतों का 1 फ़ीसदी हिस्सा लू से होने वाली मौतें होती हैं। लू से हर गर्मियों में होने वाली कुल 1.53 लाख मौतों में से करीब आधी मौतें एशिया में और 30 फ़ीसदी से ज़्यादा मौतें यूरोप में होती हैं। इस रिसर्च के नतीजों के अनुसार, दुनिया भर में 30 वर्षों के बीच लू की वजह से करीब 45 लाख 92 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई है। अपने देश की बात करें तो यहां हर साल लू से औसतन 31 हजार 748 मौतें हुई हैं। लू से दुनिया भर में और भारत में मरने वाले लोगों के आंकड़ों की तुलना करें तो लू के कारण विश्व में होने वाली कुल मौतों में से हर 5वीं मौत भारत में हुई है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इंसानी शरीर इस तरह से बना है कि वह एक हद तक ही गर्मी और सर्दी को झेल सकता है। अगर गर्मी के दिनों में पारा 42 डिग्री सेल्सियस से ऊपर है और लू चल रही हैं तो हम सभी को सावधानी बरतते हुए घर के अंदर ही रहना चाहिए। दरअसल गर्म हवाओं और सूरज की तीखी किरणों के कारण शरीर का तापमान तेजी से बढ़ने लगता है और खून के गर्म होने पर पहले सांस लेने में दिक्कत आती है और फिर ब्लड प्रेशर कम होने लगता है । इसके बाद धीरे-धीरे शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं और कुछ देर में प्रभावित व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है इसीलिए लू के दौरान घर के बाहर के सारे काम सुबह 10 बजे से पहले या शाम को 6 बजे के बाद करने की सलाह दी जाती है। सरकार द्वारा लू को प्राकृतिक आपदा की श्रेणी में शामिल करने से प्रभावित परिवारों की मुश्किलें अवश्य ही कम होंगी और खासतौर पर उन परिवारों को लाभ होगा जिनके परिवार के कमाऊ सदस्य की लू के कारण मृत्यु हो जाती है। हालांकि सबसे अच्छा तरीका तो यही है कि लू से बचा जाए और तमाम सावधानियां बरती जाएं। वैसे, गुस्से में आपा खो देने वाले लोगों को भी ‘दो मिनट में लू उतार देंगे’ जैसे मुहावरे का इस्तेमाल करते समय सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि यदि सामने वाला भारी पड़ गया तो आपकी लू उतरते देर नहीं लगेगी। वक्त का तकाज़ा यही है कि लू से भी बचे और लू उतारने से भी…।
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