मीठा राजमार्ग…जहां बन रहे है मदहोश करने वाले फूल !!
तो यह है मप्र का राजमार्ग क्रमांक 45 । इन दिनों, जैसे ही आप भोपाल से बरेली होते हुए नरसिंहपुर जिले की ओर बढ़ते हैं तो आप को एक मीठी, मादक सी और जानी पहचानी सी खुशबू अपनी ओर खींचने लगती है। जैसे जैसे आप नरसिंहपुर के क़रीब पहुंचने लगते हैं राजमार्ग पर मिठास और बढ़ जाती है तथा आपको रुककर इसे महसूस करने के लिए खींचती है। यदि रुक गए तो तय है कि जुबान पर फूल की मिठास लिए बिना आगे नहीं बढ़ सकते और नहीं रुके तब भी दिल ओ दिमाग पर छा गई इस मीठी सी मदहोश कर देने वाली खुशबू से पीछा नहीं छुड़ा सकते।
राजमार्ग क्रमांक 45 पर हर साल इन दिनों में यह मिठास और मदहोशी छाई रहती है और अब तो यह मीठापन यहां के लोगों के स्वभाव और तासीर का हिस्सा बन गया है। तभी तो ओशो यानि आचार्य रजनीश की वाणी और आज के दौर के नामी अभिनेता आशुतोष राणा की आवाज़ में तमाम मंत्र और स्त्रोत कानों में मिश्री सी घोल देते हैं।
खास बात यह है कि साल दर साल इस राजमार्ग पर मिठास का कारोबार फैलता जा रहा है। दरअसल, यह मिठास गन्ने से बन रहे गुड़ की है। मोटे तौर पर बरेली से जबलपुर तक और खासतौर पर नरसिंहपुर जिला गन्ने की खेती के लिए प्रदेश भर में मशहूर है। यहां के गुड़ का तो यह हाल है कि नरसिंहपुर की करेली तहसील का गुड़ ‘करेली के गुड़’ के नाम से प्रदेश तो क्या देश में भी हाथों हाथ लिया जाता है।
इन दिनों इस राजमार्ग के दोनों ओर गुड़ बनाने का काम चरम पर है और मद्धम आंच पर पकते गन्ने के रस की खुशबू इस सड़क को मीठा राजमार्ग बना रही है । थोड़ी-थोड़ी दूरी पर भट्ठियों में उबलता गन्ने का रस, कढ़ाईयों में ऊपर तैरता फूल और फिर गरमागरम खोए जैसे गुड़ से अलग अलग मात्रा और आकार प्रकार में बनती परिया।
गुड़ को एक रेडीमेड उत्पाद समझने वाले दोस्तों को फूल और परिया जैसे शब्द अबूझ लग सकते हैं लेकिन छोता, नोरपा, जरी और मरी सुनकर और यह जानकर कि इनमें नाम के विपरीत मरी सबसे कीमती है,वे चकरा भी सकते हैं। वैसे, नोरपा पहले साल की गन्ने की फसल को कहते हैं, जरी दूसरे साल और मरी तीसरे साल की फसल है। छोता रस निकलने के बाद गन्ने के सूखे छिलके हैं और फूल रस और गुड़ के बीच की अवस्था जो सबसे स्वादिष्ट होती है।
उपलब्ध जानकारी के मुताबिक नरसिंहपुर ज़िले में करीब 65 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन पर गन्ने की खेती हो रही है। ज़िले में अब बड़ी मात्रा में जैविक पद्धति से गन्ना उगाने और जैविक गुड़ बनाने का काम भी होने लगा है। एक अनुमान के मुताबिक यहां मौजूद कई शुगर मिल के बाद भी 3000 से ज्यादा स्थानों पर गुड़ बनता है।
नरसिंहपुर में गन्ने की फसल के इतिहास की बात करें तो पुराने संदर्भों से पता चलता है कि 1822 में विलियम हेनरी स्लीमन नामक गोरे अधिकारी ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से एक्साइज ऑफिसर बनकर यहां तैनात हुए और उन्होंने गन्ना की फसल लगाने का श्रीगणेश किया। पहले यहां से मजदूरों को विदेश ले जाकर गन्ने की खेती कराते थे लेकिन, फिर अंग्रेजों ने सोचा कि मजदूरों को वहां न ले जाकर यहीं अच्छी गुणवत्ता का गन्ना लाकर खेती की जाए और फिर उससे बने उत्पाद वहां ले जाएं।
इस तरह, गन्ने का जादू यहां के लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा और अब तो गन्ना और गुड़ यहां की पहचान बन गए हैं। आंकड़ों पर नज़र दौड़ाएं तो यहां क़रीब 800 करोड़ रुपए का गुड़ उत्पादन एवं लगभग 650 करोड़ का चीनी और खांडसारी का उत्पादन हो रहा है।
दरअसल, इस क्षेत्र का गुड़ अपनी गुणवत्ता के लिए खासतौर पर जाना जाता है। यहां का गुड़ बहुत मीठा रहता है। अब तो अदरक और इलायची जैसे तमाम फ्लेवर के साथ जोड़ी बनाकर यह और भी स्वादिष्ट होता जा रहा है। लैपटॉप और ईयर बड्स वाली नई हाईटेक पीढ़ी की जानकारी के लिए बताते चले कि गुड़ बनाने के लिए गन्ने का पहले रस निकाला जाता है।
हां, बिल्कुल वही रस जो बाजार में हम अदरक,पुदीना,धनिया और नींबू के साथ मिलाकर पीते हैं। इस रस को फिर कढ़ाई में ओटाते हैं बिल्कुल दूध से खोया बनाने जैसे। कई घंटे तक उबलने के बाद यह गाढ़ा होकर गुड़ बन जाता है और सांचों में ढल कर अलग अलग आकार प्रकार ले लेता है। हालांकि, समय के साथ लाभ कमाने की चाह बढ़ती जा रही है और एक कड़ाही में पकाकर बनने वाला शुद्ध, सेहतमंद और स्वादिष्ट देशी गुड़ अब मिलावट के कारण संख्या में तो बढ़ रहा है लेकिन गुणवत्ता लगातार घट रही है।
गन्ने की एक ओर विशेषता यह है कि इसका कोई भी हिस्सा बेकार नहीं जाता। यहां तक कि रस निकालने के बाद बचा अवशेष छोता भी ईधन के रूप में काम आ जाता है।
…तो इस गन्ना कथा का वास्तविक आनंद उठाने के लिए निकलिए मीठे राजमार्ग पर और मदहोशी तक डूबकर आइए मीठी खुशबू,नींबू वाले गन्ने के रस ,स्वादिष्ट फूल ,गरम गुड़ में और सहेज लाइए सालभर का कोटा क्योंकि यह मौका फिर अगले साल ही मिल पाएगा।
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