संदेश

हम तो रंग में भी भेदभाव पर उतर आए...!!!

चित्र
हम तो रंग के मामले में भी भेदभाव पर उतारू हो गए. सदियों से महिलाओं के साथ भेदभाव करने की हमारी आदत बरकरार है तभी तो प्रकृति के रंगों के इन्द्रधनुष में से छः रंग हमने अधिकार पूर्वक अपने आप रख लिए और एक गुलाबी रंग महिलाओं के नाम कर दिया. मतलब फिर वही आधिपत्य भाव और एक रंग भी यह अहसान जताते हुए दे रहे हैं कि देखो हम कितना सम्मान करते हैं तुम्हारा. यदि वैज्ञानिक नज़रिए से देखा जाए तो गुलाबी तो मूल रंग भी नहीं है बल्कि यह भी लाल-सफेद के मेल से बना है अर्थात् जो इकलौता रंग महिलाओं को दे रहे हैं वह भी खालिस रंग नहीं मिलावटी है.   दिलचस्प बात तो यह है कि यहाँ भी हमने इतना जरुरी नहीं समझा कि महिलाओं से एक बार पूछ लें कि उन्हें अपने लिए कौन सा रंग चाहिए मसलन बलिदानी केसरिया या खेतों में परिश्रम और उन्नति का प्रतीक हरा या ताक़त को प्रतिबिंबित करता लाल. चूँकि गुलाबी रंग में हमें अपना मर्दानापन, अपना रौब और अपनी ताक़त कुछ कम लगी तो हमने महिलाओं पर अहसान करते हुए यह रंग उन्हें थमा दिया. यदि इस रंग में भी हमें कहीं से ‘पुरुष-भाव’ नजर आता तो शायद इस पर भी हम कब्ज़ा किये रहते और महिलाओं पर सफेद/क...

भगवान कहीं आप भी तो मज़ाक नहीं कर रहे न.....

चित्र
  “मैसेजबाज़ी कर लो, फीवर है, बोलना मुश्किल है”.....यही आखिरी संवाद था शाहिद भाई के साथ 2 फरवरी को और हम ठहरे निरे मूरख की उनकी बात ही नहीं समझ पाए. सोचा बीमार हैं तो क्यों परेशान करें उन्हें, बाद में बात कर लेंगे और ये सोच ही नहीं पाए कि यह ‘बाद’ अब कभी नहीं आएगा. क्या लिखूं..कैसे लिखूं ..आज वाकई हाथ कांप रहे हैं, दिमाग और हाथों के बीच कोई तालमेल ही नहीं बन रहा. पर यदि शाहिद भाई धुन के पक्के थे तो मैं भी उनसे काम ज़िद्दी नहीं हूँ. कुछ भी हो जाए उनके बारे में लिखूंगा जरुर और आज ही,फिर चाहे वाक्य न बने,व्याकरण गड़बड़ हो या फिर शब्द साथ छोड़ दे. आसान नहीं है शाहिद अनवर होना...और न ही हम जैसे रोजी-रोटी,निजी स्वार्थ और अपने में सिमटे व्यक्ति उनकी तरह हो सकते हैं. उनकी तरह होना तो दूर शाहिद भाई के पदचिन्हों पर चल भी पाएं तो शायद जीवन धन्य हो जाएगा. क्या नहीं थे शाहिद भाई मेरे लिए....मेरे लिए ही हम सभी के लिए...हम सभी यानि सुदीप्त,चिदंबरम,नलिनी,सुप्रशांति,मनीषा,बुलबुल,अजीत, नीरज और राजीव..नाम लिखने बैठूं तो कागज़ कम पड़ जाएंगे पर शाहिद भाई के मुरीद/चाहने वालों/दीवानों के नाम अधूरे रह जा...

बिंदास,बेलौस,बेख़ौफ़...फिर भी अनुशासित जीवनशैली का पर्याय आइज़ोल

चित्र
आइज़ोल...खूबसूरत लोगों का सुन्दर शहर...खूबसूरती केवल चेहरों की नहीं बल्कि व्यवहार की, साफ़ दिल की, शांति और सद्भाव की, अपने शहर को साफ़-स्वच्छ बनाने की जिजीविषा की और मदद को हमेशा तत्पर सहयोगी स्वभाव की. सड़कों पर बिंदास एसयूवी दौड़ाती युवतियां, स्कूटी पर फर्राटा भरती लड़कियां और पेट्रोल पम्प से लेकर हर छोटी-बड़ी दुकान को संभालती महिलाएं.. बेख़ौफ़, बिंदास, बिना किसी भेदभाव के सिगरेट के कश लगाती और नए दौर की बाइक पर खिलखिलाती मस्तीखोर युवा पीढ़ी....न कोई डर और न ही कोई बंदिश...जीने का कुछ अलहदा सा अंदाज़ और इसके बाद भी पूरी तरह से अनुशासित जीवनशैली. उत्सवधर्मिता ऐसी की चार दिन बाद भी क्रिसमस और नए साल की थकान नहीं उतर सकी है इसलिए सरकारी दफ्तरों से लेकर बाज़ार तक चार दिन से बंद हैं. सड़कों/गलियों/मोहल्लों में क्रिसमस की छाप अब तक देखी जा सकती है.पूरा शहर रोशनी से नहाया हुआ है. जगह जगह मौजूद विशालकाय सांता,क्रिसमस ट्री और स्नो मेन, बहुरंगी लाइट से शराबोर चर्च और केक की मनमोहक खुशबू में डूबा पूरा शहर अब तक उनींदा सा है. लोग बस सुबह शाम चर्च में प्रार्थना और सेवा के लिए सज-धजकर निकलते हैं और बाक...

पूर्वोत्तर में एचआईवी-एड्स: इलाज से ज्यादा प्रभावी है जागरूक मीडिया

चित्र
देश में एड्स और एचआईवी के मसले पर चर्चा हो और पूर्वोत्तर के राज्यों का जिक्र न हो तो यह बात अधूरी रहेगी क्योंकि यहाँ के कुछ राज्य एचआईवी संक्रमण के मामले सर्वाधिक ज़ोखिम वाली श्रेणी में हैं. हालाँकि, पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा राज्य असम यहाँ के अन्य राज्यों की तुलना में इस बीमारी के फैलाव के लिहाज से काफी पीछे है लेकिन फिर भी पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार या गेटवे होने के कारण जोख़िम के मुहाने पर तो है ही. इसलिए जागरूक मीडिया की भूमिका यहाँ काफी अहम् हो जाती है. खासतौर पर सरकारी और पारंपरिक मीडिया इस बीमारी के प्रति आम लोगों को सावधान एवं सतर्क करने में महत्वपूर्व साबित हो सकता है. इन दिनों पूर्वोत्तर में सबसे बड़ी चिंता भी यही है कि अब तक एचआईवी संक्रमण के मामले में सुरक्षित माने जा रहे राज्य असम में भी अब यह बीमारी धीरे धीरे अपने पैर फैला रही है और वह भी तब जब, एक ओर जहाँ एड्स के सर्वाधिक मामले वाले राज्यों जैसे मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड में संक्रमण कम हो रहा है वहीँ असम में संक्रमण बढ़ रहा हैं. आलम यह है कि असम और इसके पडोसी राज्य त्रिपुरा का नाम अब पूर्वोत्तर के सर्वाधिक जोख़िम वाले राज...

आतंकवाद के बीच पत्रकारिता:कितना दबाव,कितनी निष्पक्ष

चित्र
   नागालैंड के पांच प्रमुख समाचार पत्रों ने 17 नवम्बर को विरोध स्वरुप अपने सम्पादकीय कालम खाली रखे. इनमें तीन अंग्रेजी के और दो स्थानीय भाषाओँ के अखबार हैं. समाचार पत्रों की नाराजगी का कारण असम राइफल्स का वह पत्र है जिसमें सभी समाचार पत्रों से नेशनल सोशलिस्ट कांउसिल आफ नागालैंड-खापलांग (एनएससीएन-के) जैसे आतंकवादी संगठनों के आदेशों/मांगों/निर्देशों इत्यादि से सम्बंधित वक्तव्यों को बतौर समाचार नहीं छापने को कहा गया है. असम राइफल्स का कहना है कि जिन आतंकी संगठनों को सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया है उनसे सम्बंधित समाचार प्रकाशित कर अखबार राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं. वहीँ, इन अख़बारों का मानना है कि असम राइफल्स का यह पत्र मीडिया की आज़ादी के खिलाफ है और कहीं न कहीं प्रेस की स्वतंत्रता का हनन करता है. यहाँ के सबसे प्रमुख समाचार पत्र ‘नागालैंड पोस्ट’ ने सम्पादकीय कालम खाली तो नहीं रखा लेकिन इस आदेश के खिलाफ जरुर लिखा है. समाचार पत्रों के इस रुख का समर्थन नागालैंड प्रेस एसोसिएशन और यहाँ के सबसे शक्तिशाली छात्र संगठन नागा स्टूडेंट फेडरेशन ने भी किया है. सम्पादक...

सात दैत्यों का खात्मा कर रहा है एक योद्धा...!!!

चित्र
मानव आबादी के लिए खतरा बन गए सात दैत्यों से निपटने के लिए अब एक योद्धा ने कमर कस ली है और वह एक एक कर नहीं बल्कि एक साथ इन सात जानलेवा दैत्यों का खात्मा कर कर रहा है. अब तक इन दैत्यों से निपटने के लिए निजी तौर पर कई रक्षक तत्पर दीखते थे लेकिन वे बचाने की बजाए लूटने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे थे लेकिन सही समय पर सरकार की ओर से मैदान में उतरा गया यह योद्धा न केवल बहुमूल्य प्राण बचा रहा है बल्कि जेब पर भी हमला नहीं करता.  आइए, अब जानते हैं मानव सभ्यता के लिए खतरा बन गए सात दैत्यों के बारे में. ये दैत्य हैं- डिपथीरिया ,  काली खांसी ,  टिटनेस ,  पोलियो , टीबी ,  खसरा और हेपटाइटिस - बी जैसी सात घातक बीमारियाँ जो हमारे नवजात बच्चों की नन्ही सी जान पर आफ़त बनकर टूट पड़े हैं. इन्हें बचाने के लिए सरकार ने इन्द्रधनुष नामक जिस योद्धा को मैदान में उतारा है वह दिल्ली से लेकर दीमापुर और महाराष्ट्र से लेकर मणिपुर तक अकेले ही इन दैत्यों से जूझ रहा है. महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को लेकर समय समय पर विशेष अभियान चलाये जाते रहे हैं. इसी श्रंखला में केन्द्रीय स्वास्थ्य और पर...

राष्ट्रीय राजमार्ग-44: जिस पर आप कर सकते हैं धान की खेती..!!!

चित्र
   क्या आप सोच सकते हैं कि देश में कोई राष्ट्रीय राजमार्ग ऐसा भी हो सकता है जहाँ सड़क पर बकायदा धान बोई जा सकती है और जहाँ वाहनों को निकालने के लिए हाथियों की मदद ली जाती है. यदि आप इसे व्यंग्य के तौर पर पढ़-समझ रहे हैं क्योंकि राष्ट्रीय राजमार्ग का नाम लेते ही दिमाग में दिल्ली-चंडीगढ़ या दिल्ली-जयपुर जैसी किसी चमचमाती सड़कों की तस्वीर उभर आती है तो यह स्पष्ट कर दें कि यह न केवल सौ टका सच है बल्कि वास्तविक हालात इससे भी बदतर है. फिर भी यदि आपको भरोसा नहीं हो रहा हो तो एक बार असम को त्रिपुरा से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-44 का जायजा ले लीजिए क्योंकि इसे देखने के बाद या तो राष्ट्रीय राजमार्ग को लेकर आपकी परिभाषा बदल जाएगी या फिर आप भविष्य में इस सड़क पर आने का सपना भी नहीं देखेंगे. राष्ट्रीय राजमार्ग-44 लगभग 630 किमी लम्बा है जो मेघालय की राजधानी शिलांग से शुरू होकर असम होते हुए त्रिपुरा जाता है और यही एकमात्र राजमार्ग है जो त्रिपुरा को पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों से जोड़ता है. मेघालय और त्रिपुरा के हिस्से में आई सड़क तो कुछ ठीक है परन्तु असम से गुजरने वाली सड़क बद स...

महापुरुषों का अपमान: स्वतंत्रता को स्वेच्छाचारिता में बदलता सोशल मीडिया...!!!

चित्र
यदि आप सोशल मीडिया के किसी भी प्रकार से जुड़े हैं तो शायद आपको भी आज़ादी के जश्न में मगरूर नई पीढ़ी द्वारा क़तर-व्योंत से तैयार मनगढ़ंत दस्तावेजों, आज़ादी के दौर की ख़बरों के नाम पर नए और छदम अखबारों, महापुरुषों के छिद्रान्वेषण और नए प्रतीक गढ़ने के प्रयासों (दुष्प्रयासों) से दो चार होना पड़ा होगा. ये कैसा जश्न है जिसमें सर्वस्वीकार्य आदर्शों को ढहाने और नए कंगूरे बनाने के लिए इतिहास से ही छेड़छाड़ की जा रही है? नए कंगूरे अवश्य रचे जाने चाहिए क्योंकि देश बस कुछ नायकों के सहारे आगे नहीं बढ़ सकता. हर पीढ़ी को अपने दौर के नायक चाहिए लेकिन इसके लिए नया इतिहास रचने और ऐतिहासिक दस्तावेजों को खंगालने की जरुरत है न कि इतिहास को बदलने या विद्रूप करने की.   इस वर्ष स्वाधीनता दिवस पर देशभक्ति के जिस भोंडे प्रदर्शन से सोशल मीडिया रंगा रहा है उससे तो अब हमें अपने स्वाधीनता दिवस को स्वतंत्रता दिवस कहना उपयुक्त लगने लगा है और शायद आने वाले सालों में इसे स्वतंत्रता दिवस के स्थान पर स्वेच्छाचारिता दिवस, उन्मुक्तता दिवस या निरंकुशता दिवस जैसे नए नामों से पुकारा जाना लगे. दरअसल मुझे तो सोशल मीडिया शब्द पर भ...

जब ‘हेलो’ को समझ लिया ख़तरनाक उड़नतश्तरी और नई विपदा

चित्र
किसी के लिए वह खतरनाक उड़नतश्तरी थी जिसमें से ‘पीके’ टाइप हिंदी-अंग्रेजी फिल्मों से दिखाए गए दूसरे ग्रह के वासी(एलियन) उतरेंगे और धरती पर हमला कर सब कुछ बर्बाद कर चले जाएंगे तो किसी की नजर में यह 1980 के दशक में चर्चित स्काईलैब जैसी कोई घटना घटित होने की आशंका थी. पहले ही जादू-टोनों, डायन और तांत्रिकों के इलाक़े के तौर पर कुख्यात असम में ऐसी किसी भी विचित्र आकृति के दिखने से भय,अफ़वाहों और चर्चाओं का दौर तो शुरू होना ही था. वैसे भी इन दिनों यहाँ राष्ट्रीय नागरिकता पंजीयन(एनआरसी) का काम चल रहा है और बड़ी संख्या में दशकों से यहाँ रह रहे गैर असमिया लोग सरकार के रवैये से नाराज़ चल रहे हैं इसलिए कुछ लोग इसे राज्य सरकार की साज़िश भी मान बैठे. उन्हें लगा कि सरकार ने उन्हें डराने और उन पर नज़र रखने के लिए ड्रोन टाइप कोई उपकरण भेजा है.  दरअसल हुआ यह था कि पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम के दक्षिणी हिस्से अर्थात् बराक घाटी के लोगों को बीते दिनों एक दुर्लभ और अदभुत खगोलीय घटना से रूबरू होने का अवसर मिला. संयोग से घटने वाली इस घटना में सूर्य के चारों ओर एक गोलाकार इन्द्रधनुषी चक्र नजर आया. बस ...

बिना वीसा-पासपोर्ट के भारत आए हाथी, अब अदालत में मगजमारी

चित्र
हम इसे शरद जोशी की बहुचर्चित कृति ‘अंधों का हाथी’ या फिर सैय्यद अख्तर मिर्ज़ा की विख्यात फिल्म ‘मोहन जोशी हाज़िर हो’ से जोड़कर ‘अंधों का हाथी अदालत में हाज़िर हो’ जैसा कोई नाम दे सकते हैं. लेकिन यह घटना पूरी तरह से सत्य है और इसमें कोई कथात्मक या रचनात्मक मिलावट भी नहीं है. हाँ, ‘वीर-जारा’ जैसी फिल्मों की तरह इसमें भी दो देश जुड़े हैं. यहाँ भारत तो है ही, साथ में परम्परागत रूप से पकिस्तान न होकर उसके स्थान पर बंगलादेश है. दरअसल मामला यह है कि दो हाथियों को अपने सही मालिक की तलाश में इन दिनों अदालत के चक्कर काटने पड़ रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में सीधे तौर पर हाथियों की कोई गलती नहीं है लेकिन उनके स्वामित्व को लेकर शुरुआत में दो और अब तक छह दावेदारों के सामने आ जाने से मामला दिन-प्रतिदिन पेचीदा होता जा रहा है और और जब पेशी नहीं होती तो वन विभाग को इनकी ख़ातिरदारी करनी पड रही है. हाथियों की भारी भरकम खुराक के कारण उनकी मेजबानी वन विभाग पर भारी पड़ रही है. इस रोचक दास्ताँ की सिलसिलेवार चर्चा करें तो यह किस्सा पूर्वोत्तर में असम के एक छोटे से जिले हैलाकांदी का है. यह इलाका गुवाहा...