संदेश

मिशन दिव्यास्त्र: हर दुश्मन तक सटीक निशाना

चित्र
छोटे पर्दे पर धार्मिक कथाओं पर आधारित धारावाहिकों एवं फिल्मों में हम देखते हैं कि युद्ध के दौरान कोई भी अस्त्र शस्त्र अदृश्य हो जाता है और कभी स्मरण करते ही योद्धा के हाथ में आ जाता है, कोई बाण आग बरसाने लगता है तो कोई पानी से उसे बुझाने की क्षमता रखता है,कोई तीर एकसाथ सैकड़ों तीरों की बारिश कर देता है तो कोई पत्थरों की। ये सभी दिव्यास्त्र हैं। 'दिव्यास्त्र' मतलब दिव्य अस्त्र…ऐसे अस्त्र, जो, उनका इस्तेमाल करने वाले के इशारों पर काम करते हों और एक ही बार में दुश्मन के तमाम ठिकानों को नेस्तनाबूद करने की क्षमता रखते हों। ‘दिव्यास्त्र’ शब्द का उल्लेख आमतौर पर प्राचीन भारतीय पौराणिक ग्रंथों और कथाओं विशेषकर महाभारत और रामायण में मिलता है। नई पीढ़ी को इस शब्द से रूबरू कराने में इन ग्रंथों पर बने धारावाहिकों ने अहम भूमिका निभाई है।  ऐसा बताया जाता है कि देवताओं और ऋषियों द्वारा प्रदत्त ये अस्त्र विशिष्ट देवताओं से जुड़े होते थे और दिव्य शक्तियों से सज्जित ये हथियार काम पूरा करने के बाद ही वापस लौटते थे। एक बार दिव्यास्त्र छोड़ने के बाद उन्हें रोकना भी मुश्किल होता था इसलिए दिव्यास्त्र...

बदलाव का भी लीजिए भरपूर आनंद…!!

चित्र
पीपल लाल-गुलाबी हो रहा है। अब यह बगल में खड़ी हरी भरी जामुन का असर है या फिर फागुन का…होली और रंग पंचमी का..जो भी इन दिनों पीपल महाराज रंग बदल रहे है, जवान हो रहे हैं। आखिर मौसम के बदलाव से पीपल भी कैसे अछूता रह सकता है..चारों तरफ आम की बौर की मादक गंध फैल रही है..सुनहरी रंगत में बौराये आम के वृक्ष ‘..यों गंधी कुछ देत नहीं,तो भी बास सुबास’ की तर्ज पर पूरे वातावरण को अपनी गंध से महका रहे हैं तो पीपल कैसे इस आनंद से पीछे रह सकता है। रही-सही कसर कोयल की कूक से पूरी हो जा रही है..मीठी तान गूंज रही हो,मादक हवा हो तो पीपल का झूमना,नए रंग में रंगना लाज़िमी है..और पीपल ही क्यों, कहीं पतझड़ और कहीं हरे भरे पेड़ों के बीच पलाश भी तो दहक रहा है। अपने सुर्ख लाल रंग से पेड़ों के बीच वह ऐसा दिखाई देता है जैसे विवाह की जमघट में भी कोई नई नवेली दुल्हन अपने सुर्ख जोड़े के कारण दूर से ही नज़र आ जाती है। जहां पलाश का प्रभाव कम होता है वहां गुलमोहर अपने केसरिया पीले रंगों का जादू फैला देता है…वहीं,पीले,लाल, नीले,सफेद,केसरिया जैसे तमाम रंगों से सजी धजी गुलदाऊदी की लताएं दुल्हन की सहेलियों की तरह अपनी सुंदरत...

आइए, मेघा रे मेघा रे...के कोरस से करें मानसून का स्वागत

चित्र
मेघा रे मेघा रे...सुनते ही आँखों के सामने प्रकृति का सबसे बेहतरीन रूप साकार होने लगता है, वातावरण मनमोहक हो जाता है और पूरा परिदृश्य सुहाना लगने लगता है। भीषण गर्मी और भयंकर तपन, उमस, पसीने की चिपचिपाहट के बाद मानसून हमारे लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण प्रकृति,जीव जंतु और पक्षियों के लिए एक सुखद अहसास लेकर आता है। मई की चिल्चालाती गर्मी के साथ ही पूरा देश मानसून की बात जोहने लगता है और जैसे जैसे मानसून के करीब आने का संदेशा मिलता है मन का मयूर नाचने लगता है। पहली बारिश की ठंडक भरी फुहारों में भीगते लोग, पानी में धमा-चौकड़ी करती बच्चों की टोली, झमाझम बारिश के बीच गरमागरम चाय पकौड़े, कोयले की सौंधी आंच पर सिकते भुट्टे....क्या हम इससे अच्छे और मनमोहक दृश्य की कल्पना कर सकते हैं। वैसे भी,भारत में मानसून आमतौर पर 1 जून से 15 सितंबर तक 45 दिनों तक सक्रिय रहता है और देश के ज्यादातर राज्यों में दक्षिण-पश्चिम मानसून ने दस्तक दे दी है।  समुद्र की ओर बढ़ते मेघ जल की लहरों के साथ मिल जाते हैं, जो एक स्थल की खूबसूरती को दोगुना कर देते हैं। उनके संगम पर सूरज की किरणों का खेल, उनकी तेज रोशनी और चांद क...

अलौलिक के साथ आधुनिक बनती अयोध्या

चित्र
कहि न जाइ कछु नगर बिभूती।  जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥ सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ तुलसीदास जी ने लिखा है कि अयोध्या नगरी के ऐश्वर्य का वर्णन ही नहीं किया जा सकता है। ऐसा जान पड़ता है, मानो ब्रह्मा जी की कारीगरी बस इतनी ही है। श्रीरामचन्द्र जी के मुखचन्द्र की छटा देखकर सभी नगरवासी हर प्रकार से सुख की अनुभूति कर रहे हैं। अयोध्या हर भारतीय की सांस्कृतिक चेतना को जागृत करने वाला शहर है । मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की जन्म भूमि और सनातन धर्म की आस्था का केंद्र अयोध्या अपने नए भव्य राम मंदिर की दिव्यता के साथ साथ वर्तमान की आवश्यकता और सुनहरे भविष्य को नई दिशा देने में भी जुटी है। अयोध्या में मंदिर के साथ-साथ कई और विकास योजनाओं और कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है और इन परियोजनाओं के जरिए अयोध्या को अंतर राष्ट्रीय पटल पर प्रमुखतम आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र की पहचान दिलाने के लिए तमाम प्रयास किया जा रहे हैं।  उत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को साकार करते हुए अयोध्या में करीब 60,000 करोड रुपए के निवेश से तमाम विकास कार...

सृजनकर्ता के सृजक

चित्र
बंदउँ बालरूप सोइ रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू॥ मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी॥ भावार्थ- मैं उन्हीं राम के बाल रूप की वंदना करता हूँ, जिनका नाम जपने से सब सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं। मंगल के धाम, अमंगल के हरनेवाले और दशरथ के आँगन में खेलने वाले (बालरूप) राम मुझ पर कृपा करें महीनों तक बस एक ही धुन…राम नाम की धुन, न भोजन की परवाह और न ही आराम की। परिवार को तो वह लगभग भूल ही गए थे। दिन नहीं, हफ्तों तक परिवार से बात नहीं की। बस ध्यान में था तो यही कि पूर्ण पवित्रता का पालन करते हुए भगवान श्रीराम की ऐसी दिव्य,अलौकिक,मनमोहक और अद्भुत मूर्ति का निर्माण करना था जो पहले कभी नहीं बनी हो। हम बात कर रहे हैं अयोध्या में प्रतिष्ठित हुई राम लला की प्रतिमा को बनाने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज की। भगवान श्रीराम के बालरूप वाली इस मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच अत्यधिक चिंतन,मनन और अध्ययन के बाद रखी गई है। दरअसल, हमारे देश में 5 वर्षीय बच्चे की लंबाई औसतन लंबाई 51 इंच के आसपास होती है। भारतीय पूजा पद्धति में 51 अंक बहुत शुभ माना जाता है। इन्हीं सब बातों के मद्देनजर  गर्भगृह में...

अविस्मरणीय अयोध्या

चित्र
कोसलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान। निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूत धनधान्यवान् ॥ अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता | मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम् ||   सरयू नदी के तट पर संतुष्ट जनों से पूर्ण धनधान्य से भरा-पूरा, उत्तरोत्तर उन्नति को प्राप्त कोसल नामक एक बड़ा देश था। इसी देश में मनुष्यों के आदिराजा प्रसिद्ध महाराज मनु की बसाई हुई तथा तीनों लोकों में विख्यात अयोध्या नामक एक नगरी है। जिस धरा पर भगवान श्री राम ने जन्म लिया हो और जहां की माटी में तीनों लोक के स्वामी खेलकर बड़े हुए हों… उस जगह से पवित्र भूमि इस दुनिया में कोई और नहीं हो सकती । अयोध्या को यह सौभाग्य मिला है कि उसने रामलला की जन्म से लेकर उनके राज्य सिंहासन संभलाने तक के दौर को जिया है । आज एक बार फिर अयोध्या विश्व पटल पर चर्चा में है। इसका कारण भी भगवान श्री राम का दिव्य,भव्य और नवनिर्मित मंदिर है। हो सकता है आज की युवा पीढ़ी अयोध्या को मौजूदा स्वरूप में और इस नए मंदिर के कारण ही जाने  लेकिन असलियत यह है कि अयोध्या का अस्तित्व हजारों सालों से है। हमारे वेदों में, धार्मिक ग्रंथों में और अंग्रेजों से लेकर म...

राम लला हुए विराजमान

चित्र
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा, निज आयुध भुजचारी । भूषन बनमाला, नयन बिसाला, सोभासिंधु खरारी ॥ प्रभु के दर्शन नेत्रों को आनंद देने वाले हैं, उनका शरीर मेघों के समान श्‍याम रंग का है तथा उन्होंने अपनी चारों भुजाओं में आयुध धारण किए हैं, दिव्य आभूषण और वन माला धारण की हैं। प्रभु के नेत्र बहुत ही सुंदर और विशाल है। इस प्रकार शोभा के समुद्र और खर नामक राक्षक का वध करने वाले भगवान प्रकट हुए हैं। चंहुओर घंटे-घड़ियाल,शंख, मंजीरे,खड़ताल, ढोल नगाड़े, मृदंग, बांसुरी, वीणा और चिमटा सहित तमाम वाद्य यंत्र अपनी अलग अलग स्वर लहरियों के बाद भी बस एक ही धुन सुना रहे थे…वह थी राम नाम की धुन। घरों में कोई थाली बजा रहा था तो कोई घंटी,किसी ने तालियों की रफ्तार कम नहीं होने दी तो किसी की अंगुलियां माला के मनकों पर नाच रही थीं…हर कोई मस्त था,अलमस्त, मग्न और आतुर…आखिर, पांच सौ सालों की तपस्या एवं इंतज़ार का फल मिल रहा था और हजारों सालों से हमारी आस्था,विश्वास,संस्कृति और मर्यादा के शिखर पुरुष भगवान श्रीराम पधार रहे थे। राम की शक्ति और भक्ति का यह आलम था कि कई दिनों से बादलों में छिपकर अयोध्या को कड़ाके की ठंड से त...