शनिवार, 15 जून 2024

मिशन दिव्यास्त्र: हर दुश्मन तक सटीक निशाना

छोटे पर्दे पर धार्मिक कथाओं पर आधारित धारावाहिकों एवं फिल्मों में हम देखते हैं कि युद्ध के दौरान कोई भी अस्त्र शस्त्र अदृश्य हो जाता है और कभी स्मरण करते ही योद्धा के हाथ में आ जाता है, कोई बाण आग बरसाने लगता है तो कोई पानी से उसे बुझाने की क्षमता रखता है,कोई तीर एकसाथ सैकड़ों तीरों की बारिश कर देता है तो कोई पत्थरों की। ये सभी दिव्यास्त्र हैं। 'दिव्यास्त्र' मतलब दिव्य अस्त्र…ऐसे अस्त्र, जो, उनका इस्तेमाल करने वाले के इशारों पर काम करते हों और एक ही बार में दुश्मन के तमाम ठिकानों को नेस्तनाबूद करने की क्षमता रखते हों। ‘दिव्यास्त्र’ शब्द का उल्लेख आमतौर पर प्राचीन भारतीय पौराणिक ग्रंथों और कथाओं विशेषकर महाभारत और रामायण में मिलता है। नई पीढ़ी को इस शब्द से रूबरू कराने में इन ग्रंथों पर बने धारावाहिकों ने अहम भूमिका निभाई है। 


ऐसा बताया जाता है कि देवताओं और ऋषियों द्वारा प्रदत्त ये अस्त्र विशिष्ट देवताओं से जुड़े होते थे और दिव्य शक्तियों से सज्जित ये हथियार काम पूरा करने के बाद ही वापस लौटते थे। एक बार दिव्यास्त्र छोड़ने के बाद उन्हें रोकना भी मुश्किल होता था इसलिए दिव्यास्त्र का उपयोग निर्धारित नीति के अनुरूप, दिशा निर्देश का पालन करते हुए और पूरी  जिम्मेदारी के साथ किया जाता था। सामान्य भाषा में समझे तो ऐसे अकाट्य अस्त्र शस्त्र जो किसी भी व्यक्ति के सर्वशक्तिशाली होने का पर्याय होते हैं।


अब बात भारत के ‘मिशन दिव्यास्त्र’ की। दरअसल,दुनिया के चुनिंदा देशों के इलीट क्लब में शामिल होने के लिए और आर्थिक एवं वैश्विक पटल पर अपनी धमक बनाने के लिए अपनी ताक़त का प्रदर्शन करना भी जरूरी है। संपूर्ण विकास के लिए देश का सर्व शक्तिशाली होना भी उतना ही जरूरी है इसलिए भारत ने ‘मिशन दिव्यास्त्र’ की शुरुआत की। इसका उद्देश्य एक ऐसा अस्त्र तैयार करना था जो एक साथ कई अस्त्र शस्त्रों की अकल ठिकाने लगाने का माद्दा रखता हो। सबसे खास बात यह है कि दिव्यास्त्र के विकास का जिम्मा शक्ति स्वरूपा महिला वैज्ञानिकों को सौंपा गया। वैसे भी, हमारी पौराणिक कथाओं के अनुसार शक्ति के हाथ में ही देवताओं ने अपनी तमाम दिव्य शक्तियां सौंप दी थी ताकि वे शत्रुओं का सर्वमूल विनाश कर सकें।


भारत ने इस साल 11 मार्च को न्यूक्लियर बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का पहला सफल फ्लाइट परीक्षण कर इतिहास रच दिया है। अग्नि-5 मिसाइल को मेक इन इंडिया पहल के तहत रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन -डीआरडीओ द्वारा विकसित किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अग्नि-5 मिसाइल को 'मिशन दिव्यास्त्र' नाम दिया है। 


डीआरडीओ ने सफल प्रक्षेपण के बाद आधिकारिक रुप से बताया कि ‘मिशन दिव्यास्त्र’ नामक यह उड़ान परीक्षण ओडिशा के डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया। विभिन्न टेलीमेट्री और रडार स्टेशनों ने अनेक री-एंट्री व्हीकल्‍स को ट्रैक और मॉनिटर किया। इस मिशन ने निर्दिष्‍ट मानकों को सफलतापूर्वक पूरा किया।


इस मिसाइल के सफल परीक्षण के साथ ही अब भारत की पहुँच चीन और पाकिस्तान सहित विश्व के लगभग आधे देश या आधी दुनिया तक हो चुकी है। यह मिसाइल 5 हजार किलोमीटर से भी अधिक दूर के लक्ष्य को भेद सकती है। यह, मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल- एमआईआरवी तकनीक के साथ स्वदेशी रूप से विकसित अग्नि-5 मिसाइल का पहला उड़ान परीक्षण था। इस मिसाइल के सफल परीक्षण के साथ ही भारत ने एक ही मिसाइल के माध्यम से विभिन्न स्थानों पर कई लक्ष्यों को भेद सकने की क्षमता विकसित कर ली है। आमतौर पर एक मिसाइल में एक ही वॉरहेड होता है और ये एक ही लक्ष्य को मार करता है जबकि अग्नि 5 इस मामले में सबसे अलग है और कई लक्ष्यों को साध सकती है ।


एमआईआरवी एक ऐसी अत्याधुनिक तकनीक है जो किसी मिसाइल को एक ही बार में एक से अधिक परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता प्रदान करती है। इससे दुश्मन के विभिन्न लक्ष्यों को एक साथ निशाने पर लेकर नष्ट किया जा सकता है।एमआईआरवी तकनीक का विकास सबसे पहले अमेरिका ने 1970 के आसपास किया था। इसके बाद सोवियत संघ ने यह प्रौद्योगिकी हासिल कर ली। 20वीं सदी  तक अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ही इस प्रौद्योगिकी से सुसज्जित कई  अंतर महाद्वीपीय और पनडुब्बी से मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलें विकसित कर लीं थीं।​​​​​ 


अग्नि सीरीज की यह पांचवी मिसाइल 5000 किलोमीटर से अधिक दूरी की मारक क्षमता वाली है। अग्नि 5 मिसाइल को देश की दीर्घकालिक सुरक्षा जरूरतों को देखते हुए विकसित किया गया है। यह मिसाइल यूरोप के कुछ क्षेत्रों सहित लगभग पूरे एशिया तक  मारक क्षमता रखती है। 


अग्नि 5 जमीन से जमीन पर मार करने वाली और करीब डेढ़ टन तक न्यूक्लियर हथियार  ले जाने में सक्षम मिसाइल है। इस मिसाइल की रफ्तार आवाज की रफ्तार से करीब 24 गुना अधिक है। दिव्यास्त्र यानि इस भारतीय मिसाइल की एक अन्य खासियत यह है कि इसके लॉन्चिंग सिस्टम में कैनिस्टर टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया है। इस प्रौद्योगिकी के फलस्वरूप मिसाइल को कहीं भी आसानी से ले जाया सकता है। गौरतलब है कि भारत के पास पहले से ही अग्नि 1 से अग्नि 4 तक की मिसाइलों का जखीरा है। इन विभिन्न मिसाइलों की मारक क्षमता 700 किलोमीटर से 3,500 किलोमीटर तक है और ये पहले ही देश की सुरक्षा में अहम भूमिका निभा रही हैं। अब भारत, पृथ्वी की वायुमंडलीय सीमा के अंदर और बाहर दुश्मन देशों की बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने की क्षमता भी विकसित कर रहा है। मिशन दिव्यास्त्र की सफलता भारत की बढ़ती तकनीकी शक्ति की प्रतीक है और इसने भविष्य में और उन्नत प्रौद्योगिकी के विकास का रास्ता प्रशस्त किया है ।

 

मिशन दिव्यास्त्र ने देश में विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भूमिका को दर्शाते हुए, कार्यक्रम निदेशक शीना रानी के नेतृत्व में मिशन दिव्यास्त्र की सफलता में बड़ी संख्या में महिला वैज्ञानिक शामिल थीं। वरिष्ठ वैज्ञानिक शीना रानी पहले भी कई सफल मिसाइल परीक्षणों में शामिल रही हैं। कार्यक्रम की परियोजना निदेशक डॉ. शंकरी एस ने इस मिशन की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अग्नि-5 मिसाइल के लिए मल्टीपल इंडिपेंडेंट टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल तकनीक विकसित करने में उनकी और उनकी टीम की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में अन्य महिला वैज्ञानिकों ने भी भरपूर सहयोग किया है । इनमें उषा वर्मा, नीरजा, विजय लक्ष्मी और वेंकटमणि जैसे नाम प्रमुख हैं। 


उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मिशन दिव्यास्त्र की सफलता पर बधाई दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस जटिल मिशन के संचालन में भाग लेने वाले डीआरडीओ के वैज्ञानिकों के प्रयासों की सराहना की है। प्रधानमंत्री ने कहा कि, ‘मिशन दिव्यास्त्र के लिए डीआरडीओ के हमारे वैज्ञानिकों पर गर्व है ।’ वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इसे असाधारण कामयाबी बताते हुए संबंधित वैज्ञानिकों और पूरी टीम को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि डीआरडीओ की यह अभूतपूर्व उपलब्धि भारत के समग्र विकास पथ के अनुरूप है। मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल तकनीक के साथ अग्नि-5 मिसाइल का पहला उड़ान परीक्षण भारत की स्वदेशी रक्षा क्षमताओं और नवाचार की भावना का प्रमाण है।


कुल मिलाकर कहा जाए तो मिशन दिव्यास्त्र की सफलता ने भारत को उपलब्धियों के ऐसे नए पंख प्रदान कर दिए हैं जो भविष्य में नित नई ऊंचाइयों को छूने का अवसर दे दिया है। इससे दुनिया के सामने देश की सशक्त छवि बनी है और उसे विश्व के चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल होने का मौका मिला है। इससे देश का सम्मान बढ़ा है और वैज्ञानिक पथ पर आगे कदम बढ़ाने का रास्ता खुल गया है जो भविष्य में ऐसे और भी दिव्यास्त्रों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगा।




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