शनिवार, 15 जून 2024

मोदी मंत्र: तनाव नहीं उत्सव है परीक्षा

परीक्षा का नाम सुनते ही शरीर में एक फुरफुरी उठना स्वाभाविक प्रक्रिया है। जरूरी नहीं है कि परीक्षा केवल बोर्ड परीक्षा हो बल्कि संघ लोक सेवा आयोग द्वारा ली जाने वाली परीक्षाओं के दौरान भी होनहार से होनहार परीक्षार्थी भी इस तनाव के दौर से गुजरते हैं। दरअसल, सालों से चले आ रहे सामाजिक दबाव, पीढ़ियों से चली आ रही पारिवारिक प्रतिस्पर्धा, अभिभावकों की अज्ञानता एवं लालसा, शिक्षकों की नाम कमाने की चाह और कोचिंग संस्कृति ने बच्चों में हमेशा सबसे अव्वल रहने की ऐसी कामना जगा दी है जिसने समय के साथ परीक्षा के तनाव को जन्म दे दिया है। साल दर साल यह तनाव हमारी आदत और विद्यार्थियों की आदत में घुलता मिलता रहा और अब यह सुस्थापित संस्कृति बन गया है।

परीक्षा और खासकर बोर्ड परीक्षाओं के दौरान आप किसी ऐसे घर में जाकर वहां का वातावरण देखें तो आप आसानी से समझ सकते हैं कि परीक्षा का तनाव कैसे और कहां से उत्पन्न होता है और फलता फूलता है। परीक्षा के दौरान घर को कुरुक्षेत्र का मैदान बना देना अभिभावकों का सामान्य स्वभाव बन गया है। यह स्थिति परीक्षा ही नहीं, परिणामों तथा उसके बाद तक बनी रहती है। किसी दौर में 60 प्रतिशत आना घर ही नहीं शहर में सम्मान की बात होती थी क्योंकि ये प्रतिशत प्रथम श्रेणी कहलाते थे और आज 60 प्रतिशत क्या 75 से 80 प्रतिशत आने पर भी अभिभावक ऐसे मायूस लगते हैं जैसे उनका बच्चा परीक्षा में फेल हो गया है। नब्बे प्रतिशत से अधिक की दौड़ ने घर घर में परीक्षा के तनाव को लोक संस्कृति का रूप दे दिया है। देश के मुखिया को यदि किसी विषय पर अवाम को लगातार संबोधित करना पड़े तो यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि वह विषय कितना गंभीर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सालाना परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम इसी दिशा में किया जा रहा एक उत्कृष्ट एवं सराहनीय प्रयास है। संभवतः दुनिया के किसी देश में प्रधानमंत्री ने इस तरह की अनूठी तथा अनुकरणीय पहल नहीं की है। श्री मोदी सात साल से अपने इस मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं और हर साल उनके इस कार्यक्रम से जुड़ने वाले विद्यार्थियों, अभिभावकों और शिक्षकों की संख्या बढ़ रही है। परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम 2018 में शुरू हुआ  था। इस कार्यक्रम में देश-विदेश के छात्र, शिक्षक और अभिभावक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ परीक्षाओं और स्कूली जीवन से संबंधित चिंताओं पर चर्चा करते हैं। परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम पहली बार साल 2018 में मनाया गया था। इस कार्यक्रम में देश-विदेश दोनों के ही छात्र, शिक्षक और अभिभावक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ परीक्षाओं और स्कूली जीवन से संबंधित चिंताओं पर चर्चा करते हैं। परीक्षा पे चर्चा 2024 के लिए 2 करोड़ से ज्यादा छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों ने रजिस्ट्रेशन करवाया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के मुताबिक, 2.26 करोड़ छात्रों ने श्री मोदी के बहुप्रतीक्षित कार्यक्रम पीपीसी 2024 के लिए पंजीकरण करवाया। MyGov पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, छात्रों के अलावा 14 लाख से ज्यादा शिक्षकों और 5 लाख अभिभावकों ने परीक्षा पे चर्चा 2024 के लिए पंजीकरण किया है. इस खास प्रोग्राम के दौरान 4 हजार लोगों ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की। इस साल परीक्षा के दौरान तनाव प्रबंधन पर चर्चा करते हुए श्री मोदी ने कहा कि ये तो नहीं कह सकते कि switch off, प्रेशर बंद, ऐसा तो नहीं कह सकते, तो हमने अपने आप को एक तो किसी भी प्रकार के प्रेशर को झेलने के लिए सामर्थ्यवान बनाना चाहिए, रोते बैठना नहीं चाहिए। मान के चलना चाहिए कि जीवन में आता रहता है, दबाव बनता रहता है। तो खुद को तैयार करना पड़ता है। वहीं, प्रतिस्पर्धा से तनाव की चिंता पर प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर जीवन में चुनौतियां न हो, स्पर्धा न हो, तो फिर जीवन बहुत ही प्रेरणाहीन बन जाएगा, चेतनाहीन बन जाएगा, competition होनी ही चाहिए।  परंतु कभी भी हमें ईर्ष्या भाव कतई अपने मन में नहीं आने देना चाहिए। हम अपने दोस्‍तों से स्‍पर्धा और ईर्ष्या के भाव में न डूबें और मैंने तो ऐसे लोग देखे हैं कि खुद फेल हो जाएं, लेकिन अगर दोस्‍त सफल हुआ है तो मिठाई वो बांटता है। मैंने ऐसे भी दोस्‍त देखे हैं कि जो बहुत अच्‍छे नंबर से आए हैं, लेकिन दोस्‍त नहीं आया, इसलिए उसने अपने घर में पार्टी नहीं की, फेस्टिवल नहीं मनाया। परीक्षा के समय तनाव के कारण होने वाली गलतियों पर उन्होंने विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि कुछ गलतियां यानी रोजमर्रा को हम थोड़ा observe करें तो पता चलेगा। कुछ गलतियां पेरेंट्स के अति उत्साह के कारण होती हैं। कुछ गलतियां स्टूडेंट्स की अति से sincerity से होती है। मैं समझता हूं, इससे बचा जाए। जैसे मैंने देखा है कि कुछ मां बाप को लगता है कि आज एग्जाम है तो बेटे को नई पेन लाकर के दो। जरा कपड़े अच्छे पहनाकर के भेजो, तो उसका काफी समय तो उसमें एडजस्ट होने में ही निकल जाता है। शर्ट ठीक है कि नहीं है, यूनिफॉर्म ठीक पहना है कि नहीं पहना है। मां बाप से मेरा आग्रह है जो पेन रोज उपयोग करता है न वही दीजिए आप। या वहां पेन दिखाने थोड़ी जा रहा है वो, और परीक्षा के समय किसी को फुर्सत नहीं है आपका बच्चा नया पहनकर के आया, पुराना पहन के आया है। तो इस साइकी से उनको बाहर आना चाहिए। दूसरा कुछ ऐसी चीजें खिलाकर के भेजेंगे कि एग्जाम है ये खाकर जाओ, एग्जाम है ये खाकर जाओ, तो उसको और मुसीबत होती है कि उसका वो comfort नहीं है। आवश्यकता से अधिक उस दिन खाना फिर मां कहेगी कि अरे तुम्हारा तो एग्जाम सेंटर इतना दूर है। तुम रात आते-आते 7 बज जाएगा, ऐसा करो कुछ खाकर जाओ फिर कहेगी कुछ लेकर जाओ। वो resist करने लगता है नहीं, मैं नहीं ले जाऊंगा। वहीं से तनाव शुरू हो जाता है, घर से निकलने से पहले हो जाता है। तो मेरी सभी पेरेंट्स से अपेक्षा है और मेरा सुझाव है कि आप उसको अपनी मस्ती में जीने दीजिए। एग्जाम देने जा रहा है तो उत्साह उमंग के साथ चला जाए बस। जो विद्यार्थियों में लिखने,लिखकर अभ्यास करने और सोशल मीडिया टूल से तैयारी को लेकर प्रधानमंत्री सबसे ज्यादा चिंतित दिखे। उन्होंने कहा कि आजकल यह सबसे बड़ी समस्या है । उन्होंने पूछा कि आप मुझे बताइये, आप exam देने जाते हैं, मतलब आप physically क्या करते हैं। आप physically पेन हाथ में पकड़कर के लिखते हैं, यही करते है न? दिमाग अपना काम करता है लेकिन आप क्या करते हैं, लिखते हैं। आज के युग में आईपेड के कारण, कम्प्यूटर के कारण, मोबाइल के कारण मेरी लिखने की आदत धीरे-धीरे कम हो गई है। जबकि एग्जाम में लिखना होता है। इसका मतलब हुआ कि मुझे अगर एग्जाम के लिए तैयार करना है तो मुझे अपने आपको लिखने के लिए भी तैयार करना है। आजकल बहुत कम लोग हैं, जिनको लिखने की आदत है। अब इसलिए daily जितना समय आप अपने पठन पाठन में लगाते हैं स्कूल के बाद। उसका minimum 50% time, minimum 50% time आप खुद अपनी नोटबुक के अंदर कुछ न कुछ लिखेंगे। हो सके तो उस विषय पर लिखेंगे। और तीन बार चार बार खुद का लिखा हुआ पढ़ेंगे और खुद का लिखा हुआ करेक्ट करेंगे। तो आपका जो improvement होगा किसी की मदद बिना इतना बढ़िया हो जाएगा कि आपको बाद में लिखने की आदत हो जाएगी। तो कितने पेज पर लिखना, कितना लिखने में कितना समय जाता है, ये आपकी मास्टरी हो जाएगी। श्री मोदी ने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि आपके एग्जाम में एक बड़ा चैलेंज होता है लिखना। कितना याद रहा, सही रहा, गलत रहा, सही लिखते हैं, गलत लिखते हैं तो वो तो बाद का विषय है। आप अपना ध्यान प्रैक्टिस में इस पर कीजिए। अगर ऐसी कुछ चीजों पर अगर आप ध्यान केंद्रित करेंगे, मुझे पक्का विश्वास है कि एग्जाम हॉल में बैठने के बाद जो uncomfort  या pressure फील करते हैं वो आपको लगेगा ही नहीं क्योंकि आप आदि हैं। अगर आपको तैरना आता है तो पानी में जाने से डर नहीं लगता है आपको क्योंकि आप तैरना जानते हैं। आपने किताबों में तैरना ऐसे होता है और आप सोचते हैं हां मैंने तो पढ़ा था भई हाथ पहले ऐसे करते हैं, फिर दूसरा हाथ फिर तीसरा हाथ फिर चौथा हाथ तो फिर आपको लगता है कि हां पहले हाथ पहले पैर। दिमाग से काम कर लिया, अंदर जाते ही फिर मुसीबत शुरू हो जाती है। लेकिन जिसने पानी में ही प्रैक्टिस शुरू कर दी, उसको कितना ही गहरा पानी क्यों न हो उसको भरोसा होता है मैं पार कर जाऊंगा। और इसलिए प्रैक्टिस बहुत आवश्यक है, लिखने की प्रैक्टिस बहुत आवश्यक है। और लिखना जितना ज्यादा होगा, शार्पनेस ज्यादा आएगी। आपके विचारों में भी शार्पनेस आएगी। और अपनी लिखी हुई चीज को तीन बार, चार बार पढ़कर खुद करेक्ट कीजिए। जितना ज्यादा खुद करेक्ट करोगे, आपकी उस पर ग्रिप बहुत ज्यादा आएगी। तो आपको अंदर बैठकर के कोई प्रॉबल्म नहीं होगी। दूसरा अगल-बगल में वो बड़ी स्पीड से लिख रहा है। मैं तो तीसरे question पर अड़ा हुआ हूं, वो तो सातवें पर चला गया। दिमाग इसमें मत खपाईये बाबा। वो 7 में पहुंचे, 9 में पहुंचे, करे न करे, पता नहीं वो सिनेमा की स्टोरी लिखता होगा, तुम अपने पर भरोसा करो, तुम अपने पर भरोसा करो। अगल-बगल में कौन क्या करता है छोड़ो। जितना ज्यादा अपने आप पर फोकस करोगे उतना ही ज्यादा आपका question paper पर फोकस होगा। जितना ज्यादा question paper पर फोकस होगा इतना ही आपके answer एक-एक शब्द पर हो जाएगा, और ultimately आपको परिणाम उचित मिल जाएगा । प्रधानमंत्री की पहल और नीतियों पर अमल करते हुए सीबीएसई (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) ने 9वीं से 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए किताबें और नोट्स खोलकर परीक्षा देने की शुरुआत करने का एलान  किया है । जानकारी के अनुसार नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (एनएफसी) की सिफारिशों के तहत ओपन बुक एग्जाम (ओबीई) को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इसी साल नवंबर-दिसंबर से शुरू किए जाने की संभावना है। हालांकि, ओपन बुक एग्जाम को 10वीं और 12वीं बोर्ड की परीक्षाओं में लागू नहीं किया जाएगा। उम्मीद है कि इससे  छात्रों में परीक्षा के प्रति अनावश्यक तनाव और चिंताओं में कमी आएगी। शुरुआत में पायलट प्रोजेक्ट के अंतर्गत कुछ स्कूलों में ओपन बुक एग्जाम होगा। सभी पक्षों द्वारा आकलन करने के बाद इसे देशभर में लागू किया जाएगा। दुनिया के कई प्रमुख देशों में मसलन नॉर्वे, फिनलैंड, स्वीडन और डेनमार्क के स्कूलों में, अमेरिका लॉ कॉलेज, जर्मनी के इंजीनियरिंग कोर्स, ऑस्ट्रेलिया में मेडिकल की परीक्षाएं और ब्रिटेन में इकोनॉमिक्स के ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में परीक्षाएं ओपन बुक एग्जाम पद्धति से होती हैं। तकनीकी और गैजेट के बढ़ते इस्तेमाल पर प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे यहां शास्‍त्रों में भी कहा गया है और सहज जीवन में भी कहा गया है...किसी भी चीज की अति किसी का भला नहीं करती है। हर चीज, उसका एक मानदंड होना चाहिए, उसके आधार पर होता है। मैं समझता हूं कि परिवार में कुछ नियम होने चाहिए, जैसे खाना खाते समय डाइनिंग टेबल पर कोई इलेक्ट्रॉनिक गजट नहीं होगा, मतलब नहीं होगा। उन्होंने कहा कि टेक्‍नोलॉजी को बोझ नहीं मानना चाहिए, टेक्‍नोलॉजी से दूर भागना नहीं चाहिए, लेकिन उसका सही उपयोग सीखना उतना ही अनिवार्य है। अगर आप टेक्‍नोलॉजी से परिचित हैं...आपके माता-पिता को पूरी नॉलेज नहीं है...सबसे पहला आपका काम है आज मोबाइल पर क्‍या-क्‍या available है, उनसे चर्चा कीजिए...उनको एजुकेट कीजिए...और उनको विश्‍वास में लीजिए कि देखिए, मैथ में मुझे ये चीजें यहां मिलती हैं, केमिस्ट्री में मुझे ये मिलती हैं, हिस्ट्री में ये मिलती हैं, और मैं इसको देखता हूं, आप भी देखिए। तो वो भी थोड़ी रुचि लेंगे, वरना क्‍या होगा...हर बार उनको लगता होगा कि मोबाइल मतलब ये दोस्‍तों के साथ चिपका हुआ है। मोबाइल मतलब रील देख रहा है। यदि हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस पहल को देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक परिस्थितियों के लिहाज से देखें तो यह स्पष्ट नजर आता है कि परीक्षा से तनाव किसी एक घर, स्कूल, शहर या राज्य  की समस्या नहीं है बल्कि राष्ट्रीय समस्या है और इसका निवारण केवल और केवल किसी विशिष्ट व्यक्ति की बातचीत से ही निकल सकता है क्योंकि उस व्यक्ति की बात विद्यार्थियों के साथ साथ अभिभावक और शिक्षक भी सुन रहे होते हैं। श्री मोदी की बात उन परिवारों तक भी पहुंचती है जिनके बच्चे परीक्षा नहीं दे रहे हैं। इससे समाज के स्तर पर बदलाव की शुरुआत होती है। यह बदलाव पीयर प्रेसर कम करता है जिसका असर अभिभावकों के माध्यम से बच्चों तक पहुंचता है। धीरे धीरे ही सही यह बदलाव अपना असर दिखाएगा और हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए तनाव रहित परीक्षा का वातावरण तैयार कर पाएंगे ताकि फिर किसी परिवार का होनहार बच्चा आत्महत्या जैसा जघन्य कदम न उठाए और किसी परिवार को अपने मासूम लाडले से दूर न होना पड़े।











कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आइए, मेघा रे मेघा रे...के कोरस से करें 'मानसून' का स्वागत

मेघा रे मेघा रे...सुनते ही आँखों के सामने प्रकृति का सबसे बेहतरीन रूप साकार होने लगता है, वातावरण मनमोहक हो जाता है और पूरा परिदृश्य सुहाना ...