शनिवार, 15 जून 2024

तो,क्या रेणु-प्रेमचंद आएंगे पुस्तक का प्रचार करने

 

जिन्होंने जीवन में एक किताब भी न लिखी-पढ़ी है, वे भी आपको ज्ञान देते नज़र आएंगे कि यार ज्यादा पब्लिसिटी मत करो,जिसे पढ़ना होगा खुद ढूंढकर पढ़ लेगा,किताब है उत्पाद नहीं…टाइप ज्ञान की चौतरफ़ा भरमार दिखेगी। अरे भैया, हम क्या फणीश्वर नाथ रेणु हैं या मुंशी प्रेमचंद, की लोग अपने आप तलाशकर पढ़ लेंगे। कोई भी किताब अपनी विषय वस्तु,भाषा और कथन शैली से गबन, गोदान, राग दरबारी या मैला आंचल बनती है लेकिन यह तो तब पता चलेगा जब पाठकों तक वह किताब पहुंचेगी और उन पाठकों तक किताब पहुंचाने के लिए प्रचार तो जरूरी है वरना जंगल में मोर नाचा किसने देखा इसलिए मेरी किताब ‘अयोध्या 22 जनवरी’ पढ़ो या पुस्तक ‘चार देश चालीस कहानियां’ खरीदो…कहने/पोस्ट करने/मार्केटिंग/सोशल मीडिया पर शेयर करने में क्या बुराई है?


किताब कोई अमिताभ बच्चन, रजनीकांत, शाहरुख या सलमान की फिल्म तो है नहीं कि ‘पहला दिन पहला शो’ देखने वाले टूट पड़ेंगे। वैसे भी, इन नामी गिरामी अभिनेताओं को भी अपनी फिल्म चलाने के लिए कितने धतकरम करने पड़ते हैं, हम सब जानते हैं। फिल्म की लांचिंग से लेकर रिलीज तक सैकड़ों समाचार,इंटरव्यू, चटखारेदार खबरें,फोटो…और पता नहीं क्या क्या। तब जाकर फिल्म के प्रति आकर्षण बनता है और आप बेचारे नवोदित लेखक को ज्ञान दे रहे हैं कि पब्लिसिटी मत करो..क्यों?


हम सभी को रट गया है कि ‘ठंडा मतलब कोकाकोला…’, फिर भी हर गर्मी में दिनरात रटाया जाता है और कोई ज्ञानी नहीं कहता कि भैया, अब बस करो। यही नहीं, उन्हें तो अपना उत्पाद चलाने के लिए धोनी,तेंदुलकर,ऐश्वर्या से लेकर कुत्ते बिल्ली तक का सहारा लेना पड़ता है और हम यदि अपने पाठक के साथ फोटो पोस्ट कर दें तो हायतौबा मचने लगती है। फेसबुक के तमाम मठाधीश टीका टिप्पणियां जाने लगते हैं मानो कोई धर्म विरुद्ध काम हो गया। मेरा मानना है कि पुस्तक भी एक उत्पाद है जिसे लेखक ने स्वयं के पैसे लगाकर,प्रकाशन हाउस के पैसों से या फिर किसी सरकारी संस्थान की वित्तीय मदद से तैयार किया है। लेखन से लेकर प्रकाशन तक तमाम लोगों मसलन टाइपिस्ट, डिजाइनर, मशीनमैन, तकनीशियन, ले आउट बनाने वाला, कवर बनाने वाले की मेहनत जुड़ी होती है इसलिए यदि उसका ढंग से प्रचार प्रसार नहीं हुआ तो सभी के परिश्रम पर पानी फिर जाएगा। 


मेरा प्रयास भी रहता है और सलाह भी यही है कि आपकी किताब आपका और सिर्फ आपका सबसे प्रिय और कीमती प्रोडक्ट है।  उसे सुधी पाठकों तक पहुंचाना प्रकाशक के साथ साथ आपका भी कर्तव्य है इसलिए भरपूर प्रचार प्रसार कीजिए, हर मंच का उपयोग कीजिए जिससे आपकी रचना स्वांत: सुखाय न रहकर पाठकों के हाथों तक पहुंचे तभी आपकी अगली पुस्तक अपने आप पाठकों के आकर्षण का केंद्र बन जाएगी और अमीश त्रिपाठी,चेतन भगत जैसा नाम बनेगा ।


हमने देखा है न कि,बाजार में सैकड़ों प्रकार के साबुन उपलब्ध हैं, फिर भी आए दिन नए नए साबुन बाजार में आ रहे हैं। उनमें से कुछ मार्केट में अपने ‘यूएसपी’ के कारण जम जाते हैं। ग्राहकों को उस उत्पाद यूएसपी का पता तभी चल पाता है जब उस साबुन/उत्पाद का प्रचार होता है। जीवनदायिनी दवाइयों तक को तो प्रचार की जरूरत पड़ती है फिर ज्ञानदायिनी पुस्तकों के प्रचार में,उनके बारे में पाठकों को बताने में और उन्हें सही हाथों तक पहुंचाने में कैसा परहेज और किस बात की शर्म।


मेरा अपना अनुभव है, जब मैंने ‘चार देश चालीस कहानियां’ लिखी तो उसका व्यवस्थित प्रचार भी किया और उसे पाठकों का भरपूर समर्थन मिला जिसे प्रकाशन समूह की भाषा में ‘बेस्टसेलर’ कहते हैं। यदि मैं,किताब प्रकाशित करवाकर घर में रखकर बैठ जाता तो कौन उसे पढ़ पाता। पहली किताब के बाद दूसरी किताब ‘अयोध्या 22 जनवरी’ के लिए तुलनात्मक कम परिश्रम करना पड़ा। चूंकि पहली पुस्तक से पाठक मेरी लेखन और कथन शैली से परिचित हो गए थे इसलिए दूसरी किताब पढ़ने के लिए उनमें से कई पाठक पुनः जुड़े…इसलिए नए लेखकों से अपील है कि बिल्कुल न झेंपे, न ही डरें…खूब प्रचार करें और पाठकों को बताएं कि किताब में क्या खास है उसकी यूएसपी क्या है..तभी वे जुड़ेंगे और तभी पढ़ेंगे और तभी आप लेखक /कवि /कथाकार /व्यंग्यकार के रूप में स्थापित होंगे।



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