शनिवार, 15 जून 2024

रिश्तों की गुल्लक सी है- ‘डायरी का मुड़ा हुआ पन्ना’

हम सभी के जीवन में बचपन से दो चीज अनिवार्य तौर पर शामिल रही हैं- एक है गुल्लक और दूसरी डायरी। गुल्लक का काम माता-पिता और रिश्तेदारों से मिले पैसों को सहेजना था तो डायरी का काम इन सभी के साथ अपने रिश्ते के तानेबाने,सुख-दुख और जीवन में घट रही घटनाओं को सहेजना। 

वरिष्ठ पत्रकार, व्यंग्यकार और लेखक संजय सक्सेना की पुस्तक ‘डायरी का मुड़ा हुआ पन्ना’ रिश्तों की गुल्लक के समान है। जैसे-जैसे आप इसके पन्ने पलटते हैं,आपको अपने आसपास के किरदार, आपके साथ घटी घटनाएं और रिश्तों को सहजने-समेटने का प्रयास अपना सा नजर आता है और आप इसके सहज प्रवाह में बहने लगते हैं। लेखक ने भले ही यह कहा है कि उनकी किताब फेसबुक पर लिखे हुए पोस्ट का संकलन है लेकिन हकीकत यह है कि यह किताब रिश्तों का संकलन है, उनके आसपास के किरदारों का संग्रहण है और कई सारे भावनात्मक पहलुओं का सम्मिश्रण है।


‘डायरी का मुड़ा हुआ पन्ना’ पुस्तक की छोटी-छोटी कहानी हमें हंसाती भी हैं और कई बार गंभीर भी करती हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हर लेखा हमें कोई न कोई सीख देकर जाता है.. चाहे फिर वह ‘हंसता हुआ नीम का पेड़ हो’, जो हमारी जीवन शैली का मजाक उड़ाता नजर आता है  या फिर ‘काम से लौट कर भी काम पर लौटती है’ लेख में घर में मां, पत्नी, बहन और बेटी की भूमिका। ‘चौपाल…’ जहां दोस्तों की महफिल सजाती है तो ‘कौन सा मेंढक न है’ लेख जीवन की कुछ और हकीकतों से रूबरू कराता है।


 ‘डायरी का मुड़ा हुआ पन्ना’ हमें मालवा निमाड़ की सौंधी खुशबू से जोड़ती है तो साथ ही आदिवासी संस्कृति की झलक भी पेश करती है। ‘भगोरिया’ और ‘गलचूल’ पर्वों पर केंद्रित लेख जहां हमें आदिवासियों की सहज संस्कृति से जोड़ देते हैं तो ‘नमकीन सत्तू’, ‘लंगोटिया यारी का जमघट’, ‘अटल जी का एकाकीपन’ और ‘आसान नहीं है बशीर भद्र हो जाना’... जैसे लेख समाज के आदर्शों ,उसूलों और  जीवन से जुड़ी घटनाओं से हमें जोड़ते हैं। 


सहज, सरल और आम बोलचाल की भाषा में लिखी गई है पुस्तक  डायरी का मुड़ा हुआ पन्ना वाकई रिश्तों की मजबूत गुल्लक की तरह है जिसे हर घर के महत्वपूर्ण कोने में स्थान मिलना चाहिए ताकि आप अपने रिश्तों को, भावनात्मक पहलुओं को और अपने आसपास के किरदारों को उसमें सहजेते रहें जो आज नहीं तो आने वाले कुछ सालों बाद आपके जीवन के एकाकीपन में रंग भरने का काम करेंगे। लेखक ने खुद लिखा है:


‘काग़ज की ये महक...ये नशा रूठने को है,

ये आख़िरी सदी है...किताबों से इश्क़ की।’


पुस्तक का कवर बेहद खूबसूरत है और उतना ही खूबसूरत है अधिकतर लेखों में जाने-माने शायरों के कुछ चुनिंदा शेर । पुस्तक का प्रकाशन भोपाल के लोक प्रशासन ने किया है। यह प्रकाशन अपनी साफ सुथरी, त्रुटि रहित प्रिंटिंग,पठनीय फॉन्ट  और दर्शनीय कवर के लिए तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। यह पुस्तक अमेजन से लेकर इंटरनेट की तमाम लोकप्रिय साइट पर मौजूद है। महज ₹200 में उपलब्ध 155 पन्नों में फैली रिश्तों की यह गुल्लक आपको और आपकी आने वाली पीढ़ी को परस्पर संबंधों के महत्व का पाठ पढाने के लिए  वाकई जरूरी है।


पुस्तक : ‘डायरी का मुड़ा हुआ पन्ना’

लेखक : श्री संजय सक्सेना

मूल्य : 200 रुपए

पृष्ठ संख्या : 155

प्रकाशन : लोक प्रकाशन








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